एक ऐसे बाबा जिन्होंने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को बना लिया अपना भक्त!
interesting story of controversial indian tantrik chandraswami
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घरवालों ने नाम तो रखा था नेमीचंद जैन, लेकिन तंत्र मंत्र सीखने के बाद उन्होंने अपना नाम रख लिया चंद्रस्वामी। एक ऐसी शख्सियत जो एक दौर में एक साथ कई देशों की सरकार के ताकतवर लोगों के साथ उठने-बैठने के लिए मशहूर थे, मगर अपनी ज़िंदगी के आखिरी दौर में वो गुमनामी में चले गए।
चंद्रास्वामी एक तांत्रिक थे और भारतीय राजनीति के सबसे विवादास्पद किरदारों में से एक थे। किसी मंत्री से ज़्यादा रसूख था उनका, कहते हैं कि वो भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के सबसे नजदीकी सलाहकारों में से एक थे। हालांकि उनपर राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का भी आरोप लगा था। यानी कुल मिलाकर वो जितने मशहूर थे, उतने ही विवादास्पद भी थे। विवादों से उनका पुराना नाता था और कहते हैं कि इस वजह से उन्हें एक मामले में जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। चंद्रास्वामी की कहानी गुमनामी से निकलकर भारतीय राजनीति के केंद्र में कई सालों तक रही।
इन आरोपों के बीच कई देशों के शासनाध्यक्षों से बेहतरीन रिश्ते थे, हथियारों की दलाली और हवाला का कारोबार, विदेशी मुद्रा अधिनियम का उल्लंघन जैसे कई संगीन आरोपों से भी चंद्रास्वामी सुर्खियों में रहे। कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि पीवी नरसिम्हाराव के पांच साल के प्रधानमंत्रित्व काल में चंद्रास्वामी को कभी प्रधानमंत्री से मिलने के लिए पहले से अप्वाइंटमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ी, ये सिलसिला चंद्रशेखर के छोटे-से कार्यकाल के दौरान भी बना रहा।
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लंबी बाल-दाढ़ी, पीले वस्त्र और रुद्राक्ष की माला पहने चंद्रास्वामी का अलग ही प्रभाव था। जाने माने इतिहासकार पैट्रिक फ्रेंच ने 'इंडिया- ए पोट्रेट' में लिखा है,
'चंद्रास्वामी कोई सभ्य आदमी तो नहीं थे, लेकिन उनमें दूसरों के दिमाग को जीतने का हुनर था।'
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मगर सवाल ये है कि आखिर राजस्थान के छोटे से इलाके बहरोर के एक जैन परिवार का लड़का कैसे सत्ता का सामानांतर केंद्र चलाने की हैसियत में पहुंच गया? चंद्रास्वामी के पिता धर्मचंद जैन सूद पर पैसे उठाने का काम करते थे, परिवार वैसे तो गुजरात का था, लेकिन चंद्रास्वामी के जन्म से सालों पहले राजस्थान आ गया था और उनके जन्म के कुछ सालों बाद हैदराबाद में जाकर बस गया था।
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चंद्रास्वामी के शुरुआती जीवन के बारे में कहां जाता है कि उन्होंने कोई शिक्षा हासिल नहीं की थी, बचपन से ही उनकी दिलचस्पी तंत्र साधना में हो गई और 16 साल की उम्र में वे संन्यासी या कहें तांत्रिक कहलाने लगे। चंद्रास्वामी सबसे पहले जैन संत महोपाध्याय अमर मुनि के सानिध्य में आए, 23 साल की उम्र में बनारस में गोपीनाथ कविराज के पास पहुंच गए, तंत्र-मंत्र की साधना करने। 26 साल की उम्र में उन्होंने पहला महायज्ञ कर लिया, बीच में बिहार के जंगलों में कुछ साल रहे।
कई वरिष्ठ पत्रकार जैसे राम बहादुर राय और वेद प्रताप वैदिक का मानना था कि,
चंद्रास्वामी को ना तो तंत्र-मंत्र आता था, ना ही उन्हें ज्योतिष का कोई ज्ञान था और ना इन विषयों पर उनका कोई अध्ययन। हां मगर रिश्ते बनाने में वो बहुत माहिर थे। कनॉट प्लेस में काम करने वाले एक न्यूज़ एडिटर रामरूप गुप्त, जो बड़े ज्योतिषी भी थे, चंद्रास्वामी लोगों की कुंडलियां लेकर उनके पास आते रहते थे और गुप्त जी जो बताते वो चंद्रास्वामी लोगों को बताते रहते थे।
जिस तरह चंद्रास्वामी को मानने वालों की कोई कमीं नहीं उसकी तरह उनपर आरोप लगाने वालों की भी कोई नहीं है। कोई कहता है कि चंद्रास्वामी को हैदराबाद के सिटी कॉलेज के बाहर आवारागर्दी करते थे, कोई कहता है कि वो नागार्जुन सागर डैम प्रोजेक्ट में स्क्रैप डीलर का काम भी करने लगे थे, फिर किसी धांधली में फंसे और थोड़े ही साल में राज्य के मुख्यमंत्री पीवी नरसम्हिा राव के साथ स्वामी के तौर पर नज़र आने लगे। पीवी नरसिम्हा राव 1971 से 1973 के बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, चंद्रास्वामी की तबसे नरसिम्हा राव से नज़दीकियां बन गई थीं।
