क़िस्सा 'जय' और 'वीरू' के जानी दुश्मन बनने का, दो गैंग, दो दोस्त, दो साल और दोनों खत्म

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क़िस्सा 'जय' और 'वीरू' के जानी दुश्मन बनने का, दो गैंग, दो दोस्त, दो साल और दोनों खत्म
कहानी दो दोस्तों के जानी दुश्मन बनने की
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मंगलवार की सुबह सुबह तिहाड़ की ऊंची ऊंची दीवार को लांघकर जिस खबर ने टीवी की स्क्रीन पर दस्तक दी उसने न सिर्फ दिल्ली और उसके आसपास के लोगों को चौंकाया बल्कि दिल्ली से सटे अलीपुर और ताजपुरिया गांव में दिन भर लोगों की जुबान पर यही बात चढ़ी रही कि आखिर किसी जमाने में जय और वीरू के नाम से जाना जाने वाला वो याराना आखिर जानी दुश्मनी में कब और कैसे बदल गया...एक दूसरे के लिए खून बहाने की कसमें खाने वाले आखिर एक दूसरे के खून के प्यासे कैसे हो गए...और सबसे बड़ी बात दुश्मन बने दोनों ही दोस्तों की आखिरी तमन्ना क्यों पूरी नहीं हो सकी। 
ये किस्सा सुनील मान उर्फ टिल्लू ताजपुरिया और जितेंद्र मान उर्फ गोगी का है। क्योंकि तिहाड़ की दीवार फांद कर तो टिल्लू ताजपुरिया की हत्या की खबर मंगलवार को सामने आई थी। जिसका काम तमाम जितेंद्र गोगी के गैंग के दो मामूली गुर्गों ने ही कर दिया। एक का नाम तीतर था तो दूसरा टुंडा के नाम से गैंग में मशहूर था। 

किस्सा जय वीरू के आपस में जानी दुश्मन बनने का यानी जितेंद्र गोगी क्यों बना टिल्लू के खून का प्यासा


दिल्ली से सटे अलीपुर के पास एक दिल्ली यूनिवर्सिटी का कॉलेज है श्रद्धानंद। दोनों यानी टिल्लू और गोगी इसी कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे। पास ही दोनों के गांव थे लिहाजा आते जाते भी साथ साथ ही थे। एक ने ह्यूमेनिटी में दाखिला लिया था तो दूसरा कॉमर्स का छात्र था। गांव से लेकर कॉलेज तक लोग इन दोनों को जय और वीरू कहकर ही बुलाते थे। यहां तक की दोनों को एक दूसरे की दुल्हन तक लोग मजाक मजाक में कहा करते थे। 
गोगी थोड़ा शर्मीला था जबकि टिल्लू को शरारत बहुत पसंद थी और खूब करता भी था। मगर दोनों का खाना पीना उठना बैठना और यहां तक कि कई कई बार तो नेचर कॉल तक दोनों साथ साथ ही निबटाते थे। सब कुछ ठीक ही था। लेकिन कॉलेज में दोनों के कुछ अलग अलग दोस्त भी हो गए थे लिहाजा कॉलेज में दोनों का साथ कुछ वक्त के लिए अलग होता था। 

