इस ऑपरेशन के बाद से ही मोसाद का नाम सुनकर थर्राने लगे थे इज़रायल के दुश्मन
Mossad operation rescued israeli citizen from uganda
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इज़राइली खुफिया एजेंसी मोसाद के उस ऑपरेशन के बारे में बताते हैं, जिसे दुनिया का अब तक का सबसे खतरनाक हवाई ऑपरेशन माना जाता है। इज़राइल से उड़े एक विमान को हाईजैक कर लिया गया। हाईजैक के बाद विमान को युगांडा में उतारा गया। युगांडा का तानाशाह ईदी अमीन हाईजैकर्स का समर्थन कर रहा था । विमान में सवार इज़राइली नागरिकों को छुड़ाना था। वो भी दुश्मन देश मे घुस कर। काम लगभग नामुम्किन था। मगर मोसाद और इज़राइली कमांडो के करीब सौ लोगों के दस्ते ने सिर्फ सौ फीट की ऊंचाई पर प्लेन उड़ा कर उस रात जो कारनामा कर दिखाया उसकी मिसाल आज भी दुनिया में दी जाती है।
तारीख : 27 जून, 1976
नाम : बेनगुरियन इंटरनेशनल एयरपोर्ट
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जगह : तेल अवीव, इजराइल
वक़्त : रात 11 बजे
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एयर फ्रांस की एयरबस ए300वी4-203 इजराइली शहर तेल अवीव से ग्रीस की राजधानी एथेंस के लिए उड़ान भरती है। विमान में कुल 246 मुसाफिर और 12 क्रू मेंबर सवार थे। ज्यादातर मुसाफिर यहूदी और इज़राइली नागरिक थे। करीब डेढ़ घंटे की उड़ान के बाद प्लेन एथेंस पहुंचता है। अब विमान को यहां से पेरिस के लिए उड़ान भरना था। एथेंस में विमान में 58 और मुसाफिर सवार होते हैं। और इन्हीं 58 मुसाफिरों में से वो चार आतंकवादी भी थे जिन्हें इस प्लेन को हाईजैक करना था।
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इन चार आतंकवादियों में से दो फिलिस्तीनी लिब्रेशन गुट से थे जबकि बाकी दो जर्मन के रेवोल्यूशनरी सेल से जुड़े थे। रात ठीक साढ़े बारह बजे विमान के टेकऑफ करते ही अचानक चारों प्लेन को हाईजैक कर लेते हैं। इनमें से एक आतंकवादी कॉकपिट में घुस जाता है और को-पायलट को बाहर निकाल कर खुद उस सीट पर बैठ जाता है। पायलट और सभी मुसाफिर अब उनके कब्जे में थे।
प्लेन पर कब्जा करने के बाद हाइजैकर पेरिस की बजाए विमान को लीबिया के शहर बेंगहाजी ले जाते हैं। बेंगहाजी में विमान में ईंधन भरा जाता है। इस दौरान अपहर्ता विमान में सवार ब्रिटेन में पैदा हुई एक इजराइली महिला को बीमार होने की वजह से रिहा कर देते हैं। बेंगहाजी में करीब सात घंटे तक रुकने के बाद विमान एक बार फिर उड़ान भरता है। हाईडजैकर्स के इशारे पर इस बार विमान का रुख अफ्रीकी देश यूगांडा की तरफ था।
तारीख : 28 जून, 1976
वक़्त : दोपहर 3.15 बजे
जगह : एंटबी एयरपोर्ट, युगांडा
अब मामला सचमुच खतरनाक हो गया था। क्योंकि युगांडा की जिस सरजमीन पर विमान उतारा गया खुद वहां का तानाशाह ईदी अमीन इन फिलिस्तीनी आतंकवादियों के समर्थन में खड़ा था। और इससे पहले कि इजरायली कुछ सोच पाते आतंकवादियों के समर्थन में युगांडा की आर्मी ने एंटबी एयरपोर्ट को चारों तरफ से घेर लिया। मकसद था किसी भी रेस्क्यू ऑपरेशन को शुरू होने से पहले ही खत्म कर देना।
एंटबी एयरपोर्ट पर यूगांडा की सेना के करीब 100 जवान मौजूद थे जिन्होंने पूरे एयरपोर्ट के अपने घेरे में ले रखा था। इसके बाद विमान से एक-एक कर सारे मुसाफिरों को नीचे उतारा जाता है और उन्हें एयरपोर्ट के ही उस ट्रांजिट हॉल में ले जाया जाता है जो फिलहाल इस्तेमाल में नहीं था।
