SPECIAL REPORT : ये तेरे माफिया, ये मेरे माफिया!
SPECIAL REPORT : ये तेरे माफिया, ये मेरे माफिया! SPECIAL REPORT ON GANGSTERS IN UTTAR PRADESH
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अपनी अपनी चुनावी रैलियों में बीजेपी की टॉप लीडरशिप यूपी में माफियाओं की कार्रवाई को लेकर योगी सरकार पीठ थपथपाते रहे। कानून व्यवस्था को ही बीजेपी ने चुनाव का सबसे अहम मुद्दा बनाया। लेकिन क्या सच में गुंडे माफिया दहशत में हैं? क्या सच में यूपी के सारे माफियाओं को खत्म कर दिया गया? या फिर ये सिर्फ आंखों का धोखा है, आइये इसकी पड़ताल करते हैं।
इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है, ब्रिज भूषण शरण सिंह। कहते हैं कानून की किताब में संगीन जुर्म की ऐसी कोई धारा नहीं जो इनपर लगी ना हो। लोग इनसे डरते हैं, गोंडा, बलरामपुर और यहां तक की सूबे की राजधानी में भी इनकी तूती बोलती है। बीजेपी सांसद हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बड़े करीबी माने जाते हैं। अभी ताज़ा ताज़ा इनका एक वीडियो वायरल हुआ था जब इन्होंने रांची में कुश्ती के एक प्रोग्राम के दौरान स्टेज पर इस युवा पहलवान पर थप्पड़ जड़ दिए थे। ब्रिज भूषण शरण सिंह को सिर्फ बाहुबली के तौर पर नहीं जाना जाता है, बल्कि ये ऐसे बाहुबली हैं जिनके पास अपना खुद का हेलीकॉप्टर भी है।
हमने और बारीकी से देखना शुरु किया तो हमें दिखे क्रिकेट खेलते हुए धनंजय सिंह। यूपी के विधानसभा चुनावों में नितिश बाबू की जेडीयू से जौनपुर में उम्मीदवार है। मगर इन पर कई सनसनीखेज़ हत्याओं का आरोप है, फिलहाल इन्हें भगोड़ा घोषित किया जा चुका है। इस मोस्ट वॉन्टेड पर 25 हज़ार रुपए का इनाम है। और अभी अभी कुछ दिनों पहले जौनपुर में उनका क्रिकेट खेलते हुए वीडियो खूब वायरल हुआ। ये भगोड़ा बाहुबली जौनपुर में खुलेआम लाव-लश्कर के साथ घूमता दिखा। लोगों के साथ क्रिकेट खेलता भी दिखा, यहां तक की उद्घाटन समारोह में भी शामिल हुआ। सब ने देखा मगर यूपी पुलिस इसे नहीं देख पाई। और तो और जब मिसेज़ धनंजय सिंह ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनावो में खड़ी हुईं तो विरोधियों का इल्जाम है कि बीजेपी के आला नेताओं के साथ साथ योगी की पुलिस ने इन्हें हर मुमकिन मदद की।
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अगली तस्वीर है ब्रिजेश सिंह की, कहतें है पूर्वांचल में जिन दो लोगों के जुर्म का सिक्का चलता था उनमें से एक है ब्रिजेश सिंह। दूसरे हैं मुख्तार अंसारी। जब से यूपी में योगी सरकार आई है तब से मुख्तार जेल के अंदर ही हैं। कभी पंजाब जेल में तो अब बांदा जेल में, यकीनन योगी आदित्यनाथ ने मुख्तार जैसे गैंगस्टर पर नकेल कस दी। मगर इन दूसरे भाईसाहब का क्या? ब्रिजेश सिंह पर दाऊद के लिए काम करने और संगीन वारदातों को अंजाम देने जैसे सैकड़ों मामले हैं। इनके बारे में मिसाल है कि जब यूपी में गैंगस्टरों की तारीख लिखी जाएगी तो इनका नाम गोल्डन लेटर में लिखा होगा। कुछ सालों तक इन्हें देश के साथ साथ कई दूसरे मुल्कों की पुलिस ढूंढ रही थी, क्या उनके बारे में आप जानते हैं कि वो आज क्या है। ब्रिजेश सिंह अब एमएलसी हैं, सियासी रहनुमाओं ने उन्हें एमएलसी तो बना दिया लेकिन उनपर इतने संगीन इल्ज़ाम हैं कि अभी जेल से नहीं निकाल पाए। लिहाज़ा उनके सगे भतीजे सुशील सिंह को योगी आदित्यनाथ ने टिकट दे दिया।
