यूक्रेन में लोगों के लिए ज़िंदा रहने की जद्दोजहद, छह साल की यूलिया ने 125 km पैदल चलकर लांघा शहर
बच्चों ने दिखाई हिम्मत, छह साल की यूलिया ने पैदल पार किया 125 किमी का रास्ता, यूक्रेन के लोगों को खून के आंसू, Ukraine family tells of epic escape on foot Children saw it as an adventure'
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Russia - Ukraine War: दुनिया के तमाम मीडिया में अब जंग से जुड़ी तमाम ख़बरें यूक्रेन के लोगों को बहते हुए खून के आंसुओं के नज़रिये से देखने को मजबूर होना पड़ रहा है।
यूक्रेन की राजधानी कीव का पूर्वी हिस्सा पिछले दिनों आंसुओं से भीगा दिखाई दिया, जब वहां एक 13 साल के लड़के एलिसी रेयाबुकोन का ताबूत सुपुर्दे ख़ाक़ किया जा रहा था। कब्रिस्तान पर क़रीब क़रीब समूचा गांव इकट्ठा था, क्योंकि उस गांव ने अपने सबसे लाडले बच्चे को खो दिया था। और वजह थी वही रूस की सेना और उसकी गोलाबारी।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक रयाबुकोन असल में अपने माता पिता के साथ अपने गांव में ही था तभी रूसी सैनिकों की गोलीबारी शुरू हो गई और ये तीनों उसमें फंस गए थे। चश्मदीद ने बताया कि बीते 11 मार्च की बात है जब गोलीबारी के बीच फंसे इस परिवार को रूसी सैनिकों ने गांव से निकलने के लिए रास्ता दे भी दिया था। लेकिन जैसे ही ये लोग गांव से बाहर जाने लगे तो रूसी सैनिकों ने फायरिंग शुरू कर दी।
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Russia - Ukraine War: रयाबुकोन की मां ऐना ने बताया कि आखिर उस रोज हुआ क्या था। ऐना के मुताबिक गांव से जैसे ही पांच कारों का काफिला निकला तो ऐना अपने दो बच्चों के साथ दूसरी कार में बैठी हुई थी, तभी रूसी सेना की तरफ से फायरिंग शुरू हो गई।
ऐना बताते बताते रो पड़ती हैं और कहती हैं कि जैसे तैसे उन्होंने अपने छोटे बेटे को जैकेट समेत खींच लिया जिससे वो बच गया लेकिन उनका बड़ा बेटा रयाबुकोन उस गोलीबारी में नहीं बच सका। सचमुच उस फायरिंग में जो कोई बच सका वो उसकी क़िस्मत थी।
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एलिसी रयाबुकोन यूक्रेन के उन दो सौ बदक़िस्मत बच्चों में से एक हैं जो रूसी सेना की गोलाबारी और फायरिंग में मारे जा चुके हैं। जबकि यूक्रेन के कुछ खुशक़िस्मत बच्चे ऐसे ज़रूर हैं जिन्हें गोली तो लगी मगर जान बच गई।
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इसी बीच यूक्रेन से जिस एक तस्वीर ने सामने आकर पूरी दुनिया को बुरी तरह से झकझोरा है वो ये है कि शहर के शहर श्मशान बने हुए हैं, चारो तरफ लाशें हैं, रूसी सैनिक बेधड़क होकर आम लोगों को निशाना बना रहे हैं। रूसी तोप और टैंक बेलिहाज होकर शहरों को खंडहर बना रहे हैं और उन सबके बीच मारियूपोल शहर में फंसा एक परिवार अपनी जान बचाने की गरज से पूरे सवा सौ किलोमीटर पैदल चलकर ज़पोरिज़िया शहर तक पहुँच पाया।
Russia - Ukraine War: रूसी सेना ने मारियूपोल को पूरी तरह से मटियामेट कर दिया है। न तो रेलवे स्टेशन बचा और न ही बस स्टेशन। बल्कि इस शहर में रूसी सेना ने खुलकर आम लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। शहर भर को रूस की मिसाइलों ने पूरी तरह से खोखला कर दिया है।
इसी बीच येवगेनी और तातियाना अपने चार बच्चों को लेकर शहर से निकलने की कोशिश में लग गया। मगर उनके पास कोई ऐसा साधन नहीं था जिसके ज़रिए वो शहर में बरस रही बारूदी आग से बचने के लिए पैदल ही शहर की हदों को लांघने के लिए निकल पड़े।
ये तो सारी दुनिया जानती है कि मारियूपोल में रूसी सेना ने क़रीब क़रीब एक महीने तक घेरा डाले रखा। लेकिन खुद रुसी सेना को भी याद नहीं कि इस शहर पर उसने कितने टन बारूद बरसाया है। ये तबाही का मंज़र तातियाना और येवगेनी के साथ साथ उनके बच्चों ने भी देखा है।
यूक्रेन के एक अखबार में छपी ख़बर के मुताबिक तातियाना ने बताया कि कई हफ़्तों तक बंकर में रहने के बाद जब उनके पास खाने पीने तक के लिए कुछ नहीं बचा तो उन्होंने जान हथेली पर लेकर वहां से निकलकर दूसरे शहर की तरफ जाने का इरादा किया।
Russia - Ukraine War: हालांकि येवगेनी और तातिनान ने इस बीच अपने छोटे बच्चों को ये ज़रूर सिखाया कि अगर ज़रूरत पड़े तो भागना भी पड़ सकता है तभी बच पाएंगे। ये कहते कहते तातियाना की आंखों में आंसू छलक उठे और बताया कि बच्चों ने इस मुसीबत को एक चुनौती की तरह स्वीकार किया और एडवेंचर स्पोर्ट्स को समझकर वो उंगली पक़ड़कर निकल पड़े।
तातियाना अपनी छह साल की बच्ची यूलिया की तरफ इशारा करते हुए बताती हैं कि इस मासूम बच्ची ने एक बार भी पूरे सफर में ये नहीं कहा कि वो थक गई है। बल्कि हंसते हुए और गाते हुए पूरा रास्ता चलती रही।
येवगेनी ये कहते हुए सुबकने लगे कि उन्हें नहीं मालूम कि उनके बच्चों के दिलो दिमाग में क्या उथल पुथल मची हुई है। लेकिन इतना तो उनका चेहरा देखकर और आंखों को देखकर समझा ही जा सकता है कि शहर को खंडहर देखकर ये बच्चे सहम गए थे।
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