एक लाचार माँ अपने जवान बेटे की लाश लिए रात भर श्मशान घाट के बाहर बैठी रही

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एक लाचार माँ अपने जवान बेटे की लाश लिए रात भर श्मशान घाट के बाहर बैठी रही
अपने बेटे की लाश लिए श्मशान घाट के बाहर बैठी रही एक बेबस गरीब मां
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Muzaffarnagar Deadbody: कोई शहर कितना जिंदा है और कितना मरा हुआ इसका अंदाजा उस शहर में रहने वाले लोगों के भीतर सांस लेती इंसानियत से पता लग जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से जो खबर सामने आई उसने इस शहर और उसकी जिंदा दिली पर जबरदस्त तमाचा मारा है। क्योंकि यहां एक लाचार मां रात भर अपने जवान बेटे की लाश को लेकर श्मशान घाट के सामने सिर्फ इसलिए बैठी रही क्योंकि उसके पास कफन और दफन तक के पैसे नहीं थे। उसकी गरीबी उसके सामने बेबसी की शक्ल में पड़ी थी और वो बस सिवाय रोने और आंसू बहाने के और कुछ नहीं कर सकी। जब रात ढली और दिन निकला तो एक संस्था ने उस बेबस मां के आंसू पोंछे और दिल को तसल्ली दी। 

फैक्टरी के मजदूर की मौत और मां की बेबसी

असल में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ की रहने वाली शारदा देवी अपने जवान बेटे को साथ लेकर नौकरी और रोजगार की तलाश में एक साल पहले मुजफ्फरनगर आई थी। शारदा देवी के पति के गुजर जाने के बाद उसका बेटा राहुल यादव ही घर और उसका इकलौता सहारा था। राहुल एक फैक्टरी में एक ठेकेदार के तहत काम करता था। और उसी की कमाई से परिवार का गुजर बसर चल रहा था। लेकिन इसी दौरान अचानक वो बीमारी की चपेट में आ गया, जिसकी वजह से उसकी हालत खराब हो गई, तब इलाज के लिए राहुल को मेरठ मेडिकल कॉलेज में भरती करवा दिया गया था। लेकिन एक महीने तक इलाज होने के बावजूद राहुल ठीक नहीं हो सका और उसकी मौत हो गई। 

अपने बेटे की लाश के साथ श्मशान घाट के बाहर बैठी रही एक लाचार मां

बेटे की मौत और मां की लाचारी

राहुल की मौत रविवार की शाम को हुई थी। और मेडिकल कॉलेज में शारदा देवी ने अपनी लाचारी बताई भी थी। तब मेरठ के स्वास्थ्य कर्मियों उसके बेटे के शव को श्मशान घाट पहुँचाने की बात कही तो शारदा उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, क्योंकि उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। 

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श्मशान घाट के बाहर रात भर बेटे की लाश के साथ

असल में राहुल की मौत के बाद ही शारदा देवी की बेबसी की कहानी शुरू हुई। क्योंकि मेडिकल कॉलेज की एंबुलेंस शव को देर रात श्मशान घाट के बाहर छोड़कर चली गई। उस वक्त मंडी श्मशान घाट के दरवाजे तक बंद हो चुके थे और वहां लोगों की आवाजाही भी नहीं थी। और वहां राहुल की लाश के साथ थी उसकी बेबस मां। जिसके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वो राहुल के लिए कफन और अंतिम संस्कार करवा सके। वो सड़क किनारे अपने बेटे की लाश को लेकर अपनी बेबसी पर आंसू बहाती रही। लोगों के मुताबिक बेटे की बीमारी ने शारदा देवी को पाई-पाई का मोहताज कर दिया। शारदा देवी के पास कफन और अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं बचे थे। 

एक संस्था ने कराया अंतिम संस्कार

सुबह जब लोगों ने शारदा देवी को अपने बेटे की लाश के साथ सड़क किनारे देखा तो उनकी हालत पर तरस खाकर उनसे पूछा तो शारदा देवी ने अपनी लाचारी लोगों के सामने रखी। ये खबर शहर भर में आग की तरह फैल गई। तभी साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की प्रमुख शालू सैनी श्मशान घाट पहुँची और बेबस और लाचार शारदा के आंसू पोंछकर राहुल का अंतिम संस्कार कराया। 

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