21 साल पुरानी साजिश, 17 साल तक मुर्दा, 1 करोड़ का बीमा और बर्निंग कार वाली भिखारी की मर्डर मिस्ट्री

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21 साल पुरानी साजिश, 17 साल तक मुर्दा, 1 करोड़ का बीमा और बर्निंग कार वाली भिखारी की मर्डर मिस्ट्री...
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Murder Mystery : अगर आपने क्राइम थ्रिलर फिल्म दृश्यम (Drishyam) देखी है. तो इस रियल क्राइम को दृश्यम रिटर्न कह सकते हैं. दृश्यम फिल्म में क्राइम होने के बाद उसे छुपाने के लिए नई नई साजिशें रचीं जाती हैं. लेकिन इस वारदात को 21 साल पुरानी साजिश से अंजाम दिया गया. इस साजिश का पहला हिस्सा था एक मासूम बच्चा. उस बच्चे को पहले 18 साल की उम्र यानी उसके बालिग होने का इंतजार किया गया. फिर लगातार 4 सालों तक उसके नाम पर अलग-अलग इंश्योरेंस कराए गए. फिर वही लड़का जब 22 साल का हो गया तभी अचानक उसकी मौत हो जाती है. मौत को द बर्निंग कार (The Burning Car) का नाम गया. उस कार में एक जली लाश मिलती है. जिस्म पर सिर्फ हड्डियों के ढांचे बचे थे. लेकिन उसकी पहचान होती है. फिर अंतिम संस्कार भी होता है. फिर उसकी मौत के बदले बीमा के करीब 1 करोड़ रुपये क्लेम किए जाते हैं. पहले 80 लाख फिर उसमें देरी होने पर 95 लाख क्लेम होता है. साथ ही नई कार के जलने से हुई मौत को लेकर करीब 10 लाख रुपये का इंश्योरेंस. कुल मिलाकर एक मौत होती है. करीब-करीब 1 करोड़ रुपये का बीमा क्लेम होता है. और फिर वक्त गुजरता रहता है. एक या दो साल नहीं..पूरे 17 साल पूरे हो जाते है. तभी अचानक एक दिन वो शख्स जिंदा मिलता है जो दुनिया नजरों में 17 साल पहले ही मुर्दा बन चुका होता है. 

जब इस मुर्दे की पूरी कहानी सामने आती है तो एक मर्डर से लेकर पुलिसिया जांच में चूक और ना जाने कितने रहस्य आइने की तरह साफ हो जाते हैं. इसमें पुलिस की लापरवाही. एक शातिर दिमाग वाला बाप. जिसने अपने ही बेटे को क्रिमिनल बना दिया. उसे मुर्दा साबित कर दिया. लेकिन अब वही जिंदा सामने आकर उसी बाप के लिए मुसीबत बन गया. अब जैसे जैसे इस केस की परतें खुलतीं हैं तो और उसे आप जानेंगे तो फिल्म दृश्यम को भी भूल जाएंगे. आखिर क्या है ये क्राइम की कहानी. क्यों पुलिस 17 साल तक उस जिंदा इंसान को मुर्दा समझती रही. कैसे एक मुर्दा इंसान की कीमत 1 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई. कैसे यूपी की सबसे तेज-तर्रार पुलिस में से एक नोएडा पुलिस के सामने 17 साल से छुपे राज की शिकायत मिली तो भी वो फेल साबित हो गई. जानेंगे पूरी कहानी...

Agra Crime Murder Mystery : आगरा में हादसे के दौरान की मीडिया रिपोर्ट

2006 में अचानक एक बर्निंग कार से शुरू हुई इस रियल थ्रिलर कहानी का सिलसिला

Crime Story : सबसे पहले आप इस खबर को देखिए. तारीख 1 अगस्त. साल 2006. जगह आगरा लाल किला के पास. थाना आगरा का रकाबगंज. पुलिस को जानकारी मिली कि एक कार किसी बिजली के खंभे से टकरा गई है. खंभे से टकराने की वजह से कार में भीषण आग पकड़ ली. इस हादसे में कार चालक की उसी में जलकर मौत हो गई. उस इंसान के जिस्म के नाम पर बस हड्डी का ढांचा मिला था. लेकिन कार का नंबर प्लेट दिख रहा था. उस पर नंबर था UP14Z2255. अब कार वाले की पहचान के लिए पुलिस ने उस नंबर की जांच कराई. पता चला ये कार गाजियाबाद के सिहानी गेट इलाके में रहने वाले अनिल कुमार के नाम पर रजिस्टर्ड है. 

