जोशीमठ के दर्द की कहानी लिखी गई थी दशकों पहले.. लाल निशान रूला रहा है जोशीमठ को.. पढ़िए पहाड़ के दर्द की दास्तान...
Joshimath Update: 46 साल पहले.. मिश्रा कमेटी ने चेताया था... कि जोशीमठ की बसावट मोरेन पर है.. यानी ग्लेशियर के पिघलने के बाद बचा हुआ मलबा..
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खिसकता शहर, टूटते सपने..
इमारत, सड़क और दिल में दरार..
अपने शहर में बेगाने बाशिंदे..
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पहाड़ के विकास से विनाश की कहानी...
दर्द..पहाड़ का...
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लोग टूट जाते हैं... एक घर बनाने में..
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तुम तरस नहीं खाते.. बस्तियां जलाने में...
इन दरारों से झांकती.. पहाड़ों से पुकारती..और टूटी दीवारों तक से.. ये आवाज ...जोशीमठ के लोगों की है.. कि हमारा क्या कुसूर साहब.. कहते हैं...एक बच्चा जब गोद में आता है..तो उसे घर, परिवार, सहारा, आसरा सब मिल जाता है.. ठीक वैसे ही हिमालय की गोद में बसा है जोशीमठ.. हां वही जोशीमठ जो आज बेसहारा हैं.. अनाथ है.. बेघर है.. और सब बिखरा बिखरा सा है..
कंधे पर रोटी का बोझ.. आंखो में अपने पाई-पाई से बने आशियाने को हमेशा के लिए छोड़ देने का दर्द.. इन पहाड़ियों की गहराई भी इस वक्त जोशीमठ के लोगों के दुख को आंक पाने में फ़ेल साबित हो रही हैं.. कंधे पर गैस सिलेंडर उठाए बस चलना है.. चलना है तब तक, जब तक आस है..उम्मीद है....लेकिन पलायन करने वाले ये मजबूर लोग सच से पूरी तरह वाकिफ़ है.. वो जानते हैं की जिस मकान को भावनाओं..सपनो..उम्मीदों से घर बनाया था.. चंद दिनों में वो ढह जाएगा.. बिखर जाएगा एक-एक ईट जिसपर टिका था भविष्य.. मलबा बन जाएगा वो सब कुछ जो सपना हुआ करता था. और यही वो कलेजे को चीरता दर्द है जो आज जोशीमठ का सच है..
पूंजी थी मेरे जीवन की वो छोटा सा कमरा..
— Manisha Jha (@manishajha_ofc) January 16, 2023
मिटा दिया किसी ने महज़ इक लकीर की तरह..#josimath #savejoshimath pic.twitter.com/aE8VHD0x9e
कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी बर्बाद नही होती..लेकिन पहाड़ का पानी इन दरकती हुई दीवारों से निकलकर लोगों को डरा रही है... और पहाड़ की मिट्टी में पैदा होके पहाड़ पर बचपन, जवानी गुज़ारने के बाद यहां के बाशिंदे बुढ़ापे में अब नया ठिकाना तलाशने को मजबूर और बेबस हैं..
लोगों के घर पर लगे हैं लाल निशान
अब सवाल ये कि अचानक ऐसा क्या हो गया की जोशीमठ के लोगों के घर पर लाल रंग के इस निशान ने ज़िंदगी की रफ्तार को रोक दिया.. ऐसा क्या हुआ की आज ये लोग अपने ही घर से अपना सामान बांध कर विदा किए जा रहे हैं.. ऐसा क्या हुआ की एक एक ईंट जिस मकान की खुद रखी हो.. जिस घर की दीवार और छत ईट और बजरी नही.. बल्कि प्यार और उम्मीदों की हो.. वहां से अपनी खुशियों को छोटे-छोटे झोले में ले जाने को ये मजबूर हैं. खूबसूरत जोशीमठ कैसे ताश के पत्तों की तरह ढह रहा है..ये समझने के लिए आपको विकास से विनाश की कहानी को समझना होगा..
विकास के नाम पर लोगों के आशियाने की नीव हिला देने वाली सच्चाई को यहां के लोग खुद बताते हैं.. यहां के लोग जोशीमठ के तलहटी में हो रहे एनटीपीसी के हाइड्रो प्रोजेक्ट को जिम्मेदार ठहरा रहे है.. गांव वालो का आरोप है एनटीपीसी के हाइड्रो प्रोजेक्ट ने उनके जोशीमठ के नीव को कमजोर किया है.. लेकिन कोई भी सरकारी मुलाजिम इस पर बात करता नही दिख रहा है.. एनटीपीसी का कहना है कि ज़मीन धसने और प्रोजेक्ट का कोई कनेक्शन नहीं है..
चेतावनी के बाद भी नहीं रूका ‘विनाश वाला विकास’
ऐसा नहीं है की ये सब अचानक हुआ.. रातों रात हुआ.. इसकी आहट तो कई सालों से सुनाई दे रही थी.. पहले कई बार..कई मौकों पर.. ये चेताया गया की जोशीमठ की जड़ से छेड़छाड़ का नतीजा भयावह हो सकता है.. 46 साल पहले.. मिश्रा कमेटी ने चेताया था.. कहा था... की जोशीमठ की बसावट मोरेन पर है.. मोरेन यानी ग्लेशियर के पिघलने के बाद बचा हुआ मलबा..ये तक कहा गया था की जोशीमठ के जड़ से जुड़ी चट्टानों को बिल्कुल नही छेड़ा जाना चाहिए..और विकास का काम भी बहुत ज्यादा ज़रूरी होने पर कम से कम किया जाए..यानी दायरे में ही किया जाए.. रेतीली चट्टान पे बसे जोशीमठ की तलहटी काफ़ी ज्यादा संवेदनशील है.. यहां खुदाई, सुरंग,निर्माण.. खासतौर पर खनन से सबसे ज्यादा खतरा बताया गया था.. सरकार इन सारी चीज़ों को नजरंदाज करते हुए विकास की दीवार ऊंची करती गई.. और नीचे धसती गई.. लोगो की जिदंगी..आगे सुनिए.. कहानी यही खत्म नहीं होती.. हाल ही में 2019 और 2022 की आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया था..की हिमालय की गोद में बसे इलाके संवेदनशील है.. लेकिन हमेशा हादसे के बाद सबक लेने की शायद आदत हो गई है....समय रहते फैसला लेने की नहीं.
अब तक 600 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी हैं.. जोशीमठ में कुल 4500 इमारते हैं.. जोशीमठ के लोग इस बात को तब थोड़ा पचा भी पाते अगर ये आपदा..ये तकलीफ.. प्राकृतिक होती.. मगर वो इसे साफ साफ नज़रअंदाजी और लापरवाही का नतीजा मानते है..खैर इन आंसुओं को ना तो सरकार समझ पाएगी... न अधिकारी.. और ना ही हम–आप.. क्योंकि...
जिस तन लागे वो मन जाने...कोई न जाने पीड़ पराई...
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