'हूरों' के साथ गुलछर्रे उड़ाने वाले सबसे आश़िक मिजाज़ कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी की पूरी कहानी

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'हूरों' के साथ गुलछर्रे उड़ाने वाले सबसे आश़िक मिजाज़ कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी की पूरी कहानी
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  • अब तक का सबसे आशिक़ मिजाज़ तानाशाह था मुअम्मर गद्दाफ़ी

  • पहला ऐसा तानाशाह जिसने अपनी सुरक्षा में लगाए विदेशी गॉर्ड्स

  • उसके सबसे करीबी घेरे में खूबसूरत महिला गार्ड्स ही रह सकती थीं

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    ऐसे शुरु हुई गद्दाफ़ी के तानाशाह बनने की कहानी

    Crime Story in Hindi : वो साल था 1956, खुद को मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर का शिष्य बताने वाले एक इंसान ने लीबिया के हक़ औऱ बेहतरी के लिए लड़ने का दावा करना शुरू किया, नाम था उसका मुअम्मर गद्दाफी।

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    नासिर ने स्वेज नहर को मिस्र की बेहतरी का रास्ता बनाया था तो गद्दाफी ने तेल के भंडार को इसके लिए चुना, क्योंकि लीबिया में 1950 के दशक में तेल के बड़े भंडार का पता चल गया था लेकिन उसके खनन का काम पूरी तरह से विदेशी कम्पनियों के हाथ में था जो उसकी ऐसी कीमत तय करते थे, जिससे लीबिया को नहीं बल्कि खरीदारों को फायदा पहुंचाता था।

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    गद्दाफ़ी ने ऐसे किया लीबिया के राजा का तख़्तापलट

    गद्दाफी ने तेल कंपनियों से कहा कि वो पुराने करार पर पुनर्विचार करें नहीं तो उनके हाथ से खनन का काम वापस ले लिया जाएगा, लीबिया वो पहला विकासशील देश था, जिसने तेल के खनन से मिलने वाली आमदनी में बड़ा हिस्सा हासिल किया। उसी दौर में इज़राइल और फिलिस्तीन में संघर्ष चल रहा था, गद्दाफी इज़राइल विरोधी आंदोलन में भाग ले रहा था.

    और 1960 के शुरुवाती दिनों में गद्दाफ़ी लिबिया की सेना का हिस्सा बना और लिबिया में क्रांति के दौरान लिबिया की कमान संभालते हुए, 42 साल पहले उसने राजा इद्रीस का सैनिक तख्ता पलट कर सत्ता हासिल की। उस वक़्त मुअम्मर गद्दाफी एक खूबसूरत और करिश्माई फौजी अधिकारी था, उसकी तेल खनन नीति के लिए उसे किसी तेज़ दिमाग राजनेता की तौर पर देखा जा रहा था।

    70 के दशक में लीबिया का हीरो था गद्दाफ़ी

    1970 के दशक में अरब देशों की पेट्रो-बूम यानि तेल की बेहतर कीमतों से शुरू हुआ खुशहाली के दौर का नायक था गद्दाफी। शुरू के सालों में उसने कई अच्छे काम किए और देखते ही देखते वो लीबिया का हीरो बन गया। गद्दाफी ने अपने शुरूआती दौर में लीबियाई नागरिकों के लिए कई स्कीमें शुरू की, लोग इस इंसान में अपना रहनुमा देख रहे थे। कहते हैं ताकत और ओहदे का नशा दुनिया का सबसे गंदा नशा होता है और यही नशा अब तक इस इंसान पर भी चढ़ चुका था, उसने इसके बाद ऐसे ऐसे फैसले लिए कि नायक से खलनायक बनता चला गया।

    नायक से ऐसे खलनायक बना गद्दाफ़ी

    ताकत के नशे में गद्दाफी ने आतंकवादी तत्वों का साथ देना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे एक तानाशाह बनता चला गया, एक ऐसा तानाशाह जो अपने किसी भी विरोध को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं था। जो भी उसके खिलाफ आवाज उठाता उसे गोली मार दी जाती, ये उस तानाशाह के तानाशाही दौर की शुरूआत थी, जो अब खुद को ही लीबिया का खुदा मानने लगा था। ये वो इंसान था जिसकी पैदाइश एक खानाबदोश खानदान में हुई थी, शुरूआती दिनों में जिसके पास खाने पीने के लाले थे, लेकिन जब उपर वाले ने इस इंसान को दिया तो इतना दिया कि संभाले नहीं संभल रहा था।

