वो भारतीय हॉकी खिलाड़ी जिसने हिटलर को दिया 'मुंहतोड़ जवाब'
Hockey Majecian Major Dhyan Chand Who Denied Hitler offer
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ओलंपिक खेलों का जब भी आयोजन होता है पूरी दुनिया इसकी गवाह बनती है, हर साल रिकार्ड बनते हैं, रिकार्ड टूटते हैं। कुछ ऐसे रिकार्ड जो ओलंपिक के दामन पर सितारों सा चमकते हैं, मगर यहां सिर्फ रिकार्ड ही नहीं बल्कि मिसालें भी कायम होती हैं। कुछ ऐसी मिसाल जो भुलाई नहीं जा सकती। और जो भुलाए नहीं जा सकते उनमें ध्यानचंद सा हॉकी का जादूगर है। जिसने 12 सालों तक अपने खेल से ओलंपिक में भारत का दबदबा बनाए रखा, जिसकी हॉकी से गेंद ऐसी चिपकती थी जैसे चुंबक से लोहा। इस शख्स पर इल्ज़ाम भी कुछ ऐसे ही लगे, कहा गया कि ध्यानचंद की हॉकी स्टिक में चुंबक लगा है। जांच हुई तो उसमें से उभरा हॉकी का ये कलाबाज़।
पेशे से भारतीय सेना में सूबेदार, बहुत साधारण सा दिखने वाला ये इंसान जब हरी घास पर हॉकी की स्टिक लेकर उतरा तो असाधारण बन गया, मैदान पर जिधर-जिधर इसकी कलाई घूमती, उधर उधर लोगों की आंखों की पुतली भी घूमती। दरअसल लोग इस इंसान के खेल को देखने नहीं आते थे, बल्कि ये पता करने आते थे कि हरे मैदान पर सफेद गेंद इसकी हॉकी स्टिक से चिपकी कैसे रहती है?
ओलंपिक के 3 खेलों में खेले सूबेदार ध्यान चंद ने हिस्सा लिया औऱ हर बार लोगों को उनके खेल ने न सिर्फ अपनी तरफ खींचा बल्कि कंफ्यूज़ किया, इसलिए हर बार उनपर अलग अलग तरह के इल्ज़ाम लगे।
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साल 1928
ऐमस्टर्डम ओलंपिक
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ओलंपिक में हॉकी खेलने पहली बार उतरी भारतीय टीम, इस टीम के साथ एक ऐसा खिलाड़ी भी आया जिसे मैच शुरू करने से पहले किसी ने संजीदगी से नहीं लिया। आस्ट्रिया के खिलाफ पहला मैच खेलते हुए भारत ने 6-0 से मैच जीता, 3 गोल मारकर ध्यानचंद मैच के हीरो बने। इसके बाद भारत ने बेल्जियम को 9-0 से, डेनमार्क को 5-0 से, सेमीफाइनल में स्विटज़रलैंड को 6-0 से और फाइनल में मेज़बान हॉलैंड को 3-0 से हराकर गोल्ड जीत लिया। ध्यानचंद 5 मैचों में कुल 14 गोल मारकर टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने, भारतीय टीम की इस असाधारण जीत पर एक अखबार ने हेडलाइन बनाई,
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हॉकी सिर्फ खेल नहीं बल्कि जादू है, और इस जादू का जादूगर है ध्यानचंद।
ऐम्सटर्डम ओलंपिक में ध्यानचंद के इस खेल के बाद झल्लाए हॉलैंड ने उनपर उलूल जुलूल इल्ज़ाम लगाने शुरू कर दिए, ध्यानचंद में आरोप लगा कि जिस तरह बॉल उनकी हॉकी से चिपकी रहती है उससे ऐसा लगता है कि उनकी स्टिक में चुंबक लगा है। ध्यानचंद पर सिर्फ इल्ज़ाम ही नहीं लगा बल्कि हॉलैंड में ही उनकी हॉकी स्टिक तोड़कर इस बात की जांच की गई कि उसमें कहीं चुंबक तो नहीं लगा है।
साल 1932
लॉस एंजेलिस ओलंपिक
लॉस एंजेलिस में हॉकी के दर्शकों को अगर किसी का इंतेज़ार था, तो वो थे हॉकी के जादूगर का खिताब पा चुके ध्यान चंद। पिछले ओलंपिक में अपना करिश्मा दिखा चुके ध्यानचंद को अब किसी को अपना खेल साबित करने की ज़रूरत नहीं थी, जापान के खिलाफ पहले ही मैच में भारत ने 11-1 से मैच जीता। ध्यानचंद ने पहले ही मैच में तीन गोलों से अपना खाता खोला, जापानी खिलाड़ियों की छोटी-छोटी आंखें बड़ी हो चुकी थीं उन्हें ध्यानचंद के इस खेल पर यकीन नहीं हो रहा था। जापानियों ने शिकायत की ध्यानचंद अपनी स्टिक पर गोंद चिपकाते हैं, लेकिन जांच की गई तो आरोप बेबुनियाद नज़र आए। उम्मीद के मुताबिक लॉस एंजेलिस में भी भारत की टीम फाइनल में पहुंची औऱ मुकाबला पड़ा मज़बूत मानी जा रही अमेरिका की टीम से, खेल शुरू हुआ तो अमेरिकी दर्शक उत्साह में उछल रहे थे लेकिन खत्म हुआ तो सब के मुंह लटके हुए थे। भारत ने अमेरिका को रिकार्ड 1 गोल के मुकाबले 24 गोलों से हराया। ध्यानचंद ने मैच में 8 गोल दागे, डी में खड़े गोलकीपर को समझ नहीं आ रहा था आंधी की तरह उसकी तरफ बढ़े चले आ रहे ध्यानचंद को रोका जाए तो कैसे?
