Phoolan Devi Story : फूलन देवी की पूरी कहानी, क्या सिर्फ रेप से फूलन डकैत बनीं थीं या वजह कुछ और?

ADVERTISEMENT

Phoolan Devi Story : फूलन देवी की पूरी कहानी, क्या सिर्फ रेप से फूलन डकैत बनीं थीं या वजह कुछ और?
social share
google news

Phoolan Devi Story in Hindi : दस्यू सुंदरी फूलन देवी. बैंडिट क्वीन (bandit queen) . बीहड़ से लेकर संसद तक का सफर करने वाली फूलन देवी. 25 जुलाई 2001 को फूलन की हत्या (Phoolan Murder) कर दी गई. 10 अगस्त 1963 को जन्मीं और करीब 38 साल की उम्र में शेर सिंह राणा (Sher Singh Rana) के हाथों मारीं गईं.

पर इस उम्र में ही फूलन की एक विलेन से लेकर हीरो तक भूमिका में रहीं. उनकी जिंदगी पूरी एक किताब है. जिसके हर पन्नों में दुख और दर्द है तो हिम्मत और हौंसला भी है. आज क्राइम की कहानी (Crime Stories in Hindi) में फूलन देवी (Phoolan Devi kahani) की पूरी जिंदगी की कहानी. फूलन की शख्सियत की शुरुआत लेखिका अरुंधति रॉय की एक लाइन से..

अगर बलात्कार के कारण फूलन देवी का जन्म होता तो देश में हजारों फूलन देवियां घूम रही होतीं. यह वास्तव में ‘पुरुषवादी संस्कृति’ की पैदाइश है. जाति, जमीन, औरत, मर्द सब कुछ समेटे हुए है फूलन देवी की कहानी... :अरुंधति रॉय (लेखिका)

Phoolan Devi Death : कहानी की शुरुआत तारीख 25 जुलाई से. साल 2001. जगह देश की राजधानी दिल्ली (phoolan devi death place). इस दिन फूलन के घर पर एकलव्य संगठन में शामिल होने के लिए शेर सिंह राणा (Sher Singh Rana) नामक व्यक्ति आया था. फूलन ने उसका स्वागत किया.

ADVERTISEMENT

खाने के लिए खीर मंगवाई. शेर सिंह ने खुशी-खुशी खीर खाई। अलविदा कहकर घर से बाहर निकलने लगा. उसका साथ देने के लिए फूलन भी बाहर निकलीं. घर के चौखट तक छोड़ने आई. लेकिन शेर सिंह के ज़ेहन में कुछ और था.

उसने घर के गेट पर ही फूलन देवी को गोली मार दी. चौखट पर फूलन धड़ाम से गिरीं. कल तक जो शेरनी दहाड़ती थी, अब वो शांत थी। बिल्कुल ख़ामोश. फूलन की मौत पर शेर सिंह राणा ने कहा था, अब जाकर बेहमई हत्याकांड का बदला पूरा हुआ.

ADVERTISEMENT

घटना के बाद पुलिस ने शेर सिंह राणा को गिरफ्तार कर लिया. 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. लेकिन फूलन देवी की सोच और हिम्मत को वो खत्म नहीं कर पाया.

ADVERTISEMENT

10 अगस्त 1963 को हुआ था फूलन देवी का जन्म

Phoolan Devi Inside Story : फूलन देवी के जीवन की शुरुआत होती है यूपी के जालौन से. जिला जालौन कानपुर-झांसी रोड पर है. वैसे तो जिले का नाम ऋषि जलवान के नाम पर पड़ा था. लेकिन इस जिले का दुनिया से परिचय कराया 1960 के दशक में पैदा हुई एक लड़की ने. उस लड़की का नाम था फूलन. 10 अगस्त 1963 को गांव घूरा का पूरवा में फूलन का जन्म हुआ.

परिवार काफी गरीब था. जाति छोटी थी. लेकिन लड़की के तेवर बड़े थे. वो किसी के सामने न झुकती थी. और न किसी से दबती थी. बात 1974 की है. उस समय फूलन करीब 10 साल की थी. तब पता चला कि सगे चाचा ने दबंगई से उसके पिता की जमीन हड़प ली है. ये जानकर वो चाचा से ही भिड़ गई. जमीन पाने के लिए धरने पर बैठ गई. इसके विरोध में चचेरे भाई ने फूलन के सिर पर ईंट से हमला कर दिया. लेकिन वो हार नहीं मानी. विरोध जताती रही. लेकिन थी वो एक मासूम लड़की ही.

