45 साल पहले एक प्लेन क्रैश में बची थी उसकी जान घर पहुंचते-पहुंचते उसे लग गया 45 साल का वक़्त

ADVERTISEMENT

45 साल पहले एक प्लेन क्रैश में बची थी उसकी जानघर पहुंचते-पहुंचते उसे लग गया 45 साल का वक़्त
social share
google news

जब मुंबई के एक एनजीओ ने सड़क पर पड़े 70 साल के सज्जाद थंगल को अपने यहां पर आसरा दिया था तब तक उसे मालूम नहीं था कि सज्जाद के जहन में एक ऐसी कहानी छिपी हुई है जो किसी भी इंसान के दिमाग को झकझोर सकती है। मूलतौर पर केरल के कोल्लम के रहने वाले सज्जाद बेहद बुरी हालत में मुंबई की सड़कों पर मिले थे। कोरोना महामारी के दौरान उनके पास खाने कमाने और रहने का कोई जरिया नहीं था। सील नाम के एनजीओ की नज़र उन पर पड़ी और वो उन्हें अपने सेंटर में ले आए।

बेहद कमजोर सज्जाद शुरुआत में किसी से बातचीत नहीं किया करते थे। वो अपनी ही दुनिया में रहते थे लेकिन जैसे-जैसे वक्त गुजरा और उनकी तबीयत में सुधार हुआ वो एनजीओ के लोगों से बातचीत करने लगे। उनसे उनके परिवार के बारे में पूछताछ हुई तब 45 साल पहले की एक कहानी सामने आई। कहानी इंसानी सोच कि और रिश्तों की। सज्जाद ने बताया कि सत्तर के दशक में वो दुबई में दक्षिण भारत के फिल्मा कलाकारों के शो कराया करते थे।

अक्टूबर 1976 में दक्षिण भारत की अभिनेत्री रानी चंद्रा अपने साथियों के साथ दुबई में प्रोग्राम करने गई थीं। चंदा के क्रू में सज्जाद थांगल भी शामिल थे। 12 अक्टूबर 1976 को सार क्रू जब आबू धाबी से चेन्नई वापस लौट रहा था तो सज्जाद उनके साथ नहीं लौटा और आबू धाबी में ही रुक गया।

ADVERTISEMENT

मुंबई एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैडिंग के दौरान प्लेन क्रैश हो गया । इस जहाज में सवार 95 के 95 यात्री मारे गए। जब इस हादसे का पता सज्जाद को चला तो वो बेहद डर गए। उन्हें लगा कि उनका आखिरी वक्त पर ना जाने का फैसला उन्हें मुसीबत में डाल सकता है। पुलिस और एजेंसी जरुर सवाल-जवाब करेंगी कि क्या उनको पता था कि प्लेन क्रैश होने वाला है इसी वजह से वो प्लेन में सवार नहीं हुए।

इतने लोगों के मारे जाने का सदमा और पुलिस का डर सज्जाद के दिलोंदिमाग में घर कर गया। वो काफी दिन तक दुबई में ही रहे। सज्जाद को इस बात का भी डर था कि अगर वो अपने घर वापस गए तो पुलिस वहां भी पूछताछ के लिए पहुंच सकती है। वो अपने परिवार को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहते थे।

ADVERTISEMENT

दुबई में भी सज्जाद का गुजारा ठीक नहीं चल रहा था लिहाजा वो दुबई से मुंबई आ गए और यहां पर ही छोटे-मोटे काम करने लगे। वक्त बीतता गया और परिवार को सज्जाद का कुछ पता नहीं लगा। हालांकि सज्जाद का नाम मरने वालों और पैसेंजर लिस्ट में नहीं था। परिवार को उम्मीद थी कि एक न एक दिन सज्जाद घर वापस लौटकर जरुर आएंगे लेकिन सज्जाद ने परिवार से कभी संपर्क करने की कोशिश नहीं की।

ADVERTISEMENT

जब सज्जाद की ये कहानी एनजीओ वालों को पता लगी कि तो उन्होंने कोल्लम में सज्जाद के परिवार से संपर्क किया। सज्जाद की खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि उनकी मां की उम्र 91 साल है और वो जिंदा हैं। सज्जाद के गांव का नाम शषतमकोटा है। सज्जाद के जिंदा होने की खबर से उनके भाई बहन भी बेहद खुश हैं ।

हालांकि सज्जाद के पिता की मौत साल 2012 में हो गई थी लेकिन उन्हें यकीन था कि एक न एक दिन सज्जाद के बारे में जरुर कुछ पता चलेगा। 45 साल बाद आखिरकार सज्जाद अपने परिवार के पास पहुंच ही गया लेकिन इतने साल में उसने ना जाने अपनी जिंदगी के बेहद अहम पल मुंबई की फुटपाथ पर गुजार दिए।

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT

    ऐप खोलें ➜