फिल्म रिलीज़ से होने से पहले जानिए क्या थी शहीद उधम सिंह की पूरी कहानी?

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फिल्म रिलीज़ से होने से पहले जानिए क्या थी शहीद उधम सिंह की पूरी कहानी?
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वो तारीख थी 13 मार्च 1940, लंदन के कॉक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया सोसाइटी औऱ सेंट्रल एशियन सोसाइटी की ज्वाइंट मीटिंग में सैकड़ों लोगों के सामने माइकल ओ डायर 21 साल पहले किए हज़ारों बेगुनाहों के कत्लेआम की गाथा को बड़े फख्र से सुना रहा था। लेकिन जैसे ही उसने कहा कि 75 साल के इस बूढ़े को अगर दूसरा जलियांवाला बाग दोहराने का मौका मिले तो इसे भी अंजाम देने से हिचकिचाएगा नहीं, तभी उस भरे हॉल में खड़ा हुआ आज़ादी का एक मतवाला और माइकल ओ डायर की तरफ पिस्तौल तानकर बोला,

नहीं माइकल ओ डायर, अब तुम्हें दूसरा जलियांवाला बाग दोहराने का मौका नहीं दिया जाएगा।

आज़ादी का एक ऐसा मतवाला जिसने जलियांवाला बाग में मारे गए अपने देश के हज़ारों लोगों की मौत का बदला सात समंदर पार जाकर लिया और इस दर्दनाक नरसंहार के उस क्रूर इंसान को उसके किए की सज़ा दी, जो उस वक़्त पंजाब के गवर्नर था। नाम था माइकल ओ डायर। जलियांवाला बाग नरसंहार में जरनल डायर ने जिन हज़ारों लोगों को गोलियों से भून दिया उसमें उधम सिंह का कोई अपना नहीं था, लेकिन बचपन में अनाथ हो चुके आज़ादी के इस मतवाले ने पूरे देश को अपना परिवार मान लिया था। और इस घटना से उधमसिंह इस कदर तिलमिला गए थे कि उन्होंने जलियांवालाबाग की खून से सनी मिट्टी को हाथ में लेकर जरनल डायर औऱ माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की कसम ली थी।

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जलियांवाला बाग नरसंहार में मारे गए लोगों की हाय जरनल डायर को ऐसी लगी कि वो अगले 6 साल तक बुरी तरह बीमार रहते हुए तड़प तड़क कर मरा, बाकी रह गया था तो इस नरसंहार का वो मास्टरमाइंड जो पर्दे के पीछे था। उस वक़्त पंजाब का गवर्नर माइकल ओ डायर, रिटार्यर होने के बाद लंदन वापस लौट गया था। इस बात से अंजान कि उसकी मौत उसके पीछे पीछे आ रही है।

माइकल ओ डायर से हज़ारों लोगों की मौत का बदला लेने उधमसिंह 1934 में लंदन पहुंचे, वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी और सही समय का इंतजार करने लगे। लेकिन भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था वो उन्हें मिला 13 मार्च 1940 को। उधमसिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर कॉक्सटन हॉल के अंदर घुसने में कामयाब हो गए और यहीं उधम सिंह ने अपनी वो कसम पूरी की जो उन्होंने 21 साल पहले ली थी।

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डायर को दो गोलियां लगीं और वो वहीं ढेर हो गया, अदालत में उधमसिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियां बचीं थीं तो उन्होंने उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। तो उधम सिंह ने जवाब दिया,

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मैंने सिर्फ माइकल ओ डायर को इसलिए मारा क्योंकि मेरी दुश्मनी उससे थी, वो हज़ारों लोगों की मौत का दोषी है और वो इसके ही काबिल था। वो हमारे लोगों को कुचलना चाहता था मैंने उसे कुचल दिया। पूरे 21 साल से मैं इस दिन का इंतेज़ार कर रहा था, मैंने जो किया मुझे उसपर फख्र है। मुझे अपनी मौत का खौफ नहीं क्योंकि मैं अपने वतन के लिए बलिदान दे रहा हूं।

31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधमसिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया, जिसे उन्होंने हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया। ये थी उस शहीदे आज़म की वीर गाथा जिसे हम ताउम्र नहीं भूल सकते।

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