अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत आने के बाद क्यों फंस गया है पाकिस्तान?

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इमरान खान का ये कहना तो एक तरफ लेकिन पाकिस्तान तालिबान को लेकर उलझन का शिकार है। एक तरफ तो उसके मास्टर चीन ने तालिबान की सरकार का स्वागत किया है और इशारा दिया है कि वो अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता देने के लिए तैयार है। दूसरी तरफ रुस ने खुलकर तो नहीं लेकिन इशारा दे दिया है कि उन्हें भी तालिबान को मान्यता देने में ज्यादा झिझक नहीं है।

रुस और चीन का इशारा तो आ गया लेकिन खस्ताहाल पाकिस्तान इस स्थिति में नहीं है कि वो खुलकर तालिबान की सरकार को मान्यता दे पाए। कर्जे के लिए वो वर्ल्ड बैंक का मुंह ताक रहा है तो दूसरी ओर आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने वाली संस्था FATF ने उसे पहले से ही ग्रे लिस्ट में डाल रखा है।

पाकिस्तान चाहता तो ये है कि वो अपने मास्टर चीन की हां में हां मिलाए लेकिन चीन से भी पाकिस्तान इतना कर्जा ले चुका है कि अब चीन भी उसे पैसे देने के लिए तैयार नहीं है। अब उसकी आस पश्चिमी देशों से कंट्रोल होने वाली संस्थाएं वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के कर्जों पर लगी हुई है।

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अगर पाकिस्तान इनकी परवाह नहीं करते हुए तालिबान की सरकार को मान्यता देता है तो पाकिस्तान का वहां से हुक्का पानी बंदा हो जाएगा।

दूसरी परेशानी ये है कि पाकिस्तान को उम्मीद है कि देर सवेर अमेरिका उसको मिलने वाली AID को दोबारा बहाल कर देगा और पाकिस्तान को लगभग दो बिलियन डॉलर की रकम मिलना शुरु हो जाएगी।

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पाकिस्तान की फौज के ज्यादातर हथियार अमेरिकी तकनीक के है जिनके कलपुर्जे पाकिस्तान को अमेरिका से ही मिलते हैं। अगर पाकिस्तान अमेरिका से अलग दूसरी लाइन लेता है तो इसकी सप्लाई भी बंद होने का पूरा आसार है।

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मुसीबत केवल यही नहीं है, पाकिस्तान अपने यहां से जितनी भी चीजें निर्यात करता है वो यूरोपीय देशों में जाती हैं। ये हर किसी को पता है कि अमेरिका के इशारे के बिना यूरोपीय देश अपनी रणनीति नहीं बनाते । अगर पाकिस्तान तालिबान के समर्थन में आता है तो ये निर्यात बंद होने का खतरा है। यानि फिर पाकिस्तान के कंगाल होने का डर है ।

पाकिस्तान में कट्टरपंथी किस तरीके से सरकार और फौज पर हावी हैं ये बात भी किसी से ढकी छिपी नहीं है। अगर पाकिस्तान खुलकर तालिबान और वहां की शरिया हुकूमत की वकालत करता है तो पाकिस्तान के कट्टरपंथी पाकिस्तान में भी शरिया कानून लागू करने की मांग करेंगे। पाकिस्तान को उसी के यहां के तमाम आतंकी संगठनों से भी खतरा है जिनका गठजोड़ तालिबान से रहा है।

भले ही तालिबान कहे कि वो अफगानिस्तान की धरती को किसी आतंकवादी संगठन को इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देंगे लेकिन आने वाले वक़्त में अफगानिस्तान तमाम आतंकी संगठनों के लिए पनाहगार साबित होने वाला है।

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की सीमा से लगे पाकिस्तानी इलाकों में बेहद खुशी का माहौल है और यही बात पाकिस्तान सरकार को डरा रही है क्योंकि अगर शरिया हुकूमत की चिंगारी पाकिस्तान में लग गई तो इसको आग बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा। ऐसे में पाकिस्तान के लिए एक तरफ कुंआ है तो दूसरी तरफ खाई है ।

तालिबान को लेकर पाकिस्तान खुशियां ना मनाए, उसके भी बुरे दिन शुरू होने वाले हैं!

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