कोटा में Suicide के पीछे ये वजह, जानकारों ने कहा, Give Him some Sun Shine, Give Him some rain

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कोटा में Suicide के पीछे ये वजह, जानकारों ने कहा, Give Him some Sun Shine, Give Him some rain
सांकेतिक तस्वीर
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Kota Suicide Case: राजस्थान का कोटा, हिन्दुस्तान के साथ साथ अब पूरी दुनिया में कोचिंग नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां पूरे हिन्दुस्तान के अलग अलग हिस्सों से लड़के इंजीनियरिंग और डॉक्टरी की पढ़ाई के सिलसिले में तैयारी करने के लिए आते हैं। लेकिन कोटा के बारे में एक सबसे खतरनाक सच ये भी है कि यहां सबसे ज़्यादा छात्र खुदकुशी भी कर लेते हैं। 

एक खुदकुशी हजार सवाल

इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की तैयारी के लिए दुनिया भर में जाने जाने वाले कोटा फैक्टरी ने गुरुवार को एक और मासूम की जिंदगी खत्म कर दी। उत्तर प्रदेश के रामपुर से अपने तीन दोस्तों के साथ नीट की तैयारी करने कोटा पहुंचे 18 साल के मनजोत सिंह की लाश उसके हॉस्टल के कमरे में संदिग्ध हालत में पड़ी हुई मिली। चेहरा प्लास्टिक के एक पैकेट से पूरी तरह पैक्ड था, जबकि दोनों हाथ पीठ के पीछे बंधे हुए थे।

कोटा में सुसाइड के ट्रेंड ने सभी को चिंता में डाला

चार साल में खुदकुशी के 52 मामले

इस मौत ने एक बार फिर सारे जमाने को बुरी तरह झकझोरकर रख दिया क्योंकि यहां अब इस कोचिंग नगरी में इस बात की चिंता सताने लगी है कि आखिर इस शहर को ये कौन सी बीमारी ने आकर घेर लिया है। कोटा पुलिस ने बीते चार सालों के दौरान खुदकुशी के 52 मामले दर्ज किए हैं। ये आंकड़ा जनवरी 2019 से लेकर दिसंबर 2022 तक का है। जबकि सबसे ज़्यादा खुदकुशी के मामले 2022 में सामने आए। इस साल 15 लड़कों ने इस कोचिंग सिटी में खुद की जिंदगी खत्म कर दी। 

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कोटा प्रशासन अलर्ट पर…

Kota Factory: अक्सर जब भी ऐसी खबर आती है कोटा का प्रशासन अलर्ट हो जाता है। लेकिन उसकी लाख कोशिशों के बावजूद सुसाइड की घटनाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं। आमतौर पर यही देखा जाता है कि जब भी पढ़ाई शुरू होने के बाद जब कोर्स करीब करीब आधा हो जाता है और अपनी अपनी तैयारी में लगे बच्चों को ये महसूस होने लगता है कि वो आने वाले इम्तिहान में पास नहीं हो सकेंगे तो वो ये सबसे खतरनाक कदम उठा लेते हैं। और कोटा में पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों में तेजी से बढ़ते जा रहे इस ट्रेंड ने लोगों को बुरी तरह से डरा दिया है। साथ ही साथ फिक्र में भी डाल दिया है। 

जानकारों को समझ में आने लगी वजह

बच्चों के मनोविज्ञान को समझने वाले जानकारों की बातों पर यकीन किया जाए तो कोटा में पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों पर इतना ज़्यादा दबाव होता है कि वो इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसके अलावा परिवार की उम्मीदों का प्रेशर और शहर का अकेलापन भी बच्चों के इस खतरनाक कदम उठाने को मजबूर कर देता है। जानकार यहां सुसाइड के बढ़ते ट्रेंड को लेकर परिवार के बीच की बातों को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि अगर बच्चों के सामने परिवार के लोगों की उम्मीदें हावी न हों तो इस ट्रेंड में कमी आ सकती है। क्योंकि तब बच्चे अपने मन मुताबिक तरीके से रह सकते हैं। 

