भाई के नाम पर कर रहा था पिछले 34 साल से फौज में नौकरी,34 साल बाद एक लिंक से खुला राज़!

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भाई के नाम पर कर रहा था पिछले 34 साल से फौज में नौकरी,34 साल बाद एक लिंक से खुला राज़!
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इस पूरी कहानी की शुरुआत होती है 30 नवंबर 1982 से, उत्तराखंड के रहने वाले नारायण सिंह फौज में भर्ती होते हैं लेकिन फौज में वो अपने भाई श्याम सिंह की पांचवी क्लास की मार्कशीट लगाते हैं और खुद का नाम फौज में मार्कशीट के मुताबिक श्याम सिंह लिखवाते हैं । 1982 में उनकी भर्ती भारतीय सेना की गार्डस बटेलियन में होती है। वहां पर वो 1982 से लेकर साल 30 जून 2011 तक नौकरी करते हैं।

यहां से रिटायरमेंट लेने के बाद 3 मार्च 2002 को नारायण सिंह अपने भाई श्याम सिंह के नाम से फिर से फौज में भर्ती होते हैं इस बार वो डिफेंस सिक्युरिटी कॉर्प्स (DSC) में भर्ती होते हैं। यहां पर 16 साल नौकरी करने के बाद वो 1 जुलाई 2018 को रिटायर हो जाते हैं। ना केवल नारायण सिंह बलकि उनका भाई खुद श्याम सिंह भी फौज में भर्ती हुए थे। उन्होंने भी 15 मार्च 1982 से 31 जनवरी 2002 तक यानि 20 साल तक फौज में नौकरी की।

सब कुछ ठीक चल रहा था और दोनों भाई को फौज से पेंशन भी मिल रही थी। नारायण सिंह तो फौज से एक नहीं बलकि दो-दो पेंशन उठा रहे थे। साल 2017 में सरकार ने फैसला किया था कि सबको अपना पैन कार्ड और आधार कार्ड अपने बैंक खाते से जोड़ना पड़ेगा।

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नारायण सिंह ने पैन कार्ड बनवाने में भी अपने भाई की मार्कशीट का इस्तेमाल किया था। पैन कार्ड में फोटो नारायण सिंह की लगी थी लेकिन बाकी डिटेल श्याम सिंह की थीं। श्याम सिंह ने भी अपनी मार्कशीट से पैन कार्ड बनवा रखा था।

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बैंक स्क्रूटनी के दौरान बैंक वाले ये देखकर चौंक गए कि दो अलग-अलग पैन कार्ड पर एक ही जैसी डिटेल हैं लेकिन फोटो अलग-अलग लोगों की लगी हुई है। जिसके बाद ना केवल नारायण सिंह पेंशन पर रोक लगा दी गई बलकि श्याम सिंह की पेंशन पर भी रोक लगा दी गई। इस मामले को लेकर नारायण सिंह ARMED FORCES TRIBUNAL पहुंचे । करीब चार साल की सुनवाई के बाद इस मामले में ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला सुनाया है।

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फैसले में कहा गया है कि नारायण सिंह के खिलाफ पहचान बदलने की धारा के तहत एफआईआर दर्ज की जाए। उत्तराखंड पुलिस को आदेश दिया गया है कि जल्द से जल्द इस मामले मे वो कार्रवाई करे। हालांकि ट्रिब्यूनल के सामने जब ये मामला आया था तो वो खुद हैरान रह गए थे कि आखिर इतने लंबे वक्त तक फौज के लोग इस घपले को कैसे नहीं पकड़ पाए।

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