एक एक्स-रे रोक सकता था हिंदुस्तान का बंटवारा!

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एक एक्स-रे रोक सकता था हिंदुस्तान का बंटवारा!
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वो साल था 1946, 13 जुलाई को पाकिस्तान के कायदे आज़म लाहौर में भाषण दे रहे थे, भाषण का लब्बो-लोआब ये था कि पाकिस्तान बनकर रहेगा। बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना की एक ही ज़िद थी, लड़ के लेंगे पाकिस्तान, मर कर लेंगे पाकिस्तान, लेकर रहेंगे पाकिस्तान। 14 अगस्त 1947 को जिन्ना की ये ज़िद पूरी हो गई। पाकिस्तान आज़ाद हो गया और इसी के साथ हो गया दो मुल्कों का बंटवारा, लेकिन जिन्ना की ज़िद, इस आज़ादी, इस बंटवारे की बहुत बड़ी कीमत आम लोगों ने अपनी जानें गंवा कर चुकाई।

इतनी बड़ी कीमत जो आज तक दुनिया के किसी और मुल्क ने नहीं चुकाई। करीब दस लाख लोग मौत के घाट उतार दिए गए, लाखों औरतों की इज्जत तार-तार कर दी गई। तकरीबन डेढ़ करोड़ लोग घर से बेघर हो गए। ये हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दिल पर ऐसा ज़ख्म है जिसके घाव नहीं भरे हैं। आज भी सवाल उठता है कि क्या बंटवारे के रोका नहीं जा सकता था? क्या लाखों बेगुनाहों की जान नहीं बचाई जा सकती थी? इसका जवाब है हां, जी हां हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा रुक सकता था, अगर एक राज़ खुल जाता। ये राज़ क्या था?

वो राज़ जो एक लिफाफे में बंद था, वो राज़ जिसे कोई जानता था तो वो थे बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना, मगर पाकिस्तान बनाने की अपनी ज़िद को पूरा करने के लिए जिन्ना वो राज़ दुनिया से छुपाते रहे।

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जिन्ना का ख्वाब पाकिस्तान हकीकत के करीब था, माउंटबेटन से लेकर नेहरु और पटेल तक ये जान चुके थे कि पाकिस्तान की बात को यूं ही मज़ाक में उड़ा देना आसान नहीं था, जिन्ना की तकदीर से पाकिस्तान की तकदीर जुड़ी हुई थी। लेकिन कौन जानता था कि जिन्ना की तकदीर और पाकिस्तान की तकदीर दो अलग-अलग रास्तों पर चल रही थी... जिन्ना की ज़िंदगी मे एक ऐसा मोड़ आने वाला था जो पाकिस्तान के ख्बाव को पूरा होने से पहले ही बिखेर कर रख सकता था।

जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग को मनवाने के लिए दिन चुना था 16 अगस्त 1946 यानि डायरेक्ट एक्शन डे, वो दिन जिसे हिंदुस्तान के इतिहास में सबसे काले दिन के नाम से जाना जाता है। जिन्ना तेज़ी से पाकिस्तान को हकीकत में बदलने के लिए चाल पर चाल चल रहे थे, सुबह-शाम उनके जेहन में सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान था। लेकिन इसकी कीमत चुका रहा था जिन्ना का शरीर, अक्सर जिन्ना को खांसी के दौरे पड़ते थे, एक बार खांसी आती तो रुकने का नाम ना लेती।

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जिन्ना 1940 से ही ब्रोंकाइटिस के मरीज़ थे, उस दौर में मुंबई के डॉक्टर जे ए एल पटेल जिन्ना के डॉक्टर हुआ करते थे, जिन्ना की बिगड़ती सेहत को देखते हुए डॉ पटेल ने जिन्ना को एक्सरे करवाने की सलाह दी, और इस एक्सरे का नतीजा क्या था ये बताने के लिए एक दिन उन्होने जिन्ना को अपने क्लिनिक बुलाया। डॉ पटेल ने जिन्ना को बेड रेस्ट की सलाह दी, मगर जिन्ना उसके लिए राज़ी नहीं हुए।

