आज का फ़साद भगत सिंह ने 100 साल पहले देखा था और बताया था दंगों का ऐसा हो इलाज़

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आज का फ़साद भगत सिंह ने 100 साल पहले देखा था और बताया था दंगों का ऐसा हो इलाज़
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Crime Tak Special: बीते दो हफ़्तों से देश के अलग अलग हिस्सों से दंगा और मज़हबी हिंसा की ख़बरें सुर्खियों में छाई हुई हैं। देश के अलग अलग राज्यों में हर रोज़ हिंसा की कोई न कोई ख़बर सामने आकर अमन चैन के साथ रहने वालों को बुरी तरह से झकझोर रही हैं। फिर चाहें यूपी का रामपुर हो, लखनऊ हो, कर्नाटक का हुबली हो, मध्य प्रदेश का खरगौन हो, राजस्थान का करौली हो या फिर दिल्ली का जहांगीरपुरी।

इसके अलावा गुजरात, आंध्र प्रदेश , उत्तराखंड से भी मज़हबी हिंसा की ख़बरें सामने आई हैं। लेकिन ये सब तो बस बानगी भर हैं। पिछले कुछ सालों से ये एक फितरत देखी जा रही है कि लोगों के भीतर धर्म के नाम पर नफ़रत फैल रही है जिसकी वजह से लोग एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़ककर मरने और मारने पर उतारू हो जाते है।

Crime Tak Special: भारत सरकार ने भी इस बात को माना है कि बीते कुछ सालों के दौरान देश में धर्म के नाम पर दंगें भड़कने की तादाद शायद बहुत तेजी से बढ़ी है। गृहराज्यमंत्री नित्यानंद राय ने पिछले दिनों संसद में जो आंकड़ा सामने रखा वो तो और भी ज़्यादा बुरी तरह से न सिर्फ चौंकाता है बल्कि लोगों के दिलों में डर पैदा कर देता है।

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 से साल 2020 के दौरान पांच सालों में इस देश के अलग अलग हिस्सों में 3399 दंगों की रिपोर्ट दर्ज हुई है। अलग अलग साल के हिसाब से जो आंकड़ा गृहमंत्री ने दिया उसने वाकई सभी को चौंकाया है।

NCRB के दिए गए आंकड़ों के मुताबिक धर्म के आधार पर साल 2016 में 869 दंगे, साल 2017 में 723 दंगे, साल 2018 में 512 दंगे, साल 2019 में 438 दंगे और साल 2020 में 857 दंगे देश के अलग अलग हिस्सों में हुए और उनकी रिपोर्ट पुलिस में लिखी गई।

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यानी जो सरकारी रिपोर्ट है उसके मुताबिक औसतन हर रोज देश कम से कम दो दंगे तो देखता ही है। और एक दंगा पूरे मुल्क के लोगों की नींद उड़ाने के लिए काफी होता है, ऐसे में हिन्दुस्तान के भीतर दो दंगे प्रतिदिन के हिसाब से हालात कहां से कहां तक पहुँच गए हैं इसे देखकर खुद सरकार के पसीने छूट रहे हैं।

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Crime Tak Special: इन आंकड़ों की रोशनी में दंगों को लेकर पूरे देश में अलग अलग तरीके से बहस छिड़ चुकी है कि क्या ये दंगे महज धार्मिक उन्माद का नतीजा है या फिर इसके पीछे कोई सोची समझी साज़िश छुपी हुई है।

अब तक जहां जहां भी दंगे हुए, वहां एक पैटर्न दिखाई दे रहा है। हो ये रहा है कि एक भीड़ अपने हाथों में हथियार लेकर रैली निकालती है। उस रैली के दौरान एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों और उनसे जुड़े नामों के ख़िलाफ़ अपशब्द कहेंगे और फिर पथराव हो जाएगा और देखते ही देखते बात हिंसा की हद तक पहुँच जाती है।

