पाकिस्तान के अंदर है एक 'हिंदुस्तान'! जिसे नहीं चाहिए पाकिस्तान
Inside Story of Balochistan and atrocities by Pakistani army
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बलूचिस्तान (balochistan) और बलूचिस्तानी कहने को तो ये मुसलमान भी हैं और पाकिस्तानी भी लेकिन फिर पाकिस्तानी सेना ने सालों से इनकी ज़िंदगी को नर्क बना रखा है। अब तक लाखों की तादाद में बेगुनाह बलूचिस्तानियों का निहायत ही बेरहमी से कत्ल कर चुकी है नापाक आर्मी। आखिर क्यों?
क्या है पाकिस्तान के खौफ की वजह?
पाकिस्तान का बलूचिस्तान सूबा और बलूचिस्तानी लोगों से डरा हुआ है पाकिस्तान। उनके लोगों को भेड़ बकरियों की तरह काटा जा रहा है, घरों को जलाया जा रहा है। उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश हो रही है, उनके खज़ानों को लूटा जा रहा है। इतना ही नहीं उनके शहरों को नर्किस्तान भी बनाया जा रहा है। ये सब सिर्फ इसलिए क्योंकि ये बलूचिस्तान है। वो बलूचिस्तान जो आज़ादी के बाद से अब तक पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहता, वो या तो हिंदुस्तान को पसंद करता है या फिर वो पाकिस्तान से अलग अपना एक मुल्क बनाना चाहता है। पाकिस्तान को डर है कि अलग देश की इनकी मांग कहीं उसके टुकड़े टुकड़े न कर दे।
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बलूच लोगों पर पाकिस्तानी सेना का कहर
पाकिस्तान आज से नहीं बल्कि पिछले करीब 3 दशकों से बलूच लोगों पर कहर ढहा रही है, क्योंकि तब से बलूच लोगों ने अपनी आज़ादी की मांग तेज़ की है। इसीलिए सेना किसी पर भी शक़ होने पर ना सिर्फ उसका क़त्ल कर देती है बल्कि उनके घरों में घुस घुसकर उसे आग के हवाले कर देती है। उनपर हवाई हमले किए जाते हैं, लोगों को ज़िंदा जला दिया जाता है, जिसमें औरतें, बुज़ुर्ग और बच्चे भी शामिल होते हैं। इतना ही नहीं किसी को भी कहीं से भी लोगों को जबरन उठा लिया जाता है।
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बलूचिस्तान का इतिहास क्या है?
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नक्शे में अगर आपको समझाएं तो मौजूदा पाकिस्तान का आधे से ज़्यादा हिस्सा पहले बलूचिस्तान कहलाता था, जहां बलूच कबीले के लोग रहते हैं। ये लोग एक अर्से से अपने लिए अलग राष्ट्र की मांग कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तान जानता है कि अगर ये मांग सर उठाने लगी तो बर्बाद हो जाएगा ये मुल्क। लिहाज़ा इन लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए आए दिन पाकिस्तान यहां तबाही का ये खेल खेलता है, ताकि लोग खौफ में जियें और उनके दिलो दिमागों में अलग बलूचिस्तान का बीज उपजने ही न पाए। बलूचिस्तान की जिन इलाकों में पाकिस्तानी आर्मी ने तबाही मचाई है उनमें,
अवारन
सिब्बी
हरनई
मारवार
पीर इस्माइल
जलादी
और बाबर कच्छ शामिल है।
बलूचिस्तान की आज़ादी की बात करने वाले बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट को कुचलने के नाम पर पाकिस्तान सरकार पिछले कई सालों में बेगुनाहों को मौत के घाट उतार रही है। दुनिया के सामने शराफत का जो नकाब पाकिस्तान ओढ़ने की कोशिश करता रहा है वो इन घटनाओं से हट चुका है, और उसकी हैवानियत की पोल खुल गई है।
बलूचिस्तान में क्यों उठ रही है अलग मुल्क की मांग?
पाकिस्तान में जब जब बलूच लोगों ने आवाज़ उठाने की कोशिश की तब तब उसे कुचल दिया गया, सरकारी आकड़ों के मुताबिक पिछले तीन दशकों से अब तक बलूचिस्तान में करीब 30 हज़ार बेगुनाह बलूचों को पाकिस्तान आर्मी ने मौत के घाट उतार दिया है। अब ये मांग पाकिस्तान की दहलीज़ को पार कर चुकी है, दुनियाभर में बलूच लोग खुद को पाकिस्तान के कहर से बचाने की मांग कर रहे हैं।
कहने का मक़सद सिर्फ इतना है कि पाकिस्तानी सरकार की निगाहों में इस कबीले के लोग हमेशा संदिग्ध रहते हैं, किसी पर ज़रा भी शक़ होता है तो अगले दिन सुबह उसकी लाश मिलती है। न कोई केस, न सुनवाई, बस तबाही ही तबाही। इसीलिए बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग बलूच लोग अमेरिका में उठा रहे हैं। अमेरिका में सैकड़ों बलूचिस्तानी अक्सर व्हाइट हाउस के सामने पाकिस्तान के जबरन कब्जे को खत्म किए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन करते हैं। इन लोगों ने अमेरिकी सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने, क्षेत्र में नाटो सेनाओं की तैनाती करने और बलूचिस्तान को आजाद करने की मांग की है।
क्या है विवाद?