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दरअसल जिन्ना को ब्रोंकाइटिस नहीं टीबी हुआ था। और जिन्ना के शरीर में ये बीमारी अपने आखिरी दौर में थी। टीबी का वायरस जिन्ना के फेंफड़ों को गला चुका था, मौत पूरी रफ्तार से जिन्ना की ओर बढ़ रही थी। उस दौर में टीबी का कोई इलाज नहीं था और जिन्ना को तो लास्ट स्टेज की टीबी हुई थी। डॉक्टर ने जिन्ना को कह दिया कि उनकी ज़िंदगी के बस कुछ ही महीने बचे हैं। अब सबसे बड़ा सवाल था कि जिन्ना नहीं, तो पाकिस्तान नहीं। क्या होगा जिन्ना के ख्वाब का? क्या होगा जिन्ना के पाकिस्तान का?

जिन्ना अपनी आंखों से अपनी मौत को देख रहे थे, और मौत उनकी हार तय करने वाली थी, लेकिन यू हीं हार जाना बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना की फितरत नहीं थी। जिन्ना के शातिर दिमाग में कुछ और ही चल रहा था, जिन्ना को पता था कि अगर उनकी मौत हो गई तो इस दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान की लकीरें कभी नहीं खिच पाएंगी।

अभी तक जिन्ना की जानलेवा बीमारी के राज़ को कोई और जानता था तो वो थे उनके डॉक्टर जे ए एल पटेल, मुंबई के रहने वाले डॉ पटेल जिन्ना के ना सिर्फ डॉक्टर थे बल्कि बेहद जिगरी दोस्त भी थे। लेकिन दोनों की सोच के बीच एक बहुत बड़ा फासला था और वो फासला था पाकिस्तान। डॉक्टर जे ए एल पटेल हिंदू थे और जिन्ना हिंदुस्तान के दो टुकड़े करके मुसलमानों के लिए एक अलग मुल्क मांग रहे थे। अब कैसे भी जिन्ना को डॉक्टर पटेल को इस बात के लिए राज़ी करना था कि वो जिन्ना की बीमारी के राज़ को राज़ ही रहने दें।

जिन्ना डॉक्टर पटेल को अपनी बीमारी का राज़ छुपाने के लिए मना चुके थे, डॉ पटेल ने जिन्ना के टीबी वाले एक्सरे को एक लिफाफे में बंद करके अपने लॉकर में मेहफूज़ रख लिया। और इतिहास की तकदीर बदल देने वाला ये राज़ एक लिफाफे में कैद हो गया। लेकिन इस राज़ को राज़ रखने के लिए जिन्ना एक बहुत बड़ी कीमत चुकाने वाले थे, अब वो किसी और डॉक्टर के पास इलाज के लिए नहीं जा सकते थे। लेकिन पाकिस्तान की कीमत पर जिन्ना को सब मंज़ूर था।

जिन्ना का शरीर बीमार था लेकिन दिमाग पहले से ज्यादा तेज़ चल रहा था, जिन्ना ने बेहद शातिर तरीके से अपनी बीमारी को छुपाए हुए थे। बेहद बीमारी की हालत में वो बंटवारे को लेकर माउंटबेटन और कांग्रेस के नेताओं के साथ बात कर रहे थे, बीमार जिन्ना को मनाने की हर कोशिश नाकाम हो रही थी, जिन्ना को पता था कि वक्त उनके हाथ से रेत की तरह फिसल रहा है और उनकी ज़िद ही उन्हे पाकिस्तान दिलवा सकती है। आखिरकार जिद्दी जिन्ना के सामने ब्रिटिश हुकूमत और कांग्रेस झुकने को मजबूर हो गई, बंटवारे की बात मान ली गई।