वो 10 साल की थी और शादी हुई 35 साल बड़े आदमी से


Phoolan Devi Story :
उम्र महज 10 साल. गुस्सा और तेवर बड़ों जैसे. ऐसे में घरवालों ने हाथों में बेड़ियां बांधने का सोचा. लड़कियों को बांधने का समाज में सबसे प्रचलित प्रथा रही है हाथ पीले करने की. फूलन भी उसी फेहरिस्त में शामिल हो गई. 10 साल की उम्र में ही घरवालों ने जबरन शादी करा दी.

वो भी उसकी उम्र से 35 से 40 साल बड़े आदमी से. न चाहते हुए भी वो बन गई बालिका वधू. थोड़ा विरोध किया. आंसू गिराए. लेकिन ससुराल तो जाना ही था. ससुराल पहुंची. न चाहते हुए भी पति से संबंध बनाने को मजबूर हुई.

वैसे ही जैसे किसी छोटी लड़की से कोई अधेड़ बलात्कार करता है. ठीक उसी दर्द से फूलन भी गुजरी. लेकिन क्या कर सकती थी. समाज की खातिर वो चुप रही. सोचा समय के साथ सब ठीक होगा. यही सोचते हुए कुछ साल निकल गए. लेकिन दोनों पति-पत्नी के उम्र का फासला कम नहीं हुआ.

वो उस पति को सह नहीं पाती थी. ऊपर से घर के कामकाज का बोझ भी. वो मजबूत थी. दबंग थी लेकिन उम्र भी तो कोई चीज़ होती है. महज 12-13 साल में कितना सहती. धीरे-धीरे अब फूलन की तबीयत खराब होने लगी. इतनी खराब की उसे मायके लौटना पड़ा. लेकिन मायके वालों को फूलन का इस तरह से लौटना अच्छा नहीं लगा.

इसलिए भाई ने कुछ समय बाद ही फूलन को फिर से ससुराल पहुंचा दिया. अब फूलन फिर से उसी जगह आ पहुंची. जिसे वो काले पानी की सज़ा से भी बढ़कर मानती थी. लेकिन ये सजा उसकी उस समय और बढ़ गई जब पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी रचा ली है.

Phoolan Devi (फूलन देवी की स्टोरी) In Hindi : अब फूलन देवी बेसुध थी. गुस्से में थी. आपत्ति भी जताई. लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ. उलटा पति ने खूब फटकारा. पति की दूसरी बीवी ने भी लताड़ा. सरेआम बेइज्जती की गई. फिर घर से धक्के मार निकाल दिया गया. अब फूलन क्या करती. कहां जाती. वो मायका जहां से हाथ पकड़कर ससुराल लाया गया था. मजबूर होकर तो वो अपने घर लौटी लेकिन दिल टूट चुका था. अब वो बाहर ज्यादा रहती थी. इसी बीच, वो डकैतों के गैंग के संपर्क में आई. उनके साथ घूमने लगी. ये साथ उसे अच्छा लगने लगा. बंदूक चलाना भी सीखने लगी.

ये भी उसे अच्छा लगने लगा. कुल मिलाकर एक तरीके से घरवालों की अनदेखी और ससुराल में तिरस्कार ने उसे डकैतों के आंगन में पहुंचाया दिया था. हालांकि, फूलन डाकुओं के संपर्क में कैसे आई? इसे लेकर भी कई थ्योरी हैं। कोई कहता है कि वो अपनी मर्जी और मजबूरी में डाकुओं से जुड़ी. तो कोई कहता है कि डाकू जबरन उठा ले गए थे.

