Spy Eli Cohen : उस जासूस की कहानी जिसे दुश्मन देश में ही मिला था रक्षा मंत्री का ऑफर

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Spy Eli Cohen : उस जासूस की कहानी जिसे दुश्मन देश में ही मिला था रक्षा मंत्री का ऑफर
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Israeli Spy Eli Cohen Story in Hindi : एक जासूस किस हद तक दुश्मन देश का भरोसा जीत सकता है. ये समझने के लिए काफी है कि उसे दुश्मन देश खुद ही रक्षा मंत्री बनाने का ऑफर दे दे. ये जासूसी की कहानी उस शख्स की जिसे सरेआम चौराहे पर फांसी दी गई.

जिस देश ने जासूसी के लिए भेजा था वो शव की मांग करता रहा. लेकिन उसकी लाश तक नहीं लौटाई गई. लेकिन दूसरे देश ने भी हार नहीं मानी. फिर वो उस जासूस की मौत के करीब 53 साल बाद उसकी लाश तो नहीं ला सका, लेकिन निशानी के तौर पर जासूस की बेहद ही खास घड़ी जरूर ले आया.

कहा जाता है कि जिस दिन उसे दुश्मन देश ने रंगेहाथ पकड़ा था उस दिन भी उनके हाथ में वो घड़ी थी. ये कहानी है इजरायल के सबसे खतरनाक और तेज-तर्रार जासूस एली कोहेन की. ये दुनिया के ऐसे चर्चित जासूस रहे जिन पर कई फिल्में बनीं. जानते हैं आज क्राइम की कहानी में इस शख्स के बारे में...

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3 भाषाओं में अच्छी पकड़ और इस खासियत से बने जासूस

Spy Eli Cohen Story : नाम एली कोहेन. दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मोसाद का जासूस. इस शख्स ने इजरायल के लिए दुश्मन देश सीरिया में जासूसी की. लेकिन इनका जन्म 26 दिसंबर साल 1924 में मिश्र के एलेग्जेंड्रिया में एक सीरियाई-यहूदी परिवार में हुआ था. वैसे एली के पिता मूलरूप से सीरियाई ही थे. लेकिन साल 1914 में सीरिया से मिश्र आ गए थे.

इसके बाद जब इजरायल बना तब मिस्र से कई यहूदी परिवार यहां से निकले थे. फिर 1949 में एली का परिवार इजरायल में बस गया था. कोहेन की शुरुआती पढ़ाई मिश्र में हुई थी. इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई के बाद एली इजरायली खुफिया विभाग में दिलचस्पी बढ़ी.

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चूंकि एली कोहेन की अरबी, अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा पर जबर्दस्त पकड़ थी. इसलिए साल 1955 में जासूसी का एक कोर्स किया. इसके बाद साल 1960 में इजरायली ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती हुए. शुरू में उन्होंने ट्रांसलेटर और एकाउंटेंट के रूप में काम किया. फिर कई भाषाओं के साथ आसानी से किसी का भरोसा जीतने का गुण देखकर इन्हें दूसरे देश में जासूसी कराने का निर्णय लिया गया.

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अर्जेंटिना के रास्ते सीरिया में दाखिल हुए थे मोसाद जासूस एली कोहेन

Jasus Eli Cohen ki Kahani Hindi : कहा जाता है कि जासूस की जिम्मेदारी देने से पहले मोसाद ने बाकायदा इन्हें कड़ी ट्रेनिंग दी. इसके बाद साल 1961 में कोहेन को अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स भेजा गया. यहांं उन्होंंने बतौर सीरियाई मूल के कारोबारी के तौर पर एक बिजनेस शुरू किया था.

इसके बाद वो धीरे-धीरे वहां रहने वाले सीरियाई लोगों के संपर्क में आए और फिर सीरिया के दूतावास तक पहुंच बना ली. अब चूंकि इनका नेचर जल्दी घुलने-मिलने का रहा इसलिए जल्द ही सीरियाई दूतावास के अधिकारियों से दोस्ती कर ली. फिर भरोसा जीतने में सफल भी रहे.

उस समय सीरियाई मिलिट्री के रौबदार अधिकारी अमीन अल-हफीज के भी संपर्क में आ चुके थे. और इनका भी वैसे ही भरोसा जीत लिया जैसे पहले के अधिकारियों का जीता था. इस तरह वो सीरिया की राजधानी दमिश्क में पहुंच गए.

वो साल 1962 था जब एली कोहेन दमिश्क में आकर वहां की सत्ता में अपनी पहुंच बनाने लगे. अब सीरिया की खुफिया जानकारी अपने ट्रांसमीटर के जरिए इजरायल को भेजने लगे थे.