    गद्दाफ़ी ऐसे किया करता था 'शाही' अय्याशी

    दौलत, शोहरत और ताकत क्या कुछ नहीं दिया इस इंसान को भगवान ने, लेकिन इन चीज़ों के लिए भगवान का शुक्र अदा करने के बजाए ये खुद ही खुदा बनने की कोशिश करने लगा। इस खुदा ने लीबिया में ही खुद की जन्नत बनानी शुरू कर दी, तेल से मिली दौलत को पहले तो इसने अपनी प्रजा में दिल खोलकर बांटा लेकिन बाद में ये अपनी अय्याशी और आराइश के लिए अपनी ही प्रजा से दगा करने लगा। दिल खोलकर पैसा लुटाने वाला ये शख्स अब अपनी अय्याशी के लिए लोगों के मुंह से निवाला छीनने लगा और दौलत का अंबार लगाता चला गया।

    जनता भले बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और तानाशाही से परेशान थी लेकिन उन्हें आवाज़ उठाने का कोई हक़ इस शख्स ने नहीं दिया था। एक तरह पूरा लिबिया भूख से तड़प रहा था, वहीं दूसरी तरफ कर्नल गद्दाफी ऐशो आराम में डूबा हुआ था, सिर्त और राजधानी त्रिपोली में इसने अरबों रूपये खर्च करके ऐसा राजमहल तैयार किया था कि जो देखता बस देखता रह जाता। इस तानाशाह ने अपने लिए अलग एक सेना बना रखी थी, जिसमें विदेशों से लाए गए भाड़े के ट्रेंड सैनिकों थे। भले ही देश की सेना के पास न हों लेकिन इनके पास आधुनिक हथियार थे, और इन्हें ‘पीपुल्स आर्मी’ कहा जाता था।

    एक के बाद एक 'जुर्म' करता चला गया गद्दाफ़ी

    गद्दाफी ने ये पूरी आर्मी सिर्फ अपने आसपास वफादार लोगों को रखने के लिए बनाई थी, यही वो सेना थी जो इस तानाशाह के इशारे पर लीबिया की सड़कों पर विद्रोहियों का खून बहाती थी। ये सैनिक विदेशी थे और गद्दाफी के वफादार थे इसलिए इनमें विद्रोह की भी गुंजाइश नहीं थी। एक तरफ वो अपने भाड़े के सैनिको से विरोधियों के खून से लीबिया को लाल कर रहा था, तो वहीं लीबिया से बाहर भी उसके आतंक से दुनिया दहल रही थी।

    ऐसे आरोप थे कि गद्दाफी ने 1972 में जर्मनी के ओलंपिक में हमला करवाया, 1984 में लंदन में ब्रिटिश पुलिस अफसर फ्लेचर की हत्या करवाई, 1986 में बर्लिन में बमबारी करवाया, अपने आतंकियों को छुड़वाने के लिए एक विमान का अपहरण करवाया, तो 1988 में कनाडा से उड़े विमान को विस्फोट से गिरवा दिया, जिसमें 270 लोग मारे गए।

    खुद को 'कर्नल' क्यों कहलाता था गद्दाफ़ी?

    कई आतंकी संगठनों को गुद्दाफी आर्थिक मदद करता था, लीबिया के इस बिगड़ैल शख्स को अमेरिकी राष्ट्रपति ने रोनल्ड रीगन ने मिडल ईस्ट की पागल कुत्ता तक कह डाला था, लेकिन अपने सनकीपन के लिए भी जाना जाने वाला ये दुनिया का पहला ऐसा राष्ट्राध्यक्ष था, जो राष्ट्रपति या राष्ट्राध्यक्ष कहलाना पसंद नहीं करता था, उसे खुद को कर्नल कहलाना पसंद था, लेकिन दुनिया इसे कर्नल नहीं तानाशाह कहती थी।

    दुनिया भले उसे एक तरफ तानाशाह की तरह देख रही थी पर वो अपने ही देश के लोगों का कत्लेआम कराने के बावजूद खुद को अरब नेताओं का नेता, मुस्लिमों का इमाम और राजाओं का राजा कहता था। जबकि हकीकत तो ये थी कि वो खुद लीबिया का ही सगा नहीं था, उसने अपने आपको लीबिया का रहनुमा बताकर लीबिया को लूट-खसोट कर खोखला कर दिया था, एक मोटे अनुमान के तौर पर उसके पास 75 अरब डॉलर की संपत्ति थी जिसका बड़ा हिस्सा नकदी के रूप में दुनिया भर के बड़े बैंकों में जमा था।