अब इन दोनों बातों के कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है. लिहाजा, फूलन की आत्मकथा में लिखी उसी बात पर ही भरोसा करते हैं. जिसमें डाकुओं से संपर्क में आने के बारे में फूलन ने कहा था कि “किस्मत को शायद यही मंजूर था।”

दो डकैतों को पसंद आ गई थी फूलन, फिर हुआ खूनी खेल

Phoolan Devi Ki Kahani :चंबल में ऐसा पहली बार हुआ था कि डकैतों के साथ कोई महिला जुड़ी थी. दिन-रात साथ रहती थी. हंसती-घूमती थी. फिर धीरे-धीरे वो डाकुओं के सरदार बाबू गुज्जर और उसके साथी डाकू विक्रम मल्लाह को पसंद आ गई. विक्रम मल्लाह अंदर ही अंदर बाबू गुज्जर का दुश्मन बन बैठा. और आखिरकार ये दुश्मनी एक दिन गुस्से के रूप में बाहर आ गई.

जिसका शिकार हुआ डाकुओं का सरदार बाबू गुज्जर. विक्रम ने बाबू गुज्जर को गोलियों से भून डाला. राजा को मारने वाला ही राजा बनता है. तो डाकुओं के सरदार को मारने वाला भी सरदार बन गया. और अब फूलन भी हमेशा के लिए विक्रम की हो गई.

विक्रम मल्लाह के दुस्साहस से नाराज़ हुआ ठाकुर गैंग


Phoolan Devi Inside Story :छोटी जाति की महिला के लिए बाबू गुज्जर की हत्या होना, एक गैंग को नागवार गुजरा. वो गैंग था ठाकुरों का. जिसकी कमान श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर के पास थी. दोनों इस हत्या के लिए फूलन को दोषी मानते थे. अब दोषी मान लिया तो बदला लेना तो ठाकुर गैंग की फितरत थी. वो फूलन से बदला लेने चाहते थे.

लेकिन जानते थे कि विक्रम मल्लाह ऐसा होने नहीं देगा. इसलिए फूल को तोड़ने से पहले कांटे को निकालने में जुट गया ठाकुर गैंग. लिहाजा, पहले विक्रम मल्लाह की हत्या होती है. फिर ठाकुर गैंग फूलन को अगवा कर लेता है. अपहरण के बाद फूलन को बेहमई गांव ले जाया जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि बेहमई में 3 हफ्ते तक ठाकुरों ने फूलन से बलात्कार किया. ये कहानी फिल्म बैंडिट क्वीन में दिखाई गई है. लेकिन इसमें कितना सच है, इसकी पुष्टि आजतक नहीं हुई है. इस बारे में फूलन से सवाल पूछा गया था.

तब जवाब में फूलन ने कहा था कि “ठाकुरों ने उस वक़्त मेरे साथ बहुत मजाक किया था”. फूलन के इस जवाब के कई मायने हो सकते हैं. लेकिन सच तो ये भी है कि कोई महिला खुद बलात्कार की बात को कैसे स्वीकार कर सकती है. खैर, घटना चाहे जो हुई हो लेकिन ये बात तो सच है कि ठाकुरों ने 3 हफ्ते तक फूलन को बंधक बनाए रखा था.

phoolan devi real photo

बेहमई घटना से फूलन का बदला अवतार, बन गई बैंडिट क्वीन

Phoolan Devi Biography : तीन हफ्ते तक किसी महिला को बंधक बनाए रखा जाए. उसे मानसिक प्रताड़ना दिया जाए. वाकई इसकी कोई तुलना नहीं हो सकती है. ऐसी प्रताड़ना को कोई झेल जाता है. कोई खामोश रह जाता है. लेकिन ये फूलन देवी थी. बचपन में जमीन को लेकर भिड़ गई थी. तो फिर ये सज़ा तो मौत से भी बदतर भी थी.

फिर क्या था. सवाल इज्जत का था. और सामने बेइज्जती करने वाले हैवानों का चेहरा. लिहाजा, फूलन ने डाकू का चोला पहन ही लिया. फूलन को खाकी वर्दी और इंस्पेक्टर वाले 3 स्टार पसंद थे. इसलिए हमेशा वो खाकी वर्दी पहन बदला लेने की ठान ली.

बात 14 फरवरी 1981 की है. इस दिन बेहमई गांव में सन्नाटा पसरा था. तभी डाकुओं को लेकर वहां पहुंचती है फूलन देवी. उस जगह पर जहां 3 हफ्ते तक उसकी बेइज्जती हुई थी. यहां आते ही फूलन ने दो आरोपियों को पहचान लिया. उनसे सवाल पूछा. बोली- बेइज्जती करने वाले बाकी कहां हैं. दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया.