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एक ही दिन में दो आत्महत्या

कोटा के विज्ञान नगर थाना इलाके में 10 से 12 घंटे के भीतर ही दो छात्रों ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली थी। एक घटना दोपहर को हुई तो दूसरी रात के वक़्त। खुलासा हुआ कि वैष्णव समाज के छात्रावास में रहकर नीट की तैयारी में लगे 17 साल के एक छात्र ने फांसी लगा ली थी। जिस छात्र ने आत्महत्या की थी उसका नाम मेहुल वैष्णव था जो उदयपुर का रहने वाला बताया जा रहा है। मेहुल के पिता सुनील वैष्णव के मुताबिक वो दो महीने पहले ही कोटा आया था और यहां नीट की तैयारी में लगा हुआ था। लेकिन खबर आई कि उसने फांसी लगा ली। 

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पिता की बातों में झलकी वजह

दूसरी घटना में 17 साल के आदित्य ने फांसी लगा ली। उत्तर प्रदेश के जौनपुर का रहने वाला आदित्य भी नीट की तैयारी में लगा हुआ था और दो महीने पहले ही कोटा पहुँचा था। वो विज्ञान नगर के एक पीजी में रह रहा था।  अब जरा आदित्य के पिता की बातों पर गौर कीजिए उन्होने कहा था कि उनका बेटा कुछ बन जाएगा इसलिए उसे कोटा भेजा था। पिता की शिकायत यही है कि अगर उनका बेटा तनाव महसूस कर रहा था तो कम से कम एक बार बताता तो। पिता के मुताबिक उसका बड़ा भाई इंजीनियर है और संयोग से उसने भी कोटा में रह कर ही पढ़ाई की थी। 

बच्चों को वक़्त देना जरूरी है

जानकारों का कहना हैकि हरेक बच्चे की सोचने और समझने के साथ साथ माहौल में खुद को ढालने की स्थिति एक दूसरे से पूरी तरह से अलग होती है। लिहाजा हमें अगर बच्चों की मानसिकता को पहले से समझने में गड़बड़ी होगी तो हम कभी भी ऐसी घटनाओं को नहीं रोक सकेंगे। माता पिता अपने अपने बच्चों की स्थिति को सबसे अच्छे ढंग से समझ सकते हैं, मगर वो अपने सपनों और उम्मीदों का बोझ बच्चों के कंधों पर डाल देते हैं यही वजह है कि बच्चे उसे सह नहीं पाते। जबकि ऐसा नहीं है कि बच्चे समझते नहीं है, वो सब समझते हैं बल्कि शायद माता पिता से भी ज़्यादा उनको अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होता है, लेकिन वो तनाव के वक्त कमजोर पड़ जाते हैं...यहां बच्चों को बताने और समझाने के साथ साथ उन पर हावी हो रही उम्मीदों का बोझ कम करने की जरूरत है। 

बच्चों पर हावी हो रहे प्रेशर

मनोचिकित्सों की बातों पर गौर किया जाए तो कोटा में बच्चों पर पढ़ाई के साथ साथ कई तरह का प्रेशर होता है। और यही प्रेशर इन बच्चों को आत्मग्लानि महसूस करवा देता है। इसके पीछे कई कारण भी होते हैं जो बच्चे पर प्रेशर बढ़ाने का काम करते हैं। बच्चों के परिवार की आर्थिक हालत, उनकी सामाजिक स्थिति और इसके साथ साथ उनकी मानसिक दशा ये सब कुछ बच्चों पर एक साथ काम करती है। कामयाबी के लिए बच्चों को मेटिवेशन देने की  जरूरत है ना कि उन्हें उकसाने की। बच्चे खुले मन और खुले विचारों के साथ पढ़ाई करेंगे तो कामयाब जरूर होंगे, और ये बात अगर मां बाप समझ जाएं तो बच्चे इस सुसाइड की महामारी के चंगुल से बच सकते हैं। 

 

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