आदिमानवों ने तब बना लिया था 'फेसबुक' जब मार्क ज़ुकरबर्ग के परदादा भी पैदा नहीं हुए थे!

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आदिमानवों ने तब बना लिया था 'फेसबुक' जब मार्क ज़ुकरबर्ग के परदादा भी पैदा नहीं हुए थे!
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आदिमानव भी 'फेसबुक' पर पोस्ट करते थे, उसपर उनके दोस्त अपने कमेंट भी देते थे। जी हां अगर आपको लगता है कि आप नए ज़माने के हैं और सिर्फ आपके ही दौर में फेसबुक का अविष्कार हुआ है तो आप गलत हैं। आप फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर सर्फिंग करते हैं, दोस्त बनाते हैं। अपने ख्यालात लोगों से शेयर करते हैं और दोस्तों की फोटोज़ पर लाइक, डिस्लाइक और कमेंट देते और आपको लगता है कि इस दौर से पहले ये कभी नहीं हुआ है तो ये गलफहमी मन से निकाल दीजिए। क्योंकि आज हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगें।

फेसबुक सिर्फ नए जमाने में दोस्ती का नया तरीका नहीं है, 3000 साल से भी पहले इंसान फेसबुक के तरीको को इस्तेमाल करते थे। ये इतनी पुरानी बात है जब फेसबुक को शुरू करने वाले मार्क जुकरबर्ग तो छोड़िए उनके दादा भी पैदा नहीं हुए थे, तब भी तीन हज़ार साल पुराने इंसान इमेजेज़ को लाइक डिस्लाइक करते थे उन पर अपने कमेंट भी देते थे। ये हैरान करने वाला दावा एक पुरात्तव वैज्ञानिक ने किया है, इस वैज्ञानिक का दावा है कि 3 हज़ार साल से भी पहले इंसान अपने ख्यालों को जाहिर करते थे और उनके दोस्त उन ख्यालातों को पसंद, नापसंद करते थे। अपने इस दावे को साबित करने के लिए ये वैज्ञानिक लेकर आया है पत्थरों पर बनी इन तस्वीरों को।

ध्यान से देखिए इस तस्वीरों को ये पुराने ज़माने की फेसबुक है, इसमें भी लाइक और डिसलाइक के निशान हैं। इसमें भी तीन हज़ार साल पुराने इंसानों ने दे रखे हैं अपने कमेंट। जब से ये दावा और जब से ये तस्वीरें सामने आई हैं पुरानी दुनिया मे छिड़ गई है एक बहस। ये सनसनीखेज़ दावा करके कैंब्रिज़ यूनिवर्सिटी के पुरातत्व वैज्ञानिक मार्क सैपवेल ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। इस दावे से पहले इस मार्क ने दो देशों में कई सालों तक रिसर्च की। लंबी रिसर्च के बाद के मार्क इस नतीजे पर पहुंचे कि 3000 साल से भी ज़्यादा पहले इंसाऩ फेसबुक का ऐतिहासिक संस्करण इस्तेमाल करता था।

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कैंब्रिज़ यूनिवर्सिटी के आर्किलॉजिस्ट मार्क सैपवेल पिछले कई सालों से एक अनोखी रिसर्च में लगे हुए थे। मार्क की ये अनोखी खोज थी फेसबुक के ऐतिहासिक संस्करण की, ये एक ऐसी रिसर्च थी जिस पर पहले तो खुद मार्क को भी यकीन नहीं था। लेकिन जैसे जैसे मार्क की रिसर्च बढ़ी, वैसे वैसे फेसबुक के इस ऐतिहासिक संस्करण की परते खुल गईं।

बरसों की रिसर्च के बाद मार्क को जो सबूत मिले वो बेहद हैरान करने वाले थे, ध्यान से देखिए रूस और स्वीडन में मिली इन चट्टानों पर बनी तस्वीरों को। मार्क का दावा है कि ये तस्वीरें पुराने ज़माने का फेसबुक है। मार्क के मुताबिक 3000 साल से भी पहले इंसान अपने दिल की बात को दूसरों तक पहुंचाने के लिए फेसबुक जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करते थे, और ये तस्वीरें इस बात की गवाही दे रही हैं। इन तस्वीरों को बनाने वाले इंसान के दोस्त या अजनबी लोग अपनी राय जाहिर करते थे, उस समय लाइक और डिस्लाइक करने के लिए इंसान एक खास तरह का निशान बना देते थे। जिससे तस्वीर बनाने वाले इंसान तक संदेश या यूं कहें कि मैसेज पहुंच जाता था।