अब तक करीब चौबीस घंटे गुजर चुके थे और विमान के हाईजैक होने की खबर दुनिया भर में फैल चुकी थी। इस पूरी हाईजैकिंग की जानकारी ना सिर्फ ईदी अमीन को थी बल्कि अपरहर्ताओं को उसका खुला समर्थन भी था। कहते हैं कि ईदी अमीन हर रोज़ खुद एंटबी एयरपोर्ट आता था और सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेता था।
28 जून 1976 को विमान हाईजैक करने के बाद पहली बार हाईजकैर्स ने अपनी मांग रखी। हाइजैकर्स का मकसद था इजरायल की जेलों में बंद 40 फिलिस्तीनी आतंकवादियों को छुड़ाना। इसके अलावा आतंकवादी कीनिया, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और वेस्ट जर्मनी की जेलों में बंद अपने तेरह और साथियों की भी रिहाई चाहते थे।
कुल 53 आतंकवादियों की रिहाई के साथ-साथ उन्होंने पांच मीलियन अमेरिकी डॉलर की भी मांग रखी। मांग ना माने जाने की सूरत में आतंकवादियों ने बंधक बनाए गये यात्रियों को एक जुलाई 1976 की सुबह से एक एक कर मार डालने की धमकी दी। यानी इज़रायल सरकार कों मांगें मानने के लिए सिर्फ 48 घंटों का वक्त दिया गया।
यूगांडा की सेना एयरपोर्ट के ट्रांजिट हॉल में कैद मुसाफिरों को दो ग्रुप में बांट देती है। जितने गैर इजराइली नागरिक थे उन्हें एयरपोर्ट के ही वेटिंग हॉल में ले जाकर कैद कर दिया जाता है। जबकि एयर फ्रांस क्रू के 12 मेंबर और कुल 94 इज़राइली नागरिकों को एक साथ उसी ट्राजिट ह़ॉल में कैद रखा जाता है।
मांगें माने जाने की मोहलत का आखिरी दिन खत्म होने जा रहा था। इसी बीच हाईजैकर्स गैर इज़राइली बंधकों में से 48 मुसाफिरों को रिहा कर देते हैं। इनमें से ज्यादातक बुजुर्ग और बीमार थे। इन सभी मुसाफिरों को एक स्पेशल विमान से पेरिस भेज दिया जाता है।
हाईजकैर्स की दी गई मोहलत खत्म होती उससे ठीक पहले इज़राइली सरकार ने हाईजकैर्स तक पैगाम भिजवाया कि वो बातचीत के लिए तैयार है पर उन्हें कुछ और मोहलत दी जाए। आतंकी इज़राइली सरकार की बात मान लेते हैं और मांगे मानने की डेडलाइन चार जुलाई 1976 की दोपहर तक बढ़ा देते हैं।
इतना ही नहीं इसी के कुछ घंटे बाद ही वो सौ और गैर इज़राइली नागरिकों को रिहा कर देते हैं। इन सभी लोगों को भी स्पेशल विमान से पेरिस भेज दिया जाता है। अब एंटबी एयरपोर्ट के ट्रांजिट हॉल में सिर्फ 94 इज़राइली नागरिक, फ्रांस के दस युवा मुसाफिर और एय़र फ्रांस के 12 क्रू मेंबर यानी कुल 116 मुसाफिर बचे थे।
इज़रायल की सरकार के लिये ये वक्त बेहद मुश्किल भरा था। क्योंकि न तो वो अपने नागरिकों और फ्लाइट के क्रू मेंबर्स को इस तरह मौत के मुंह में धकेल सकती थी और न ही आतंकवादियों की मांगें मान सकती थी। क्योंकि इज़राइली सरकार का ये उसूल रहा है कि वो किसी भी कीमत पर आतंकवादियों से डील नहीं करेंगे। मगर इज़राइल से इतनी दूर वो भी अपने दुश्मन मुल्क में घुस कर कैसे अपने नागरिकों को छुड़ाएं? लगभग नामुमकिन सा काम था ये।
हाईजैकर्स की दी गई मोहलत नजदीक आती जा रही थी। इज़राइली सरकार ने इस दौरान अपने मित्र अफ्रीकी देशों और दुनिया के बाकी मुल्कों से ईदी अमीन पर दबाव डाल कर बंधकों को रिहा करवाने की तमाम कोशिशें कीं। मगर बात नहीं बनी। हालांकि बातचीत के साथ ही इज़राइली सरकार रेस्क्यू ऑपरेशन के जरिए बंधकों को रिहा कराने की तरकीब पर भी काम कर रही थी।
बंधकों की रिहाई के रास्ते बंद थे। लिहाजा तीन जुलाई की शाम साढ़े छह बजे इज़राइली कैबिनेट ने आखिरी फैसला लिया। फैसला रेस्क्यू मिशन का। ब्रिगेडियर जेनरल डान शोमरोन को ऑपरेशन का कमांडर बनाया गया। प्लान बेहद जोखिम भरा था।
