Morbi Bridge : 143 साल बाद टूटा मोरबी पुल, इस पुल से ये राजा दरबार जाते थे, आज लोगों की कब्रगाह बना
Gujarat Morbi Cable Bridge Collapse Update : गुजरात के जिस मोरबी में बने इस झूलते हुए पुल से कभी राजा प्रजावत्सल सर वाघजी ठाकोर (Morbi King Raja Praja Vatsal Waghji) आते जाते थे. आज मौत का सबबन बना.
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Gujarat Morbi Cable Bridge Full Story : गुजरात के मोरबी पुल अब से करीब 143 साल पहले अंग्रेजों के जमाने में बना था. उस समय इस पुल से मोरबी के राजा प्रजावत्सल सर वाघजी ठाकोर (Morbi King Raja Praja Vatsal Waghji) राज महल से राज दरबार तक जाने के लिए इस्तेमाल करते थे. राजशाही खत्म होने के बाद इस पुल की जिम्मेदारी मोरबी नगर पालिका को सौंप दी गई थी. उस समय से लेकर अब तक नगर पालिका के पास ही पुल की जिम्मेदारी है.
Morbi Bridge History : वो जिम्मेदारी ही थी कि पुल के मेंटिनेंस कार्य के लिए उसे करीब 6 मीहने के लिए बंद किया गया था. इस दौरान एक कंपनी ने इसका मेंटिनेंस कार्य पूरा किया. हादसे से 5 दिन पहले ही 25 अक्टूबर को इस ब्रिज को आम लोगों के लिए खोला गया. एक बार में पुल पर 100 लोगों की क्षमता बताई जा रही है. मगर हादसे के दौरान 500 से ज्यादा लोग पुल पर पहुंच गए थे.
ऐसा नहीं है कि कोई भी पुल पर अपनी मर्जी से जा सकता है. बल्कि इसके लिए बकायदा टिकट लेनी पड़ती है और उसके बाद कोई पुल पर जाता है. ऐसे में क्षमता से ज्यादा लोगों के जाने और कई दूसरी वजहों ने एक झटके में कई परिवारों को तबाह कर दिया. 31 अक्टूबर की लेटेस्ट दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, मोरबी हादसे में कुल 190 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है. इनमें 25 बच्चे शामिल हैं.
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मरने वालों में महिलाएं और बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है. 170 लोगों की जान बचाई गई है. काफी संख्या में जो युवा लोग थे उन्होंने तैरकर अपनी जान बचा ली. लेकिन अंग्रेजों के जमाने में बने हुए इस पुल के अब 143 साल बाद आखिरकार अचानक टूटकर गिरने और इतने लोगों की हुई मौत का जिम्मेदार कौन हैं. आखिर कहां हुई चूक. उसे पूरी तरह से जान लेते हैं.
मोरबी पुल हादसा : एक नजर में
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143 साल पुराना है मोरबी पुल
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765 फीट लंबाई है इस पुल की
20 फरवरी 1879 को शुरू हुआ
3.5 लाख की लागत में बना था
233 मीटर लंबा व 4.6 फुट चौड़ा
6 महीने से बंद रहा था ये पुल
25 अक्टूबर को इसे खोला गया
30 अक्टूबर को पुल टूट गया
Morbi Bridge Accident watch Full Video
मच्छु नदी पर बना मोरबी पुल
morbi bridge accident : लकड़ी और तारों के सहारे बना करीब 765 फीट लंबा ये पुल मोरबी में बना है. गुजरात के मोरबी में बना अंग्रेजों के जमाने का बना पुल ऐतिहासिक धरोहर है. जिसका उद्घाटन 20 फरवरी 1879 को मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेंपल ने किया था. उस समय पुल को बनाने का सारा सामान इंग्लैंड से लाया गया था. इस पर करीब साढ़े 3 लाख रुपये का खर्च हुआ था.
करीब 6 महीने बंद रहने के बाद 25 अक्टूबर को शुरू हुआ और 30 अक्टूबर की शाम करीब साढ़े 6 बजे मोरबी का केबल ब्रिज टूट गया. हादसे से करीब 5 दिन पहले जब इस पुल को खोला गया था तब उससे पहले ओरेवा कंपनी (Oreva) ने इस पुल का मेंटिनेंस किया था. पर सवाल वही है कि मेंटिनेंस जब हाल में किया गया था तो फिर पुल टूटा कैसे. सवाल ये भी है कि आखिर मेंटिनेंस में किन चीजों की लापरवाही हुई जिसके चलते पुल कमजोर होकर टूट गया.
मरम्मत के बाद फिटनेस सर्टिफिकेट क्यों नहीं
Morbi Bridge Collapse : अब तक की रिपोर्ट में सामने आया है कि मेंटिनेंस के बाद नगर पालिका से फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया गया. अब सवाल ये है कि फिटनेस सर्टिफिकेट क्यों नहीं लिया गया. दूसरा बड़ा सवाल कि अगर फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया गया तो फिर पुल को आम लोगों के लिए खोला क्यों गया. अब इन दो सवालों में ही कई सवाल छुपे हैं. जैसे कि फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया गया तो क्या इस पुल का मेंटिनेंस करने वालों को ये पता था कि इसमें कुछ खामियां हैं. जिनकी वजह से उन्होंने पहले ही फिटनेस सर्टिफिकेट को नजरअंदाज कर दिया.
एक और सवाल कि अगर नगर पालिका से फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया गया तो 25 अक्टूबर को पुल फिर से शुरू हुआ और हादसे वाले दिन यानी 30 अक्टूबर तक चलता रहा. इस दौरान तक जिम्मेदार अफसरों की सर्टिफिकेट नहीं लिए जाने वाली गंभीर बात पर नजर क्यों नहीं गई. ये तमाम सवाल हैं जो लोगों की मौत के साथ जिम्मेदार अफसरों की पोल खोल रहे हैं.
Morbi Update : इस पुल पर एंट्री के लिए 17 रुपये और 12 रुपये के दो टिकट तय किए गए थे. 12 रुपये का टिकट बच्चों के लिए था बाकी लोगों के लिए 17 रुपये की टिकट. यानी बिना टिकट लेकर कोई इस पुल पर नहीं जा सकता था. इसके बाद ये दावा किया जा रहा है कि पुल पर क्षमता से ज्यादा लोग पहुंच गए. आखिर ये कैसे हो सकता है.
क्या इसमें प्रशासन की चूक नहीं है. जाहिर है पूरी चूक प्रशासन की है. एक आम आदमी तो टिकट लेकर पुल पर जाने को सुरक्षित मान रहा था. ये भी सामने आया है कि पुल की क्षमता 100 लोगों की थी. फिर भी करीब 233 मीटर लंबे पुल पर 500 से ज्यादा लोगों को कैसे भेज दिया गया.
जिसकी वजह से क्षमता से ज्यादा लोगों के पहुंचने को भी हादसे की वजह बताया जा रहा है. लेकिन इसमें सीधे तौर पर प्रशासन की चूक है. साथ ही मेंटिनेंस करने वाली कंपनी की लापरवाही. अब पुल का मैनजेमेंट करने वाली कंपनी पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है. जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई है. कंपनी को मार्च 2022 में ही 15 साल के लिए ठेका मिला था. यानी हादसे से ठीक 6 महीने बाद ही ये बड़ा हादसा हो गया.
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