28 साल बाद पुलिस कैसे पहुंची क़ातिल तक? 'क़ातिल बाप' को ढूंढ निकालने में ऐसे काम आया बेटे का मोबाइल नंबर!
Crime Story : सूरत में 28 साल बाद एक मर्डर मिस्ट्री का खुलासा.
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Crime Story : ये बात तकरीबन 28 साल पुरानी है। उन दिनों की, जब गुजरात के भीषण दंगों के बाद गुजरात धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा था। इन दंगों में सूरत का कपड़ा उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ था और गुजरात की सरकार, तमाम समाजसेवी, उद्यमी, नेता सारे लोग फिर से सूरत की रौनक लौटाने में लगे थे। इसी कोशिश में ओडिशा के प्रवासी मजदूरों को फिर से सूरत लाने की कोशिश जारी थी।
साल 1993 में ओडिशा से सूरत आए हजारों मजदूरों के साथ ओडिशा के गंजाम जिले के गांव बालकोंडा का रहनेवाला कृष्णा प्रधान भी सूरत पहुंचा। यहां उसे फौरन कपड़ा फैक्ट्री में काम मिल गया। लेकिन जल्द ही उसे ये अहसास हुआ कि काम मजेदार नहीं है और उसने काम छोड़ दिया। इसी बीच उसकी मुलाकात गंजाम के ही रहनेवाले एक कारपेंटर बीना शेट्टी के साथ हुई और दोनों अच्छे दोस्त बन गए। साथ रहने लगे।
3 मार्च की रात एक दिन काम से घर लौटते वक्त सूरत में बीना शेट्टी एक पान की दुकान पर सिगरेट खरीदने पहुंचा। इत्तेफाक से दुकानदार का पाला हुआ कुत्ता तब बेतहाशा भौंक रहा था। जिससे खीझ कर बीना शेट्टी ने कुत्ते को भला बुरा कहा और इसका वहीं रहनेवाले एक दूसरे ओडिया नौजवान शिवराम नायक ने विरोध किया। तब तो बात आई गई हो गई, लेकिन इसके बाद बीना और कृष्णा ने शिवराम से बदला लेने का फैसला किया। अगले ही दिन दोनों ने तेजधार हथियार के साथ शिवराम के घर पर धावा बोला और उसकी हत्या कर दी।
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इसके बाद रातों-रात दोनों ने सूरत छोड़ दिया। यहां तक कि कत्ल के बाद उनके पास टिकट खरीदने तक के पैसे नहीं थे। तब कृष्णा प्रधान ने अपनी साइकिल बेची और टिकट लेकर सूरत से ओडिशा अपने घर पहुंच गया। इधर, पुलिस क़त्ल का मुकदमा दर्ज कर दोनों की तलाश करने लगी। प्रधान ने इस घटना के बारे में अपने पिता और भाई को बताया और फिर घर से गायब हो गया। इसके बाद पुलिस ने गंजाम के उनके गांव में भी दबिश दी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और केस ठंडे बस्ते में चला गया।
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2022 में सूरत पुलिस कमिश्नर ने की ये बड़ी पहल
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पूरे 27 साल बाद यानी साल 2022 में सूरत के पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने पुराने मामलों को सुलझाने का फैसला किया और 15 ऐसे केस चिह्नित किए। इनमें एक एक केस शिवराम नायक के मर्डर का भी था। सबूत के नाम पर क्राइम ब्रांच के पास सिर्फ़ शिवराम की लाश की एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर थी। मुश्किल था, लेकिन हेड कांस्टेबल शब्बीर शेख और फरीद खान ने मामले को सुलझाने का फैसला किया। दोनों एक बार फिर उसी जगह पर गए, जहां शिवराम के क़त्ल की बुनियाद पड़ी थी। लेकिन 27 सालों में सबकुछ बदल चुका था। किसी को इस वारदात के बारे में खबर ही नहीं थी।
अब पुलिस की टीम ओडिशा जाकर एक बार फिर से कृष्णा प्रधान के बारे में पता लगाने लगी। पता चला कि प्रधान का परिवार गांव छोड़कर कहीं और शिफ्ट हो चुका है। लेकिन इसी बीच ये पता चला कि प्रधान का बेटा ब्रह्मपुर में एक ऑटोमोबाइल शो रूम में काम करता है। पुलिस ने बड़ी खामोशी से बेटे का नंबर जुगाड़ दिया और बगैर उसकी जानकारी के ही उसकी नंबर की सीडीआर निकलवाई। देखा कि उसकी केरला के अदूर इलाके में एक शख्स से तकरीबन रोज बात होती है।
तफ्तीश में पता चला कि ये नंबर कृष्णा प्रधान का ही है, जो 2007 से अदूर में एक कारपेंटर के तौर पर एक टिंबर मार्ट में काम करता है। अब पुलिस ने अदूर में दबिश दी और पूरे 28 साल बाद प्रधान को धर दबोचा। प्रधान को अब एक बेटा और 16 साल की एक बेटी भी है। गिरफ्तारी के वक्त प्रधान ने कहा कि काश मैंने तभी सरेंडर कर दिया होता, तो शायद अब तक मैं बाहर आ चुका होता। 52 साल के प्रधान का कहना है कि इस उम्र में जब उसके परिवार को उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, वो जेल में बंद होने जा रहा है। उसका साथी बीना शेट्टी पहले ही पकड़ा जा चुका है।
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