क्योंकि ये दुनिया के किसी भी एयरपोर्ट पर अब तक का सबसे बड़ा और खतरनाक रेस्क्यू ऑपरेशन था। इज़राइली कमांडोज को ये मिशन बिजली की तेजी से पूरा करना था। लिहाजा इस ऑपरेशन को नाम दिया गया ऑपरेशन थंडरबोल्ट।
इस दौरान इज़राइली खुफिया एजेंसी मोसाद लगातार अपना काम कर रही थी। रिहा किए गए गैर इज़राइली बंधकों से बातचीत के बाद मोसाद एंटबी एयरपोर्ट और उसके उस हिस्से के बारे में तमाम अहम जानकारी जुटा चुकी थी जहां बंधकों को रखा गया था। इसके साथ ही हाईजैकर्स और युगांडा सेना की सही-सही तादाद भी पता लगा चुकी थी।
इसी बीच मोसाद को पता चला कि 1960 और 70 के दौरान इज़राइल की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अफ्रीका के कई देशों में बहुत सी इमारतें बनाई थीं। यहां तक कि युगांडा के एंटबी एयरपोर्ट का वो टर्मिनल भी इसी कंपनी ने बनाया था।
कंपनी के जिस इज़राइली इंजीनियर ने वो टर्मिनल बनाया था उसकी मदद से मोसाद ने उस जगह का पूरा नक्शा बना लिया जहां बंधकों को रखा गया था।
प्लान के मुताबिक सौ इज़राइली कमांडोज की एक टीम इज़राइली एयर फोर्स के चार सी-130 हरकुलेस ट्रांसपोर्ट विमान से शर्म अल शेख एयरपोर्ट से एंटबी के लिए उड़ान भरती है। इन खास विमानों में काले रंग की एक मर्सिडीज कार और लैंड रोवर कारें भी थीं। दरअसल मोसाद ने पता लगाया था कि ईदी अमीन काले रंग की मर्सिडीज का शौकीन है और हमेशा उसी कार में बाहर निकलता है।
जबकि उसके साथ खास सुरक्षा दस्ता लैंड रोवर कार में होता है। तरकीब ये थी कि एयरपोर्ट पर उतरते ही इन्हीं कारों में टर्मिनल की तरफ कूच किय़ा जाएगा। ताकि युगांडा की सेना को लगे कि ईदी अमीन का काफिला है और वो आसानी से टर्मिनल में दाखिल हो जाएं।
लेकिन खामोशी के साथ एंटबी एयरपोर्ट पर चार-चार प्लेन को लैंड कराना आसान नहीं था। युगांडा की एयर स्पेस में चोरी-छुपे घुसना था। बिना एंटबी एयर ट्रैफिक कंट्रोल की जानकारी के। और ये तभी मुम्किन था जब विमान बेहद कम ऊंचाई पर उड़े। तीस मीटर यानी सौ फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर नहीं।
इज़राइली एयरफोर्स की चार कारगो विमान के साथ दो बोइंग 707 विमान ने भी उड़ान भरी। पहली बोइंग जिसमें मेडिकल टीम मौजूद थी वो नेरौबी एयरपोर्ट पर रुक गई। जबकि दूसरी बोइंग को एंटबी एयरपोर्ट पर ही उतरना था। बंधकों को वापस लाने के लिए।
तारीख : 3 जुलाई 1976
जगह : एंटबी एयरपोर्ट, य़ुगांडा
वक़्त : रात 11 बजे
ठीक यही वक्त था जब इज़राइली एयरफोर्स के चार विमान बेहद नीची उड़ान भरते हुए और एंटबी एयरपोर्ट के ट्रैफिक कंट्रोल को धोखा देते हुए रनवे पर उतर पड़ते हैं। रात के अंधेरे में चारों विमान को एयरपोर्ट पर कुछ इस तरह उतारा गया था कि वहां मौजूद युगांडा आर्मी और आतंकवादियों को खबर तक नहीं लगी। विमान का कारगो द्वार पहले से खुला था। एक-एक कर मर्सिडीज और लैंड रोवर कारें रनवे पर उतर आती हैं। उनमें पहले से ही कमांडोज बैठे थे।
सौ इज़रायली कमांडोज की इस क्रैक टीम को तीन हिस्सों में बांटा गया था। इनमें से एक टीम को एयरपोर्ट के टर्मिनल में बंधक बना कर रखे गये मुसाफिरों को छुड़ाने का काम सौंपा गया। जबकि दूसरी टीम को एयरपोर्ट के रनवे पर घात लगा कर बैठी युगांडा की आर्मी और आतंकवादियों का मुकाबला करना था।