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अनिल के पिता का नाम विजयपाल है. अब आगरा पुलिस ने कार वाले की डिटेल का पता लगाने के लिए विजयपाल से संपर्क किया. हादसे की खबर सुनकर विजयपाल आगरा पहुंचे. कार देखते ही रोने लगे. लाश को बेटे के रूप में पहचान की. नाम बताया मरने वाला मेरा बेटा अनिल कुमार था. ये भी बताया कि हमलोग थोक कपड़ा कारोबारी हैं. बेटा अनिल कुमार भी बिजनेस के सिलसिले में कार से आगरा आया था. यहां से काम पूरा कर अनिल को अपने बड़े भाई अभय की ससुराल मथुरा में जाना था. लेकिन उससे पहले ही ये हादसा हो गया. पुलिस ने पूछा था कि कोई रंजिश या दुश्मनी तो नहीं है. अनिल के पिता विजयपाल ने किसी भी दुश्मनी से इंकार कर दिया था. यानी ये केस महज एक हादसा था. और कुछ नहीं.

हादसे को देखकर मीडिया में पुलिस का बयान आया था. जिसमें कहा गया था कि कार एक बिजली के खंभे से टकरा गई थी. जिससे बिजली का खंभा भी मुड़ गया था. हादसे के बाद कार में सेंट्रल लॉक लगने से युवक बाहर नहीं निकल पाया था. इस तरह बर्निंग कार में उस युवक की दर्दनाक मौत हो गई थी. उस समय आगरा रकाबगंज के इंस्पेक्टर डीएल सुधीर ने मीडिया से कहा था कि खंबे से टक्कर होने की वजह से ये कार हादसा हुआ था. इसके बाद केस बंद हो गया था. 

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17 साल बाद 7 नवंबर 2023 को अचानक आया नया मोड़

Crime The Burning Car Agra : 30-31 जुलाई 2006 की रात हुए उस बर्निंग कार हादसे को करीब 17 साल बीत गए. अचानक उस केस में नया मोड़ आया. ये मोड़ भी गुजरात के अहमदाबाद से आया. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की टीम ने एक युवक को हिरासत में लेकर पूछताछ की. जिसका नाम था राज कुमार चौधरी. अहमदाबाद के मोहननगर में निकोल का रहने वाला. शादीशुदा युवक. दो बच्चे भी. लेकिन जब उसकी जांच पूरी हुई तो पता चला कि ये शख्स कोई और नहीं बल्कि वही मुर्दा इंसान है जिसकी 2006 में पुलिस फाइल में मौत हो चुकी थी. वही अनिल कुमार जिसकी आगरा में द बर्निंग कार में पूरी तरह से जलकर मौत हुई थी. वही चेहरा था. वही कद काठी. सबकुछ वही. बस बदला था तो उसका नाम. पता. और पिता का नाम. अब वो 39 साल का युवक हो चुका था. इसके पास गुजरात का आधार कार्ड. ड्राइविंग लाइसेंस. पैन कार्ड. सबकुछ सरकारी प्रूफ वाले कागजात मिले. लेकिन पिता का नाम लगभग वही था. विजयपाल की जगह विजय कुमार चौधरी. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर मितेश त्रिवेदी ने AajTak/Crime Tak से एक्सक्लूसिव बात करते हुए पूरी घटना के बारे में सनसनीखेज खुलासा किया.

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इंस्पेक्टर मितेश त्रिवेदी ने बताया कि....

हमें एक सीक्रेट जानकारी मिली थी. ये बताया गया था कि मोहन नहर के निकोल इलाके में रहने वाला एक शख्स मरकर भी जिंदा है. उसने अपनी जगह किसी और की हत्या कर डाली और इंश्योरेंस के लाखों रुपये हड़प लिए हैं. इस पूरी साजिश में उसका पिता और भाई भी शामिल है. अब इस सूचना को हमलोगों ने गंभीरता से लिया. पड़ताल शुरू की. उस युवक से पूछताछ की गई. उसने खुद का असली नाम राजकुमार बताया.  वो खुद को गुजराती होना बताया. लेकिन जब उसकी बीवी से बात की गई और उसके ससुराल के बारे में पूछा गया तब उसने बताया कि पति ने कभी भी अपने माता पिता या भाई से नहीं मिलवाया. और ना ही किसी रिश्तेदार से मिलवाया. इसके बाद पुलिस का शक और बढ़ गया. अब पुलिस ने जब पूरे मामले की पड़ताल की और आगरा में 2006 में हुए उस हादसे की जानकारी ली गई. एक टीम आगरा और उसके मूलगांव ग्रेटर नोएडा के पारसौल पहुंची. गांव के लोगों को उसकी फोटो दिखाई गई तो सबकुछ आइने की तरफ साफ हो गया. क्योंकि गुजरात में पिछले 17 साल से वो फर्जी डॉक्युमेंट के सहारे रह रहा था. 