उनकी खामोशी फूलन के गुस्से को बढ़ा रही थी. और फिर गुस्सा इतना बढ़ा कि वो 22 ठाकुरों को घर से बाहर निकाल ले आई। सभी को लाइन में खड़ा करा दिया। फिर घुटनों के बल बैठने को कहा और आखिर में सभी को गोलियों से भून डाला. महज कुछ मिनट में एक साथ 22 लोगों की हत्या. अपने आप में ये नरसंहार था. जिसने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिला डाला.

बेहमई कांड से यूपी में CM वीपी सिंह की कुर्सी गई


Phoolan Devi Story : यही वो घटना थी जिसके बाद फूलन देवी को पूरी दुनिया जान गई. तो फिर उत्तर प्रदेश और अपना देश कैसे बचे रह जाते. उस वक्त केंद्र में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. उत्तर प्रदेश राज्य में वीपी सिंह की सरकार थी. लेकिन चर्चा में आई फूलन देवी.

मीडिया ने फूलन को बैंडिट क्वीन नाम दिया. और सरकार ने इसके सिर पर इनाम रख दिया. लेकिन फूलन को पकड़ना तो दूर. कोई पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाई. फिर क्या था. इस मामले ने उस समय की राज्य सरकार को हिला डाला.

बेहमई कांड की वजह से यूपी के मुख्यमंत्री वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन फूलन फिर भी काबू में नहीं आई. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस डाकुओं के ठिकानों पर छापेमारी करने लगी.

कई छोटे-मोटे डाकुओं का एनकाउंटर भी हुआ लेकिन फूलन तक पुलिस का पहुंचना सपना ही रह गया. एक साल तक ये सिलसिला चलता रहा. आखिरकार मध्य प्रदेश सरकार ने फूलन को आत्मसमर्पण कराने की रणनीति बनाई. जिम्मेदारी भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी को सौंपी गई.

फूलन को सरेंडर कराने वाले पुलिस अधिकारी की कहानी

फूलन देवी की स्टोरी : यहीं से फूलन देवी की जिंदगी में फिर से एक नया मोड़ आने की शुरुआत हुई. ये शुरुआत करने वाले पुलिस अधिकारी थे राजेंद्र चतुर्वेदी. बेहद शांत और मजबूत इरादों वाले. कुछ ठान लें तो उसे पूरा करने वाले.

अकेले दम पर वो मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह से दावा करते हैं कि वो फूलन को आत्मसमर्पण कराकर मानेंगे. और फिर इस मिशन में जुट जाते हैं. एक मीडिया को दिए इंटरव्यू में खुद राजेंद्र चतुर्वेदी ने पूरी कहानी बयां की है. वो उस दिन के बारे में बताते हैं जब पहली बार फूलन से मिलने गए थे.

पुलिस अधिकारी बताते हैं कि वो 5 दिसंबर, 1982 की रात थी. वो खुद बाइक चला रहे थे. और पीछे फूलन देवी का करीबी था. उस वक्त काफी ठंड थी. हवा भी तेज थी जिससे उनकी कंपकंपी छूट रही थी. लेकिन माथे पर चिंता की लकीरें भी थीं.

बाइक बीहड़ों से गुजर रही थी. तभी बाइक के पीछे बैठे शख्स ने कंधे पर हाथ रखकर रुकने का इशारा किया. फिर दोनों लोग पैदल आगे बढ़ने लगे. थोड़ी देर चलने पर उन्हें हाथ में लालटेन हिलाता एक शख़्स दिखाई दिया. फिर दोनों उसी लालटेन वाले के पीछे-पीछे चलने लगे. फिर एक झोपड़ी में इन्हें रोक लिया गया.

Phoolan Devi ki kahani Hindi Me : यहां कुछ खाने को दिया गया ताकी ठंड से थोड़ी राहत मिल जाए. साथ ही उन्हें एक घंटे तक रुकने के लिए कहा गया. यहां समय बिताने के बाद एक डाकू पुलिस अधिकारी को बाइक से लेकर चंबल नदी की तरफ बढ़ने लगा. करीब 6 किलोमीटर चलने के बाद बाइक खड़ी कर दी. इसके बाद साथी ने टॉर्च निकाली और घने पेड़ों व जंगल के रास्ते ले जाने लगा. वहां दूर से जलता हुआ अलाव दिखाई दिया.