ऐसा इल्ज़ाम है, और कोर्ट में मामला भी यही चल रहा है कि 3 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में बीजेपी नेता अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र ने अपनी महिंद्रा थार जीप से किसानों को कुचल किया था। आशीष मिश्र के पिता अजय मिश्र टेनी केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री। उनके नाम पर कई आपराधिक रिकॉर्ड हैं, जिसे बताते हुए वो शर्माते भी नहीं हैं। 2014 में हुए चुनावों में दिए गए हलफनामे के मुताबिक उनपर जो मामले हैं उनमें, हत्या करने, हत्या करने की कोशिश करने और मारपीट करने जैसे मुकदमें शामिल हैं, और ये आज केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री हैं और उनके इस वायरल वीडियो को जिसके बारे में बताया जा रहा है कि उन्होंने ये बयान 25 सितंबर 2021 को लखीमपुर खीरी के सम्पूर्णानगर कस्बे में दिया था यानी यूपी में योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान उसे हिंसा भड़काने वाली कैटगरी में रखना चाहिए था और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन चलिए इसको नज़रअंदाज़ कर देते हैं, थोड़ा और आगे बढ़ते हैं।
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कुंडा के राजा भैय्या का पूरा नाम जानते हैं आप? रघुराज प्रताप सिंह। यूपी में राम राज आने के बाद भी कुंडा में बाहुबली राजा भैया का खौफ बरकरार है। राजा भैया के बारे में कहा जाता है कि जहां से कुंडा की सीमा शुरू होती है वहां से राज्य सरकार की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। यूपी के इस बाहुबलि पर कायदे से कार्रवाई सिर्फ मायावती की सरकार के दौरान ही हुई, जब यूपी सरकार ने इस पर पोटा लगाकर इसे जेल में ठूंस दिया था। मगर बाद की सरकारों ने इसे अपने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया, योगी की सरकार में भी ये आज़ाद है जबकि इसपर 45 से ज़्यादा संगीन मुकदमें हैं। कुंडा में राजा भैय्या के सताए लोग आज भी उस बुलडोज़र का इंतज़ार कर रहे हैं जो उन पर हुए सितम का हिसाब ले सके।
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रंगबाज़ी कहते किसे हैं, ये सिर्फ देश में नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने पूर्वांचल को देखकर जाना। ऐसा ही एक रंगबाज़ हैं विनीत सिंह। कहते हैं मिर्ज़ापुर इन्हीं के इशारों पर चलता है। खुद ब्लैक बेल्ट हैं लेकिन फिर भी हर वक्त दर्जनभर से ज़्यादा हाईटेक बंदूकधारियों के साए में चलते हैं, गाड़ियों का काफिला ऐसा कि मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का भी क्या होगा। महंगी महंगी छत्तीसों एसयूवी इनके साथ साथ चलती हैं। कहते हैं योगी के यूपी का सीएम बनने के बाद किसी के अच्छे दिन शुरु हुए हों या नहीं लेकिन विनीत सिंह के अच्छे दिन ज़रूर आ गए। सरकार के साए में पहले इसने अपने विरोधियों को किनारे लगवाया और फिर मिर्ज़ापुर का इकलौते किंग बन गया। सैकड़ों संगीन मुकदमों के बाद जो रुतबा आज विनीत सिंह को मिला है उसके बदले में वो भी चुनावों में अपने हमदर्दों की भरसक मदद करते हैं।
यूपी में एक खास बिरादरी के दर्जनभर से ज़्यादा ऐसे लोग हैं, जिनपर संगीन मुकदमें हैं लेकिन ना उनका कभी एनकाउंटर हुआ और ना उनमें से ज़्यादातर लोग जेल में हैं।
बृजेश सिंह- 106 मुकदमे
