मुख्तार अंसारी ने भगोड़े सिपाही से खरीद ली थी मशीनगन, फिर किया था ये हत्याकांड
Mukhtar Ansari: BJP विधायक कृष्णानंद राय की हत्या भले ही 29 नवंबर 2005 को हुई हो लेकिन इसकी पटकथा डेढ़ साल पहले ही लिखी जाने लगी थी और मुख्तार अंसारी के पास एलएमजी यानी light machine gun पहुंच चुकी थी।
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90 के दशक में पूर्वांचल यूपी की सियासत में भूचाल लाने वाले कृष्णानंद राय हत्याकांड को क्या रोका जा सकता था? कृष्णानंद राय हत्याकांड की भनक यूपी पुलिस के कुछ अफसरों और एजेंसी को पहले से थी? कृष्णानंद राय हत्याकांड भले ही नवंबर 2005 में हुआ हो लेकिन मुख्तार अंसारी कृष्णानंद राय को मारना चाहता है इसकी भनक पुलिस के एक अफसर को हत्या से बहुत पहले करीब डेढ़ साल पहले हो गई थी और उसने कृष्णानंद राय की हत्या के लिए खरीदी गई एलएमजी को जब्त किया था। कौन था वह अफसर और क्या थी कृष्णानंद राय हत्याकांड से पहले की वह घटना, आइए तफ्सील से बताते हैं।
बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या भले ही 29 नवंबर 2005 को हुई हो लेकिन इसकी पटकथा लगभग डेढ़ साल पहले ही लिखी जाने लगी थी। मुख्तार अंसारी गैंग की तरफ से कृष्णानंद राय को रास्ते से हटाने के लिए एलएमजी यानी light machine gun पहुंच चुकी थी।
जनवरी 2004 में लखनऊ के कैंट इलाके में मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय के बीच फायरिंग हुई। राजधानी के कैंट जैसे सुरक्षित और पॉश इलाके में गैंगवार की घटना से तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार पर सवाल खड़े होने लगे तो फैसला लिया गया कि वाराणसी में एसटीएफ को सक्रिय किया जाए। वाराणसी एसटीएफ यूनिट की कमान तेजतर्रार डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी गई। शासन के निर्देश पर शैलेंद्र सिंह और उनकी टीम ने दोनो ही गैंग के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लिए। एसटीएफ ने सर्विलांस पर दोनों ही गैंग के शूटरों के साथ साथ इनके दूसरे मददगारो के नंबर सुनना शुरू किया तो एक कॉल में जानकारी मिली कि मुख्तार अंसारी सेना के किसी भगोड़े सिपाही से एक करोड़ में एलएमजी खरीदने की कोशिश में है। Lmg का सौदा मुख्तार अंसारी का गनर मुन्नर यादव करवा रहा था। एसटीएफ ने मुखबिर सक्रिय किए तो पता चला मुन्नर यादव का भांजा बाबूलाल यादव जम्मू कश्मीर में 35 राइफल्स में सिपाही था। यही सिपाही बाबू लाल यादव सेना की एलएमजी यानी लाइट मशीन गन चुराकर भाग आया था जिसे मुख्तार अंसारी एक करोड़ में खरीदने की बात कर रहा था। फोन नंबर के सर्विलांस में मुख्तार अंसारी की आवाज में यहां तक सुना गया कि वह कह रहा है कि किसी भी कीमत पर एलएमजी कृष्णानंद के पास नहीं पहुंचने चाहिए।
शैलेंद्र सिंह ने इस सौदे की जानकारी लखनऊ में बैठे बड़े अफसरों को दी। 25 जनवरी 2004 को शैलेंद्र सिंह ने वाराणसी के चौबेपुर इलाके में सुबह रेड कर दी। मौके से मुन्नर यादव और उसका भांजा बाबूलाल यादव गिरफ्तार हुए, एलएमजी के साथ 200 कारतूस भी बरामद हुए। शैलेंद्र सिंह ने इस संबंध में वाराणसी के चौबेपुर थाने में क्राइम नंबर 17/2004 पर आर्म्स एक्ट और 18/2004 पर मुख्तार अंसारी पर पोटा एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया।
