काबुल धमाके की पूरी टाइमलाइन

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वक्त - शाम के 7:27 बजे

अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट के गेट पर अचानक एक बड़ा धमाका हो गया है, आसपास के इलाकों में धुए का गुबार फैल गया। लोग सकते में आए गए। हमले की आशंका तो अमेरिका और ब्रिटेन सुबह ही जता चुके थे लेकिन धमाका इतना बड़ा होगा इसका अंदाज़ा नहीं था। धमाके इतना ज़बरदस्त था कि इसमें बड़ी तादाद में लोगों के घायल होने की आशंका जताई जा रही है। धमाका के बाद काबुल एयरपोर्ट पर अफरातफरी मच गई है, तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाए जाने के बाद वहां से बड़ी तादाद में लोग देश छोड़कर भागने की कोशिश में हैं। लिहाज़ा इन्हीं हालातों को देखकर हमले की आशंका जताई गई थी।

वक्त- शाम के 7:36 बजे

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धमाके के ठीक 9 मिनट बाद यानी शाम 7 बजकर 36 मिनट पर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने काबुल एयरपोर्ट के गेट के बाहर हुए ब्लास्ट की पुष्टि की, अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के सचिव जॉन किर्बी ने कहा कि काबुल एयरपोर्ट के गेट पर बड़ा धमाका हुआ है। हालांकि तब तक मरने वालों की पुष्टि नहीं हो सकी और कहा गया कि जानकारी मिलते ही मुहैय्या कराया जाएगा।

वक्त- शाम के 8:04 बजे

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पहले धमाके के ठीक 37 मिनट बाद अफगानिस्तान के काबुल में ही सीरियल ब्लास्ट हुए, एयरपोर्ट के पास हुए पहले ब्लास्ट के कुछ देर बाद फिर से एक और धमाका हुआ है, अल जजीरा के मुताबिक तब तक ब्लास्ट में 11 लोगों की जान जाने की बात कही गई।

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हालांकि बाद में खबर आई कि इन दो धमाकों में कम से कम 13 लोगों के मरने की खबर है, वहीं कई दूसरे लोग भी घायल हो गए। पहला धमाका एयरपोर्ट के पास बने बरून होटल के नजदीक हुआ, जहां पर ब्रिटेन के सैनिक ठहरे हुए थे। दूसरा धमाका भी एयरपोर्ट के नजदीक ही हुआ है, पहले ब्लास्ट के बाद फ्रांस ने दूसरे धमाके को लेकर अलर्ट जारी किया था, जिसके कुछ देर बाद फिर से धमाका हुआ। काबुल एयरपोर्ट और उसके आस-पास के इलाकों में धमाके की वजह से अफरा-तफरी का माहौल है।

आपको बता दें कि अमेरिका समेत कुछ और नाटो देशों ने पहले ही ऐसे धमाके को लेकर खुफ़िया जानकारी दी थी। अमेरिका ने कहा था कि कुछ आतंकी संगठन काबुल एयरपोर्ट के बाहर बड़े धमाके की साज़िश रच रहे हैं। फिर जैसे जैसे वक्त गुज़रता गया, इस धमाके से जुड़ी तस्वीरें भी आने लगीं। सोशल मीडिया पर धमाके की तस्वीरें तैरने लगी। कई लोग ठेलों पर घायलों को इलाज के लिए ले जाते हुए नज़र आए।

शुरुआती जानकारी के मुताबिक इस आतंकी हमले में आईएसआईएस खुरासान की भूमिका हो सकती है। अभी भी हालाक सुधरे नहीं है, खबर है कि खूंखार आतंकवादी व्हीकल बम के जरिए काबुल एयरपोर्ट के नजदीक जमा भीड़ पर और हमले कर सकते हैं। इससे पहले खुद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी व्हाइट हाउस में अपने संबोधन के दौरान कहा था कि हम जिस जमीन पर है वहां किसी भी दिन आईएसआईएस खुरासान एयरपोर्ट को निशाना बना सकते हैं। वो हमारे सैनिकों को गठबंधन के सैनिकों और दूसरे निर्दोष नागरिकों को टारगेट बना सकते हैं।

एयरपोर्ट पर डेरा जमाए हुए लोगों को चेतावनी दी जा रही है कि वो फिलहाल किसी सुरक्षित ठिकानों की तरफ कूच कर जाएं, अगर मुमिकन हो तो वो हवाई जहाज के बदले किसी दूसरे रास्ते से वहां से निकलें।

आईएसआईएस के खुरसान मॉड्यूल ने पहले भी अफगानिस्तान में कई आतंकी हमले किए हैं। इस आतंकी संगठन ने मई में काबुल में लड़कियों के एक स्कूल पर हुए घातक विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 68 लोग मारे गए और 165 घायल हो गए थे। ISIS-K ने जून में ब्रिटिश-अमेरिकी HALO ट्रस्ट पर भी हमला किया था, जिसमें 10 लोग मारे गए और 16 दूसरे घायल हो गए थे।

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि तालिबान और आईएसआईएस के बीच दुश्मनी है। अफगानिस्तान में हुकूमत स्थापित करने में जुटे तालिबान ने कई बार दावा किया है कि उसका आईएसआईएस से कोई संबंध नहीं है और वो अपनी जमीन पर इन आतंकियों को बर्दाश्त नहीं करेगा। आईएसआईएस ने 19 अगस्त को आधिकारिक बयान जारी कर कहा था कि तालिबान अमेरिका का पिट्ठू है। इस्लामिक स्टेट ने ये भी कहा था कि अफगानिस्तान में जो कुछ भी हुआ वो तालिबान नहीं, बल्कि अमेरिका की जीत है। क्योंकि तालिबान ने अमेरिका के साथ बातचीत कर इस सफलता को पाया है।

अफगानिस्तान में सरकार बनाने जा रहे तालिबान को सबसे ज्यादा खतरा आईएसआईएस से लग रहा है। अगर अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव बढ़ता है तो इससे तालिबान का असर कम होगा। दूसरा, तालिबान अफगान धरती पर आईएसआईएस को रोककर दुनिया को ये संदेश देने की कोशिश भी कर सकता है कि वो आतंकी संगठनों को अब पनाह नहीं दे रहा। हालांकि, इससे आईएसआईएस को अपने अस्तित्व का खतरा महसूस हो रहा है। डर को बेचने वाला ये आतंकी समूह हर हाल में तालिबान को नीचा दिखाने की कोशिश में जुटा है। 1999 में स्थापित हुए आईएसआईएस को दुनिया ने 2014 के बाद से ही जानना शुरू किया। इससे पहले सीरिया, इराक या बाकी दूसरे देशों में इसका प्रभाव नहीं था।

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