Hijab Row: हिजाब मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों की राय अलग-अलग, मामला बड़ी बैंच के पास भेजा गया
Hijab Row Supreme Court: हिजाब मामले को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के जजों की राय अलग-अलग है। बैन के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया है। मामला बड़ी बैंच के पास भेज दिया गया है।
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Hijab Row: हिजाब मामले को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की राय अलग-अलग है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने बैन के खिलाफ अपील खारिज कर दी है। मामला बड़ी बैंच के पास भेज दिया गया है। इससे पहले कर्नाटक की हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था। हिजाब विवाद की शुरुआत कर्नाटक के उडुपी के एक सरकारी कॉलेज से शुरू हुआ था, जहां मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर आने से रोका गया था। स्कूल मैनेजमेंट ने इसे यूनिफॉर्म कोड के खिलाफ बताया था। इसके बाद दूसरे शहरों में भी ये विवाद फैल गया। ये मामला तब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने की मांग कर रही कुछ मुस्लिम लड़कियों की याचिका खारिज कर दी थी।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की दो जजों की बेंच ने 10 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद 22 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के शुरुआती 6 दिनों तक मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलील रखी थी। उसने हिंदू, सिख, ईसाई प्रतीकों को पहनकर आने की तरह ही हिजाब को भी इजाजत दिए जाने की मांग की थी। उसने तिलक, पगड़ी और क्रॉस का भी जिक्र किया था।
इस मामले में सरकार ने कोर्ट में कहा था कि 1958 में मुसलमानों ने गोकशी को धार्मिक अधिकार बताया था जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब हिजाब को भी मौलिक अधिकार बताया जा रहा है। इसे भी खारिज कर दिया जाना चाहिए।
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वहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के 9वें दिन कर्नाटक सरकार ने कहा था - कुरान का हर शब्द धार्मिक, लेकिन उसे मानना अनिवार्य नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये धार्मिक मामला नहीं है। अगर कोर्ट में कोई जींस पहनकर आएगा तो उसे मना ही किया जाएगा।
ये मामला तब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने की मांग कर रही कुछ मुस्लिम लड़कियों की याचिका खारिज कर दी थी। उसने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम की जरूरी प्रैक्टिस का हिस्सा नहीं है। लड़कियों को स्कूल यूनिफॉर्म पहनना ही होगा। वहीं, स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई के लिए गैर-धार्मिक माहौल बनाना जरूरी है।
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इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
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