मौजूदा समय में पुलिस की नौकरी छोड़ कर सामाजिक कार्य में लगे शैलेंद्र सिंह का दावा है एलएमजी खरीद का यह सौदा खुद मुख्तार अंसारी कर रहा था। जिस मोबाइल फोन से यह बात हो रही थी इसको एसटीएफ ने सर्विलांस पर लिया था. वह मुख्तार अंसारी के गुर्गे तनवीर उर्फ तनु के नाम पर सिम खरीदा गया था। तनु जेल में था लेकिन मोबाइल फोन मुख्तार चला रहा था।
वाराणसी में एसटीएफ की छापेमारी का असर लखनऊ में हुआ। समाजवादी पार्टी की सरकार थी मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे लखनऊ में हड़कंप मच गया। मुख्तार की आवाज में एलएमजी खरीद की रिकॉर्डिंग की बात सामने आई तो मुख्तार अंसारी ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस का दावा किया कि आवाज उसकी नहीं है। तत्कालीन सरकार के तमाम बड़े लोगो से लेकर डीजीपी मुख्यालय तक के अफसरों ने शैलेंद्र सिंह को मुख्तार अंसारी का नाम हटाने के लिए दबाव बनाया। जब मामला ज्यादा बढ़ गया तो क्षुब्ध होकर शैलेंद्र सिंह ने फरवरी 2004 में इस्तीफा दे दिया।
शैलेन्द्र सिंह का कहना है कि मुख्तार के पास यू तो तमाम अत्याधुनिक हथियार थे लेकिन वह जानता था कि कृष्णानंद राय बुलेट प्रूफ गाड़ी से चलते हैं और उस बुलेट प्रूफ गाड़ी को भेदने के लिए एलएमजी जैसा हथियार ही कारगर होगा। यही वजह थी कि वह किसी भी कीमत पर एलएमजी को खरीदना चाहता था और वह यह भी जानता था कि अगर यह एलएमजी कृष्णानंद राय के पास पहुंच गई तो उसके लिए खतरा बढ़ जाएगा। यही वजह थी कि उसने एक करोड़ जैसी भारी-भरकम रकम देकर भी एलएमजी हासिल की थी। शैलेंद्र सिंह का दावा है कि अगर उस समय एलएमजी ना पकड़ी जाती तो कृष्णानंद राय की डेढ़ साल पहले ही जनवरी 2004 में हत्या हो जाती।
घटना के वक्त पुलिस मुख्यालय में आईजी लॉ ऑर्डर के पद पर रहे पूर्व डीजीपी बृजलाल का कहना है कि यह वह दौर था जब सरकारे मुख्तार अंसारी जैसे माफियाओं के इशारे पर चलती थी वह सरकार बनाते और बिगड़ते थे। बृजलाल का कहना है जिस गाजीपुर जेल में मुख्तार अंसारी का एकछत्र राज चलता था जिसमें जिले के बड़े अफसर मुख्तार से मिलने के लिए जाते थे, वहां कृष्णानंद राय हत्याकांड के वक्त मुख्तार अंसारी ने रणनीति के साथ अपनी जेल ट्रांसफर करवा ली और नवंबर 2005 में कृष्णानंद राय की हत्या के वक्त मुख्तार अंसारी फतेहगढ़ जेल में बंद था।
कहा तो यहां तक जाता है कि 29 नवंबर 2005 को जब कृष्णानंद राय की गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के गुर्गे मुन्ना बजरंगी, संजीव जीवा माहेश्वरी, अताउरहमान बाबू, शहाबुद्दीन, विश्वास नेपाली आदि कृष्णानंद राय के काफिले पर एके-47 से गोली चला रहे थे उस फायरिंग की आवाज को मुख्तार अंसारी फतेहगढ़ जेल में मोबाइल पर सुन रहा था। कृष्णानंद राय की हत्या की खबर पर मुख्तार अंसारी इतना खुश हुआ कि उस बीच फैजाबाद के एक बाहुबली का फोन आया तो उसने उस बाहुबली को भी फोन कर बता दिया कृष्णानंद मारा गया।
डीजीपी मुख्यालय में आईजी लॉ एंड ऑर्डर रहे बृजलाल का कहना है कि कृष्णानंद राय की जान को खतरा है मुख्तार कृष्णानंद गैंग के बीच जबरदस्त तनातनी चल रही है। मुख्तार अंसारी के गाजीपुर स्थित कोठी पर तमाम अपराधी इकट्ठा है, यह तमाम सूचनाएं पुलिस को मिल रही थी। हत्या की आहट तो पहले से ही आने लगी थी लेकिन सरकार और उनके पसंदीदा बड़े अफसर उस आहट को सुनकर भी अनसुना कर रहे थे और जिसका नतीजा था कि 29 नवंबर 2005 को दिन दहाड़े बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई।
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