सुरंग में 41 दिन जिंदा रहने की सबसे अलग कहानी, 10 दिनों तक चट्टानों से टपकते पानी को चाटकर बुझाई प्यास, भूख लगी तो मुरमुरे खाए

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Silkyara tunnel of Uttarkashi Rescue Story
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Uttarakhand News : उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को अपनी जान बचाना इतना आसान नहीं था. उनके सामने जिंदा रहने के लिए तमाम मुश्किलें आईं. लेकिन उन्होंने डटकर मुकाबला किया. एक श्रमिक ने बताया कि कैसे प्यास लगने पर चट्टाने से टपकते पानी को वो चाटते थे. शुरुआती 10 दिन सभी श्रमिकों के लिए बेहद मुश्किल भरे थे. उन दिनों किसी मजदूर के पास मुरमुरे थे. उसी में से थोड़ा थोड़ा खाकर वो लोग जिंदा रहने का सहारा मानते थे. 41 श्रमिकों में से एक अनिल बेदिया की कहानी के बारे में आइए जानते हैं.

 Silkyara tunnel of Uttarkashi Rescue Story

22 साल के अनिल बेदिया की जुबानी, सुरंग की कहानी

PTI की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग से मंगलवार रात सुरक्षित बचाए गए 41 श्रमिकों में से एक श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया कि हादसे के बाद उन लोगों ने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और शुरूआती दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे। झारखंड के 22 वर्षीय श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया कि उन्होंने 12 नवंबर को सुरंग का हिस्सा ढहने के बाद मौत को बहुत करीब से देखा। बेदिया सहित 41 श्रमिक मलबा ढहने के बाद 12 नवंबर से सुरंग में फंसे थे।

उन्होंने बुधवार को 'पीटीआई-भाषा' से फोन पर बातचीत में अपनी कहानी साझा की। बेदिया ने कहा, “मलबा ढहने के बाद तेज चीखों से पूरा इलाका गूंज गया.. हम सब ने सोचा कि हम सुरंग के भीतर ही दफन हो जाएंगे। शुरूआती कुछ दिनों में हमने सारी उम्मीदें खो दी थीं।” उन्होंने कहा, ‘‘यह एक बुरे सपने जैसा था। हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और पहले दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे।’’ बेदिया रांची के बाहरी इलाके खिराबेड़ा गांव के रहने वाले हैं, जहां से कुल 13 लोग एक नवंबर को काम के लिए उत्तरकाशी गए थे।

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उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि किस्मत ने उनके लिए क्या लिखा है। बेदिया ने बताया कि जब आपदा आई तो सौभाग्य से खिराबेड़ा के 13 लोगों में से केवल तीन ही सुरंग के अंदर थे। सुरंग के भीतर फंसे 41 श्रमिकों में से 15 श्रमिक झारखंड से थे। ये लोग रांची, गिरिडीह, खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम के रहने वाले हैं। मंगलवार की रात जब इन श्रमिकों को बाहर निकाला गया तब उनके गांवों में खुशी से लोग जश्न मनाने लगे। बेदिया ने बताया, ‘‘हमारे जीवित रहने की पहली उम्मीद तब जगी जब अधिकारियों ने लगभग 70 घंटों के बाद हमसे संपर्क स्थापित किया।’’

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सुरंग के बाहर से आई आवाज ने जीने का हौसला बढ़ाया

Tunnel Rescue News : उनके अनुसार, उनके दो पर्यवेक्षकों ने उन्हें चट्टानों से टपकता पानी पीने के लिए कहा। बेदिया ने कहा, ‘‘हमारे पास सुरंग के अंदर खुद को राहत देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। आखिरकार, जब हमने बाहर से, हमसे बात करने वाले लोगों की आवाजें सुनीं, तो दृढ़ विश्वास और जीवित रहने की आशा ने हमारी हताशा को खत्म कर दिया।’’ उन्होंने कहा कि शुरूआती दस दिन घोर चिंता में बिताने के बाद पानी की बोतलें, केले, सेब और संतरे जैसे फलों के अलावा चावल, दाल और चपाती जैसे गर्म भोजन की आपूर्ति नियमित रूप से की जाने लगी। उन्होंने कहा, ‘‘हम जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर निकलने के लिए प्रार्थना करते थे... आखिरकार भगवान ने हमारी सुन ली।’’

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उनके गांव के ही एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि चिंता से बेहाल उसकी मां ने पिछले दो सप्ताह से खाना नहीं बनाया था और पड़ोसियों ने जो कुछ भी उन्हें दिया, उसी से परिवार का गुजारा चल रहा था। खिराबेड़ा गांव के रहने वाले लकवाग्रस्त श्रवण बेदिया (55) का इकलौता बेटा राजेंद्र (22) भी सिलक्यारा सुरंग का कुछ हिस्सा धंसने से अंदर फंसे श्रमिकों में शामिल था। मंगलवार शाम को अपने बेटे के बाहर निकाले जाने की खबर के बाद उन्हें व्हीलचेयर पर जश्न मनाते देखा गया। राजेंद्र के अलावा गांव के दो अन्य लोग, सुखराम और अनिल भी 17 दिनों तक सुरंग के भीतर फंसे रहे। दोनों की उम्र करीब 20 साल के आसपास है। सुखराम की लकवाग्रस्त मां पार्वती भी बेटे के सुरंग में फंसे होने की खबर से गमगीन थी। उनके सुरंग से बाहर निकलने के बाद उन्होंने खुशी जाहिर की।

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