दंगों के बाद भी एक ही तरह के बयान भी सामने आते देखे जा रहे हैं, कुछ इल्ज़ाम ये लगते हैं कि हिंसा के पीछे वो बाहरी तत्व हैं जो मौके की ताक में थे और उन्होंने उस इलाके का अमन चैन तोड़ा। जबकि ये भी इल्ज़ाम सामने आते हैं कि रैली या प्रदर्शन के दौरान कुछ कट्टरपंथी भड़काऊ भाषण देकर भीड़ को भड़का देते हैं, जिससे हालात तनाव पूर्ण हो जाते हैं।

Crime Tak Special: अब सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि हर रोज दंगे की ख़बर सुर्खियों में सामने आने लगी है। और इससे भी बड़ी बात ये कि आखिर इस माहौल के लिए असल में ज़िम्मेदार कौन है? ज़ाहिर है कि इन सवालों के बाद ये भी सवाल खड़ा होता ही है कि आखिर दंगों को रोकने और इस समस्या से निकलने का क्या उपाय हो सकता है।

बेशक ये सवाल समाज के बड़े तबके को प्रभावित करते हैं, देश का माहौल ख़राब होता है और विदेशों में दंगे और हिंसा की तस्वीरें देश की छवि पर भी अपना असर छोड़ती है। लेकिन इन तमाम सवालों के जवाब आज के हालात में कोई दे पाये या न दे पाये, मगर इनके जवाब आज से क़रीब 90 साल पहले दिए जा चुके हैं। और ये जवाब किसी और ने नहीं किसी राजनेता ने नहीं, किसी सत्ता की ऊंची कुर्सी पर बैठे ऊंची हैसियत के लोगों ने नहीं दिए, बल्कि इस मुल्क के सबसे चहेते और सभी के दिलों में अपनी जगह बनाने वाले क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह ने दिया था।

Crime Tak Special: आज के इन दंगों के सवालों पर सरदार भगत सिंह के जवाबों का ज़िक्र होता देखकर कोई भी चौंक सकता है। हालांकि ये सवाल उठ सकता है कि आज के दंगों के बारे में सरदार भगत सिंह कैसे कुछ कह सकते हैं। मगर ये सरासर सच है।

साल 1928 के जून के महीने में सरदार भगत सिंह ने कीरती पत्रिका में एक लेख लिखा था। ‘धर्म दे फ़साद ते उन्हा दा इलाज’ यानी Communal Riots and their Solutions. अपने इस लेख में भगत सिंह ने बड़ी ही बारीक़ी से और विस्तार से विश्लेषण किया था। और शायद बहुत से लोग इस बात को जानकर हैरान भी हो सकते हैं कि जो हालात हिन्दुस्तान में उस वक़्त थे, क़रीब क़रीब वैसे ही हालात इस वक़्त भी बने हुए हैं।

Crime Tak Special: भगत सिंह ने अपने उस लेख में जिन जिन बातों का ज़िक्र किया और जिनके आधार पर देश में भड़कते दंगों के बारे में बात की, उनमें से ज़्यादातर बातें आज भी देश में होती देखी जा रही हैं। देश के अलग अलग हिस्सों से आए दिन दंगों और हिंसा की ख़बरों के सामने आती हुई देखकर अपने लेख में भगत सिंह ने उस वक़्त लिखा था कि देश की हालत बद से बदतर हो गई है। लोगों ने अपने पड़ोसियों को ही अपना दुश्मन मान लिया है और वो भी उनका मज़हब देखकर।

सरदार भगत सिंह ने उस लेख में चार ऐसे कारण भी बताए जिनके आधार पर उन्होंने कहा था कि दंगा या हिंसा आखिर हो क्यों रही है।

Crime Tak Special: पहला कारण- सरदार भगत सिंह लिखते हैं कि लोगों की धार्मिक मानसिकता ही इस हिंसा और दंगे की सबसे बड़ी वजह है। भगत सिंह ने लाहौर में हुए एक दंगे का ज़िक्र किया। जिसमें दंगे के दौरान हर धर्म के लोगों ने हर धर्म के बेगुनाह लोगों को मारा। दंगों में मरने वालों का ताल्लुक हर मज़हब से था, मगर उनका कुसूर यही था कि वो बेगुनाह थे।