इसे देख राजेंद्र चतुर्वेदी ने अंदाजा लगा लिया था वहां कुछ खास होने वाला है. लेकिन अंदाजा गलत निकला. यहां भी फूलन से मुलाकात नहीं हुई. यहां से डाकुओं का तीसरा साथी फिर से उन्हें लेकर कई किलोमीटर दूर गया. इस तरह पूरी रात चलते-चलते वो थक चुके थे. सुबह होने वाली थी.

लेकिन सुबह से ठीक पहले ही बीहड़ में एक खास जगह पहुंचे. वहां की झाड़ियों से नीले रंग का बेलबॉटम और नीले ही रंग का कुर्ता पहने हुए एक महिला सामने आईं. कंधे से राइफल लटक रही थी. घने बाल थे. कंधे तक लटके थे. मैं उसे देखता ही रहा. तभी उसने मैरे पैर पर कुछ रख दिया. देखा तो 500 रुपये थे. ये देख हैरान रह गया. क्या फूलन देवी ऐसी है?

फूलन ने खुद चाय बना पिलाई और खाना भी खिलाया

फूलन देवी डाकू की कहानी : फूलन देवी ने अपने हाथों से उनके लिए चाय बनाई. चाय के साथ उन्हें चूड़ा खाने के लिए भी दिया. फिर दोनों में बातें शुरू होती हैं. लेकिन इस बात की शुरुआत कैसे हो. इस पर पुलिस अधिकारी ने पहले से तैयारी की हुई थी. वो फूलन से मिलने से पहले ही उनके गांव गए थे. जहां वो परिवार से मिलकर उनकी बातें रिकॉर्ड की थी. फोटो भी खींचीं थीं.

उन्हें ये अंदाजा था कि महिला तो महिला होती है. उसमें ममता कूट-कूट कर होती है. भले ही वो इसका दिखावा ना करे. वो इमोशनल भी होती है. भले ही इसका अहसास न कराए. यही सोचकर राजेंद्र चतुर्वेदी ने बात की शुरुआत ही फूलन के घर से करते हैं.

वो कहते हैं, मैं आपके घर गया था. ये सुनकर फूलन देवी चौंक जाती हैं. पूछती है, कब? राजेंद्र चतुर्वेदी ने जवाब दिया, पिछले महीने. ये सुनते ही फूलन ने तपाक से पूछा, वहां मुन्नी मिली? पुलिस अधिकारी ने जवाब दिया, हां. आपकी बहन मुन्नी, मां और पिता भी मिले. फिर सबूत के तौर पर परिवार की तस्वीरें दिखाई. फूलन उन तस्वीरों को निहारने लगी.

तभी फूलन अचानक एक आवाज़ सुनकर चौक गईं. वो आवाज़ थी मुन्नी की. ये आवाज़ कहां से आई, फूलन ये सोचने लगी. तभी राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन को टेपरिकॉर्डर दिखाया. उसमें परिवार से बातचीत के दौरान की ऑडियो रिकॉर्डिंग थी. ये सुनकर फूलन इमोशनल हो गईं. ऐसे मानो सारा तनाव दूर हो गया. थोड़ी देर बाद फूलन शांत हुईं.

सोचने लगी कि आखिर पुलिस अधिकरी ने मेरे लिए इतना किया क्यों? यही सोचकर फूलन ने सवाल पूछा. आप मुझसे क्या चाहते हैं? राजेंद्र चतुर्वेदी ने कहा कि हम चाहते हैं कि आप आत्मसमर्पण कर दें. आत्मसमर्पण और फूलन देवी. ये सुनते ही फूलन भूल गई कि थोड़ी देर पहले ही वो सपनों में घर चली गई थी.

याद सिर्फ ये आया कि वो डाकू फूलन है. गुस्सा सातवें आसमां पर था. चेहरा लाल. आवाज़ भारी. वो चिल्ला कर बोली, तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारे कहने भर से हथियार डाल दूंगी. मैं फूलन देवी हूं, मैं इसी वक़्त तुम्हें गोली से उड़ा सकती हूं. ये देखकर मानो पूरे बीहड़ में सन्नाटा पसर गया. उस वक्त जो डाकू जहां थे वहीं खड़े रह गए. किसी की बोलने की हिम्मत नहीं थी.

