ईशनिंदा के लिए केरल के प्रोफेसर पर हुआ था जानलेवा हमला, पहली बार सामने आया था PFI का नाम

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ईशनिंदा के लिए केरल के प्रोफेसर पर हुआ था जानलेवा हमला, पहली बार सामने आया था PFI का नाम
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Blasphemy: कुछ रोज़ पहले ही अमेरिका के न्यूयॉर्क (New york) में जाने माने लेखक (Writer) सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) पर क़ातिलाना हमला हुआ था। और उस हमले के पीछे बताया जा रहा था कि हमलावर की धार्मिक भावनाएं आहत हुई थीं। लेकिन ये घटना तो पिछले हफ्ते अंजाम दी गई थी। मगर भारत के केरल (Kerala) में इसी तरह की एक घटना 12 साल पहले अंजाम दी गई थी जब एर्णाकुलम ज़िले के मुवत्तुपुझा इलाक़े में एक प्रोफेसर (professor) पर कातिलाना हमला किया गया।

ये क़िस्सा साल 2010 का है जब दरअसल एर्णाकुलम में रहने वाले प्रोफेसर टी जे जोसेफ जब अपने परिवार के साथ कार से घर लौट रहे थे तभी उन पर कुछ लोगों ने उनकी गाड़ी रुकवाई और उन पर चाकू और तलवार से हमला कर दिया।

हमलावर लोगों को देखकर जब उनकी मां और पत्नी चिल्लाने लगे तो बदमाशों ने उन्हें पकड़ लिया और फिर ताबड़तोड़ हमला करने लगे। इसी बीच उन्हीं बदमाशों में से किसी ने कहा कि ये उसका बायां हाथ है...तब उन लोगों ने दाहिने हाथ पर तलवार और चाकू से वार किए जिससे वो बुरी तरह से लहुलुहान हो गए थे।

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ये पहला मौका था जब ईशनिंदा के लिए किसी हमले के पीछे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI का नाम सामने आया था।

Blasphemy: घटना उनके घर के बेहद नज़दीक हुई लेकिन उन्हें पास के अस्पताल में ले जाया गया तो डॉक्टरों ने उन्हें कोच्चि के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। वहां करीब 16 घंटे की सर्जरी के बाद उनके हाथ के जख्मों पर मरहम लगाया जा सका।

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सवाल उठता है कि आखिर प्रोफेसर जोसेफ पर हमला क्यों और किसने किया। बताया जा रहा है कि प्रोफेसर जोसेफ जिस कॉलेज में बी कॉम को पढ़ाते थे वहीं उन्होंने बी कॉम सेकेंड ईयर की परीक्षा के लिए एक पेपर तैयार किया था। उसी पेपर में ‘मोहम्मद’ शब्द लिखा हुआ था। पेपर का 11 वां सवाल उनके लिए जिंदगी का सवाल बन गया क्योंकि उस सवाल में पैगंबर से संबंधित सवाल था, जिसे मुस्लिम धर्म के लोगों ने अपनी आस्था से जोड़ लिया। और उसके चार महीनों के बाद प्रोफेसर पर आठ लोगों ने कातिलाना हमला किया था।

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इन दिनों प्रोफेसर आयरलैंड में अपनी बेटी के साथरहकर अपना इलाज करवा रहे हैं। प्रोफेसर किसी भी सूरत में सामने आकर कुछ भी नहीं बताना चाहते क्योंकि उन्हें सामने आने पर डर लगता है।

आरोप है कि प्रोफेसर पर हुए हमले के पीछे प्रतिबंधित संगठन PFI का हाथ है। घटना के बाद प्रोफेसर ने जो बयान पुलिस को दिया उसके मुताबिक हमलावरों में से एक ने कहा था कि तुमने इसी हाथ से पैगंबर का अपमान किया था लिहाजा अब इस हाथ को कभी भी तुम इस्तेमाल ही नहीं कर सकोगे।

प्रोफेसर जोसेफ के मुताबिक सारा वाकया मार्च 2010 में शुरू हुआ जब वो न्यू मैन कॉलेज में पढ़ाते थे। बीकॉम सेकेंड ईयर के एग्जाम के लिए प्रश्न पत्र सेट करने की उनकी ज़िम्मेदारी थी। उन्होंने पंक्चुएशन यानी कॉमा सेमीकॉलन, एपॉस्ट्रॉफी के टेस्ट के लिए एक प्रश्न तैयार किया। वो उस प्रश्न पत्र का 11वां सवाल था। प्रोफेसर जोसेफ के मुताबिक असल में उन्होंने फिल्म डायरेक्टर पीटी कुंजू मोहम्मद की किताब थिराकथायुदे, रीति शास्त्रम को केरल इंस्टीट्यूट ऑफ लेंग्वेज के लिए निर्धारित किया था। उसी किताब से एक पैराग्राफ प्रश्न पत्र के लिए लिया गया था।

Blasphemy: प्रोफेसर जोसेफ के मुताबिक कट्टर पंथियों को उनको ये बात रास नहीं आई। तभी परीक्षा के एक हफ्ते के बाद ही विरोध प्रदर्शन होने लगे थे और वो पेपर संवेदनशील इलाक़ों में बांटे गए थे।

प्रोफेसर जोसेफ के मुताबिक एक पेपर सामने आने के एक हफ्ते के भीतर मामला इस कदर आगे बढ़ा जिसने डर पैदा कर दिया। डर इस बात का लग रहा था कि उस पेपर की वजह से इस्लामिक संगठन इसमें शामिल हो गए थे। इसी बीच कॉलेज ने भी सपोर्ट नहीं किया। इसी सिलसिले में जब कॉलेज ने लिखित जवाब मांगा गया। उन्होंने जवाब तो दिया लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं हुआ।

उसके बाद अप्रैल की शुरुआत में एक हफ्ते जेल में भी रहे। केरल पुलिस ने उनके खिलाफ IPC की धारा 295 लगाई। असल में ये धारा लोगों की धार्मिक आस्था को आहत करने के आरोप लगाती है। लिहाजा पुलिस ने उन्हें ईश निंदा के इल्ज़ाम गिरफ्तार किया हालांकि बाद में उन्हें बेल मिल गई।

प्रोफेसर जोसेफ के मुताबिक प्रश्न पत्र तैयार करने के बाद करीब डेढ़ महीने के दौरान तीन हमले हुए। हालांकि पहले तीन हमलों में तो वो बच गए लेकिन चौथा हमला बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से किया गया। जिसने उनकी ज़िंदगी को बेपटरी कर दिया।

ठीक उसी तर्ज पर जैसा सलमान रुश्दी पर हमला हुआ। 1988 में सलमान रुशदी की किताब आई थी सैटेनिक वर्सेज, जिसका हिन्दी में मतलब होता है शैतानी आयतें। इस किताब को लेकर इस्लामिक कट्टरपंथियों की धार्मिक आस्थाएं आहत हुईं और सलमान रूश्दी के खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया। यहां तक कि उस किताब पर दुनिया के कई देशों में पाबंदी लगा दी गई। लेकिन 34 साल बाद उन पर जान लेवा हमला हुआ।

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