और दंगों में उत्पात मचाने वाले भी हर धर्म के लोग शामिल थे। भगत सिंह के लेख में पढ़ा जा सकता है कि दंगा करने वाले लोगों के पास दंगा करने का अपना ही गढ़ा हुआ तर्क होता है। और वो तर्क अक्सर यही होता है कि वो इसलिए दंगा कर रहे हैं क्योंकि इनके धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों ने मारा था। उनका ये भी तर्क होता है कि वो लोग तो असल में खुद को बचाना चाह रहे हैं।

Crime Tak Special: भगत सिंह ने इस बात पर ख़ासतौर पर ज़ोर दिया कि ये छिछला तर्क असल में कुतर्क है, जिसका कोई मतलब नहीं। सरदार भगत सिंह ने उस लेख में जिस बात पर सबसे ज़्यादा जोर दिया वो ये था कि ऐसे किसी भी दंगों में जो लोग मरते हैं वो असल में किसी भी सूरत में अपराधी लोग नहीं होते। और न ही भीड़ दंगों के दौरान किसी एक इंसान को ही नहीं मारती जिसने कुछ ग़लत किया हो, बल्कि दंगों के दौरान भीड़ तो लोगों को धर्म के आधार पर निशाना बनाती है। बाकी दंगाइयों को किसी भी चीज से कुछ लेना देना नहीं होता है।

भगत सिंह ने उस समय यानी आज से 92 साल पहले ही ये लिख दिया था कि उस वक़्त के दंगों ने पूरी दुनिया के सामने हिन्दुस्तान का चेहरा शर्म से झुका दिया है। पूरी दुनिया में देश की छवि खराब हो रही है। जिसकी वजह से देश बर्बादी की कग़ार पर जाकर खड़ा हो गया है।

Crime Tak Special: दूसरा कारण- क्रांतिकारी भगत सिंह ने उसी लेख में दंगों के पीछे का दूसरा कारण बताया कि लोगों की हर्ड मेंटालिटी (Herd Mentality), यानी भीड़ तंत्र। यानी कुछ लोग डंडे, रॉड्स, तलवारें और छुरी लेकर इलाक़े में निकल पड़ते हैं, गरज ये होती है कि उस इलाक़े में उनका ही ज़ोर और दबदबा चलेगा। और होता ये है कि जब कोई अपने ही धर्म के लोगों को इस तरह हथियारों के साथ देखता है तो वो अपना दिमाग़ ठंडा नहीं रख पाता बल्कि उसी बहाव में खुद भी बह जाता है और भीड़ का हिस्सा भी बन जाता है।

भगत सिंह और भगवती चरण ने अपनी नौजवान भारत सभा के लिए जब घोषणा पत्र तैयार किया था तो उसमें इस बात को ख़ासतौर पर लिखा था कि लोगों के लिए कितना आसान है धर्म के आधार पर किसी की भी भावनाओं को भड़काना। और ये बात समाज को जोड़ती नहीं है बल्कि उसे तोड़ देती है।

Crime Tak Special: अपने लेख में दंगों में होने वाली हिंसा और उस हिंसा में होने वाली तबाही के बारे में ज़िक्र करते हुए भगत सिंह ने लिखा कि क्या अजीब बदनसीबी है कि इंसान की भीड़ इंसान को ही जानवरों से भी कम समझ लेती है। कम से कम ऐसा तो नहीं होना चाहिए। लेकिन ये बदनसीबी नहीं तो और क्या है कि जानवर की बलि देने के नाम पर अब इंसानों को काटा जा रहा है। भगत सिंह ने अपने घोषणा पत्र में ये साफ साफ लिख दिया था कि अंधविश्वास और कट्टरता किसी भी समाज के विकास के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट है।

तीसरा कारण- भगत सिंह ने दंगों के लिए ख़ासतौर पर साम्प्रदायिक सियासत और साम्प्रदायिक राजनेताओं को ज़िम्मेदार माना है। उस दौर में भगत सिंह लिखते हैं कि आज की हालत ये हो गई है कि कुछ राजनेता पूरी तरह से साम्प्रदायिक हो गए हैं।

