Kargil War 24 Years: टाइगर हिल्स को जीतने के लिए देश के जांबाजों ने दुश्मन के साथ साथ मौसम को भी दी थी मात
kargil war: कारगिल युद्ध को 24 साल हो गए। इस युद्ध में खासतौर पर टाइगर हिल्स पर भारतीय सेना की जाबांजी के किस्से पूरी दुनिया में मिसाल हैं।
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Kargil War 24 years: 24 साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर हिन्दुस्तान की फौज ने दुनिया की सबसे कठिन जंग लड़ी और जीती भी। वो साल था 1999 का। और उस साल मई के महीने में छिड़ी लड़ाई जुलाई के महीने तक खिंची और आखिरकार 26 जुलाई को भारत ने अपनी विजयी पताका ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर लहराई और भारतीय फौज की विजयी गाथा फिजाओं में गूंजी।
पूरे 84 दिनों तक चली इस जंग में भारत ने एक बार फिर बता दिया कि जगह कैसी भी हो, जंग कैसी भी हो और जमीन कैसी भी हो, हिन्दुस्तानी सिपाही को हर जंग जीतनी आती है। न तो हौसला कम और खत्म होता है और न ही जज्बा।
18000 फुट की ऊंचाई पर हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी अपनी खून की गर्मी का जो हौसला दुनिया को दिखाया उसकी तारीख करने के लिए पूरी दुनिया के लोगों के पास शब्द कम या बौने पड़ गए। अगर कारगिल के युद्ध को मोटे तौर पर देखें तो उसके तीन हिस्से हो सकते हैं।
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नंबर एक – पाकिस्तान की घुसपैठ
नंबर दो – युद्ध की घोषणा
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नंबर तीन- कारगिल में भारत की जीत
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घुसपैठ-
3 मई 1999 की वो तारीख थी जब हिन्दुस्तान की फौज को इस बात का पता पहली बार चला कि कुछ चूहे यानी घुसपैठिये उनकी जमीन उनकी सीमा में दाखिल हो गए हैं। असल में कारगिल इलाके में एक चरवाहे ने हथियारबंद पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल की चोटियों पर बंकरों की तरफ जाते देखा था। वो 55 साल का ताशी नामग्याल था जो अपने नए यॉक की तलाश में जब पहाड़ी की तरफ गया तो वहां उसने पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ देखी और उसी ने भारतीय फौज के कैंप में आकर फौज के अफसरों को इसकी इत्तेला दी।
चरवाहे से मिली घुसपैठ की खबर
चरवाहे से मिली इत्तेला के बाद भारतीय फौज की तरफ से 5 मई को एक पैट्रोलिंग टीम भेजी गई। लेकिन उस टीम के पांच जवान शहीद हो गए। और जो लौट के आए उनकी हालत इतनी खराब थी, जिसने भारतीय सेना के कैंप में हड़कंप मचा दिया। क्योंकि शहीद सैनिकों और घायल जवानों को मिले जख्मों ने फौज के अफसरों को जो दास्ता सुनाईं उससे ये साफ हो गया कि मामला बेहद संगीन और गड़बड़ है। बस यहां से हिन्दुस्तान की फौज का बड़ा मूवमेंट शुरू हो गया।
जंग की शुरुआत
कारगिल की जंग की सबसे बड़ी मुश्किल और सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि दुश्मन ने ऊपर पहाड़ों की चोटियों पर ठिकाना बना लिया था और भारतीय सैनिक नीचे घाटी में थे। ऐसे में भारतीय सेना की तब मददगार बनी बोफोर्स तोपें। इन तोपों की सबसे खास बात ये थी कि इनकी रेंज ज़्यादा थी जिससे तोप का गोला ऊंचे टारगेट तक भी पहुँच सकता था।