टिल्लू ने खाई थी कसम गोगी को जान से मारने की


इसी बीच कॉलेज में बाहिरी दिल्ली के कुछ दादा टाइप के छात्रों ने दोनों को अलग अलग तरीके से अपने अपने गुट में शामिल कर लिया और फिर छात्र संघ का चुनाव आ गया। दोनों ही दोस्तों की राजनीति में अच्छी खासी दिलचस्पी थी। मगर खुद चुनाव लड़ने की बजाए दोनों अलग अलग उम्मीदवारों को अपना समर्थन देने लगे। वक्त का सितम देखिये कि एक रोज दोनों अपने अपने उम्मीदवारों के साथ नारे लगाते लगाते एक दूसरे के आमने सामने आकर खड़े हो गए। सबसे पहली दरार दोनों के रिश्ते में यहीं पर पड़ी। 
हालांकि घर पहुँचकर दोनों ने फिर सुलह कर ली, लेकिन वो सुलह ज्यादा दिन तक कायम नहीं रही। दिलों में आई खरोंच का असर ये हुआ कि अब दोनों छोटी छोटी बातों पर बहस बाजी पर उतारू हो जाते थे और बाहें समेटने लगते थे। 
टिल्लू और गोगी का तो नहीं पता अलबत्ता दादा टाइप के लोगों ने इनकी इस खटास का चटकारा लेना शुरू कर दिया। और दोनों को जरा जरा सी बात पर आपस में उलझाना शुरू कर दिया। ये वाक़्या कोई 2008 के आस पास का है। कॉलेज में रहते रहते तो नहीं अलबत्ता कॉलेज से निकलते निकलते दोनों अब एक दूसरे को अखरने लगे थे। 
इसी बीच कॉलेज के लड़कों के आपसी झगड़े में पहली बार टिल्लू और गोगी ने आपस में हाथा पायी की। अब दोनों के एक दूसरे के खिलाफ हाथ खुल चुके थे। दोनों के दोस्त भी अलग हो चुके थे और उन दोनों के दोस्तों के रास्ते भी अलग अलग होते हुए कहीं न कहीं रेल की पटरियों की तरह समानांतर ही चल रहे थे। मतलब ये कि दोनों ने ही अपराधी किस्म के लड़कों का साथ कर लिया था जिससे दोनों अब इलाके के लोगों के साथ साथ बाहिरी दिल्ली की पुलिस की नज़रों में भी आने लगे थे।
यहां आते आते पहली बार जितेंद्र गोगी को पुलिस केस के चक्कर में फंसा जब उसके खिलाफ छात्रों के झगड़े के दौरान हत्या की कोशिश का मामला दर्ज हुआ और पुलिस की फाइल में नाम चढ़ा जितेंद्र गोगी का। जितेंद्र गोगी के रास्ते अब पूरी तरह से जुर्म की दुनिया की तरफ मुड़ चुके थे और वो अब कुछ बड़े गैंग्स्टरों के संपर्क में आ गया। 
इधर टिल्लू भी खाली था और उसके कुछ बिगड़े दोस्त उसे और उसकी जीदारी के किस्सों के साथ नीरज बवाना नवीन बाली, चीनू और सुनील राठी के पास ले गए और उसकी कद काठी और जीदारी की दिल खोलकर तारीफ कर दी। नतीजा ये हुआ कि इन गैंग्स्टरों ने टिल्लू को अपनी पनाह में पनपने का मौका दे दिया। 
वक़्त बीता और देखते ही देखते टिल्लू और गोगी आठ साल तक एक दूसरे से अलग गैंग के साथ मिलकर दिल्ली में अपने अपने अपराधों की एक नई इबारत लिखने लगे। हालांकि इस दौरान दोनों का कभी आमना सामना नहीं हुआ। लेकिन दोनों की तरफ  गैंग एक दूसरे के दोस्त नहीं थे, जाहिर है दुश्मनी परवान चढ़ने लगी। 
साल 2015 की जनवरी का किस्सा है जब दोनों के गैंगों के बीच पहली  गैंगवार हुई। इसकी शुरूआत हुई गोगी गैंग की तरफ से जब टिल्लू के बेहद चहेते राजू चोर की हत्या कर दी गई। उसको गोली मारी गई थी। अपने दोस्त की हत्या को टिल्लू ताजपुरिया बर्दाश्त नहीं कर सका और गोगी गैंग के दो लोगों सुमित और देवेंद्र प्रधान को खुद टिल्लू ताजपुरिया ने गोली मार दी। इसी बीच मौका पाकर गोगी ने टिल्लू के सबसे करीबी अरुण कमांडो और निरंजन मास्टर की हत्या करवा दी। 
अब पुलिस सीन में पूरी तरह से आ चुकी थी। साल 2016 में पहले टिल्लू और फिर उसके दोस्त विकास को रोहतक में गिरफ्तार कर लिया गया था। दो साल जेल में रहने के बाद जमानत पर टिल्लू जब बाहर आया तो वो पूरी तरह से बदल चुका था। और उसने अपने गैंग के सामने ऐलानिया कहना शुरू कर दिया था कि वो गोगी को जिंदा नहीं छोड़ेगा। 2018 का वाकया है जब बुराड़ी में दोनों गैंग का आमना सामना हुआ और पूरे इलाके ने उनके बीच चली गोलियों की आवाजें सुनीं। 
इस सरेआम फायरिंग में चार लोग मारे गए जिनमें दो वो बदनसीब राहगीर थे जो उस वक़्त वहां से गुज़र रहे थे। पुलिस को इस गैंगवार के सिलसिले में गोगी की तलाश हुई क्योंकि पुलिस को यही पता चला कि इस गोलीकांड के लिए वही जिम्मेदार था। दोनों दोस्त यानी जय और वीरू यानी टिल्लू और गोगी अब पूरी तरह से एक दूसरे के दुश्मन बन चुके थे। 
 

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