द ग्रेट ट्रेन रॉबरी! ऐसी ट्रेन रॉबरी ना कभी देखी, ना सुनी

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द ग्रेट ट्रेन रॉबरी! ऐसी ट्रेन रॉबरी ना कभी देखी, ना सुनी
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8 अगस्त, 1963 इतिहास के पन्नों में दर्ज ये वो घड़ी और तारीख़ है, जिसका ज़िक्र चलते ही ब्रिटेन की ग्रेट ट्रेन रॉबरी की तस्वीरें दिमाग़ में कौंध जाती हैं, एक ऐसी रॉबरी, जिसके बारे में पिछले 5 दशकों में शायद सबसे ज़्यादा कहा और सुना गया, जिस पर फिल्में बनीं और नाटक भी खेले गए। लेकिन ये शायद इस वारदात को अंजाम देने का तरीक़ा ही था कि इतना वक़्त गुज़रने के बावजूद आज भी इस द ग्रेट ट्रेन रॉबरी को लेकर पूरी दुनिया बातें करती हैं।

16 से 17 डकैतों के एक गैंग ने उस ज़माने में रॉयल मेल ट्रेन से पूरे 2.6 मिलियन डॉलर की लूट की थी, अगर लूटी गई इस रकम की कीमत का आज की तारीख में सही-सही हिसाब लगाया जाए, तो ये रकम करीब 40 मिलियन यूरो के आस-पास बैठती है। यानी करीब तीन अरब रुपए। वैसे तो इस मामले की छानबीन के दौरान ब्रिटेन पुलिस ने चार से पांच लोगों को इस वारदात का मास्टरमाइंड करार दिया, लेकिन इनमें भी जो दो नाम सबसे ऊपर रहे, वो थे रॉनी बिग्स और ब्रूस रेनॉल्डस।

इस ग्रेट रॉबरी को रॉनी ने अपने 34वें जन्मदिन पर अंजाम दिया था, जब उसने और उसके गैंग ने ग्लासगो से लंदन जा रही रॉयल मेल ट्रेन को बीच रास्ते में ही सिग्नल ख़राब कर रोक लिया और बेहद नाटकीय तरीक़े से एक ट्रक में कैश और दूसरी क़ीमती चीज़ें लाद कर फ़रार हो गए। इसके लिए उन्होंने ट्रेन रोकते ही सबसे पहले इसके ड्राइवर को निशाना बनाया और उसके सिर पर लोहे की रॉड से जानलेवा हमला किया। चूंकि जिस जगह पर इस गैंग ने ट्रेन को रोका था, उन्हें वहां पकड़े जाने का डर था लहाजा इसके बाद ये गैंग खुद ही ट्रेन को कई मील तक आगे ले गया और फिर एक सुनसान जगह पर ले जाकर नकदी और रजिस्टर्ड पोस्ट की बोगी से पूरे 40 मिलियन यूरो यानी तकरीबन 3 अरब रुपए के बराबर की रकम लूट ली।

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दुनिया की सबसे बड़ी लूट की वारदातों में से एक यानी द ग्रेट ट्रेन रॉबरी अपने आप में जितनी बड़ी और चौंकानेवाली थी, उतनी ही चौंकानेवाली थी इस मामले की तफ्तीश और इसके गुनहगारों का अंजाम भी। क्या आप यकीन करेंगे कि उस दौर में जब तकनीक ने इतनी तरक्की नहीं थी, तब भी इस साज़िश का मास्टरमाइंड पुलिस का वायरलेस सिस्टम इंटरसेप्ट कर चुका था।

बकिंघमशायर पुलिस और स्कॉटलैंड यार्ड को इस रॉबरी के गुनहगारों तक पहुंचने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी, हालांकि अलग-अलग वक्त में अलग-अलग लोग पकड़े गए, लेकिन रॉनी अपने पकड़े जाने के महज़ 15 महीने बाद ही जेल से भाग निकला। छोटे-मोटे गुनाहों में शामिल रहनेवाले रॉनी की अपने गुरु रेनॉल्ड्स से जेल में मुलाकात हुई थी और वहीं उन्होंने इस रॉबरी की साज़िश रची। इसके मुताबिक दो अलग-अलग गैंग ने एक साथ मिलकर ट्रेन को बीच रास्ते पर रोका और पूरी वारदात को अंजाम दिया, लेकिन उन दिनों इतनी बड़ी वारदात को अंजाम देना अपने-आप में रहस्य रोमांच से भरी किसी कहानी से कम नहीं था।

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लेकिन लूट की वारदात के कई घंटे गुज़रने के बाद जब पुलिस को इसकी खबर मिली, तो पुलिस ने सबसे पहले सीन ऑफ क्राइम यानी मौका ए वारदात का मुआयना शुरू किया। यहां से पुलिस को पहला क्लू मिला। दरअसल, एक लुटेरे ने रेलवे के एक मुलाज़िम को ये धमकी दी कि वो उनके भागने के 30 मिनट तक यहां से हिलने की गल़ती ना करें, इससे पुलिस ने अंदाज़ा लगाया कि लुटेरे मौका ए वारदात से तकरीबन 50 किलोमीटर के दायरे में ही होंगे, जहां 30 मिनट में पहुंचा जा सकता है। इसके बाद पुलिस ने कॉम्बिंग ऑपरेशन की शुरुआत की, लेकिन उसे ज़्यादा फ़ायदा नहीं हुआ। जानते हैं क्यों? क्योंकि लुटेरे पहले ही पुलिस के वायरलेस सिस्टम में सेंध लगा चुके थे और हर दम पुलिस से दो क़दम आगे रहे, हालांकि कुछ रोज़ बाद पुलिस को वो ट्रक भी मिला, जिसका इस्तेमाल लूट में किया गया था और वो दूसरी चीज़ें भी जो लुटेरों के पास थी। यहां से फिंगर प्रिंट के तौर पर पुलिस को कुछ और सुराग़ मिले।

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लेकिन इसके बावजूद पुलिस को ख़ास फायदा नहीं हुआ, बाद में तफ्तीश के दौरान उसे कुछ ऐसे लोग और ख़ास कर जेलों में बंद कैदी मिले, जिन्हें इस वारदात की खबर थी और जिन्होंने अपनी पहचान छिपाए रखने के बदले पुलिस को कई अहम जानकारियां दीं। और फिर लंबी मशक्कत के बाद पुलिस ने एक-एक कर इसके गुनहगारों को पकड़ना शुरू किया, आज भी जब किसी बड़े और नायाब रॉबरी और खास कर ट्रेन रॉबरी की बात चलती है, तो 1963 के इस द ग्रेट ट्रेन रॉबरी का जिक्र आ ही जाता है।

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