साल 1936
बर्लिंन ओलंपिक
इस बार ओलंपिक एक ऐसे तानाशाह की धरती पर हो रहा था जिसे अपनी ताक़त का गुरूर था, और इसी ताकत का इज़हार वो इन ओलंपिक खेलों के ज़रिए पूरी दुनिया के सामने करना चाहता था। लेकिन उसे कहां पाता था कि उसकी झूठी ताकत उसी की धरती पर उसी की आंखों के सामने चूर चूर होने वाली है, और इसे अंजाम दिया एक हिंदुस्तानी ने। हिटलर के इस घमंड को तोड़ने का बीड़ा उठाया था उस शख्स ने दुनिया जिसे हॉकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद कहती है।
बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद के शानदार खेल की बदौलत भारत फाइनल में पहुंच चुका था, भारत ने फाइनल में पहुंचने से पहले हंगरी, अमेरिका, जापान और फ्रांस को हराया, अब तक ध्यानचंद चार मैचों में 10 गोल दाग चुके थे। अब फाइनल में भारत का मुकाबला हिटलर की नाजी जर्मनी से था। हिटलर का घमंड चकनाचूर करने के लिए ये मैच जीतना बहुत ज़रूरी था इसीलिए ध्यानचंद समेत पूरी हॉकी टीम ने तिरंगे पर हाथ रख कर जीत की कसमें खाई, जानते हैं वो दिन और तारीख कौन सी थी? 15 अगस्त 1936, वो तारीख जिसके ठीक 9 साल बाद भारत आज़ाद हो गया, लेकिन हॉकी के मैदान में देशप्रेम की लौ तो उसी दिन जल गई थी।
मैदान पर 40 हज़ार दर्शक थे, लेकिन सबसे खास थी हिटलर की मौजूदगी। वो अपनी टीम का हौंसला बढाने के लिए खुद मैदान में मौजूद था। खेल से पहले जर्मनी को जीत का दावेदार माना जा रहा था लेकिन मैच शुरू होने के बाद ध्यानचंद की कप्तानी में भारतीय टीम ने हिटलर की जर्मनी टीम पर ऐसा धावा बोला की उसे संभलने का मौका भी नहीं दिया और हिटलर की आंखों के सामने भारत ने जर्मनी को 8-1 से रौंद दिया। भारत की इस शानदार जीत से हिटलर अंदर तक हिल गया, उसने ध्यानचंद को मिलने के लिए बुलाया। हिटलर ने ध्यानचंद से पूछा,
हिटलर- आप क्या करते हैं?
ध्यानचंद- मैं सेना में सूबेदार हूं..
हिटलर- इतना बढ़िया खिलाड़ी अगर हमारी टीम में होता तो, वो मेरे जर्मनी की सेना में किसी बड़े पद पर होता
कहते हैं कि इशारो ही इशारों में हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी आने का लालच दिया था, लेकिन ध्यानचंद ने इसे ठुकरा दिया। दरअसल ध्यानचंद थे ही ऐसे। 1928 से लेकर 1936 तक कुल तीन ओलंपिक में ध्यानचंद ने हिस्सा लिया औऱ हर बार अपने खेल की बदौलत भारत को चैंपियन बनाया।
ध्यानचंद के खेल में ऐसा जादू था कि उनकी स्टिक से गेंद चिपकी रहती थी, 1932 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक में अपनी हार से जापानी इतने बौखला गए कि उन्होने आरोप लगाया कि ध्यानचंद अपनी स्टिक पर गोंद चिपकाते हैं, लेकिन जांच हुई तो आरोप बेबुनियाद साबित हुए। ओलंपिक के इतिहास ध्यानचंद के बिना अधूरा है और तभी तो जब तक ओलंपिक होते रहेंगे ध्यानचंद के वो महान किस्से याद आते रहेंगे।
आज भी ओलंपिक में हॉकी के इस जादूगर को याद किया जाता है, हॉकी की दुनिया में इस भारतीय सितारे की वही जगह थी जो फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन की थी। ध्यानचंद की हॉकी की जादूगरी के जितने किस्से हैं उतने शायद ही दुनिया के किसी दूसरे खिलाड़ी के होंगे। वियना में तो ध्यानचंद के चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति भी लगाई गई।
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