‘कवच’ होता तो ना होता ट्रेन हादसा! क्या है रेलवे कवच? जान लीजिए
Odisha Train Accident Exclusive: ओडिशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना में कम से कम 288 यात्रियों की मौत और लगभग 1,000 यात्रियों के घायल होने के बाद रेलवे की स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली कवच चर्चा में आ गई है।
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Odisha Train Accident Exclusive: यूं तो हर हादसे के बाद लकीरें पीटी जाती हैं। ट्रेन हादसे में 288 लोगों की जान चली गई। अब बात हो रही है कवच की। जी हां ये कवच होता तो शायद ये ट्रेन हादसा रोका जा सकता था। आइए जानते हैं कि क्या होता है रेल कवच? भारतीय रेलवे ने ट्रेन संचालन की सुरक्षा बढ़ाने के लिए अपनी खुद की राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली (एटीपी) प्रणाली "कवच" विकसित की है। इस तकनीक को "आत्म निर्भर भारत" के तहत स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। ओवर स्पीडिंग या टक्कर जैसी स्थिति में कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है।
जिस मार्ग पर दुर्घटना हुई वहां “कवच” प्रणाली उपलब्ध नहीं थी
ओडिशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना में कम से कम 288 यात्रियों की मौत और लगभग 1,000 यात्रियों के घायल होने के बाद रेलवे की स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली कवच चर्चा में आ गई है। रेलवे ने कहा है कि शुक्रवार शाम जिस मार्ग पर दुर्घटना हुई वहां “कवच” प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। जब लोको पायलट फाटक पार करता है तो यह प्रणाली उसे सतर्क करती है। आम तौर पर देखा गया है कि सिगनल पार करते समय ट्रेनों की भिड़ंत होती है। कवच प्रणााली उसी लाइन पर दूसरी ट्रेन के आने की स्थिति में निर्धारित दूरी के भीतर ही स्वचालित रूप से ट्रेन को रोक सकती है।
कवच क्या है?
भारतीय रेलवे ने चलती ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए 'कवच' नामक अपनी स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली विकसित की है। कवच को तीन भारतीय विक्रेताओं के सहयोग से अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है। कवच न केवल लोको पायलट को खतरे और तेज रफ्तार होने पर सिगनल से गुजरने से बचने में मदद करता है बल्कि घने कोहरे जैसे खराब मौसम के दौरान ट्रेन चलाने में भी मदद करता है। इस प्रकार, कवच ट्रेन संचालन की सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाता है।
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कवच की मुख्य विशेषताएं
अगर लोको पायलट ब्रेक लगाने में विफल रहता है तो कवच प्रणाली के तहत स्वचालित रूप से ब्रेक लग जाते हैं, जिससे गति नियंत्रित हो जाती है। इस प्रणाली के तहत पटरी के पास लगे सिग्नल की रोशनी कैबिन में पहुंचती है और यह रोशनी धुंध के मौसम में बहुत उपयोगी होती है। - इस प्रणाली से ट्रेन की आवाजाही की निगराने वाले को ट्रेन के बारे में लगातार जानकारी मिलती रहती है।
सिगनल पर अपने आप सीटी बजती
सिगनल पर अपने आप सीटी बजती है। लोको से लोको के बीच सीधे संचार के जरिए ट्रेनों के टक्कर की आशंका कम हो जाती है। यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तो एसओएस के माध्यम से आसपास चल रही ट्रेनों को कंट्रोल किया जाता है। कवच का परीक्षण दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली-विकाराबाद-वाडी और विकाराबाद-बीदर सेक्शन पर किया गया था, जिसमें 250 किलोमीटर की दूरी तय की गई थी। कवच प्रणाली तैयार करने में कुल 16.88 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
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(PTI)
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