Phoolan Devi Biography in Hindi : आखिरकार फूलन के सबसे करीबी मान सिंह ने किसी तरह फूलन को शांत कराया. समझाया ये काफी सोच-समझकर यहां आए हैं. पहले पूरी बात हो जाए. फिर कोई फैसला करेंगे. फिर दोपहर हो जाती है. उस दिन फूलन ने खुद ही खाना बनाया. बाजरे की मोटी-मोटी रोटियां बनाई. इसके साथ आलू की सब्ज़ी और दाल परोस कर खाने को दी.

खाना खाकर राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन की कुछ फोटो खींची और उन्हें दिखाई. जिसे देखकर फूलन खुश हो गई. बोली आप तो जादू करियो है. इसके बाद फिर फूलन ने पूछा, आपको ये कैसे भरोसा है कि सरेंडर करने पर एनकाउंटर नहीं होगा. पुलिस अधिकारी कहते हैं, मुझे मुख्यमंत्री ने खुद भेजा है. इसलिए भरोसा नहीं करने का कोई सवाल ही नहीं है.

इस पर फूलन सबूत मांगती है. जवाब में राजेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि किसी को साथ भेज दीजिए. उन्हें सीधे सीएम से मिलवाउंगा. ये सुनकर फूलन एक साथी को पुलिस अधिकारी के साथ भेजने को राजी हो गईं. साथ में फूलन ने अपनी मां के लिए एक अंगूठी भी भिजवाई. इस तरह राजेंद्र चतुर्वेदी बीहड़ से निकलकर सीधे दिल्ली की फ्लाइट लेते हैं और सीएम से मुलाकात करते हैं.

सीएम से मुलाकात की जानकारी फूलन को मिलती है तब राजेंद्र चतुर्वेदी पर भरोसा और बढ़ जाता है. इसके कुछ महीने बाद राजेंद्र चतुर्वेदी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ फिर फूलन से मिलने जाते हैं. इस बार फूलन की गोद में बच्चे को रखकर वचन देते हैं कि वो सरेंडर करेंगी तो पुलिस कोई एक्शन नहीं लेगी.

... तो उस रात 1 सेकेंड के लिए भी ना सोई, ना खाई, ना कुछ पिया

Phoolan Devi Story in Hindi : तारीख 13 फरवरी साल 1983. जगह मध्य प्रदेश के भिंड जिले का एमजीएस कॉलेज. यहां सुबह से देश और दुनिया की निगाहें टिकीं थीं. वजह थी खौफ का दूसरा नाम कही जाने वाली फूलन देवी का आत्मसमर्पण करना. मध्य प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्मसमर्पण करने से पहले वाली रात फूलन 1 सेकेंड भी नहीं सोई. घबराहट में कुछ खाया भी नहीं. और न ही एक गिलास पानी पिया था.

जिसका नाम सुनकर दूसरों की नींद उड़ जाती थी, उसकी ये हालत देख साथी डाकू मान सिंह से रहा नहीं गया. सुबह होते ही डॉक्टर को बुला लिया. डॉक्टर ने चेक किया. मान सिंह ने तबीयत बिगड़ने की वजह पूछी. डॉक्टर ने कहा, तनाव. एक बार तो वहां मौजूद लोगों को भरोसा नहीं हुआ.

फिर डॉक्टर ने समझाया कि तनाव की वजह से इन्हें काफी घबराहट है. इसलिए न ही सो पाईं और न ही कुछ खाया-पिया. ये जानकर उसके साथी और पुलिस अधिकारी ने फूलन को किसी तरह से सामान्य किया था. इसके बाद मध्य प्रदेश के उस वक्त के सीएम अर्जुन सिंह के सामने फूलन ने गैंग के साथ आत्मसमर्पण कर दिया.