84 दिन के युद्ध में भारत ने दागे 2.5 लाख गोले
84 दिनों के इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के सैनिकों और घुसपैठिये मुजाहिदों पर करीब 2.5 लाख गोले दागे। जबकि इस दौरान 300 से ज़्यादा तोप, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर से हर रोज करीब 5000 से ज़्यादा फायर किए जाते थे। रिकॉर्ड में दर्ज है कि इस लड़ाई के शुरु के 17 दिनों में तो हर रोज हरेक मिनट में करीब एक राउंड फायर तो होता ही था।
लिहाजा पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने में बोफोर्स के तोपों ने कमाल कर दिया। सबसे अच्छी बात ये थी कि वजन में हल्की होने की वजह से बोफोर्स तोप ऊंचे पहाड़ों तक पहुँचाई जा सकीं। शुरु में तो भारतीय सैनिकों को अपने ही बंकरों तक पैठ बनाने और वहां तक पहुँचने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा था, लेकिन 9 जून की तारीख ने इस जंग का पासा पलटने का सिलसिला शुरू कर दिया था।
9 जून को मिली थी पहली कामयाबी
9 जून को पहली बार भारतीय सैनिकों ने कारगिल की अहम चोटियों में से एक पर पहली बार जीत की पताका लहराई। लेकिन इस जीत का स्वाद चखने से पहले देश सैकड़ों सैनिकों की शहादत देख चुका था। इस पूरी जंग में भारत के 527 फौजियों की शहादत हुई। तब जाकर कारगिल में हिन्दुस्तान जीत की बॉर्डर लाइन को पा सका।
इस जंग में भारत का हमला और वार इतना ताकतवर और तेज था कि पाकिस्तानी सैनिकों को संभलकर पलटवार करने का मौका ही नहीं मिली। मजे की बात ये है कि पाकिस्तान इस जंग से पहले चीन और अमेरिका के कसीदे पढ़ते नहीं थकता था लेकिन जंग के दौरान इन दोनों ही देशों ने पाकिस्तान की किसी तरह की कोई मदद नहीं की। और भारत लगातार पाकिस्तानी सैनिकों को मारता जा रहा था और आगे बढ़ता जा रहा था। आलम ये हुआ कि पाकिस्तान के उस वक़्त के प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ गुहार लगाते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दरवाजे तक पहुँच गए और उनसे जाकर युद्ध विराम करवाने की गुहार लगाने लगे।
भारत के मतवाले सैनिकों ने उड़ाए पाकिस्तान के होश
इधर कारगिल में हिन्दुस्तान के मतवाले सैनिक अपनी जान हथेली पर लेकर एक के बाद एक चोटियों पर तिरंगा लहराते जा रहे थे। हर रोज उनकी कामयाबी की एक नई कहानी दुनिया सुन रही थी और उसके रोंगटे खड़े हुए जा रहे थे। पाकिस्तान समझ चुका था कि अगर अब युद्ध विराम नहीं हुआ तो हिन्दुस्तानी सिपाही पाकिस्तान को कहीं का नहीं छोड़ेंगे। आखिरकार अमेरिका की तरफ से आए प्रस्ताव पर हिन्दुस्तान की हुकूमत ने जब फौज से रिपोर्ट मांगी तो फौज ने एक हफ्ते का वक्त मांगा क्योंकि हिन्दुस्तानी फौज को ये बात सुनिश्चित करनी थी कि उनकी हद में कोई पाकिस्तानी रह तो नहीं गया और उनकी सीमा फिर से पूरी तरह से सुरक्षित है।
कारगिल युद्ध जीत लिया
26 जुलाई 1999 की इसी तारीख को भारत ने पूरी तरह से युद्ध जीतने की घोषणा कर दी। इस जीत से पहले भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान अनगिनत ऑपरेशन चलाए। लेकिन उसमें से सबसे खास जीत थी टाइगर हिल की।
टाइगर हिल्स की जीत बनी टर्निंग प्वाइंट