बादशाह सिंह- 88 मुकदमे
बृजभूषण सिंह- 84 मुकदमे
उदयभान सिंह- 83 मुकदमे
अजय सिंह सिपाही- 81 मुकदमे
संग्राम सिंह- 58 मुकदमे
सोनू सिंह- 57 मुकदमे
चुलबुल सिंह- 53 मुकदमे
अभय सिंह- 49 मुकदमे
सनी सिंह- 48 मुकदमे
मोनू सिंह- 48 मुकदमे
धन्नजय सिंह- 46 मुकदमे
चुन्नू सिंह- 42 मुकदमे
अशोक चंदेल- 37 मुकदमे
विनीत सिंह- 34 मुकदमे
राजा भैय्या- 31 मुकदमे
कुलदीप सिंह सेंगर- 28 मुकदमे
पिंटू सिंह- 23 मुकदमे
आंकड़े बताते हैं मार्च 2017 से लेकर अगस्त 2021 तक यूपी में पुलिस ने कुल 8,472 एनकाउंटर किए हैं। जिनमें 3,302 अपराधी घायल हुए और 146 अपराधी मारे गए। ये फेहरिस्त ये आंकड़े सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि योगी सरकार में मारे गए अपराधियों और बचाए गए अपराधियों पर बहस छिड़ी हुई है। विरोधी पार्टियां इल्ज़ाम लगा रही हैं कि योगी सरकार में ठाकुरों को छोड़कर बाकी जातियों और धर्मों के अपराधियों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है, इसमें ब्राह्मणों की बड़ी तादाद है जबकि ठाकुर बिरादरी के अपराधी आज भी खुले घूम रहे हैं।
योगी पर ठाकुरों को बचाने और बाकियों को बलि चढ़ाने के इल्ज़ामों का ये सिलसिला शुरु हुआ बिकरु कांड के बाद, जब सड़क पर सीधे सीधे चलते हुए विकास दुबे की गाड़ी अचानक पलट गई। इसके बाद बस्ती में प्रदीप पांडेय, लखनऊ में सुनील शर्मा और राकेश पांडे और कानपुर में अमर दुबे, प्रभात मिश्र, उमाकांत तिवारी के एनकाउंटर जैसे कई ऐसे मामले आए जिससे ये लगा कि योगी सरकार की ठोको नीति सिर्फ दिखाने की है, असल में तो वो ये तेरे गुंडे, ये मेरे गुंडे की नीति पर चल रहे हैं। ये सिलसिला योगी सरकार बनते ही जून 2017 में ऊंचाहार में 5 ब्राह्मणों को जिंदा जलाए जाने की घटना से ही शुरु हो गया था। इसके बाद लखनऊ का कमलेश तिवारी हत्याकांड, विवेक तिवारी हत्याकांड, प्रयागराज का सोमदत तिवारी हत्याकांड, और झांसी के आगजनी कांड ने तो आग में घी डालने का काम किया।
बीजेपी की विरोधी पार्टियां ब्राह्मण के मुद्दे पर योगी सरकार को घेरना चाहती हैं, अभी अभी सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य और बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के मुताबिक योगी सरकार में जमकर ब्राह्मणों का एनकाउंटर किया गया, जिसकी तादाद 400 से ज़्यादा है, इसके अलावा योगी के विरोधी उन्हें बार बार खुशी दुबे के मुद्दे पर भी घेरने की कोशिश करते हैं जो आज भी कानूनी लड़ाई में उलझी हुई हैं। सरकारी आंकड़ों की बात करें तो मार्च 2017 से 9 अगस्त 2020 के बीच हुए एनकाउंटर के आंकड़ें बताते हैं कि इस दौरान कुल 124 अपराधी मारे गए।
- इसमें 47 अल्पसंख्यक समुदाय के अपराधी
- 11 ब्राह्मण समाज से आने वाले अपराधी हैं
- और 8 यादव समाज के अपराधी मुठभेड़ में ढेर हुए।
- बाकी 58 अपराधी दूसरी जातियों के अपराधी थे
विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण के मुद्दे पर योगी को विरोधी तो नुकसान कर ही रहे थे, खुद बीजेपी के लीडर भी इसमें पीछे नहीं थे। विकास दुबे एनकाउंटर के बाद बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने सवाल उठा दिया कि, रावण भी ब्राह्मण लेकिन उसे मारने वाले क्षत्रिय राम की पूजा होती है। फिर कुख्यात अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर के लिए सीएम योगी की आलोचना क्यों हुई?
