अमेरिका की आंखों में आंखें डालकर सबक सिखाया था इंदिरा गांधी ने, एक दिन में नष्ट कर दिए थे 270 पैटन टैंक
Indira Slapped Kissinger in 1971 indo pak war: अमेरिकी चाणक्य हेनरी किसिंजर ये लिखना नहीं भूला कि उसने कूटनीतिक तौर पर किसी एक से हार मानी तो वो केवल इंदिरा गांधी थी।
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From the Page Of History: 29 नवंबर 2023। ये तारीख यूं तो कोई खास मायने नहीं रकती है लेकिन अमेरिका के लिए ये तारीख जरूर यादगार है क्योंकि इसी रोज अमेरिकी सियासत के चाणक्य समझे जाने वाले पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की मौत हुई थी। वो पूरे 100 साल के थे। लेकिन हिन्दुस्तान के लिए किसिंजर की मौत इसलिए भी यादगार है क्योंकि यही वो अमेरिकी डिप्लोमेट था, जिसने अपने दौर में भारत को पूरी दुनिया में घूम घूमकर नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
किसिंजर की दिमागी घोड़ों की चाल का कोई सानी नहीं
इस किसिंजर के दिमागी घोड़ों की रफ्तार और चाल का तोड़ पूरी दुनिया के तमाम डिप्लोमेट के पास नहीं था। उस दौर में जब अमेरिका पूरी दुनिया में सियासी और सामरिक तौर पर छाने लगा था, उसी दौर में हिन्दुस्तान की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे ऐसा सबक सिखाया था जिसे वो सारी उम्र एक नासूर की तरह अपने दिल में पालता रहा। दरअसल इस बात का पता मिलता है हेनरी किसिंजर की आत्मकथा में जिसमें अमेरिकी चाणक्य ये लिखना नहीं भूला कि अगर उसने सियासी और कूटनीतिक तौर पर किसी एक से हार मानी थी तो वो केवल इंदिरा गांधी थी। सचमुच ये ऐसा इतिहास जो भुलाया नहीं जा सकता। चलिए पूरा किस्सा सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं।
जब इंदिरा गांधी ने आंखों में आखें डालकर अपनी बात कही
साल था 1971। अमेरिका के तबके राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा था, ''अगर भारत पाकिस्तान के मामले में उसकी नाक में उंगली करेगा तो अमेरिका अपनी आंख नहीं फेर लेगा,भारत को सबक सिखाया जाएगा"
इसके जवाब में उस वक़्त भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पलटकर जवाब दिया था, ''भारत अमेरिका को दोस्त मानता है, बॉस नहीं। भारत अपनी किस्मत खुद लिखने में सक्षम है। हम जानते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार करना है?"
भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने ठीक यही शब्द व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ बैठकर, आंखों से आंख मिलाकर बिना पलक झपकाए बिना कहे थे।
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हेनरी किसिंजर की आत्मकथा
दरअसल ये सब कुछ लिखा है हेनरी किसिंजर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है। हेनरी ए. किसिंजर अमेरिका के 56वें विदेश मंत्री थे...वो एक एक सम्मानित अमेरिकी विद्वान माने जाते थे और नोबेल शांति पुरस्कार के विजेता भी थे। कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद का वर्ल्ड ऑर्डर उन्होंने ने तय किया था जिसे दुनिया ने मान लिया। अपनी आत्मकथा में हेनरी किसिंजर उस वक्त का खुलकर जिक्र किया है जब वो अमरीका के NSA और सेक्रेटरी आफ स्टेट थे।
व्हाइट हाउस से चली आईं थी इंदिरा गांधी
वह दिन था जब भारत-यू.एस संयुक्त मीडिया संबोधन को इंदिरा गांधी ने रद्द कर दिया था, जो अपने ही अनोखे अंदाज में व्हाइट हाउस से चली गईं थीं। किसिंजर ने इंदिरा गांधी को उनकी कार में छोड़ते हुए कहा था, "मैडम प्रधानमंत्री, आप को नहीं लगता है कि आप को राष्ट्रपति के साथ थोड़ा और धैर्य के साथ काम लेना चाहिए था "।
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इंदिरा ने दिया था किसिंजर को करारा जवाब