    तेल के खेल में बहुत आगे निकल गया था गद्दाफ़ी

    लीबिया कच्चा तेल पैदा करने वाले दुनिया के दस बड़े देशों में शामिल है और उसके पास तेल का अकूत भंडार है और इसी अकूत तेल भंडार से उसने अपने लिए अकूत दौलत जमा कर ली थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नल गद्दाफी ने लंदन के बैंकों में 20 अरब पाउंड, अमेरिका के बैंकों में 32 अरब डॉलर, यूरोप के बैंको में 7 अरब डॉलर, इसके अलावा दुनिया की कई बड़ी कंपनियों में गद्दाफी का पैसा लगा था। ये कंपनियां कर्नल गद्दाफी के इशारे पर चलती थी, इटली की एक बड़ी डिफेंस फर्म के अलावा उसने एक फुटबॉल क्लब में भी पैसा लगा रखा था।

    कर्नल गद्दाफी को ये सारा पैसा तेल की दलाली में कंपनियों से मिलता था, कच्चे तेल की बिक्री में उसे कमीशन मिला करता था जो वो विदेशी बैंकों में रखता जाता था। एक रिपोर्ट के मुताबिक लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी ने मारे जाने से पहले 200 अरब डॉलर अलग अलग बैंकों, रियल स्टेट और कॉर्पोरेट इन्वेस्टमेंट के जरिए ठिकाने लगा दिया था। इसके अलावा गद्दाफी ने भारी नकदी और सोना कई जगहों पर छुपा दिए थे, गद्दाफी की दौलत का सही सही अंदाज़ा अभी तक नहीं लग पाया है।

    दुनिया के सबसे अमीर तानाशाहों में था गद्दाफ़ी

    माना जाता है कि अगर गद्दाफी की संपत्तियों का सही आकलन होगा तो वो दुनिया के सबसे अमीर तानाशाहों में शुमार हो जाएगा। गद्दाफी ने अपनी दौलत का एक बड़ा हिस्सा अपनी अय्याशी पर भी खर्च कर दिया, अपने हरम में मौजूद लड़कियां और सुरक्षा में तैनात महिला बॉडीगार्ड पर वो दौलत पानी की तरह बहाता था। साथ ही उसने अपनी दूसरी बीवी साफिया फ़र्काश को तोहफे में बुराक़ एयर नाम की एयरलाइंस कंपनी दी थी। इसके अलावा माना जाता है कि गद्दाफ़ी की इस बीवी के पास 20 टन सोना था। लीबिया में विद्रोह भड़कने के बाद सफिया जर्मनी भाग गई थी।

    गद्दाफ़ी के हरम में थीं सैकड़ों खूबसूरत लड़कियां

    लीबिया के इस तानाशाह ने बादशाह की तरह अपने महलों में हरम बनवा रखा था, जिसे उसने दूर दूर से लाई गई खूबसूरत लड़कियों से आबाद किया था। ऐसी लड़कियां जो इस तानाशाह के दिल बहलाने का सामान हुआ करती थीं, गद्दाफी ने अपनी अय्याशी कभी दुनिया से छुपाने की कोशिश नहीं की, लीबिया का ये तानाशाह अपने हरम के अलावा अपने इर्द गिर्द भी खूबसूरत लड़कियों से घिरा रहता था, दिन के चौबिसों घंटे 30 से 40 खूबसूरत कुंआरी लड़कियां इस तानाशाह की सुरक्षा में तैनात रहती थी, ये वो लड़कियां होती थीं जिन्हें कर्नल गद्दाफी ने खुद अपनी सुरक्षा के लिए चुना था।

    लीबिया का ये तानाशाह अपनी अय्याशी के लिए तब सुर्खियों में आया, जब 2009 में इटली में दी एक पार्टी के लिए गद्दाफी ने 200 खूबसूरत लड़कियों को एक शाम के लिए हायर किया, गद्दाफी को इतालवी लड़कियां बेहद पसंद थी। गद्दाफी के इर्द-गिर्द ज़्यादातर खूबसूरत कमसिन इतालवी लड़कियों का ही घेरा रहता था, गद्दाफी इटली से खूबसूरत लड़कियों को गैरकानूनी तौर पर लीबिया मंगवाता था। कल्चरल प्रोग्राम के नाम पर गद्दाफी ने इटली में काफी अय्याशी कीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री सिल्वियो बुर्लोस्कोनी गद्दाफी के करीबी दोस्त थे और अय्याशी के मामले में तानाशाह गद्दाफी बुर्लोस्कोनी का गुरू था।