11 अगस्त 1947 को अपने घर, अपनी बेटी और अपनी जानलेवा बीमारी के राज़ को मुंबई में छोड़कर जिन्ना हमेशा हमेशा के लिए कराची जा रहे थे। हिंदुस्तान से उनका नाता टूट चुका था, अब नया मुल्क पाकिस्तान उनका मुकाम था। बीमार जिन्ना ने पाकिस्तान की सरज़मी पर कदम रखा, जिन्ना किसी विजेता की तरह कराची की सड़कों पर निकले, लोग उनपर फूल बरसा रहे थे लेकिन कोई नहीं जानता था कि उनके कायद ए आज़म ने अपनी मौत के राज़ को एक लिफाफे में कैद करके ये पाकिस्तान हासिल किया है, और इस राज़ की कीमत थीं दस लाख लाशें।

जिन्ना को बस पाकिस्तान चाहिए था और इसीलिए उन्हे अपनी बीमारी को राज़ रखना पड़ा, क्योंकि कोई था जिसे अगर ये राज़ मालूम पड़ जाता तो वो जिन्ना के पाकिस्तान के ख्वाब को चकनाचूर कर देता।

पाकिस्तान की आज़ादी के दिन जिन्ना ने कराची में संविधान सभा में अपनी ज़िंदगी का सबसे यादगार भाषण दिया,

“अगर हम चाहते हैं कि ये अज़ीम मुल्क पाकिस्तान हमेशा बना रहे तो हमे आवाम के लिए तमाम कोशिश करनी होंगी, आपको आज़ादी है कि आप अपनी मस्जिद में जाएं, अपने मंदिरों में जाएं, या जो भी आपकी इबादतगाह है इस पाकिस्तान में आप वहां जाएं। मेरा बुनियादी उसूल होगा इस्लाम का इंसाफ बगैर किसी नफरत के, मुझे यकीन है कि आपकी दुआ, आपकी हिमायत और आपकी मदद से वो सुनहरा दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान इस दुनिया के नक्शे पर आला हैसियत का मुल्क होगा।“

-मुहम्मद अली जिन्ना

मोहम्मद अली जिन्ना मौत के चौखट पर खड़े थे, जिन्ना चंद दिनों का मेहमान थे, इतना बड़ा राज़ ना तो वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन जान पाए और ना ही जवाहर लाल नेहरु। तभी तो इस राज़ को दुनिया ने नाम दिया है Best kept political secret of history, सोचिए अगर इन दोनो को पता चल जाता की जिन्ना बस साल दो साल में मरने वाले हैं तो क्या कभी पाकिस्तान बन सकता था? हिंदुस्तान को आज़ादी सौंपने आए वायरॉय लॉर्ड माउंटबेटन को अगर पता चल जाता कि जिन्ना को टीबी है और वो बस साल दो साल के मेहमान हैं तो वो हिंदुस्तान की आज़ादी को टाल सकते थे। मगर एक एक्स-रे के राज़ ने हिंदुस्तान का बंटवारा करा दिया।

जिन्ना की मौत के की सालों बाद तक माउंटबेटन को इस बात का इल्म नहीं था कि जिन्ना ने अपनी जानलेवा टीबी का रहस्य जानबूझकर उनसे छुपाकर रखा था, माउंटबेटन के सामने पहली बार ये राज़ खोला था “फ्रीडम एट मिडनाइट” के लेखक डॉमिनिक लपियर ने, वो भी हिंदुस्तान की आज़ादी के 25 बरस बाद। डॉमिनक लपियर ने जब जिन्ना का एक्सरे माउंटबेटन को दिखाया तो वो कुर्सी से उछल पड़े। उन्होने कहा कि अगर उस समय मुझे मालूम पड़ जाता कि जिन्ना जल्द ही मरने वाले हैं तो मैं हिंदुस्तान की आज़ादी को साल दो साल के लिए टाल देता।

जिन्ना के मरने के इंतज़ार में अगर माउंटबेटन हिंदुस्तान की आज़ादी टाल देते तो काफी हद तक बंटवारे को रोक सकते थे, इसकी वजह थी मुस्लिम लीग में जिन्ना की तानाशाही। जिन्ना के बाद पूरी मुस्लिम लीग में कोई ऐसा नेता नहीं था जो अपनी बात इतने ज़िद्दीपन और दमदारी से रख सके। ऐसे में ज़ाहिर है कि जिन्ना की मौत के साथ ही पाकिस्तान की मांग दफ्न हो जाती।