अपनी लंबी बाल-दाढ़ी, पीले वस्त्रों और रुद्राक्ष की माला के साथ चंद्रास्वामी में काफ़ी कुछ ऐसा था जिसका जादू दूसरों के सिर पर चढ़कर बोलने लगा था। वो दूसरों की कमज़ोरियां पढ़ लेते थे, ख़ासकर वैसे लोग जो बहुत पॉवरफ़ुल जगहों पर थे। ऐसे लोगों को पैसे और ताक़त की वजह से लोगों के धोखा देने का डर सताता रहता था,
कहते हैं कि चंद्रास्वामी न तो अंग्रेजी पढ़ पाते थे, न लिख पाते थे और न ही बोल पाते थे, लेकिन दुनिया के कई देशों के ताकतवर लोगों पर उनका खासा प्रभाव था, खासकर राजनेताओं पर। इसमें ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का नाम भी शामिल था। पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक 'वॉकिंग विद लायंस' में लिखा है कि,
चंद्रास्वामी ने मार्गरेट थैचर के ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी, जो बाद में सच भी साबित हुई थी।
चंद्रास्वामी ने भविष्यवाणी की थी कि मार्गरेट थैचर 9, 11 या 13 साल के लिए ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनेंगी। उनकी ये बात सच साबित हुई और थैचर साल 1979 में प्रधानमंत्री बन गईं और साल 1990 तक 11 साल के लिए प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।
'वॉकिंग विद लायंस' में ही नटवर सिंह ने लिखा है कि,
1979-80 में वो एक बार पेरिस में बीमार पड़ गए थे। उस वक्त चंद्रास्वामी फ्रांसीसी राष्ट्रपति के निजी फिजिशयन के साथ उनसे मिलने आए थे। ये देखकर नटवर सिंह तो पहले से ही सकते थे, लेकिन उन्हें और भी हैरानी तब हुई जब चंद्रास्वामी ने उनसे कहा कि वे सीधे यूगोस्लाविया से फ्रांस के राष्ट्रपति से मिलने आए हैं। उन्होंने उन्हें लेने के लिए अपना निजी विमान भेजा था।
चंद्रास्वामी की पहुंच सिर्फ भारत, ब्रिटेन और फ्रांस तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि कहते हैं कि ब्रूनेई के सुल्तान, बहरीन के शासक, जायर के राष्ट्राध्यक्ष भी उनके भक्त हो गए थे। इसके अलावा कहते हैं कि हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिजाबेथ टेलर भी उनकी भक्त थीं।
इस स्थिति में पहुंचने की एक वजह चंद्रास्वामी की सऊदी अरब के हथियार कारोबारी अदनान ख़शोगी से कारोबारी संबंधों की अहम भूमिका रही। कहते हैं अदनान ख़शोगी को भारत में लाने वाले चंद्रास्वामी ही थे। पत्रकार राम बहादुर राय के मुताबिक,
हथियारों की ख़रीद-बिक्री में कमीशनखोरी का खेल शुरू हो चुका था। लेकिन मुझे ये भी लगता है कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने भी चंद्रास्वामी का इस्तेमाल अपने हितों के लिए किया। उन्हें जिस तरह का ऐक्सेस दिया जा रहा था, उससे लगता है कि सरकार उनके मेल-जोल से अपने लिए भी जानकारियां जुटाती रही।
90 के दशक में जब चंद्रास्वामी की मां का निधन हुआ था, तब उनकी तेरहवीं में राजस्थान के बहरोर में 40-45 हज़ार लोग शामिल हुए थे जिनमें बॉलीवुड के कम से कम 20 सितारे मौजूद थे। हर तरफ उनका दखल था, ज़ाहिर है विवादों से घिरते भी चले गए। सियासत में सभी पार्टियों में उनकी एक तरह से स्वीकार्यता थी, राम मंदिर निर्माण कराने के लिए वे जब मध्यस्थता कर रहे थे तो उनकी बात मुलायम सिंह भी सुन रहे थे, नरसिम्हा राव भी और भाजपा की तरफ से भैरों सिंह शेखावत भी।
राम मंदिर के निर्माण के लिए 1993 में चंद्रास्वामी ने अयोध्या में सोम यज्ञ का आयोजन किया था, इस आयोजन में शामिल होने के लिए दुनिया भर से हिंदू जुटे थे। जिसमें चंद्रास्वामी के विदेशी भक्त भी शामिल थे। 1989 में आरोप लगा कि उनकी एक भक्त पामेला बोर्डेस किस तरह से उनकी सोहबत में पैसे और सेक्स की दुनिया में डूबती चली गई थीं। 1982 की मिस इंडिया रहीं पामेला बोर्डेस ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अदनान ख़शोगी और चंद्रास्वामी के लिए वो सेक्सुअल प्रेज़ेंट के तौर पर काम करती रहीं।
चंद्रास्वामी ने पावर, सेक्स, हथियार, मनी, और पॉवर ब्रोकिंग को वो काकटेल बना लिया था जिसमें वो फ़िक्सिंग के किंग बनकर उभर चुके थे। लेकिन इस दौड़ में हमेशा एक-सा वक्त नहीं रहता, 1996 के बाद चंद्रास्वामी का बुरा दौर शुरू हुआ और एक के बाद एक उन पर मुकदमे चलने शुरू हो गए तो उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ गया। चंद्रास्वामी सत्ता के केंद्र से बाहर हो गए, लेकिन उनके दोस्त हर जगह मौजूद थे। लिहाज़ा तमाम मुकदमों के बावजूद वे दिल्ली के आलीशान इलाके में बने फ़ॉर्म हाउस में जमे रहे। और आखिरकार 23 मई 2017 को 66 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।
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