    इसी वजह से दोनों में काफी छनती थी, दोनो की दोस्ती काफी मशहूर थी। कूटनीतिक तौर पर भी गद्दाफी से इटली को फायदे ही फायदे था, तेल के मामले में गद्दाफी इटली की काफी मदद करता था और उसके बदले में इटली गद्दाफी के साथ काफी रियायत करता था। लीबिया के इस तानाशाह ने शादी तो दो ही औरतों से की थी लेकिन इसके हरम में हज़ारों की तादद में लड़कियां थी।

    गद्दाफ़ी के पापों का घड़ा बढ़ता जा रहा था

    देश इस क्रूर तानाशाह से मुक्ति मांग रहा था लेकिन लीबिया के लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें 42 सालों के इस तानाशाही साम्राज्य से सिर्फ 9 महीनों में आज़ादी मिल जाएगी। लेकिन कहते हैं ना काल जब आता है तो अपने साथ बड़े बड़े सूरमा को भी बहा कर ले जाता है औऱ लीबिया में यही हुआ।

    लीबिया में गद्दाफी के अंत और स्वतंत्रता की घोषणा उसी बेनग़ाज़ी से की गई, जहां से गद्दाफी के खिलाफ लीबिया क्रांति की शुरूआत हुई थी। बेनग़ाज़ी में एक सुर में गूंजी एक आवाज़ “सिर उपर उठाकर चलिए.. हम आज़ाद लीबियाई हैं”, लीबियाई जनता को पूरे आठ महीने लगे इस अय्याश तानाशाह को लीबिया औऱ ज़िंदगी से उखाड़ फेंकने में। फरवरी 2011 की ट्यूनिशिया क्रांति ने जिस तरह राष्ट्रपति बेन अली को उखाड़ फेंका उससे सबक लेते हुए बेनग़ाज़ी में लीबिया क्रांति की शुरूआत 15 फरवरी 2011 को हुई।

    सत्ता के नशे में चूर में गद्दाफी इस क्रांति को हल्के में लेने की गलती कर रहा था, इस बात से बेखबर की ट्यूनिशिया ने तानाशाही से त्रस्त अरब देशों की जनता को जीने का नया मक़सद दे दिया है। लीबिया में भी प्रदर्शन शुरू हो गए लेकिन इस क्रांति की ज्वाला को हवा देने का काम किया मानवाधिकार कार्यकर्ता फेतही तारबेल की गिरफ्तारी ने। तारबेल की गिरफ्तारी ने लोगों को भड़का दिया और यहीं से शुरू हो गई तानाशाह गद्दाफी की उल्टी गिनती।

    इस तरह चली गई कर्नल गद्दाफ़ी की गद्दी

    05 मार्च 2011 को प्रदर्शन शुरू होने के बाद लीबिया में सब कुछ बहुत तेजी से हुआ। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गद्दाफी और उनके परिवार पर प्रतिबंध लगा दिए, उधर मिसराता शहर पर गद्दाफी विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया और 5 मार्च को नेशनल ट्रांजीशनल काउंसिल ने खुद को लीबिया का एकमात्र प्रतिनिधि घोषित किया और इसी तारीख के बाद से गद्दाफी विद्रोही एनटीसी के लड़ाकों ने इस तानाशाह का तख्ता पलट करने की कसम खा ली।

    19 मार्च 2011 तक गद्दाफी को भी समझ में आने लगा था कि ये क्रांति उसका अंत कर सकती है, एक तरफ एनटीसी लड़ाके गद्दाफी समर्थकों को मार रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ नाटो सेनाओं ने लीबिया पर हवाई हमले शुरू कर दिए। नाटो ने 19 मार्च को लीबिया में पहला हवाई हमला किया, बेनगाजी में जारी लड़ाई में गद्दाफी की फौजों पर किए गए इन हमलों से एनटीसी के हथियारबंद लड़ाकों को काफी मदद मिली।

    27 जून 2011 को राजधानी त्रिपोली में हुए नाटो के हमलों में गद्दाफी का एक बेटा औऱ तीन पोते मारे गए, गद्दाफी पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे थे। 27 जून को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने गद्दाफी, उसके बेटे सैफ अल इस्लाम और खुफिया एजेंसियों के प्रमुख अब्दुल्लाह अल सेनुसी के खिलाफ वॉरंट जारी कर दिया। इन तीनों पर मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोप लगाए गए।

