इजराइल हमास जंग में अमेरिका को सता रही है चीन की चिंता
Israel-Hamas War Upends: इधर इजराइल अपनी पूरी ताकत झोंककर हमास को मटियामेट करने पर आमादा है, और इजराइल की मदद करने के लिए अमेरिका ने भी अपनी झोली खोल दी है, बावजूद इसके अमेरिका को चीन की चिंता सता रही है।
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Israel-Hamas War Upends: हमास के हमले के बाद अमेरिका ने इजरायल को समर्थन देने के लिए सबसे पहले गोला-बारूद से भरा प्लेन भेजा। फिर अमेरिका ने गेलाल्ड आर फोर्ड युद्धपोत को भूमध्य सागर की तरफ मोड़ दिया। इसके बाद अमेरिका ने अपने विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री को भी इजरायल से समर्थन दिखाने के लिए भेज दिया।
अमेरिका का दुश्मनों को संदेश
पहली नजर में लगेगा कि अमेरिका ने ये सब इजरायल को समर्थन देने के लिए किया। उसके दुश्मनों को संदेश दिया कि इजरायल अकेला नहीं है। लेकिन जानकार इसके पीछे की बात समझाते हुए कहते हैं कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की ये मदद दरअसल ईरान को एक चेतावनी की तरह है कि वो मामले को ज्यादा न बढ़ाए वरना सबक सिखा दिया जाएगा।
चुनौती तो रूस को देने की
अब आप कहेंगे कि अमेरिका ऐसा क्यों करेगा, तो उसे समझने के लिए आपको यूक्रेन चलना होगा. जिसे अमेरिका और नाटो देश खुलकर मदद कर रहे हैं. इसके बावजूद वो रूस को चुनौती नहीं दे पाया है। रूस-यूक्रेन युद्ध को 500 दिन से ज्यादा बीत गए हैं। इसके बावजूद न तो रूस कमजोर हुआ है और न ही पुतिन।
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500 दिन बाद चौंकाने वाली बात
यूक्रेन को अमेरिका और यूरोप ने अरबों डॉलर खर्च कर उसे हथियार दिए। जिससे रूस यूक्रेन को तबाह ना कर पाए और खुद ब खुद इस युद्ध में हार जाए। इस तरह इस युद्ध में यूक्रेन की जीत नाटो, अमेरिका और यूरोप की जीत मानी जाएगी। इसी रणनीति के तहत अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देशों ने रूस को कमजोर करने के लिए उस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। इनसे रूस पर विपरीत असर भी हुआ है लेकिन इस युद्ध के 500 दिन बाद चौंकाने वाली बात सामने आई है।
- जर्मनी की विदेशी खुफिया एजेंसी बीएनडी के मुताबिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का तंत्र अब भी बहुत मजबूत है और उसमें किसी तरह की कोई दरार तक नहीं आई है।
- नए सैनिकों की भर्ती के साथ रूस युद्ध को अब लंबी खींचने में सक्षम हो गया है और उसके पास हथियारों की कोई कमी नहीं है।
रूस पर लगाए प्रतिबंध
ये दावा सोचने को मजबूर करता है कि आखिर 15 महीने पहले पुतिन ने जब विशेष सैन्य अभियान के नाम पर यूक्रेन पर हमला बोला था, तब से नाटो के सहयोग से भले ही यूक्रेन टिका रहा हो, लेकिन रूस कमजोर क्यों नहीं हुआ जबकि उस पर तो पश्चिमी देशों ने अच्छे खासे प्रतिबंध लगाए थे।
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रूस को अलग-थलग करने के सारे प्रयास बेकार
प्रतिबंधों के बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था कायम है। पुतिन के खिलाफ किसी तरह का बड़ा विरोध तक नहीं दिख रहा है। हकीकत तो यह है कि युद्ध के फौरन बाद जो रूसी मुद्रा रुबल में बहुत ज्यादा गिरावट आई थी। उससे रूस ना केवल उबर चुका है बल्कि वह पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह अपने पुराने संबंधों को कायम रखे हुए है उसके दोस्त बढ़े नहीं तो कम भी नहीं हुए हैं। यानी रूस को अलग-थलग करने के सारे प्रयास बेकार होते दिख रहे हैं।
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युद्ध का एक और नया फ्रंट
जब अमेरिका और नाटो देश रूस के साथ यूक्रेन में फंसे हुए हैं तो क्या वो युद्ध का एक और नया फ्रंट खोलना चाहेंगे। ऐसी स्थिति में अमेरिका और नाटो देशों को पहले के मुकाबले ज्यादा हथियार बनाने होंगे। जबकि कई रिपोर्ट ये बता चुकी हैं कि अमेरिका और यूरोप के पास गोला बारूद खत्म हो गया है। ऐसे में जानकार मानते हैं कि अमेरिका की कोशिश होगी कि हमास के हमले के बाद बात आगे न बढ़े।
चीन को लेकर अमेरिका की चिंता
अमेरिका के लिए चिंता की बात ये भी है कि जंग की सूरत में मध्य पूर्व में उसकी स्थित कमजोर होगी। वहीं चीन को मौका मिल जाएगा। चीन और सऊदी अरब की दोस्ती से अमेरिका पहले से ही परेशान था। इसलिए उसने रक्षा सौदे के बदले में इजरायल से समझौता किया। लेकिन गाजा पर हमले से तस्वीर बदल सकती है. क्योंकि इजरायल और ईरान के बीच जंग की सूरत में अमेरिका को खुलकर सामने आना होगा। जिसका सीधा फायदा चीन को होगा इसलिए इजरायल के लिए भी इस बार पहले जैसे हालात नहीं हैं
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