 

1 करोड़ इंश्योरेंस के पैसे पाने की बाप ने रची थी साजिश

Crime Story : अब अनिल कुमार उर्फ राजकुमार चौधरी की सारी पोल खुलने के बाद उसने सबकुछ सच सच बताना शुरू कर दिया. उसने बताया कि सारी साजिश उसके पिता विजयपाल ने रची थी. ये सबकुछ इंश्योरेंस के जरिए करीब-करीब 1 करोड़ रुपये कमाने के लालच में सबकुछ किया गया. लेकिन बर्निंग कार में किसकी मौत हुई, इसके सवाल पर उसने बताया कि वो भिखारी था. अनिल कुमार ने पुलिस को बताया कि उसके पिता शुरू से ही जालसाजी और नाबालिग लड़कों से छोटी-मोटी चोरियां कराकर कमाई करते रहे हैं. उन्हें पता था कि अगर लड़के पकड़े गए तो नाबालिग होने की वजह से छूट जाएंगे. इसलिए अनिल की जगह किसी ऐसे युवक को कार में जलाकर मारने की साजिश रची थी जिसकी खोजबीन करने वाला कोई नहीं हो.

 

गाजियाबाद रेलवे स्टेशन से बुलाया था भूखे मजबूर भिखारी को

Crime Kahani : आगरा में जिस कार में जली हुई एक लाश मिली थी वो भिखारी थी. वो भिखारी रोजाना गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के आसपास भीख मांगता था. उम्र करीब 30 साल के आसपास थी. उसके परिवार में कोई नहीं था. बिल्कुल अकेला. इस बारे में अनिल के पिता विजयपाल ने गाजियाबाद स्टेशन के पास वाले एक चायवाले को भी अपने साथ मिला लिया था. उसी से भिखारी की मुखबिरी कराई थी. इसके बाद उस भिखारी को टारेगट किया और बताया कि वो उसे अच्छा खाना खिलाएंगे. कार से घुमाने भी ले जाएंगे. इस तरह 30 जुलाई 2006 को उसी भिखारी को साथ लेकर नोएडा होते हुए आगरा पहुंचे थे. साथ में अनिल, उसका पिता विजयपाल दोनों भी थे. 

 

आगरा में पहले से मुड़े हुए बिजली खंभे को तलाशा फिर बनाई द बर्निंग कार

आगरा में काफी घूमने के बाद इन्हें रकाबगंज एरिया में एक सुनसान जगह पर मुड़ा हुआ बिजली का खंभा दिखा था. इसलिए इन लोगों ने उसे ही सबसे सही जगह चुना. इसके बाद भिखारी को साथ लेकर कहीं दूर गए और उसे खाने में नींद की दर्जनों गोलियां मिलाकर खिला दिया था. जब भिखारी बेहोशी की हालत में आ गया तब उसे कार में लेकर अंधेरा होते ही उसी जगह पर ले गए. मौका देखते ही कार को फिर से उसी खंभे से टक्कर कराई. इसके बाद उस कार में पेट्रोल लगाकर आग लगा दी थी. कार के अंदर भिखारी ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ था और बाकी लोग बाहर थे. कुछ देर बाद ही कार पूरी तरह से जल गई. उसमें मौजूद वो भिखारी तो आया था भूख मिटाने लेकिन वो मौत के आगोश में जा चुका था. इस हादसे को अंजाम देकर बाप-बेटे तुरंत निकल चुके थे. बेटा सीधे गुजरात के लिए निकल चुका था. पिता अपने मूल गांव ग्रेटर नोएडा पहुंच गए. इधर, पुलिस ने जांच करते हुए जब कार का नंबर निकालकर उसके पिता से संपर्क किया तो उसने अपने बेटे की तुरंत पहचान कर ली थी. इस तरह एक भिखारी की हत्या कर इन बाप-बेटे ने अनिल को मरा हुआ साबित कर दिया.