बलूचिस्तान में विद्रोह की आवाज ने आज जन्म नहीं लिया है। आजादी के वक्त से बलूचिस्तान में विद्रोह की शुरूआत हो चुकी थी, और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान ने हथियार के दम पर 1948 को बलुचिस्तान को अपने कब्जे में लिया था, तब से बलूच नागरिकों के दिल में जल रही आग ने अब ज्वालामुखी का रुप धारण कर लिया है। साल 2003 से शुरू हुए बलूच आंदोलन की शुरूआत गुरिल्ला हमलों से हुई थी। ये समूह बढ़ते-बढ़ते चरमपंथी और अलगाववादी बन गए। अभी बलूचिस्तान के ज्यादातर नेता विदेशों में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं और पाकिस्तान से आज़ादी मांग रहे हैं, लेकिन सालो से चल रहे इस संघर्ष को पाकिस्तान आर्मी की बदौलत दबाने में जुटा हुआ है।
क्यों पाकिस्तान से अलग होना चाहता है बलूचिस्तान?
1947 में बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान में शामिल किया गया
2004 से लेकर अब तक 14, 362 लोग गायब हैं,
200 से अधिक महिलाएँ भी पता नहीं
2004 में सैन्य ऑपरेशन की शुरूआत परवेज मुशर्रफ ने की थी
2006 में पाक आर्मी ने बलूच नेता बुगती की हत्या कर दी
बुगती ने अपनी हत्या से पहले साल 2005 में पाकिस्तान सरकार के सामने 15 प्वाइंट का एजेंडा रखा था। बुगती के एजेंडे में बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा, बलूचों की सुरक्षा और इलाक़े में सैनिक अड्डा बनाने पर रोक जैसे मुद्दे थे, लेकिन पाक सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया। इसी के बाद पाकिस्तान सरकार के शोषण के ख़िलाफ बलूचिस्तान में फिर से आंदोलन शुरू हो गया। अब हम आपको बताते हैं कि क्यों साल 1947 से ही बलूचिस्तान में विद्रोह की चिंगारी जल उठी, दरअसल बलूचिस्तान का पूरा इलाका करीब करीब आधे पाकिस्तान के बराबर है।
कुदरती खज़ाने से पटा पड़ा है बलूचिस्तान
देखने में बंजर ये ज़मीनें असल में कुदरती खज़ानों से भरी पड़ी है, इतना खज़ाना कि पाकिस्तान को फकीर से अमीर मुल्कों की फेहरिस्त में ला सकता है। इन्हीं खज़ानों के दम पर पाकिस्तान की इकॉनमी चल रही है, पाकिस्तान के हाथ जो लगा है वो तो इस खज़ाने के रत्तीभर के बराबर है। अभी इन ज़मीनों में अकूत खज़ाना निकलना बाकी है, ये निकले इसलिए नहीं क्योंकि पाकिस्तान के पास वो तकनीक नहीं है। लेकिन इन सब के बावजूद पाकिस्तान ने अब तक बलूची लोगों को रोजगार तक मुहैया नहीं कराया है। सिर्फ विरोध की आवाज को कुचलने की कोशिश की गई। पाकिस्तान की सरकार बलूचिस्तान के लोगों को शिक्षा, रोज़गार, पीने का साफ पानी, स्वास्थ्य जैसी ज़रूरत की चीज़ें मुहैया कराने में असफल रही है। ये भी बलूचों के विद्रोह की एक वजह है।
बलूचिस्तान में खेली जाती है खून की होली
दरअसल इस नरसंहार के पीछे है ये खजाना ही है, जिसपर पाकिस्तान अपना कब्ज़ा चाहता है, जिसके लिए कई दशकों से कोशिश हो रहा है। इसके लिए वो अपनों का ही निहायत बेदर्दी से खून बहा रहा है। बलूचिस्तान के इस रेतीले इलाके की ज़मीन में छिपा है खरबों का खज़ाना, ये खज़ाना है यूरेनियम, पेट्रोल, नेचुरल गैस और कीमती धातुओं का बेशकीमती भंडार की शक्ल में, बलूचिस्तान के सुई नाम की एक जगह पर मिलनेवाली गैस से पूरे पाकिस्तान की आधी से ज्यादा जरूरत पूरी होती है। पाकिस्तान इन सब पर पूरी तरह से अपना कब्जा चाहता है ताकि वो इस जगह को लेकर चीन के साथ सौदा कर सके। हालांकि बलूचिस्तान के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान को इसे देने के लिए तैयार नहीं हैं, इसीलिए वो पाकिस्तान के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद किए हुए हैं।
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