चंद्रयान 3 की लैंडिंग से पहले ही चांद पर पहुँच चुका है भारत की शान 'तिरंगा'
Tricolour on Moon: भारत ने चंद्रमा पर जानबूझकर गिराया था अपना स्पेसक्राफ्ट, चांद तक पहुंचा था तिरंगा, जानें पूरी कहानी।
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Indian Flag Tricolour on Moon: 14 जुलाई 2023, दोपहर 2.35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से चंद्रयान 3 मिशन की शुरूआत हुई और चंद्रयान 3 अपने करीब पौने चार लाख किलोमीटर लंबे सफर पर रवाना हुआ। तारीख तय हुई कि 23 अगस्त की शाम को ये चंद्रयान चांद की सतह पर उतर कर एक नया इतिहास रच देगा औरचांद पर हिन्दुस्तान का तिरंगा लहराने लगेगा।
अंतरिक्ष में भारत की लंबी छलांग
मगर आप शायद भूल रहे हैं कि हिन्दुस्तान का तिरंगा पहले ही चांद की सतह तक पहुँच चुका है, बगैर किसी हिन्दुस्तानी के वहां गए हुए। ये हैरान और चौंकाने वाली बात है लेकिन सच है। और इस सच की बुनियाद रखी गई थी 22 अक्टूबर 2008 को जब चंद्रयान मिशन लॉन्च किया गया था। ये पहला मौका था जब भारत ने अपनी हैसियत और क्षमताओं से अंतरिक्ष में एक लंबी छलांग लगाने और किसी खगोलीय पिंड पर अपना मिशन भेजने की घोषणा पहली बार की थी। तब तक दुनिया के चार ही देश थे जो ये कामयाबी का सेहरा अपने सिर बांध चुके थे। अमेरिका, रूस,यूरोप और जापान। इन्हीं लोगों ने चांद पर मिशन भेजने में कामयाबी हासिल की थी। तब यही लगा था कि भारत दुनिया का पांचवां देश बन जाएगा ऐसा कदम उठाने वाला।
ISRO ने एक बड़ा धमाका किया
14 नवंबर 2008 की उमस भरी दोपहर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने एक बड़ा धमाका किया जब घोषणा की कि भारतीय स्पेस एजेंसी चांद पर एक धमाका करने जा रही है। चंद्रयान 1 टेक्नोलॉजी के जरिए भारत ने जिस मिशन को लान्च किया था उसके एक नहीं कई मकसद थे। पहला तो यही था कि चंद्रमा पर पानी खोजा जाए। जिससे भारत ने इतिहास के पन्नों में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवा लिया लेकिन इससे साथ साथ भारतीय वैज्ञानिक एक दूर की कौड़ी लेकर आ गए। अंतरिक्ष यान के भीतर एक 32 किलो का एक प्रोब था जिसे इसरो के वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त कराने का इरादा किया था। और नाम दिया मून इम्पैक्ट प्रोब।
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मून इम्पैक्ट प्रोब को नष्ट करने की कमांड
17 नवंबर 2008 की रात करीब 8 बजकर 06 मिनट पर इसरो के कंट्रोल बोर्ड से एक कमांड दी जाती है। और मिशन के काम में लगे इंजीनियरों ने मून इम्पैक्ट प्रोब को नष्ट करने की कमांड भेज दी। चांद के नाम से खामोश दुनिया असल में भारतीय वैज्ञानिकों के हाथों किए जाने वाले एक बड़े धमाके का शोर सुनने वाली थी।
मून इम्पैक्ट प्रोब का आखिरी सफर
चंद्रमा की सतह से करीब 100 किलोमीटर की ऊंचाई से प्रोब ने नीचे गिरने की यात्रा शुरू की यानी मून इम्पैक्ट प्रोब ने अपना आखिरी सफर शुरू किया। जैसे ही वो प्रोब चंद्रयान के ऑर्बिटर से अलग होकर दूर निकला, ऑनबोर्ड स्पिन अप रॉकेट फौरन सक्रिय हो गए। और उसे चंद्रमा की तरफ ले जाने वाले रास्ते पर आगे बढ़ाने लगे। इंजन को फौरन दागा गया। ये इंजन प्रोब की रफ्तार को तेज करने के लिए नहीं बल्कि उसे धीमा करने के लिए दागे गए थे।
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विचित्र किंतु सत्य
एक जूते के डिब्बे के आकार का प्रोब असल में महज एक धातु का टुकड़ा भर नहीं था बल्कि ये एक विचित्र किंतु सत्य जैसी एक मशीन थी जिसके भीतर तीन अहम उपकरण थे। इसके भीतर एक वीडियो इमेजिंग सिस्टम था, एक रडार अल्टीमीटर था और एक मास स्पेक्ट्रोमीटर। और इन तीनों के जरिए हिन्दुस्तान में बैठे वैज्ञानिक ये पता लगाने वाले थे कि आखिर चंद्रमा पर कब क्या कैसे और क्यों होता रहता है। सच कहा जाए तो चांद की जमीन पर उतर रहा वो प्रोब असल में हिन्दुस्तानी वैज्ञानिकों की आंख नाक कान थे। जिसके जरिए चांद के वीडियो इमेजिंग सिस्टम को तस्वीर लेने के बाद उन्हें अर्थ स्टेशन पर भेजने के लिए ही डिजाइन किया गया था। रडार अल्टीमीटर को चांद की सतह के करीब पहुँचने पर इसकी कम होती रफ्तार को ट्रैक करने के लिए लगाया गया था। जबकि मास स्पेक्ट्रोमीटर को चंद्रमा के असामान्य वातावरण का विश्लेषण करने के मकसद से लगाया गया था।
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चंद्रयान की एक मुश्किल लैंडिंग
चंद्रमा की सतह जैसे ही पास आने लगी तो डिब्बे में पैक उपकरणों ने ऑर्बिटर के ऊपरी हिस्से में डेटा भेजना शुरू कर दिया जबकि इसके बाद उनकी गहराई से छानबीन करने के लिए इसकी रीडआट मोमोरी में रिकॉर्ड किया गया। चंद्रयान से निकलने के करीब 25 मिनट के बाद मून इम्पैक्ट प्रोब को मुसीबत का सामना करना पड़ा। चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान की एक मुश्किल लैंडिंग हुई। इसरो ने एक ऐसे अंतरिक्ष यान को दूसरी दुनिया में दुर्घटनाग्रस्त करके इतिहास रच दिया।
चंद्रयान 2 और चंद्रयान 3 की नींव
मिली जानकारी के मुताबिक चंद्रयान 1 से भेजे गए डेटा ने साल 2019 में चंद्रयान 2 और उसके बाद चंद्रयान 3 के मिशन की नींव रखी। 23 अगस्त को शाम को भारत के चंद्रयान 3 की ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग होगी। असल में इंपैक्ट प्रोब से मिली जानकारी ने चंद्रमा की दुनिया के रहस्य को ऐसा उजागर किया जैसा पहले कभी नहीं हुआ।
भारत का तिरंगा चांद पर
लेकिन जिस एक बात ने इसरो को अपना सिर दुनिया में फख्र से ऊंचा करने का मौका दिया वो ये था कि क्यूब के आकार के प्रोब के ऊपर की तरफ तिरंगा बना हुआ था। यानी 14 नवंबर 2008 की रात जैसे ही इसरो ने चंद्रमा की सतह पर यान को क्रैश किया, तो हिन्दुस्तान की शान और तिरंगा हमेशा हमेशा के लिए चंद्रमा पर स्थापित हो गया था।
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