और तीसरी टीम की जिम्मेदारी थी छुड़ाए गए मुसाफिरों को साथ लाए खाली जहाज में बैठाना। इज़राइली कमांडो एंटबी एयरपोर्ट पर उतर चुके थे। कारगो प्लेन से उतारी गई काली मर्सिडीज सबसे पहल पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग की तरफ बढ़ना शुरू करती है। लेकिन तभी युगांडा की सेना के दो जवानों ने कार को रूकने का इशारा किया।
दरअसल ईदी अमीन ने कुछ दिन पहले ही नई सफेद मर्सिडीज़ कार खरीद ली थी। और अब वो उसी सफेद कार में चलता था। ये बात उन दोनों जवानों को तो पता थी मगर इज़राइली कमांडो को नहीं।
लिहाज़ा खतरा भांपते ही दोनों जवानों पर इज़रायली कमांडो ने साइलेंसर वाली बंदूक से गोली चला दी। जवाब में एक जवान ने भी एके-47 से फायर कर दिया। हालांकि युगांडा के दोनों जवान मारे गए। मगर गोलियों की आवाज से युगांडा के बाकी सैनिक चौकन्ने हो गए।पर चूंकि वक़्त बेहद कम था। लिहाजा इज़रायली कमांडो ने रुकने की बजाए आगे बढ़ते रहने का फैसला किया।
इमारत में घुसते ही गोलियां चलनी शुरू हो गई.. इज़रायली कमांडो माइक पर इंग्लिश और हिब्रू में चिल्ला रहे थे कि "हम इज़रायली सैनिक हैं, लेट जाओ लेट जाओ.." कमांडो ने 3 अपहरणकर्ताओं को गोली मार दी.. तभी एक 19 साल फ्रेंच लड़का खड़ा हो गया.. कमांडो ने
उसे अपहरणकर्ता समझा और गोली मार दी.. इसके अलावा दो और बंधक भी क्रॉस फायरिंग में मारे गए। कमांडोज़ को देखकर 3 अपहरणकर्ता एक दूसरे कमरे में छिप गए मगर इज़रायली कमांडोज़ ने उस कमरे में ग्रेनेड फेंके और गोलियों की बौछार कर दी, तीनों मारे गए।
इज़रायली कमांडोज ने अपने इस प्लान को बखूबी निभाया। सबसे पहले उन्होंने बंधकों को अपने घेरे में लिया। दूसरी टीम युगांडा की सेना पर टूट पड़ी। महज आधे घंटे के अंदर सभी हाइजैकर्स को खत्म कर यात्रियों को सुरक्षित प्लेन तक पहुंचा दिया। इस पूरी कार्रवाई का जायजा हवाई अड्डे के ऊपर चक्कर काट रहे एक पांचवें हवाई जहाज में बैठे ऑपरेशन के कमांडर, जनरल ऐडम खुद ले रहे थे।
इस ऑपरेशन में सात हाईजैकर्स, और युगांडा की सेना के 48 जवान मारे गए। जबकि एयरपोर्ट पर खड़े युगांडा के करीब 30 विमानों को भी जाते-जाते इज़राइली कमांडों ने तबाह कर दिया। ताकि कोई उनका पीछा ना कर सके। क्रॉस फायरिंग में तीन इज़राइली बंधकों की भी मौत हो गई जूबकि पांच कमांडो घायल हुए। ऑपरेशन में इज़राइली यूनिट कमांडर योनतन नेतन्याहू की मौत हो गई।
योनतन नेतन्याहू इज़राइल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बड़े भाई थे। ऑपरेशन थंडरबोल्ट को बाद में ऑपरेशन योनतन का नाम दे दिया गया। ऐसा योनतन नेतन्याहू की शहादत के सम्मान में किया गया था। इस ऑपरेशन की कामय़ाबी और योनतन की शहादत ने उन्हें इज़राइल के घर-घर का हीरो बना दिया। इसी के बाद इज़राइल में नेतन्याहू परिवार को वो शोहरत मिली कि उनका छोटे भाई देश का प्रधानमंत्री बने।
इस पूरे ऑपरेशन के दौरान मोसाद को सिर्फ यही एक जान का नुकसान हुआ.. हालांकि 10 कमांडो घायल भी हुए.. विदेशी ज़मीन पर मोसाद का ये पूरा ऑपरेशन महज़ 53 मिनट चला और जिसमें से 30 मिनट तक कमांडो कार्रवाही चली ।
ये सब युगांडा के तानाशाह इदी अमीन के लिए यह खून का घूंट पीने जैसा था। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि कोई उनके देश में घुस कर अपने नागरिकों को छुडा कर ले जा सकता है । सुबह की पहली किरण के साथ जब इज़राइली बंधक इज़राइल पहुंचे और दुनिया को इस ऑपरेशन की भनक लगी तब पुरी दुनिया हैरान रह गई।
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