    21 अगस्त 2011 को गद्दाफी के विद्रोही राजधानी त्रिपोली में घुस आए और उसके महल को घेर लिया गया, गद्दाफी धमकी ही देता रहा कि उसके लोग विद्रोही चूहों से लड़ेंगे और उन्हें मार गिराएंगे लेकिन 23 अगस्त को विद्रोहियों ने गद्दाफी के महल पर कब्जा भी कर लिया। इसके बाद गद्दाफी अंडरग्राउंड हो गया, कुछ खास लोगों और घरवालों के अलावा किसी को नहीं पता था कि गद्दाफी कहां है, वहीं एनटीसी लड़ाके चुन चुनकर गद्दाफी समर्थकों को मार रहे थे।

    8 अगस्त 2011 तक लीबिया की जनता को आज़ादी की रौशनी नज़र आने लगी थी, उधर लीबिया के अंतरिम प्रधानमंत्री महमूद जिब्रिल भी पहली बार त्रिपोली पहुंच गए। आखिरकार 20 अक्टूबर 2011 सिर्ते पर एनटीसी का कब्जा कर लिया औऱ यहीं एनटीसी के लड़ाकों को एक पाइप में छिपा मिला 42 सालों तक लीबिया पर राज करने वाला तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी।

    इस तरह मारी गई गद्दाफ़ी को गोली

    जिसने 4 दशक तक अपने ही मुल्क और अपने ही मुल्क के लोगों को जूती की नोक पर रखा, वो अब खुद उन्हीं लोगों की जूती के नीचे ज़िंदगी की भीख मांग रहा था, पकड़े जाने पर गद्दाफी ज़िंदगी की भीख मांग रहा था और कह रहा था कि “मुझे गोली मत मारो”। जिस पुलिया में कई दिनों तक खुद को छुपाए था गद्दाफी उस पुलिया को जब विद्रोहियों ने घेर लिया तो छटपटाने लगा कर्नल, लीबिया का ये क्रूर तानाशाह भाग न सके इसलिए दोनों पैरों में पहले ही गोली मारी जा चुकी थी। लिहाजा वो खड़ा भी नहीं हो सकता था, गद्दाफी को यूं बेबस देख बरसों से त्रस्त जनता खुशी से पागल हुए जा रही थी।

    आलम ये था कि गद्दाफी को जान से मारने की होड़ मची हुई थी, विद्रोही सेना के जवान आपस में छीनाछपटी कर रहे थे। इसी छीना-छपटी में आखिरकार एक गोली चली और 41 साल 11 महीने 22 दिन तक लीबिया पर हुकूमत करने वाले लीबिया के सबसे बड़े तानाशाह का अंत हो गया। लेकिन सवाल ये था कि आठ महीने तक ये तानाशाह लीबिया में रहते हुए भी विद्रोहियों के हाथ कैसे नहीं लगा, आठ महीने तक आखिर कहां छुपा था कर्नल मुअम्मर गद्दाफी?

    कर्नल गद्दाफी ने लीबिया में छुपने के लिए ऐसी-ऐसी भूल-भुलैया बना रखी थी जहां तक पहुंचना आसान नहीं थी, लीबिया पर गद्दाफी बाग अल अजीजिया से हुकूमत चलाता था, लेकिन अपने इस महल के नीचे उसने सुरंगों का ऐसा जाल बिछा रखा था जहां से वो कहीं भी पहुंच सकता था। यही वो जगह थी जहा गद्दाफी के छुपे होने की खबर मिली थी, लेकिन विद्रोही जब तक पहुंचते गद्दाफी यहां से भाग चुका था।

    गद्दाफी के इस पाताललोक की सुरंगे सिर्फ एक जगह तक नहीं जाती बल्कि ये समुद्री तट और हवाई अड्डे तक से जुड़ी हुई थी। ये सुरंगे इतनी लंबी हैं कि इनमें एक छोटी कार तक चल सकती है, गद्दाफी का हर बंकर कांक्रीट की 10 फीट मोटी दीवार से बना है, ये ऐसे बंकर थे जिस पर एटम बम तक बेअसर थे। उस वक्त बंकरों से इतनी तादाद में राशन मिला कि जिस पर कई महीने तक गद्दाफी का पूरा परिवार और उसका स्टाफ गुज़ारा कर सकता था।

    बंकर में कई कमरे हथियारों से अटे पड़े थे, हथियारों के अलावा यहां गैस मास्क भी मिले, गद्दाफी को डर था कि अगर उसके दुश्मन बंकर के अंदर दाखिल नहीं हो पाए तो वो गैस से हमला कर सकते हैं। बंकर गद्दाफी ने अपने बुरे वक्त में छुपने के लिए बनवाए थे लेकिन आखिरी वक़्त में ये भी गद्दाफी के काम न आया और विद्रोहियों ने उसे ढूंढ़ लिया, और वो दर्दनाक मौत दी कि सदियों तक इसे ज़माना याद रखेगा।

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