सीरियाई सेनाओं की इस तरकीब से भेजते थे लोकेशन

Eli Cohen Story in Hindi : एली कोहेन की पकड़ ऐसी हो गई थी कि वो इजरायल से युद्ध में उनकी बातों पर तुरंत भरोसा कर लेते थे. जिसकी कोहेन अपनी खुफिया एजेंसी को जरूरी जानकारी भेजते थे. एली से जुड़ा सबसे जबर्दस्त एक किस्सा है. वो ये कि एक बार सीरियाई सैनिकों की लोकेशन के बारे में इजरायल को जानकारी चाहिए थी.

पर नहींमिल पा रही थी. जहां सीरिया के सैनिक थे वहां काफी गर्मी थी. ऐसे में एली कोहेन ने वहां यूकेलिप्टस के पेड़ लगवाने की बात कही. सीरियाई सैनिक मान गए और वहां लंबे-लंबे यूकेलिप्टस के पेड़ लगा दिए गए. अब इन पेड़ों के जरिए इजरायल को सीरियाई सैनिकों की जानकारी मिल गई थी.

इसी बीच, साल 1963 में सीरिया में सत्ता परिवर्तन हुआ. यहां अब बाथ पार्टी को सत्ता मिली और इस नई सियासत में ऐसे कई लोग थे जो अर्जेंटीना के ज़माने से कोहेन के दोस्त थे. बस फिर क्या था कोहेन की राजनीतिक पहुंच और बढ़ गई. इस सत्ता के तख्तापलट को अमीन अल-हफ़ीज़ की अगुवाई में किया गया था.

लिहाजा, अमीन ही राष्ट्रपति बने. अब अमीन को कोहेन पर गजब का भरोसा था. और ये भरोसा ऐसा था कि एक बार तो उन्होंने एली कोहेन को डिप्टी रक्षा मंत्री बनाने का ऑफर भी दे दिया था. लेकिन फिर ये पद किसी वजह से नहीं मिल पाई थी. लेकिन भरोसा वैसे ही था. कहा जाता है कि एक बार जब इजरायल और सीरिया में लड़ाई हुई थी तब उन्हीं यूकेलिप्टस पेड़ों की वजह से सीरियाई सेना को हार का सामना करना पड़ेगा.

ऐसे पकड़े गए थे जासूस एली कोहेन

Eli Cohen Story : कहा जाता है कि ज्यादा आत्मविश्वास भी कई बार भारी पड़ सकता है. ऐसा ही कुछ हुआ एली कोहेन के साथ. दरअसल, सीरियाई सेना इतनी ज्यादा कोहेन पर भरोसा करने लगी थी कि वो इजरायल के निर्देशों को भी नजरअंदाज करने लगे थे.

इजरायली खुफिया एजेंसी ने कहा था कि वो सीरिया में रहते हुए रेडियो ट्रांसमिशन दिन में सिर्फ एक बार करें. लेकिन कोहेन एक दिन में ही कई बार रेडियो ट्रांसमिशन करते थे.

कहा जाता है कि सीरिया की जबर्दस्त तैयारी के बाद भी जब इजरायली सेना को भनक लग जाती थी तब शक होने लगा था. इसलिए सीरियाई सेना ने सीरिया के राष्ट्रपति के रक्षा सलाहकार अहमद सुइदानी ने सुराग तलाशना शुरू किया.

उन्होंने सोवियत संघ रूस से रेडियो ट्रांसमिटर को ट्रैक करने वाला डिवाइस मंगाया. फिर उसी डिवाइस की मदद से एली कोहेन को रंगेहाथ पकड़ लिया गया. कहा जाता है कि साल 1965 में अहमद सुइदानी ने एली कोहेन उर्फ कामेल अमीन थाबेट बने इजरायली जासूस को उनके घर से ही दबोच लिया था.

53 साल बाद निशानी के तौर पर मिली थी घड़ी

इसके बाद एली कोहेन से कई दिनों तक पूछताछ हुई थी. फिर जासूसी करने का सैन्य मुकदमा चलाया गया औऱ फिर उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई थी. साल 1966 में राजधानी दमिश्क में एक चौराहे पर सरेआम एली कोहेन को फांसी दे दी गई थी. हालांकि, फांसी से पहले इजरायल ने सजा माफी के लिए काफी कोशिश की थी.

लेकिन कोई फायदा नहीं था. यहां तक की सीरिया ने इजरायल को एली का शव भी नहीं दिया था. इसलिए मौत के करीब 53 साल गुज़रने के बाद साल 2018 में किसी तरह इजरायल को कोहेन की एक घड़ी पाने में जरूर सफलता मिली थी. ये घड़ी मिलने के बाद उस समय के इजरायली प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में कोहेन की पत्नी नादिया को वो घड़ी दी थी. कोहेन की मौत के बाद एकमात्र निशानी के रूप में आज भी वो घड़ी है.

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