इंदिरा गांधी ने उत्तर दिया, "धन्यवाद, श्रीमान सचिव, आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए,एक विकासशील देश होने के नाते, हमारी रीढ़ सीधी है - और सभी अत्याचारों से लड़ने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन हैं। हम साबित करेंगे कि वे दिन लद गए जब हजारों मील दूर बैठी कोई "शक्ति" किसी भी राष्ट्र पर शासन कर सकती है और अक्सर उसे नियंत्रित कर सकती है।"
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इंदिरा गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी को बुलवाया
जैसे ही उनका एयर इंडिया बोइंग वापसी में दिल्ली के पालम रनवे पर उतरा , इंदिरा गांधी ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को तुरंत अपने आवास पर बुलाया। बंद दरवाजों के पीछे एक घंटे की चर्चा के बाद वाजपेयी जल्दी-जल्दी लौटते दिखे. इसके बाद यह ज्ञात हुआ कि वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। बीबीसी के डोनाल्ड पॉल ने वाजपेयी से सवाल पूछा, “इंदिरा जी आपको एक कट्टर आलोचक के रूप में मानती हैं। इसके बावजूद, क्या आप को नहीं लगता की आप संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए मौजूदा सरकार के रुख़ के पक्ष में होंगे। ?” वाजपेयी ने प्रतिक्रिया दी थी कि “एक गुलाब एक बगीचे को सजाता है, और बगीचे को सजाने का काम लिली भी करती है। सभी इस विचार से घिरे हुए हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से सबसे सुंदर हैं। जब उद्यान संकट में पड़ता है, तो सभी को उसकी रक्षा करनी होती है । मैं आज बगीचे को बचाने आया हूं। इसे भारतीय लोकतंत्र कहा जाता है।”
जब तिलमिला गया अमेरिका
इसके बाद क्या हुआ था ये बात दुनिया में किसी से छुपी नहीं है। अमेरिका ने पाकिस्तान को 270 प्रसिद्ध पैटन टैंक भेजे। उन्होंने विश्व मीडिया को यह दिखाने के लिए बुलाया कि ये टैंक विशेष तकनीक के तहत बनाए गए थे, और इस प्रकार अविनाशी हैं। इरादा बहुत साफ था। यह बाकी दुनिया के लिए एक चेतावनी संकेत था कि कोई भी भारत की मदद न करे। अमेरिका यहीं नहीं रुका।भारत को तेल की आपूर्ति करने वाली एकमात्र अमेरिकी कंपनी बर्मा-शेल को बंद करने के लिए कहा गया । उन्हें अमेरिका की तरफ से भारत के साथ अब और व्यापार बंद करने के लिए सख्ती से कहा गया था।
एक दिन में नष्ट हुए 270 पैटन टैंक
उसके बाद भारत का इतिहास केवल वापस लड़ने के बारे में है। इंदिरा गांधी ने तब अपनी रणनीति और कूटनीति से काम लिया और सुनिश्चित कर दिया कि भारत के लिए तेल यूक्रेन से आएगा। सबसे हैरानी की बात ये है कि पाकिस्तान से साथ हुई लड़ाई में अमेरिका को गहरी चोट दी थी भारत ने। सिर्फ एक दिन की लड़ाई में ही अमेरिका के 270 पैटन टैंकों नष्ट कर दिए गए थे। नष्ट किए गए टैंकों को प्रदर्शन के लिए भारत लाया गया था जो राजस्थान के गर्म रेगिस्तान आज भी एक गवाह के रूप में खड़े हैं जहां यू.एस का गौरव नष्ट हो गया था।
बहुत छटपटाए किसिंजर
इसके बाद अठारह दिनों तक चले युद्ध की परिणति में पाकिस्तान से 1.0 लाख युद्धबंदी बनाये गए । मुजीबर रहमान लाहौर जेल से रिहा हुए। मार्च का महीना था - इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। और जब पूर्वी पाकिस्तान से हटकर बांग्लादेश आजाद हो गया और पाकिस्तान टूट गया तब अमेरिका के चाणक्य कहे जाने वाले किसिंजर ने कहा था कि इस महिला से कोई नहीं जीत सकता। किसिंजर ने 16 दिसंबर 1971 के बाद पहले चीन का दौरा किया और भारत के खिलाफ चीन को भड़काया। इसके बाद वो कई देशों की यात्रा पर गए और हर जगह उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ वहां के नेताओं को भड़काने की कोशिश की। चीन तो काफी हद तक किसिंजर के जाल में फंस ही गया था। लेकिन ब्रेझनेव को अमेरिका की चाल समझ में आ गई।
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