Crime Tak Special: वो ग़ुस्से में ऐसे भड़काऊ भाषण भी देते हैं जिससे हिंसा भड़कने के सबसे ज़्यादा आसार होते हैं। भगत सिंह उन लोगों का ज़िक्र करना नहीं भूले जो ऐसे साम्प्रदायिक माहौल को लेकर अपनी चिंताओं के साथ सबके सामने आए। मगर हालात कुछ ऐसे नाज़ुक हैं कि वो लोग अपनी आवाज़ बुलंद नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि देश में धार्मिक उन्माद अपने चरम पर है जिसकी वजह से साम्प्रदायिक सोच के ख़िलाफ़ खड़े होने वाले लोगों को भी अपना सिर झुका कर रखना पड़ रहा है।

चौथा कारण- क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह ने दंगा और हिंसा के माहौल के लिए मीडिया यानी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को कसूरवार माना। अपने लेख में भगत सिंह ने साफ साफ लिखा है कि जिम्मेदार समाचार पत्र दंगे से जुड़ी खबरों को बड़ी ही प्रमुखता से सुर्खियां बनाकर छाप रही है। जिसका असर और अंजाम बहुत बड़ा और बुरा होता है।

Crime Tak Special: भगत सिंह को उसी वक़्त लग गया था कि पत्रकारिता का स्तर अब गिरने लगा है, जो सरकार और सरकार के पिछलग्गुओं की पैरोकारी करती दिखाई देती है। उन्होंने उस वक़्त की पत्रकारिता को सबक देते हुए कहा था कि पत्रकारिता का मतलब लोगों की तर्कशक्ति को बढ़ाना है, लोगों को जानकारी देना और उन्हें एक दूसरे के साथ मिलकर रहने की सीख देना सिखाना चाहिए न कि उसे नफ़रत फैलाने के काम में लगना चाहिए।

भगत सिंह लिखते हैं कि समाचार पत्रों में जिस तरह से दंगों और हिंसा को ग्लोरीफाइ किया जाता है उसे देखकर खून के आंसू निकलते हैं। भगत सिंह ने अपने उसी लेख में लिखा था कि दंगे और हिंसा के हालात में अक्सर नौकरशाही हावी हो जाती है। क्योंकि हालात को काबू में करने के लिए पुलिस बंदोबस्त सक्रिय हो जाता है और प्रशासन क़ानून व्यवस्था को नियंत्रण करने में लग जाता है।

Crime Tak Special: अपने लेख में भगत सिंह ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि इस दंगे के पीछे एक और मानसिकता भी काम करती है। असल में ग़रीबी और बेरोज़गारी दंगों की मूल आत्मा है। जिस समाज में ग़रीबी ज़्यादा होगी, भुखमरी होगी, और सरकार के पास नौजवानों को काम देने का कोई प्रोग्राम नहीं होगा तो फ़साद को फैलने का मौका मिल जाता है।

भगत सिंह ने दंगों का इलाज भी बताया। सरदार भगत सिंह के लेख के मुताबिक दंगों का इलाज़ मुमकिन है, और इसके लिए ज़रूरी है कि आर्थिक दशा में सुधार किया जाए। उस दौर में भारत की आर्थिक हालत बहुत ही ख़राब थी। चवन्नी के ख़र्चे पर एक व्यक्ति दूसरे को आसानी से अपमानित कर सकता था। भूख और ग़रीबी किसी भी इंसान के भीतर के विवेक को पहले खाती है और वो इंसान फिर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।

ऐसे में ज़रूरी है कि सरकार आर्थिक दशा सुधारने की दिशा में काम करे ये तय करने के लिए लोगों को हाथ धोकर सरकार के पीछे पड़ जाना चाहिए, और अगर सरकार ये सब न करे तो उसे बदले बिना चैन से नहीं बैठना चाहिए।

100 साल पहले जो कुछ भगत सिंह ने लिखा उसे कुछ जानकारों ने आज के हालात से जोड़कर देखना शुरू कर दिया है। अब ये इत्तेफ़ाक है या फिर दंगे की असली आत्मा इसे समझना ही पड़ेगा।

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