21 साल पहले से चल रही थी तैयारी, 20 लाख के बीमा से 80 लाख मुआवजे की थी तैयारी

Crime Story : अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की टीम जांच करते हुए पिछले दिनों ग्रेटर नोएडा के पारसौल गांव पहुंची थीं. यहां के एक स्कूल में अनिल 8वीं तक की पढ़ाई की थी. वहां जानकारी ली गई तो पता चल गया कि यही अनिल है और पढ़ाई की थी. इसके बाद उसके घर पुलिस पहुंची. तो पता चला कि अनिल का पिता विजयपाल और उसका भाई दोनों फरार हैं. लेकिन घर की तलाशी में एक फाइल मिली. उस फाइल पर लिखा था...अनिल केस से जुड़े कागजात. अब उस फाइल को देखा गया तो पता चला कि जिस साजिश का पता पुलिस लगा रही है असल में पिछले 21 साल से रची जा रही थी.

उस फाइल में अनिल केस से जुड़े सभी कागजात मिले. इसमें पता चला कि अनिल जैसे ही 18 साल का हुआ था तब उसके पिता विजयपाल ने LIC से जुड़ी पॉलिसी लेनी शुरू की. अनिल के नाम पर अगले एक साल में कुल 4 पॉलिसी ली गईं. जिसमें पिता विजयपाल को ही नॉमिनी बनाया गया. ये पॉलिसी 20 लाख की थी. लेकिन इसमें ये नियम था कि अगर एक्सीडेंटल डेथ हुई तो 4 गुना ज्यादा बीमे की राशि मिलेगी. यानी 20 लाख रुपये का बीमा है तो 80 लाख रुपये मिलेंगे. अब इस साजिश को रियल बनाना था. इसलिए ये लोग 4 साल तक उस  इंश्योरेंस का प्रीमियम भरते रहे. 

ऐसी पॉलिसी ली थी जिसमें एक साल का प्रीमियम करीब 85 हजार रुपये आ रहा था. लेकिन इन्हें पता था कि 4 से 5 लाख रुपये प्रीमियम में दे भी देंगे तो आखिर में कई गुना ज्यादा पैसे मिल जाएंगे. इसके बाद जुलाई 2006 में हुए हादसे से कुछ महीने पहले ही एक नई कार भी खरीदी थी. उस कार का भी बीमा कराया था. जिसमें किसी की जान जाने पर 10 लाख रुपये तक का मुआवजा मिल सकता था. साल 2002 से शुरू हुई प्लानिंग को जुलाई 2006 में अंजाम दिया गया. इस केस में कार में लगी आग से मौत के मामले में एक बार बीमा कंपनी ने क्लेम को रिजेक्ट भी कर दिया था. लेकिन बाद में ये कंज्यूमर फोरम चले गए तो 80 लाख रुपये की जगह 95 लाख रुपये मुआवजा देने का फैसला हुआ. इसके अलावा कार एक्सीडेंट को लेकर भी 10 लाख रुपये का बीमा मिलने की बात हुई. कुल मिलाकर करीब 1 करोड़ 5 लाख रुपये इन लोगों ने उस साजिश से कमाने की प्लानिंग कर डाली थी. 

 

17 सालों में कभी फोन पर बात नहीं, कभी मैसेज नहीं किया, PCO से बात, रेलवे स्टेशन पर मुलाकात

पुलिस को ये हैरानी थी कि कैसे बाप बेटों ने मिलकर इतनी बड़ी साजिश रची और उसके बाद कभी एक दूसरे के संपर्क में नहीं आए. इसकी पड़ताल करने पर पता चला कि असल में ये पहले से ही साजिश का हिस्सा था कि आगरा में कार जलाए जाने के बाद कभी भी सीधे बात नहीं करेंगे. शुरुआत में कई साल तक एक दूसरे से संपर्क में नहीं आए. फिर कभी बात की तो अनिल ने ही पीसीओ बूथ से अपने पिता और भाई को फोन किया. कई साल गुजरने के बाद कभी मिलना भी हुआ तो अनिल सूरत या फिर दिल्ली के आसपास किसी रेलवे स्टेशन के पास आकर मिल जाता था. इस दौरान कभी इन लोगों ने एक दूसरे को मैसेज भी नहीं किया. इस तरह किसी को शक नहीं हुआ.

नोएडा पुलिस को 2022 में मिली थी शिकायत, जांच रिपोर्ट में नहीं मिला था कोई सबूत

Noida Crime Story : ये बेहद हैरानी वाली बात है कि जिस 17 साल पुराने केस की जांच का खुलासा करने को लेकर अहमदाबाद पुलिस की वाहवाही हो रही है वो जानकारी एक साल पहले ही 2022 में नोएडा पुलिस को भी दी गई थी. असल में अनिल के पिता विजयपाल पर आरोप है कि उसने अपने परिवार में भी जमीन को लेकर बड़ा फर्जीवाड़ा किया है. जिसे लेकर जब उसके परिवार के लोग उसकी पड़ताल करने लगे तो उन्हें 2006 में आगरा में हुए उस हादसे के फर्जी होने का पता चल गया. ये भी पता चल गया कि लाखों रुपये का बीमा पाने के लिए इन लोगों ने एक भिखारी को जलाकर मार डाला और उस समय से ही अनिल गुजरात भागकर नाम बदलकर रहने लगा है. 

