देखें वीडियो - श्रद्धा केस के आरोपी आफताब का कमाल का Confidence! दिल्ली पुलिस मेहमान नवाजी करती दिखी, महरौली पुलिस पर खड़ा हुआ बड़ा सवाल ?

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पहले नकाब ओढ़े आरोपी आफताब, अब बिना नकाब के आफताब !

Shraddha Case : श्रद्धा केस में दिल्ली पुलिस कटघरे में खड़ी हो गई है। एक तो अभी तक जांच का कोई रिजल्ड सामने नहीं आया है, दूसरा सवाल ये उठने लगा है कि क्या देश की सबसे स्मार्ट पुलिस यानी दिल्ली पुलिस आरोपी आफताब की खातिरदारी कर रही है ? इस वीडियो को देखिए। ये वीडियो तब का है, जब आरोपी का पोलिग्राफ टेस्ट होना था। ये वीडियो दिल्ली की फोरेंसिक साइंस लैब का है, जब पुलिस आरोपी को मंगलवार देर रात लेकर यहां पहुंची थी।

Shraddha Case : यहां दिख रहा है कि आरोपी के आगे पहले पुलिस वाले निकलते है। फिर स्टाइल में आरोपी हाथ पर हाथ रखकर निकलता है। कोई भी पुलिस वाला वहां उसे पकड़ कर ले जाते हुए नजर नहीं आ रहा है। मानो वो पुलिस को मेहमान हो। इससे पहले वीडियो का एक और हिस्से को ध्यान से देखिए। इसमें आरोपी एक बार मास्क उतारता है। फिर मीडिया के कैमरों पर उसकी नजर जाती है। एकाएक वो मास्क ऊपर कर लेता है। चलिए ये तो साधारण बात है, लेकिन इससे पहले जो पुलिस का बर्ताव दिखाई दे रहा है, वो बड़ा अजीब है। ये बात ठीक है कि पुलिस कर्मी उसके आसपास है और उससे बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन किसी ने भी उसे पकड़ नहीं रखा है।

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ये हम इसलिए कह रहे है कि क्योंकि एक और वीडियो हम सबने ने देखा है, जिसमें साफ दिखाई दे रहा था कि आरोपी को पुलिस ने नकाब पहना रखा था और उसे जंगल में ले जाकर तफ्तीश की जा रही थी। उसका हाथ भी पुलिस ने पकड़ रखा था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

नकाब क्यों उतारा ?

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फिर पुलिस की ऐसी क्या मजबूरी कि उसने आरोपी का नकाब उतार दिया है ? क्या उसकी आने वाले समय में आरोपी की TIP नहीं होनी है। क्या इस मामले के गवाहों ने आरोपी की पहचान कर ली है ? अगर नहीं तो फिर नकाब उतारने से तो ये लगेगा कि आरोपी का चेहरा तो टीवी में दिखाई दे रहा है। ये आरोपी के लिए डिफेंस बन सकता है। वकील अजय अग्रवाल कहते हैं कि ये पुलिस की गलती है। उसका चेहरा हर जगह सोशल मीडिया से लेकर तमाम मीडिया में चल रहा है, ऐसे में वो टीआईपी के लिए अगर मना करेगा तो ये उसके खिलाफ नहीं जाएगा।

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कानून क्या कहता है ?

दरअसल, वरिष्ठ वकील अजय अग्रवाल ने कहा, 'आरोपी को जब जांच के लिए थाने से बाहर लेकर जाया जाता है तो एक पुलिसकर्मी उसे पकड़ कर रखता है। अमूमन हमने ये देखा है। जहां तक Handcuffing की बात है तो ये आदेश अदालत ही देती है कि आरोपी के हाथ में हथकड़ी लगाई जाए या नहीं। ये इस बात पर निर्भर करता है कि आरोपी किस तरह का है। मसलन क्या वो दुर्दांत अपराधी है ? या उसकी जान को खतरा है, इन परिस्थितियों में आरोपी को हथकड़ी लगाई जाती है।'

हालांकि इस मामले में पुलिस ने आरोपी को पकड़ा तक नहीं है। ये बात ठीक है कि ऐसा कुछ देर के लिए ही पुलिस ने किया होगा, लेकिन पुलिस को ऐसा नहीं करना चाहिए था। वकील कपिल सांखला का कहना है कि इस मामले में जब ये पता है कि आरोपी दुर्दांत है। वो भाग सकता है। वो खुदकुशी कर सकता है। वो कोई हमला कर सकता है तो उसे पकड़ कर रखना चाहिए न कि इस तरह से छोड़ देना चाहिए। हालांकि देखा ये जाता है कि पुलिस कस्टडी के दौरान पुलिस आरोपी के साथ चाय-पानी और खाना भी खाती है। अगर उसे वाशरूम जाना है तो साथ में उसके पुलिस कर्मी मौजूद होता है। वो वाशरूम के बाहर पहरा देता है। पुलिस कर्मी उसको लाकअप में बंद करके सोते भी हैं। लाकअप के बाहर दूसरे पुलिस कर्मियों का पहरा भी होता है। जांच के लिए बाहर ले जाना है तो पुलिस कर्मी आरोपी का हाथ पकड़ कर ले जाते हैं। उसकी तबीयत खराब होती है तो डाक्टर को भी तुरंत बुलाया जाता है। इतना ही नहीं पुलिस आरोपी को परेशान भी करती है। कैसे परेशान करती है ? उसके परिवार को परेशान किया जाता है, ताकि वो सच बोले। उसके साथ मारपीट भी की जाती है, लेकिन यहां स्थिति अलग है। हालांकि पुलिस सूत्रों का कहना है कि हम लोग आरोपी के चारों तरफ थे, इसलिए उसके भागने की कोई गुजाइंश नहीं थी। पुलिस का कहना है कि बेवजह मुद्दा बनाया जा रहा है, जब कि हमारी जांच सही दिशा में है।

लोग क्या सोचेंगे ?

इस तरह के मामले समाज पर प्रभाव डालते है। ये वीडियो देख कर किसी के भी मन में सवाल आ सकता है कि आरोपी को गिल्ट नहीं है और दूसरा पुलिस ने उसे इस तरह से क्यों छोड़ रखा है। क्या किसी आरोपी को ऐसे छोड़ा जा सकता है ? ये ठीक है कि पुलिस जांच ठीक से कर रही है , लेकिन इस तरह की Casual approach कैजवल अपरोच सही नहीं है। आरोपी के मानव अधिकारी की दुहाई भी दी जा सकती है।

आफताब के हाव-भाव से नहीं लगता कि उसे पछतावा है!

आरोप आफताब के हाव भाव से भी साफ लगा रहा है कि उसे इस मामले में कोई गिल्ट नहीं है। वो बड़ा रिलेक्स नजर आ रहा है। वो इतना शातिर भी है कि मीडिया को देखते ही मास्क ऊपर कर लेता है।

नारको क्यों जरूरी ?

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