यूं तो अपराधी, माफिया या गैंगस्टर किसी भी जाति या मज़हब के हों, उनका असली ठिकाना क़ायदे से जेल में ही होना चाहिए। इसमें किंतू-परंतु कि गुंजाइश नहीं होती लेकिन अब जबकि सियासत विकास से शिफ्ट होकर जाति और धर्म तक उतर आई है, तो ज़ाहिर है बाल की खाल भी निकाली जाएगी। हां ये ज़रूर है कि आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि योगी की पुलिस ने पिछले 5 सालों में ठाकुर अपराधियों पर हलका हाथ धरा है। मगर मोटे तौर पर बीजेपी की योगी सरकार सूबे में कानून व्यवस्था को ही अपनी कामयाबी बता रही है। आंकड़ों की बात करें तो उसमें ये फर्क कितना है ये आप खुद फैसला कीजिए। साल 2014 से 2020 तक यूपी में,
हत्याओं की बात करें तो
2014 में 5150
2015 में 4732
2016 में 4889
2017 में 4324
2018 में 4018
2019 में 3806
2020 में 3779 हत्याएं हुईं
वहीं महिला सुरक्षा या रेप की घटनाओं की बात करें तो,
2014 में 3467
2015 में 3025
2016 में 4816
2017 में 4246
2018 में 3964
2019 में 3065
2020 में 2769 घटनाएं हुईं हैं।
कुल मिलाकर यूपी और यूपी के बाहर एक आम राय है कि योगी आदित्यनाथ के राज में उत्तर प्रदेश में राम राज आ चुका है। यहां जितने बाहुबलि, गैंगस्टर, माफिया या अपराधी थे वो या तो एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं या फिर सलाखों के पीछे हैं। कुछ बड़े गैंगस्टर जिसने यूपी कांपता था मसलन मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, मुन्ना बजरंगी समेत तकरीबन तमाम नामी गिरामी अपराधी योगी के आते ही जेल में चले गए थे। मुख्तार अंसारी बांदा जेल में, तो अतीक अहमद गुजरात की जेल में, मुन्ना बजरंगी की तो बागपत जेल में ही हत्या हो गई थी।
मुन्ना बजरंगी
जौनपुर के कुख्यात गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी पर हत्या, हत्या की कोशिश और रंगदारी के कुल 40 से ज़्यादा मामले दर्ज थे। मुन्ना बजरंगी वही है जिसपर महमूदाबाद के बीजेपी विधायक कृष्णानंद की हत्या का आरोप था। कृष्णानंद के बाद यूपी में मुन्ना बजरंगी का खौफ था.. शायद इसीलिए मुन्ना बजरंगी पर 7 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की गई थी। उसी के बाद से यूपी पुलिस और एसटीएफ मुन्ना बजरंगी की तलाश में जुटी थी। इसी बीच अक्टूबर 2009 में दिल्ली पुलिस ने इसे मुंबई के मलाड इलाके से गिरफ्तार कर लिया। और तब से मुन्ना बजरंगी जेल में था, मगर 9 जुलाई 2018 को बागपत की जेल में इसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने दलील दी की जेल में मुन्ना बजरंगी का उत्तराखंड के गैंगस्टर सुनील राठी से किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ, जिसके बाद सुनील ने गोली मारकर मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी।
मुख्तार अंसारी
पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी की तूती बोला करती थी, जिसपर मर्डर, एक्टार्शन और किडनैपिंग के कुल 40 से भी ज़्यादा मामले हैं। मुख्तार ने जुर्म की दुनिया में साल 1988 में कदम रखा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मगर यूपी ने पहली बार इसका नाम तब सुना जब मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर मुख्तार ने लोकल ठेकेदार सचिदानंद राय की दिन दहाड़े हत्या कर दी। 90 का दशक आते आते मुख्तार गैंग और बृजेश सिंह गैंग के बीच सरकारी ठेकों को लेकर दुश्मनी शुरु हुई जो अब तक जारी है। यूं तो करीब 16 साल से मुख्तार जेल में बंद है मगर जेल में रहने के दौरान भी उसने कभी अपने गैंग की धार को कुंद नहीं होने दिया। मगर सरकार बदलते ही यूपी सरकार मुख्तार को पंजाब की जेल से निकालकर यूपी ले आई, ऐसा माना जाता है कि तब से मुख्तार को अपनी जान का मंडराता खतरा दिखने लगा, परिवार ने कई बार उसे जेल में ही ज़हर देने के इल्ज़ाम लगाए। कहते हैं योगी ने उस मुख्तार के चेहरे पर खौफ ला दिया जिससे कभी पूरा पूर्वांचल कांपा करता था। ये पहली बार है जब मऊ से पिछले 5 बार के विधायक मुख्तार अंसारी चुनाव में नहीं है, इस बार मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी फिलहाल मऊ सदर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में है।
अतीक अहमद
