Exclusive : संसद की सुरक्षा में चूक, दिल्ली पुलिस भी सवालों के घेरे में!

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Exclusive : संसद की सुरक्षा में चूक, दिल्ली पुलिस भी सवालों के घेरे में!
Parliament Security Breach
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Loksabha Security Lapse Delhi Police Negligence : संसद में हुई चूक को लेकर संसद की सुरक्षा में तैनात 8 कर्मियों को बेशक सस्पेंड कर दिया गया है, लेकिन सच तो ये भी है कि इसके लिए काफी हद तक दिल्ली पुलिस भी जिम्मेदार है। ऐसे इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि संसद भवन के बाहर की सुरक्षा का जिम्मा सीधा-सीधा दिल्ली पुलिस के पास होता है। वहां धारा 144 लागू होती है। संसद भवन सुरक्षा चूक मामले में जिन 8 कर्मियों को सस्पेंड किया गया है, वह लोकसभा सचिवालय के सिक्योरिटी स्टाफ हैं।

धारा 144 का हुआ उल्लंघन और दिल्ली पुलिस सोती रही, न जमा होने की सूचना मिली, न दिखे और न वारदात रुकी

ऐसे में पांच से ज्यादा लोग इकट्ठा नहीं हो सकते हैं, लेकिन यहां आरोपी बाकायदा संसद भवन से महज एक किलोमीटर दूर इंडिया गेट पर 6 लोग जमा हुए और फिर इस घटना को अंजाम दिया और दिल्ली पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। पहला पुलिस का सूचना तंत्र फेल हुआ, दूसरा आरोपी संसद के बाहर तक पहुंचे और जो करना चाहते थे, वो किया। ऐसे में दिल्ली पुलिस पर सवाल उठना तो लाजिमी है।

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दिल्ली पुलिस के करीब 12 सौ कर्मियों होते हैं तैनात, सुरक्षा पर होते हैं करोड़ों रुपए खर्च

Loksabha Security : सूत्रों के मुताबिक, इस संसद सत्र के दौरान करीब 1200 पुलिसकर्मी अपने हथियारों के साथ आन ड्यूटी तैनात थे। इसमें करीब 400 से ज्यादा पुलिस कर्मी दूसरे जिलों से यहां ड्यूटी करने आए थे, जब कि बाकी पुलिस कर्मी नई दिल्ली जिला पुलिस के थे। जब लोकसभा और राज्यसभा का सत्र होता है तो 700 से ज्यादा सांसद दिल्ली में होते हैं। इसमें लोकसभा अध्यक्ष, पीएम, होम मिनिस्टर से लेकर सोनिया गांधी समेत कई वीवीआईपी (VVIP S) मौजूद रहते हैं। संसद भवन पहुंचने के बाद ऐसे में उनकी सुरक्षा का जिम्मा दिल्ली पुलिस पर भी होता है। जिला पुलिस के साथ साथ दिल्ली पुलिस की सुरक्षा यूनिट भी इसके लिए जिम्मेदार है। 

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20 से 25 कंपनियों (पैरामिलिट्री फोर्सस) की तैनाती होती है

Parliament Security Breach : ये तो गनीमत थी कि घटना के वक्त संसद में पीएम, गृहमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष मौजूद नहीं थे। दिल्ली पुलिस के अलावा भी संसद के बाहर और अंदर करीब 20 से 25 पैरामिलिट्री फोर्सस की कंपनियों की भी तैनाती होती है। एक कंपनी में करीब 70 सुरक्षा कर्मी शामिल हैं। यानी करीब-करीब 1700 सुरक्षा कर्मी और तैनात होते हैं। इस हिसाब से करीब 3 हजार सुरक्षा कर्मी संसद की सुरक्षा में तैनात होते हैं। संसद भवन के आसपास पूरे घेरे में पुलिस बैरिकेड, रूफ टाप अरेंजमेंट, पीसीआर वाहन समेत सुरक्षा के व्यापक प्रबंध होते हैं। ऐसे में वहां लोग इकट्ठा न हो, कोई अप्रिय घटना न हो, ये जिम्मा दिल्ली पुलिस का होता है, लेकिन अफसोस की बात ये है कि ये तमाम इंतजामात धरे के धरे रह गए।

संसद के अंदर मल्टी लेयर सिक्योरिटी

संसद के अंदर मल्टी लेयर सिक्योरिटी होती है। जिस संसद भवन में सुरक्षा में ये बड़ी चूक हुई है ये वही नया संसद भवन है, जो इसी साल बन कर तैयार हुआ था। इस नए संसद भवन को बनाने में कुल 12 सौ करोड़ रुपये खर्च हुए थे। दावा किया गया था कि सुरक्षा के लिहाज़ से ये नया संसद भवन करीब सौ साल पुराने उस पुराने संसद भवन से हर मायने में बेहतर है। 

