Turkey 'Operation DOST': तुर्किए के मलबे में दबी ज़िंदगी को बचा रहे हैं हिन्दुस्तानी डॉग्स, 'जूली' ने ऐसे ढूंढ़ निकाला तबाही के ढेर में छुपी छह साल की मासूम को

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Turkey 'Operation DOST':  तुर्किए के मलबे में दबी ज़िंदगी को बचा रहे हैं हिन्दुस्तानी डॉग्स, 'जूली'...
तुर्किए में भूकंप के बाद मलबा बन चुके शहरों में ज़िंदगी को तलाशने के मिशन पर पहुँचे हिन्दुस्तानी
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Turkey 'Operation DOST: भूकंप के बाद तुर्किए में हालात बहुत खराब हैं...जिन्हें शायद शब्दों में बयां भी नहीं किया जा सकता। सचमुच हालात किस कदर खराब होंगे उन इलाक़ों में जहां सोमवार के भूकंप ने जिंदगी को पूरी तरह से उजाड़ दिया है। जहां हजारों की तादाद में बिल्डिंग तहस नहस हो चुकी ...और लाखों लोगों के बसे बसाए आशियाने तबाह हो गए। जरा सोच कर देखिये जहां 21 हज़ार से ज़्यादा शवों को अभी तक निकालकर गिना जा चुका है वहां का आलम क्या होगा। तुर्की और सीरिया में भूकंप के बाद मरने वालों का आंकड़ा दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। मलबे का ढेर हर रोज सैकड़ों की संख्या में लाशों को उगल रहा है। और इस पर कोढ़ में खाज ये है कि बेहद ठंडे मौसम की वजह से राहत और बचाव कार्य की रफ्तार एक दम से कुंद पड़ चुकी है। राहत के काम में लगी टीमों को अलग अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। तुर्किए में सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि मलबे के ढेर से जिंदगी की तलाश कैसे की जाए..

तुर्किए में ऑपरेशन दोस्त का हिस्सा बने NDRF के डॉग स्क्वॉड

तुर्किए में आए इस भूकंप में हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन मलबे में तब्दील हो चुके तुर्किये के तमाम शहरों में अभी भी सैकड़ों की तादाद में लोग मलबे के नीचे दबे हुए हैं। जाहिर है ऐसे में मलबे में दबे लोगों को वहां से निकालकर जिंदगी देना पहली प्राथमिकता बन गई है। मगर सवाल उठता है कि आखिर सैकड़ों टन मलबों के नीचे फंसी जिंदगी तक आखिर पहुँचा कैसे जाए...और इससे भी बड़ा सवाल ये है कि उनका पता कैसे लगाया जाए कि मलबे के किस हिस्से में कहां जिंदगी अब भी सांस ले रही है। 

इस मिशन या यूं कहें इस बड़ी और इंसानियत को बचाने की अहम जिम्मेदारी उठाई है भारत की NDRF की उन दो टीमों ने जो ऑपरेशन दोस्त के तहत राहत देने के लिए टर्की पहुँची हैं। और इस सबसे जरूरी मिशन की कमान संभाली है NDRFकी टीम में शामिल उन चार डॉग्स ने जो इस काम के लिए न सिर्फ तजुर्बेकार भी हैं और अपने इस काम में सबसे ज़्यादा माहिर भी। 

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और तुर्किए में इस अहम काम के लिए मोर्चा संभाला हिन्दुस्तान से इंसानियत की हिफाजत के लिए तुर्की की जमीन पर पहुँचे जूली, रोमियो, हनी और रैंबो नाम के ये चार डॉग्स ने। ये चारो जांबाज ऐसे काम के लिए खास तौर पर ट्रेंड किए गए हैं। लेब्राडोर नस्ल के इन चार डॉग्स ने तुर्किए में अपने कारनामों को अंजाम देना भी शुरू कर दिया है। ये डॉग्स इतने एक्सपर्ट हैं कि मलबे में बेहद मामूली मूवमेंट और महक को बहुत तेजी से सूंघकर उसके बारे में इशारा कर देते हैं जिससे टीमों को मलबे के उस हिस्से में नीचे दबी किसी जिंदा इंसान का पता मिल जाता है और उन्हें वहां से निकालने का काम तेज कर दिया जाता है। 

ये है जूली जिसने तुर्किए में मलबे में दबी एक छह साल की बच्ची को जिंदा ढूंढ निकाला

इस काम में सबसे ऊपर नाम जूली और रोमियो का सामने आता है क्योंकि ये दोनों ही पूरी दुनिया में अपने इस हुनर के लिए बहुत नाम कमा चुके हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण तब सामने आया जब गंजियनटेप शहर में एक इमारत के मलबे में दबी 6 साल की बच्ची को बड़ी ही सफलता पूर्वक बाहर निकाला गया। उस बच्ची तक पहुँचने में जिस स्निफर डॉग की जी खोलकर तारीफ हो रही है वो कोई और नहीं बल्कि जूली है। असल में उस बच्ची की महक सबसे पहले जूली ने महसूस की और उसने अपनी टीम को इस बात का इशारा किया कि यहां ज़िंदगी सांस ले रही है। अगर कुछ वक़्त तक उस बच्ची को वहां से नहीं निकाला जाता तो शायद वो जिंदा नहीं बचती। यूं तो NDRF की टीम डॉग स्क्वॉड के साथ साथ तमाम जरूरी और आधुनिक साजो सामान से लैस है। 

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