यहां 'किश्तों' में बीत रही है जिंदगी! पहले किश्त भरी फिर हो सका अंतिम संस्कार! यूपी के इस गांव की ये कहानी दिल पसीज देगी

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यहां 'किश्तों' में बीत रही है जिंदगी! पहले किश्त भरी फिर हो सका अंतिम संस्कार! यूपी के इस गांव की य...
धर्मनाथ यादव
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UP Kushinagar Case: यूपी का कुशीनगर इलाका। यहां 35 साल के धर्मनाथ यादव अपने परिवार के साथ रहते थे। बेहद गरीब परिवार। धर्मनाथ की शादी हो चुकी थी। लिहाजा सारी जिम्मेदारियां उस पर थी। घर में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं थी। ऐसे में परिवार को पालने के लिए वो काम के सिलसिले में दिल्ली पहुंच गया।

यहां वो कबाड़ की छंटाई का काम करता था। घर रहकर उसकी पत्नी ने एक कदम उठाया। उसने एक स्माल फाइनेंस बैंक से कुछ लोन ले लिया। शुरुआत में तो सब कुछ ठीक ठाक रहा। समय पर लोन की किश्तें चुकाई जा रही थी, लेकिन फिर हालात बिगड़ गए। आरती ने ये लोन खेती से जुड़े काम के लिए लिया था। लोन इसलिए लिया था ताकि खाती में कुछ पैसा लगाया जा सके ताकि इससे और पैसे बनाए जा सके और लोन चुकता किया जा सके, लेकिन हुआ कुछ अलग ही।

एक हफ्ते में 730 रुपए नहीं दिए गए!

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बात बीते 14 दिसंबर की है। उसकी पत्नी आरती (30 साल) का फोन आया। उसने कहा, 'वसूली के लिए लोग आए हैं। वो बुरा बर्ताव कर रहे हैं। पैसे भेज दीजिए।' इस पर धर्मनाथ ने कहा कि वो एक घंटे में पैसे भेज देंगे। आरती ने फिर फोन किया। तब तक 2 घंटे बीत चुके थे। उसने कहा, 'मैंने जहर खा लिया है।' ये सुनकर धर्मनाथ के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने कहा, 'मैंने पैसों का इंतजाम कर लिया है। तुम तुरंत डाक्टर के पास जाओ।' इतने में फोन कट गया। यह कहते-कहते फोन कट गया।

धर्मनाथ ने आरती को फिर फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। इतने में वो तुरंत अपने मालिक से पैसे लेकर गांव की तरफ निकल पड़ा। वो रेलवे स्टेशन पहुंचे और गाड़ी में बैठ गया। इतने में उसने अपने रिश्तेदारों को भी फोन किया और आरती के बारे में बताया और कहा कि उसे तुरंत जाकर देखो?

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ये स्माल फाइनेंस बैंक बने जी का जंजाल

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दरअसल, उत्कर्ष स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आरती को 3 अगस्त 2022 को खेती से जुड़े काम के नाम पर करीब 30 हजार रुपए का लोन दिया था। आरती को हर सप्ताह करीब 730 रुपए देने थे। उसने 34 किश्तें दे भी दी थी। 20 दिसंबर को उसे 730 रुपए देने थे, लेकिन 14 दिसंबर को ही उसने खुदकुशी कर ली।

इस बीच धर्मनाथ को अपनी पत्नी की मौत की खबर मिल चुकी थी। वो पूरे रास्ते रोता हुआ कुशीनगर पहुंच गया। जब वो एक दिन बाद अपने घर पहुंचा तो एक मुसीबत और खड़ी थी। साहूकार उसके घर पर खड़े थे। उसने पहले किश्त भरी फिर अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया। ये कहानी सिर्फ धर्मनाथ की ही नहीं है, बल्कि यहां ज्यादातर लोग इन साहूकारों के चक्कर में फंस गए हैं और इनकी जिंदगी 'किश्तों' में बीत रही है।

बीमे के पैसे तक नहीं मिले धर्मनाथ को

धर्मनाथ के साथ एक संकट और खड़ा है। यादव बीमे के पैसे की आस में हैं। दरअसल, बीमा के लिए उसे मृत्यु प्रमाण-पत्र देना होगा, लेकिन विभाग ने अभी तक उसे वो जारी नहीं किया है। लिहाजा बीमा की रकम अटकी हुई है। वो पिछले दो महीनों से काम भी नहीं कर रहे हैं। अपने बच्चों को वो उनकी नानी के पास छोड़ आए हैं। कुछ पैसा बैंक से मिला था मुआवजे के तौर पर, वो अंतिम संस्कार और दूसरी रस्मों में खर्च हो गया। अब इंतजार है तो पैसों का। 
 

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