20 साल से अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े की कोशिश करने वाले तालिबान 14 दिन के भीतर कैसे बन गए अफ़ग़ानिस्तान के हुक्मरान?

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14 अप्रैल 2021 को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने ऐलान किया था कि 1 मई 2021 से वो अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी शुरु कर देंगे और ये वापसी 11 सितंबर 2021 तक पूरी हो जाएगी। इस ऐलान ने तालिबान में नई जान फूंक दी और अफगानी आर्मी की हालत पस्त कर दी।

4 मई को तालिबानी आतंकियों ने दक्षिणी हेलमंड प्रांत में अफगानी फौज पर जबरदस्त हमला किया। केवल हेलमंड ही नहीं उसके साथ तालिबान ने अफगानिस्तान के अलग-अलग छह राज्यों पर भी निशाना साधा।

तालिबान के सामने अफगान आर्मी संख्या में बेहद ज्यादा थी। अफगान आर्मी में 3 लाख से भी ज्यादा जवान और अधिकारी भर्ती थे । उनके पास एक से बढ़कर एक आधुनिक हथियार, लड़ाकू विमान और उम्दा टैंक मौजूद थे लेकिन जब तालिबान ने हमला किया तो ये रेत की दीवार की तरह से ढह गए।

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तालिबान ने अफगान आर्मी पर हथियारों से ज्यादा उनके दिमाग पर हमला किया। देखा जाए तो अफगान सेना केवल पेपरों पर ही थी क्योंकि फौज मे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला हुआ था। नेतृत्व करने वाले कमांडरों की कमी अफगानी फौज में थी, अच्छी ट्रेनिंग और उनका मनोबल ऊंचा रखने के लिए कुछ नहीं किया गया।

दूसरी तरफ तालिबान किसी जूनूनी की तरह से अफगान सेना से लड़ रहे थे। अमेरिकी सैनिकों के जाने से अफगानी जवानों का मनोबल पूरी तरह से टूट गया । दूसरी तरफ तालिबान ने शुरुआत में खूनखराबा कर डर का माहौल बनाया उसने अफगान आर्मी के लिए लड़ने वाले कई सैनिकों को टेक्स्ट मैसेज भेजे और उन्हें सरेंडर करने के लिए कहा।

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जंग के हालात में अमेरिका के अफगानिस्तान से जाने की वजह से कई सैनिक अमेरिका से बेहद नाराज थे। जब तालिबान ने उन्हें सरेंडर करने और माफी देने के लिए संदेश दिया तो अफगानी सैनिक तुरंत राजी हो गए क्योंकि उन्हें मालूम था कि उनकी मदद के लिए पीछे कोई नहीं है और मरने से बेहतर सरेंडर करना है।

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जानें : कब क्या हुआ?

14 अप्रैल 2021 : अमेरिकी राष्ट्रपति ने 11 सितंबर तक अमेरिकी फौज अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने का ऐलान किया

• 4 मई 2021 : तालिबान आतंकियों ने दक्षिण हेलमंड पर जबरदस्त हमला किया

• 11 मई 2021 : तालिबान ने काबुल के बाहर नेरख जिले पर क़ब्ज़ा किया

• 7 जून 2021 : तालिबान से लड़ाई के दौरान 150 अफगानी सैनिक मारे गए

• 22 जून 2021 : तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाकों में हमले शुरु किए

• 2 जुलाई 2021 : अमेरिकी फौज ने चुपचाप बगराम एयरबेस खाली किया

• 5 जुलाई 2021 : तालिबान ने अफगान सरकार के सामने शांति प्रस्ताव रखने की बात कही

• 21 जुलाई 2021 : तालिबान के कब्जे में अफ़ग़ानिस्तान के आधा से ज्यादा जिले आ गए

• 25 जुलाई 2021 : अमेरिका ने अफगान आर्मी की मदद के लिए हवाई हमलों की बात कही

• 26 जुलाई 2021 : तालिबान और अफगान सेना के बीच चल रही लड़ाई में दो महीने में 2400 शहरी मारे गए या घायल हुए

· 6 अगस्त 2021: तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान के निमरुज राज्य की राजधानी जरंज पर क़ब्ज़ा

· 13 अगस्त 2021: तालिबान का कंधार समेत चार और राजधानियों पर क़ब्ज़ा

· 14 अगस्त 2021: तालिबान ने मज़ारे-शरीफ को भी जीत लिया

· 15 अगस्त 2021: तालिबान की काबुल पर फतह

यही वजह थी कि अफ़ग़ानिस्तान में कई राज्यों में अफगानी सेना ने तालिबान से बिना मुकाबले किए उनका कहा मान लिया और सरेंडर कर दिया। शुरुआत में ही तालिबान ने अफगान सेना के सामने अपना क्रूर चेहरा रखा था लेकिन जैसे-जैसे लड़ाई आगे बढ़ी तालिबान ने अपना चेहरा बिल्कुल बदल लिया और वो माफ करने वाले बनकर अफगानी सेना से सरेंडर कराते रहे और बदले में उनकी जान बख्शते रहे।

जब अफगान सेना ने एक के बाद एक देश के कई राज्य तालिबान की झोली में डाल दिए तो अफगान सरकार के लिए लड़ने वाले कई वॉरलॉर्ड भी समझ गए कि मामला उनके हाथ से निकल गया है।

यही वजह है कि हेरात का शेर कहलाने वाले इस्माइल खान ज्यादा देर तक तालिबान का मुकाबला नहीं कर सके और तालिबान ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया। हेरात के तालिबान के हाथ में आने के बाद अफगानिस्तान के बड़े वॉरलॉर्ड अता मोहम्मद नूर और अब्दुल राशिद दोस्तम भी अफगानिस्तान छोड़ उजबेकिस्तान भागने पर मजबूर हो गए।

हालत ये हो गई कि इन लोगों के साथ लड़ने वाले लड़ाकों ने ना केवल तालिबान से हाथ मिला लिया बलकि अपने हथियार, वर्दी और अपने तमाम जंगी वाहन भी लावारिस छोड़ वहां से भाग खड़े हुए।

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तालिबान ने हमले शुरु करने से पहले ही बड़े पैमाने पर जनसंपर्क शुरु कर दिया जिसमें तालिबान ने सरेंडर की नियम शर्तों के अलावा, सत्ता में भागीदारी का लालच भी दिया गया था। आम सैनिक से लेकर अफगान सरकार के अधिकारियों और वहां के गवर्नरों तक के सामने तालिबान अपनी शर्ते रख चुके थे। तालिबान की ये नीति बेहद कामयाब रही और किसी ने मुकाबला करने की कोशिश तक नहीं की।

कुछ दिन पहले ही अमेरिका की तरफ से बयान आया था कि तालिबान को काबुल पर क़ब्ज़ा करने के लिए कम से कम 90 दिन का वक्त लगेगा । अमेरिका की ये भविष्यवाणी गलत साबित हुई और अफगानिस्तान के पहले राज्य की राजधानी जरंज पर फतह करने के 7 दिन के भीतर तालिबान काबुल की गद्दी तक पहुंच गए।

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