15 AUGUST SPECIAL : वो आज़ादी का मतवाला जिसे देख भगत सिंह ने पकड़ी क्रांति की डगर
Freedom fighter who died the day india get independence
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अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को पंजाब के जालंधर के खटकड़ गांव में हुआ था। उनके बड़े भाई थे भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह । बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश की आजादी के लिए ताउम्र संघर्ष करने वाले अजीत सिंह ने उस दिन इस दुनिया से अलविदा हुए जिस दिन का इंतजार उन्होंने पूरी उम्र किया था। अजीत सिंह का निधन देश की आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को हिमाचल के डलहौजी में हुआ।
38 साल तक देश की आजादी के लिए देश के बाहर रहने वाले अजीत सिंह का जिक्र कम ही होता है लेकिन आजादी में उनकी भूमिका को कमतर नहीं आंका जा सकता है। साल 1894 में जालंधर के एंग्लो-संस्कृत हाईस्कल से 12वीं पास करने के बाद उन्होंने लाहौर के DAV COLLEGE में दाखिला लिया। इसके बाद कानून की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने बरेली के कॉलेज में एडमिशन लिया। हालांकि अपनी पढ़ाई पूरा करने से पहले ही उन्होंने ये कोर्स बीच में ही छोड़ दिया और आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।
वो ज्यादातर किसानों और गरीब लोगों के बीच काम किया करते थे। ब्रिटिश सरकार के भूमि कानूनों से अजीत सिंह और उनके भाई किशन सिंह खुश नहीं थे और वो इनका भरसक विरोध किया करते थे। साल 1907 में अजीत सिंह को किसानों के अधिकारों के लिए प्रदर्शन करने पर अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर म्यांमार की मंडले जेल भेज दिया। किसानों के इस आंदोलन का नाम था ‘पगड़ी संभाल जट्टा’।
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म्यांमार की जेल से छूटने के बाद अजीत सिंह एक बार फिर भारत लौटे । लौटने के बाद इन्होंने 1907 में भारत माता सोसायटी नाम की संस्था बनाई जो क्रांतिकारी विचारों का एक मंच थी। साथ ही उन्होंने भारत माता बुक एजेंसी की शुरुआत भी की जो अंग्रेज सरकार के खिलाफ तमाम तरह के अखबार और पर्चे निकाला करती थी।
देश की आजादी के लिए वैश्विक आंदोलन
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भारत की आजादी का आंदोलन केवल अजीत सिंह देश में नहीं बलकि विदेशों में भी चलाना चाहते थे।1909 में वो अपने साथी अंबा प्रसाद के साथ कराची के रास्ते होते हुए ईरान गए। वो ईरान के शहर शिराज में मिर्जा हसन खान के नाम से रहते थे और यहां पर बतौर टीचर काम किया करते थे। ईरान में कुछ वक़्त गुजारने के बाद अजीत सिंह पेरिस चले गए। 1917 में अंबा प्रसाद की मौत अंग्रेजों के साथ लड़ाई में हो गई।
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पेरिस में भी उन्होंने भारत की आजादी के लिए समर्थन जुटाना शुरु किया। उन्होंने यूरोप में हिंदुस्तान की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की एक संस्था बनाई जिसका नाम था भारतीय क्रांतिकारी संघ। आजादी के जनजागरण को विश्व के अलग-अलग देशों में फैलाने के लिए अजीत सिंह एक जगह टिककर नहीं रहते थे बलकि वो देशों की यात्रा करते रहते थे।
1913 में वो जर्मनी पहुंचे लेकिन वहां पर प्रथम विश्वयुद्ध के बादल देख वो वहां से ब्राजील चले गए। वहां भी उन्होंने कई क्रांतिकारियों से संपर्क किया। साल 1932 में वो एक बार फिर यूरोप लौटे जहां पर उनकी मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई।
भारत का वो हिस्सा जहां देश के PM भी नहीं रख सकते कदम 200 साल बाद भी हम वही जानते हैं जो 200 साल पहले जानते थेवो भारत की आजादी के लिए हिटलर के समर्थन की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका। इटली पहुंचने के बाद उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की लेकिन साल 1945 में इटली की हार के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
उन्हें लंबे वक्त तक जेल में रखा गया जिसकी वजह से उनकी तबीयत खराब हो गई। जब अजीत सिंह के साथियों को उनकी कैद के बारे में पता चला तो उन्होंने जवाहरलाल नेहरू पर उनकी रिहाई के लिए दबाव बनाया।
दबाव काम आया और साल 1946 में उन्हें इटली की जेल से रिहाकर लंदन भेज दिया गया। वहां से वो कराची पहुंचे। तीन दशक से भी ज्यादा वक्त बाद वो देश वापस पहुंचे थे। हालांकि आजादी से पहले हुए सांप्रदायिक दंगो से वो बेहद आहत थे और इस वजह से भारत आने के बाद उनकी तबीयत नासाज ही रही और देश की आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को उनका निधन हो गया।
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