 

ऐसे शक हुआ कि मुर्दा हो चुका अनिल अभी जिंदा है

अनिल की मौत के कई साल बाद अचानक उसके पिता विजयपाल के पास काफी पैसा आने लगा. लाखों रुपये खर्च करके ग्रेटर नोएडा के पारसौल में घर भी बनाया. इसके अलावा भी जमीन खरीदने में खर्च करने लगा था. इस पर आसपास के लोगों ने जानकारी जुटाई तो पता चला कि विजयपाल को अपने बेटे अनिल की मौत के बाद इंश्योरेंस का पैसा मिला है. लेकिन शुरुआत में इस इंश्योरेंस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. चूंकि विजयपाल शुरुआत से नटवरलाल की तरह फर्जीवाड़ा करने में माहिर रहा है. इससे पहले भी कई लोगों को इंश्योरेंस के नाम पर कई लोगों का बीमा कराकर विजयपाल खुद नॉमिनी बन गया था ताकि अगर उनकी मौत हो जाए तो पैसे उसे ही मिल जाए. इसी बीच, कुछ लोगों से पता चला कि अनिल और उसके पिता को किसी रेलवे स्टेशन पर बात करते हुए देखा गया था. इसी के बाद इन्हें शक हुआ तो पता चला कि वाकई में अनिल जिंदा है और फर्जीवाड़ा करके बीमे के पैसे लिए जा रहे हैं. इसलिए प्रॉपर्टी विवाद के साथ अनिल से जुड़ी जानकारी साल 2022 में ही सबसे पहले नोएडा पुलिस और फिर सीएम कार्यालय में की गई थी. लेकिन कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई.

नोएडा पुलिस ने जांच रिपोर्ट में लिख दिया, आरोपों की पुष्टि नहीं हुई

Noida Crime Story : नोएडा पुलिस की जांच रिपोर्ट और ज्यादा हैरान करने वाली है. ये शिकायत सीधे नोएडा पुलिस कमिश्नर ऑफिस में आई थी. इस शिकायत पर दनकौर के एक सब इंस्पेक्टर महिपाल सिंह ने जांच रिपोर्ट सौंपी थी. जिसमें कहा था कि सभी आरोपों से जुड़े पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं. अब ये बड़ी हैरानी वाली बात है कि शिकायत में प्रॉपर्टी विवाद मामले में बेशक आपसी मतभेद हो सकता हो लेकिन आगरा में बर्निंग कार वाली घटना में भी कोई सबूत नहीं मिलने की जानकारी देकर क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी. नोएडा पुलिस ने जब कोई एक्शन नहीं लिया तभी इन लोगों ने इस बारे में अहमदाबाद पुलिस को जानकारी दी. लेकिन अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच टीम ने इसे गंभीरता से लिया और पूरे केस का खुलासा कर दिया.

 

अब आगरा में भिखारी के मर्डर का मामला हो सकता है दर्ज

Agra Crime Story : 17 साल पहले आगरा में भिखारी को कार में जलाकर मारने के संबंध में अब मर्डर की एफआईआर हो सकती है. इस बारे में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच पुलिस ने बताया कि टीम ने पूरी रिपोर्ट तैयार कर ली है. जिससे साफ पता चलता है कि वो हादसा नहीं बल्कि साजिश में थी जिसमें अनिल कुमार की मौत नहीं हुई थी. उसके किसी दूसरे शख्स की हत्या की गई थी. अब उस केस में मर्डर की एफआईआर दर्ज कराकर जांच करने के लिए आगरा पुलिस को रिपोर्ट देंगे.

वहीं, इस बारे में आगरा रकाबगंज एरिया की एसीपी सदर अर्चना सिंह ने बताया कि उसकी जांच की जा रही है. साल 2006 में हुई घटना के संबंध में अगर अहमदाबाद पुलिस की रिपोर्ट मिलती है और बीमा कंपनी की तरफ से कोई शिकायत मिलती है तो संबंधित धाराओं में एफआईआर की जाएगी. एसीपी अर्चना सिंह ने बताया कि उस केस की गंभीरता से जांच की जाएगी.

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