एक टांगेवाले के बेटे ने महज़ 17 साल की उम्र से ही लोगों को ज़िंदगी और मौत के बीच टांगना शुरु कर दिया था, नाम था अतीक अहमद। हत्या, रंगदारी, दबंगई ने उसे रातोंरात डॉन बना दिया। उस दौर में इलाहाबाद में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था मगर सियासत ने लोहे को लोहे से काट दिया। मगर दांव उल्टा पड़ने लगा, चांद बाबा के बाद इलाहाबाद अतीक के खौफ से सहमने लगा। लोगों में ये खौफ देखकर अतीक सियासत में उतरा, और ऐसा उतरा कि उसके सामने इलाहाबाद पश्चिम सीट से कोई उम्मीदवार खड़ा होने को राज़ी ही नहीं होते थे। 1991, 1993, 1996, 1999, 2004 एक एक करके वो सारे चुनाव जीतने लगा। मगर इस दौरान अतीक ने इतने जुर्म किए कि पुलिस के एफआईआर रजिस्टर के पन्ने कम पड़ने लगे। मगर इसे समय का फेर ही कहिए कि जिस बाहुबली माफिया अतीक अहमद की जेब में पूर्वांचल की 14 विधानसभा सीटें रहा करती थीं। आज वो खुद अपनी पत्नी की जीत के लिए 1200 किलोमीटर दूर अहमदाबाद जेल में बैठा छटपटा रहा है।
हरिशंकर तिवारी
अस्सी के दशक में गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी की तूती बोलती थी, ज़ाहिर है गोरखपुर योगी का शहर है तो इन दोनों का आमना सामना तो होना ही था। लेकिन योगी से भी पहले हरिशंकर तिवारी का नाम सुर्खियों में तब आया जब जेल में रहते हुए उसने 1985 का विधानसभा चुनाव जीत लिया, पूरे देश में ये पहला मामला था जब कोई माफिया जेल में रहकर चुनाव जीता था। हालांकि हरिशंकर तिवारी पर जितने भी आरोप लगे वो आज तक साबित नहीं हुए, लेकिन जानकार मानते हैं कि पूर्वांचल के अपराधीकरण का जिम्मेदार हरिशंकर तिवारी ही हैं, जिसने बड़े अपराधियों को जन्म दिया, जिनमे एक नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला का, जिसे यूपी ही नहीं पूरा उत्तर भारत जानता है। हरिशंकर तिवारी पर हत्या करवाना, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, छिनैती, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे कई मामले दर्ज हुए। हरिशंकर तिवारी ही पूर्वांचल में राजपूत बनाम ब्राह्मण का केन्द्र रहा, इस बार के चुनावों में गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा उसका बेटा विनय शंकर तिवारी समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में है।
सूबे की योगी सरकार में यूपी पुलिस ने जिस तरह से माफियाओं और अपरधियों के खिलाफ अभियान चला रखा है.. उससे सूबे के अपराध जगत में हड़कम्प और बैचेनी तो है। पूर्वांचल से लेकर वेस्ट यूपी तक बड़े बड़े अपराधी या तो जेल में है या फिर यूपी से बाहर हैं। इसके बावजूद अभी भी सूबे के कई अपराधी पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं, और कहीं ना कहीं अंडरग्राउंड हैं। इन फरार अपराधियों के अब तक न पकड़े जाने या एनकाउंटर ना होने के पीछे की वजह ये है कि इनमें से कई अपराधियों को तो पुलिस पहचानती तक नहीं है। साथ ही ये इनामी अपराधी इतने शातिर किस्म के हैं, कि उन्हें अपने इलाके में पुलिस के पहुंचने की भनक पहले ही लग जाती है जिससे वो एलर्ट और फरार हो जाते हैं।
1- मेरठ का बदन सिंह - ढाई लाख का इनाम
2- वाराणसी का मनीष सिंह - 2 लाख का इनाम
3- सहारनपुर का सुधीर सिंह - 50 हजार का इनाम
4- बुलंदशहर का विनोद कुमार - 50 हजार का इनाम
5- मुज़फ्फरनगर का संजीव नल - 50 हजार का इनाम
6- आगरा का रामनरेश ठाकुर - 50 हजार का इनाम
7- मुज़फ्फरनगर का हरीश - 2 लाख का इनाम
8- मुरादाबाद का सुमित - 2 लाख का इनाम
9- भदोई का रुद्रेश उपाध्याय - 50 हजार का इनाम
10- गाजीपुर का शिवशंकर बिंद - 50 हजार का इनाम
11- वाराणसी का विश्वास शर्मा - 50 हजार का इनाम
पुलिस का कहना है कि सटीक जानकारी ना होने की वजह से ये अपराधी पुलिस की दूरबीन की पहुंच से बाहर हैं, पुलिस के पास इनका नाम पता तो हैं लेकिन ये अपने पते से लापता हैं। शायद एनकाउंटर के डर से अंडरग्राउंड हैं। मगर उनका क्या जो आपराधिक बैकग्राउंड होने के बावजूद चुनावों में हाथ आज़मा रहे हैं। उनका क्या जिन्हें सामने होने के बावजूद नेता अपनी दूरबीन से देख नहीं पा रहे हैं। उनका क्या जो सिर्फ इसलिए ज़िंदा या आज़ाद हैं क्योंकि वो एक खास जाति से आते हैं।
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