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मार्क के मुताबिक तीन हज़ार साल पुराने लोग एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए फेसबुक सरीखे सोशल नेटवर्किंग का सहारा लेते थे और उनके इस तरीके को मार्क ने फेसबुक का प्राचीन और ऐतिहासिक संस्करण कहा है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की इस टीम ने रूस और स्वीडन का दौरा किया, और यहां इस दौरे के दौरान उन्हें दो बेहद बड़ी ग्रेनाइट चट्टानें नज़र आईं। जिन पर हजारों चित्रों उकेरे गए थे, इन चित्रों की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों की टीम इस नतीजे पर पहुंची की 3 हज़ार साल पहले भी इंसान लोगों से जुड़े रहने के लिए फेसबुक जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करता था।

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इन बड़ी बड़ी चट्टानों में खास बात है, ये चट्टाने और उनपर बने चित्र उस वक़्त की कहानी बयान करते हैं। मुझे लगता है कि लोग वहां इसलिए गए थे क्योंकि वे जानते थे कि उनसे पहले भी वहां बहुत से लोग आ चुके हैं। आज की तरह तब भी लोग एक दूसरे से जुड़े रहने का एहसास चाहते थे, एक लिखित भाषा का आविष्कार होने से पहले शुरुआती समाज में ये हजारों चित्र उनके लिए पहचान का इजहार करने का ज़रिया था।

- मार्क सैपवेल, पुरातत्व वैज्ञानिक

मार्क औऱ उनकी टीम की रिसर्च के बाद ये दावा किया गया कि रूस और स्वीडन के ये पहाड़ एक तरह से सोशल नेटवर्क के प्राचीन संस्करण हैं और उन पर बनाए गए चित्र उस वक़्त के लोगों के ख्यालातों को बता रहे हैं। जिनमें यूजर्स अपनी बात एक दूसरे तक पहुंचाते थे और दूसरों चित्रों पर अलग अलग निशान लगा कर कभी उसकी तारीफ तो कभी बुराई करते थे, बिल्कुल वैसे ही जैसे फेसबुक में हम ‘लाइक’ औऱ डिस्लाइक करते हैं। प्राचीन काल के इस फेसबुक में कई तरह की इमेजेज़ सामने आई हैं, ये सारी तस्वीरें कुछ कहती हैं। इन तस्वीरों में 3 हज़ार साल पहले के इंसानों का संदेश है औऱ उस वक़्त के हालात बयान करने की कोशिश की गई।

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में लोग कुछ खास जगहों पर अपने संदेश लिखते थे, इन संदेशों के लिए चित्रों का इस्तेमाल किया जाता था। और जिसे ऐसी जगह बनाया जाता था जिसे ज़्यादा से ज़्यादा लोग देख सकें, ये ऐसी कुछ खास जगह होती थीं। जहां अक्सर आया जाया करते थे। हजारों साल बाद भी अपनी बात दूसरों तक पहंचाने के लिए इस तरह चित्रों का इस्तेमाल किया गया है, चूंकि लोगों के पास अपनी बात रखने के लिए कोई पब्लिक प्लेटफार्म नहीं हुआ करते थे इसलिए वो इन पत्थरों का सहारा लिया करते थे। इसके अलावा आज की तरह पहले भी लोगों में देश और राज्य की सीमा पार करके अपने विचार हर लोगों तक पहुंचाने की ख्वाहिश होती थी इसलिए वो लोग भी ऐसे रास्तों का चुनाव करते थे जिससे उन्हें एक दूसरे से जुड़ने का एहसास हो सके।

फेसबुक के प्राचीन संस्करण की रिसर्च के दौरान सैपवेल ने रूस के जालावर्गा और उत्तरी स्वीडन का नामफोर्सेन की पड़ताल की। इन दोनों प्राचीन जगहों पर पत्थरों पर सैपवेल को जानवरों, इंसानों, नावों और शिकारी दलों के करीब 2500 चित्र मिले, गौर से देखने पर पता चल रहा है इसमें गाय, गधा औऱ जीराफ जैसे जानवर बनाए गए हैं। साथ नाव की भी तस्वीर बनाने की कोशिश की गई है जिसमें बैठे जानवरों और इंसानों का चित्र बनाया गया है।

कुछ तस्वीरों में इंसानों के अलावा मगरमछ या छिपकली जैसी कोई चीज़ बनाने की कोशिश की गई है। कुछ जगहों पर केकड़े जैसी किसी चीज़ की तस्वीर उभारी गई है, कहीं एक बड़े इंसान को दिखाया गया है, जो हाथों से फसल पकड़े हुए है। सैपवेल और उनकी टीम ने जब इन चित्रों की तुलना काल्पनिक घटनाओं से करके इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि किस वजह से ऐसी तस्वीरें बनाई गई होंगी और आखिरकार ये वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि ये पुराने जमाने का फेसबुक जैसा कोई जरिया है।

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