असल में पाकिस्तान के घुसपैठ सैनिकों ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था। इस चोटी की पोजीशन कुछ इस तरह से थी कि वहां से पाकिस्तान की एक गोली नीचे घाटी में हिन्दुस्तानी फौजियों पर गहरी चोट कर रही थी और हिन्दुस्तान की बंदूकों की गोलियां उन घुसपैठियों तक नहीं पहुँच पा रही थी।
इस ऑपरेशन का एक एक लम्हा और एक एक स्ट्रेटिजी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं।क्योंकि यहां सेना के अलग अलग विंग का आपसी तालमेल देखने लायक था। क्योंकि टाइगर हिल की टॉप पर हिन्दुस्तानी सिपाही नहीं पहुँच पा रहे थे। तब भारत की सेना के अफसरों ने जो रणनीति बनाई, उसकी कामयाबी को देखकर ही पाकिस्तान को पसीना आ गया। बल्कि उसके किस्सों को सुनने के बाद पूरी दुनिया हैरत में पड़ गई और हिन्दुस्तानी सिपाहियों के कसीदे पूरी दुनिया में पढ़े जाने लगे।
हमले की नई स्ट्रैटजी
टाइगर हिल्स को जीतने के लिए हिन्दुस्तानी फौज के कमांडरों ने एक स्ट्रैटजी बनाई। इसके लिए इंडियन एयरफोर्स ने पहले तो दुश्मन की पोजीशन का जायजा लिया। इसके बाद टाइगर हिल्स पर दुश्मन पर हमला करने के लिए भारतीय फौज की अलग अलग टुकड़ियों ने अलग अलग दिशाओं से आगे बढ़ना शुरू किया।
इसी बीच फील्ड रेजिमेंट के कमांडिंग अफसर ने बोफोर्स से गोले दागने शुरू किए। टाइगर हिल्स पर बोफोर्स की सटीक गोलाबारी तो की ही जा रही थी साथ ही भारतीय फौज ने मोर्टार और मिडियम रेंज की तोपों और 122 एमएम मल्टी बैरल ग्रेनेड लॉन्चर से धावा बोल दिया। इसी बीच इंडियन एयरफोर्स ने भी पाकिस्तान के सैनिकों पर बम बरसाने शुरू कर दिए।
उत्तर से दक्षिण तक टाइगर हिल्स 1000 मीटर और पूरब से पश्चिम तक करीब 220- मीटर तक फैला हुआ है। और उस हिल्स पर पाकिस्तान की 12 वीं इन्फेंट्री की एक कंपनी तैनात थी। इसी कंपनी को तितर बितर करने के लिए इंडियन एयरफोर्स गोले बरसा रही थी। इसी बीच मौसम भी खराब हो गया। इसी खराब मौसम में भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया और सरप्राइज अटैक करने की प्लानिंग को अंजाम तक पहुँचाया। नतीजा ये हुआ कि टाइगर हिल्स को करीब तीन तरफ से भारतीय सेना की अलग अलग टुकड़ियों ने घेर लिया। ये बात 4 जुलाई की है जब भारतीय सैनिकों ने करीब 24 घंटों तक लगातार लड़ाई लड़ी और पूरी बाजी ही पलट दी।
रात के वक़्त किया गया हमला
7 और 8 जुलाई की दरम्यानी रात को भारतीय सैनिकों ने जोर दार हमला किया। 8 जुलाई की सुबह रिवर्स स्लोप्स, कट और कॉलर के इलाकों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया। हिन्दुस्तानी फौज को इतने नजदीक देखकर पाकिस्तानी सैनिक टुकड़ी के पैर उखड़ गए और वहां से उन्हें पोस्ट छोड़कर भागना पड़ा। इसी के साथ टाइगर हिल्स पर भारतीय फौज का कब्जा हो गया।
ये खबर जैसे ही दिल्ली पहुँची तो एक तरह से जीत का जश्न शुरू हो चुका था। इसके बाद भारतीय फौज ने दक्षिण और पश्चिम रास्ते से आगे बढ़कर दुश्मन को पूरी तरह से खदेड़ दिया। 15 जुलाई आते आते टाइगर हिल्स पूरी तरह से भारत के कब्जे में फिर से आ चुकी थी और भारत अब पूरी तरह से कारगिल युद्ध जीत चुका था लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा 26 जुलाई को हुई।
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