Minsk Agreement से बनेगी बात, UNSC में रूस और अमेरिका भिड़े, उठी मिन्स्क समझौते की बात
बारूद के ढेर पर यूरोप, रूस को जंग से रोकने की कवायद तेज़, Minsk agreement, Russia Ukraine crisis, पुतिन की पैंतरेबाज़ी पश्चिम के देश ले रहे हैं पुतिन से पंगा, way out of Ukraine crisis? read more news
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बारूद के ढेर पर यूरोप
Russia Ukraine Conflict: यूरोप की धरती पर बारूद में चिंगारी न लगने पाए, इसके लिए माहौल को जिस भी टोटके से शांत और ठंडा रखने की कोशिश की जा सकती है, अमेरिका, नाटो और यूरोप के तमाम देश मिलकर वो कर भी रहे हैं।
इसी बीच मिन्स्क समझौते (Minsk Agreement) की बात अचानक हवा में तैरने लगी। कहा जाने लगा कि इस समझौते की रोशनी में देखा जाए तो रूस यूक्रेन पर हमला नहीं कर सकता है। या यूं भी कहा जा सकता है कि इस समझौते से रूस अगर खुद को बंधा हुआ महसूस करेगा तो यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा। असल में
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असल में रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे इस विवाद को लेकर अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस को घेरने की कोशिश की। सुरक्षा परिषद में अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि मैं यहां युद्ध रोकने नहीं बल्कि उसे ख़त्म करने के लिए आया हूं।
विदेश मंत्री का दावा था कि पुख़्ता ख़बर यही है कि यूक्रेन की सीमा के पास रूस के 150000 से ज़्यादा सैनिक मौजूद हैं जो किसी भी वक़्त हमले की फिराक में हैं। इस पर रूस के प्रतिनिधि ने पलटवार करते हुए कहा कम खुद यूक्रेन नाटो में शामिल होने के लिए रास्ते की तलाश कर रहा है और बाकी के देश उसकी मदद कर रहे हैं जबकि सही मायनों में देखा जाए तो खुद यूक्रेन ने मिन्स्क समझौते (Minsk Agreement) का पालन नहीं किया है।
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हो सकता है रूस के ख़िलाफ़ कारगर हथियार
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Russia Ukraine Conflict: अब सवाल यही उठता है कि आखिर ये मिन्स्क समझौता (Minsk Agreement) है क्या। कब हुआ, कहां हुआ और कैसे हुआ, और किसके बीच हुआ। दरअसल 2014 और 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में दो समझौते हुए जिन्हें Minsk-I और Minsk-II कहा जाता है।
असल में ये समझौते यूक्रेन की सेना और रूस का समर्थन हासिल करने वाले गुट के बीच हुए थे। समझौते का मकसद सेना और विद्रोहियों के बीच छिड़ी जंग को ख़त्म करना था। दिलचस्प बात ये है कि ये समझौते हुए ज़रूर लेकिन लागू कभी नहीं हो सके। जबकि यूरोप के देश और अमेरिका यही चाहते हैं कि किसी भी तरह ये दोनों समझौते लागू हो जाएं तो लड़ाई की आशंका के कुछ दिनों राहत मिल जाएगी।
Minsk Agreement से दिखा उम्मीद का सूरज
Russia Ukraine Conflict: असल में यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर रूस के समर्थित गुट ने 2014 में विद्रोह कर दिया था। रूसी सेना ने उस चिंगारी को हवा दे दी जिससे आग भड़क उठी। यूक्रेन की सेना उस विद्रोह को दबाने के लिए सामने आई और हालात इस कदर बिगड़े कि रूस को दखल देना पड़ा और यूक्रेन को क्रीमिया गंवाकर वो क़ीमत चुकानी पड़ी।
हालांकि जंग के हालात तब भी बने रहे, तब यूरोप के देशों ने मिलकर रूस को बातचीत की मेज़ तक आने का न्योता दिया और बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में समझौता हुआ। इस समझौते के 12 मुद्दों पर दोनों ही देश सहमत हो गए। लेकिन ये समझौता ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रह सका क्योंकि दोनों ही देशों ने कई मामलों में हदों को पार किया, और समझौता टूट गया।
Minsk Agreement के वो 13 बिंदू
Russia Ukraine Conflict: दोनों देशों को उलझता देखकर एक बार फिर यूरोप के देशों ने रूस को मनाया और एक बार फिर समझौता करने का राजी कर लिया।
इस समझौते के लिए मुख्य रूप से चार देश ही जिम्मेदार रहे। रूस यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी। फरवरी 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में एक बार फिर बातचीत हुई जिसने Minsk-II की शक्ल ली। इस बार 13 प्वाइंट पर रज़ामंदी हुई।
क्या थे वो 13 प्वाइंट- जिसे Minsk II Agreement कहा गया।
1)- फौरन युद्ध रोक दिया जाए, यानी युद्ध विराम
2)- दोनों पक्ष भारी हथियारों की वापसी करेंगे
3)- ऑर्गनाइज़ेशन फॉर सिक्योरिटी एंड ए को-ऑपरेशन इन यूरोप यानी OSCE इस पूरे मामले की निगरानी करेगा।
4)- रूस की सीमा से लगे दो प्रॉविंस डोनेत्स्क और लुहंस्क में यूक्रेन के क़ानून के हिसाब से सरकार बनेगी।
5)- दोनों ही देश इस युद्ध में शामिल लड़ाकों को माफी देंगे
6)- क़ैदियों का आदान प्रदान किया जाएगा
7)- रूस और यूक्रेन मिलकर मानवता के लिए काम करेंगे
8)- पेंशन समेत सामाजिक और आर्थिक संबंधों की बहाली होगी
9)- अपनी सीमा पर यूक्रेन का नियंत्रण होगा, रूस दखल नहीं देगा
10)- दोनों ही देशों में विदेशी सैनिकों और हथियारों को वापस किया जाएगा।
11)- यूक्रेन अपने संविधान में ज़रूरी बदलाव करेगा
12)- डोनेत्स्क और लुहंस्क में चुनाव प्रक्रिया की बहाली होगी
13)- रूस, यूक्रेन और OSCE के नुमाइंदे मिल जुलकर इलाक़े की भलाई का काम करेंगे।
तो क्या रूस Minsk Agreement को मान लेगा?
Russia Ukraine Conflict: ये समझौता तो हो गया। उस वक़्त दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने दिखावे के लिए एक दूसरे से हाथ भी मिला लिए लेकिन इस समझौते को अभी तक पूरी तरह से माना नहीं गया है। आलम ये है कि रूस और यूक्रेन दोनों ही इस समझौते को अपने अपने हिसाब से लागू करते हैं।
यूरोप और अमेरिका बार बार Minsk-II समझौते का बार बार ज़िक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यही इकलौता ज़रिया है जिसकी मदद से रूस को फिर से बातचीत की मेज़ तक लाया जा सकता है क्योंकि ये समझौता इस बात की गारंटी देता है कि यूक्रेन को NATO में शामिल नहीं किया जाएगा।
यही समझौता यूक्रेन को अपनी सरहद की हिफ़ाज़त करने का हक़ भी देता है। लिहाजा यूरोप अमेरिका और दूसरे देशों को ये Minsk-II Agreement जंग को टालने का आखिरी हथियार जैसा दिख रहा है। कि शायद इसे देखकर रूस जंग को टाल दे।
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