सिर्फ तीन महीने पहले ही 19 सितंबर को इस नए संसद भवन का शुभारंभ हुआ था।  लेकिन जिस तरह से दो लोग एक एमपी के विजिटर पास पर अपने जूते में कलर क्रैकर छुपा कर संसद भवन के अंदर दाखिल हो जाते हैं और फिर विजिटर गैलरी से नीचे छलांग लगा लेते हैं, उससे साफ है कि 13 दिसंबर 2001 से आज भी हमने कुछ नहीं सीखा।

अमूमन संसद भवन में लोकसभा या राज्यसभा की कार्यवाही देखने के लिए आम लोगों के जाने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ नियम कानून हैं, जिनमें एक सबसे अहम है कि कोई भी विजिटर जो संसद की कार्यवाही देखना चाहता है या संसद भवन जाना चाहता है, उसे अपने परिचित जो अमूमन उसी सांसद के संसदीय इलाक़े से आते हों, उनकी सिफारिश पर ही विजिटर पास मिलता है। ऐसे विजिटर पास सांसदों और मंत्रियों के अलावा लोक सभा अध्यक्ष की सिफारिश पर भी विजिटर्स को दिए जाते हैं। 

Delhi Police Logo

 


विजिटर पास मिलने के बाद संसद भवन पहुंचने पर सबसे पहले गेट पर पूरी तलाशी ली जाती है। संसद के अंदर फोन या कोई भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट ले जाने पर सख्त रोक है। मेन गेट की तलाशी के बाद संसद भवन के अंदर दो लेयर की और सिक्योरिटी होती है, जिसमें फिर से बॉडी सर्च यानी जमा तलाशी होती है। विजिटर या दर्शकों के लिए संसद भवन के अंदर दर्शक दीर्घा सदन के ऊपरी हिस्से में होती है। अब जरा सोचिए, कि संसद में घुसने वाले दोनों शख्स तीन-तीन लेयर की सिक्योरिटी को चकनाचूर करते हुए अपने जूते में कलर क्रैकर छुपा कर ले गए। अब जरा अंदाजा लगाईए कि अगर कलर क्रैकर की जगह वो कुछ और होता तो?

संसद भवन


संसद की सुरक्षा इंतजाम तीन लेयर तक होता है। जिसमें एक सुरक्षा इंतजाम बाहरी हिस्से का होता है जिसकी जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की होती है। यानी अगर कोई भी संसद भवन में जाता है या संसद भवन के भीतर जबरन घुसने की कोशिश करता है तो सबसे पहले उसे दिल्ली पुलिस के मुस्तैद सिपाहियों की नज़रों से या उनका सामना करना पड़ता है।

दूसरी लेयर पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप


इसके बाद आती है दूसरी लेयर। इस लेयर के लिए पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप जिम्मेदार होता है। 

 

पर्सनल पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस (Parliament Security Services)

वैसे राज्य सभा और लोकसभा दोनों की अलग अलग पर्सनल पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस होती है। पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस साल 2009 में गठित हुई थी। इस सर्विस के अस्तित्व में आने से पहले इसे वॉच एंड वॉर्ड के नाम से पहचाना जाता था। 

इस सिक्योरिटी सर्विस की जिम्मेदारी संसद में किसी के भी आने जाने पर नजर रखना और किसी भी हालात से निपटने के साथ साथ स्पीकर, सभापति, उपसभापति और सांसदों को सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी होती है।  जबकि पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस का काम आम लोगों के साथ साथ पत्रकारों और ऐसे लोगों के बीच क्राउड कंट्रोल करना होता है जो या तो सांसद है या फिर संवैधानिक पदों पर आसीन होते हैं।

इस सिक्योरिटी का काम है संसद पहुंचने वाले लोगों के सामान की जांच करना और स्पीकर, राज्यसभा के सभापति और उपसभापति, राष्ट्रपति की सिक्योरिटी डिटेल के साथ लायजनिंग करना होता है।

संसद भवन में कुल 12 गेट
 

संसद भवन में कुल 12 गेट हैं लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ज्यादातर गेट बंद ही रखे जाते हैं। लेकिन सभी गेट पर सुरक्षा का भारी बंदोबस्त होता है और हर दस सेकंड में यहां का सिक्योरिटी सिस्टम अपडेट किया जाता है। आमतौर पर संसद के परिसर में जिन गेटों से आवाजाही होती है उस गेट पर सुरक्षा का बंदोबस्त सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस का मिला जुला इंतजाम और अमला होता है। इन गेट से गुज़रने वाले हरेक शख्स की तलाशी ली जाती है, जबकि सांसदों, मंत्रियों और अफसरों की गाड़ियों पर सुरक्षा स्टीकर होते हैं जिन्हें कैमरे देखकर स्कैन करते हैं और उसके बाद बूम गेट खुद ब खुद खुल जाते हैं। 
 

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