ब्रिटिश सरकार के कई दस्तावेज़ कहते हैं हिंदुस्तान की आज़ादी के ठीक पहले ब्रिटेन की खुफिया ऐजेंसी कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं पर नज़र रखती थी, लेकिन इसके बाद भी वो जिन्ना की बीमारी का राज़ नहीं जान पाई। सोचिए अगर राज़ खुल जाता तो आज ना सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि इस दुनिया का इतिहास ही कुछ और होता।

पाकिस्तान तो आज़ाद हो गया, लेकिन जिन्ना को अपनी ज़िद का अंजाम देखना बाकी था। जिन्ना का वास्ता अब हकीकत से होने वाला था, जिन्ना ने पाकिस्तान खड़ा कर दिया और बदले में उन्हे मिला कायद ए आज़म का खिताब। लेकिन ये खिताब बस नाम का था, टीबी के मरीज जिन्ना को काम के बोझ ने बेहद कमज़ोर बना दिया था, और उधर पाकिस्तान को अपने पैरों पर खड़ा करना इतना आसान नहीं था। हिंदुस्तान से आए लाखों मुहाज़िर यानि शरणार्थी एक बहुत बड़ी आफत थे।

पाकिस्तान का खजाना खाली था और ऊपर से मुस्लिम लीग के नेता एक दूसरे के पर कतर रहे थे, इनमें सबसे आगे थे पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान। वो लियाकत अली जिन्हे खुद जिन्ना ने मुल्क का पहला प्रधानमंत्री बनाया था।

उधर तमाम सहूलियतों के बाद भी जिन्ना की सेहत गिरती जा रही थी, अब उनके सामने एक ही चारा था आबोहवा बदलना। डॉक्टरों ने राय दी की जिन्ना को किसी पहाड़ी इलाके में आराम के लिए चले जाना चाहिए, जिन्ना ने जगह चुनी ज़ियारत। पाकिस्तान का एक खूबसूरत पहाड़ी इलाका, जून 1948 में जिन्ना ने अपना पूरा काम-काज लियाकत अली को सौंपा को ज़ियारत चले गए। कहते हैं इसी दिन से जिन्ना को उनके ही पाकिस्तान ने, उनके ही लोगों ने किनारे लगाने की शुरुआत कर दी।

ज़ियारत में जिन्ना की तबियत और बदतर हो गई थी उन्हे आखिरी इलाज के लिए कराची लाया गया, शाम चार बजे कराची एयरपोर्ट पर उनका विमान उतरा, लेकिन एयरपोर्ट पर कायद ए आज़म का इस्तकबाल करने के लिए उनकी सरकार का कोई भी नेता मौजूद नहीं था। जिन्ना को एक स्ट्रेचर में लेटा कर एंबुलेंस तक पहुंचाया गया, एंबुलेंस जिन्ना को लेकर उनके घर के लिए चल पड़ी। लाचार और बेहद बीमार जिन्ना एंबुलेंस में पड़े थे, लेकिन थोड़ी ही दूर जाकर एंबुलेंस अचानक रुक गई।

जिन्ना को जिस एंबुलेंस में लाया जा रहा था उसका पेट्रोल अचानक खत्म हो गया, कुछ लोगों का कहना है कि ये एक बड़ी साज़िश थी। जिन्ना के लिए एक दूसरी एंबुलेंस बुलाई जा रही थी, वक्त तेज़ी से गुज़र रहा था और पाकिस्तान को बनाने वाला कायद ए आज़म उसी पाकिस्तान की एक सड़क पर बीमार, बेबस, और लाचार पड़ा था। पूरे दो घंटे के इंतजार के बाद एक दूसरी एंबुलेंस से जिन्ना को उनके घर पहुंचाया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, दो घंटे की देरी कहें या अपनो का दिया सदमा, जिन्ना का दिल पाकिस्तान और इस दुनिया से ऊब गया था। उसी रात 10 बजकर 20 मिनट पर जिन्ना मौत के आगे हार गए।

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