फूलन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के केस चले. 11 साल जेल में रहना पड़ा. 1993 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. मुलायम सिंह ने एक बड़ा फैसला लिया. फूलन पर लगे सभी आरोपों को वापस ले लिया गया. फिर फूलन की 1994 में जेल से रिहाई हुई. उसे नया जीवन मिला. और नई उम्मीदें भी. फिर फूलन ने उम्मेद सिंह नामक व्यक्ति से शादी कर ली.

बीहड़ के जंगल से दिल्ली के संसद तक का सफर

Phoolan Devi Political Career : फूलन जेल से बाहर आ गई. नई शादी भी हो गई. लेकिन अब आगे क्या? फूलन को मुलायम सिंह ने नया जीवन दिया. जेल से आने के बाद समाजवादी पार्टी से जुड़ने का ऑफर भी. वर्ष 1996 में वो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई. 1996 में चुनाव भी लड़ा. जीत भी गई. मिर्जापुर से सांसद बन गई. अब वो बीहड़ के जंगल से निकलकर दिल्ली संसद में पहुंच गई. झाड़ी और झोपड़ी में रहने वाली फूलन अब आलीशान बंगले में रहने लगी.

1998 में फिर से चुनाव हुए. लेकिन वो हार गई. मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. एक साल बाद 1999 में फिर से चुनाव हुए. और फूलन जीत गई। राजनीतिक उतार-चढ़ाव के दौरान ही फूलन ने एक संगठन बना लिया था. उसका नाम था एकलव्य सेना. इस संगठन में हर तरह के लोग जुड़ रहे थे. चाहे वो डाकू रहें हों या गरीबी में जिंदगी गुजारे हों. लेकिन इस संगठन से जुड़ने आए एक शख्स ने ही आखिर में फूलन देवी की जिंदगी को खत्म कर दिया.

शेर सिंह ने खीर खाई फिर चौखट पे ही मारी गोली


Phoolan Devi Death Reason : तारीख 25 जुलाई, साल 2001. जगह, देश की राजधानी दिल्ली. इस दिन फूलन के घर पर एकलव्य संगठन में शामिल होने के लिए शेर सिंह राणा (Sher Singh Rana) नामक व्यक्ति आया था. फूलन ने उसका स्वागत किया.

खाने के लिए खीर मंगवाई. शेर सिंह ने खुशी-खुशी खीर खाई। अलविदा कहकर घर से बाहर निकलने लगा. उसका साथ देने के लिए फूलन भी बाहर निकलीं. घर के चौखट तक छोड़ने आई. लेकिन शेर सिंह के ज़ेहन में कुछ और था.

उसने घर के गेट पर ही फूलन देवी को गोली मार दी. चौखट पर फूलन धड़ाम से गिरीं. कल तक जो शेरनी दहाड़ती थी, अब वो शांत थी। बिल्कुल ख़ामोश. फूलन की मौत पर शेर सिंह राणा ने कहा था, अब जाकर बेहमई हत्याकांड का बदला पूरा हुआ.

घटना के बाद पुलिस ने शेर सिंह राणा को गिरफ्तार कर लिया. 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. लेकिन फूलन देवी की सोच और हिम्मत को वो खत्म नहीं कर पाया.

फूलन का दिल गरीबों के लिए धड़कता था : रॉय मॉक्सहैम

Phoolan Devi Autobiography : फूलन देवी पर ब्रिटेन में आउटलॉ (Outlaw Book) नाम की एक किताब प्रकाशित हुई. इस किताब में उनके जीवन के कई पहलुओं की चर्चा है. इस किताब के लेखक रॉय मॉक्सहैम (Roy Moxham) हैं. फूलन के जेल में रहने के दौरान ही इस लेखक ने उनसे पत्राचार किया था. फिर इंडिया आकर मुलाकात भी की थी.

लेखक रॉय मॉक्सहैम ने फूलन देवी के बारे में एक मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने जिंदगी में बहुत कुछ सहा, लेकिन इसके बावजूद फूलन देवी बहुत हंसमुख थीं. वे हमेशा हंसती रहतीं थीं, मजाक करती रहतीं थीं। रॉय ने ये भी कहा था कि फूलन ने अपना बचपन काफी गरीबी में गुजारा। उनका दिल गरीबों के लिए हमेशा धड़कता था। ये भी कहा कि मुझे लगता है कि वे गलत न्यायिक प्रक्रिया का शिकार हुईं।

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT

    ऐप खोलें ➜