किस्सा डॉन आनंद मोहन की ठसक का.... सिर उठाते सवाल और रिहाई पर हो रहा बवाल

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किस्सा डॉन आनंद मोहन की ठसक का.... सिर उठाते सवाल और रिहाई पर हो रहा बवाल
किस्सा आनंद मोहन और उसके रुआब का
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बिहार के आनंद मोहन का नाम इन दिनों सुर्खियों का हिस्सा है। अपराध की दुनिया से ताल्लुक रखने वाला ये नाम इन दिनों सियासत की गर्मागर्म बहस का हिस्सा बना हुआ है। 
आनंद मोहन जब भी किसी रास्ते पर निकलता तो सब कुछ थम सा जाता है। आता जाता ट्रैफिक, घरों से निकलते लोगों की पलकें...और वो सब कुछ जिसके हिलते डुलते रहने से बात बिगड़ भी सकती है। लेकिन  निकला आनंद मोहन... और वो भी चश्मा लगाकर, सदरी तानकर,  मूंछें ऐंठकर। 
आनंद मोहन पर कोई मामूली जुर्म का दाग लगा है। बल्कि एक IAS अफसर जी कृष्णैया की हत्या का दोषी है आनंद मोहन। लेकिन जेल से रिहाई मिलने से पहले जेल जाने के लिए जब आनंद मोहन घर से निकला तो उसका ये रुआब था...या यूं कहें कि ये स्टाइल था...आनंद मोहन की बेसब्री का अंदाजा इसलिए भी लगाया जा सकता है कि उसे मालूम हो गया है कि अब उसे अपने बिहार में बहुत मजा आने वाला है...क्योंकि अब जेल से उसकी रिहायी पक्की हो गई है...इन दिनों आनंद मोहन से कुछ भी पूछिये...एक ही जवाब मिलता है...रूक जाइये अब निकलेंगे। बवाल ये है कि आनंद मोहन जिन IAS जी कृष्णैया की हत्या का दोषी है उनका परिवार और पूरी IAS एसो. रिहाई पर सवाल उठा रही है।

वो अतीत जो आनंद मोहन का पीछा नहीं छोड सकता


क्या गजब का मंजर है जिस चेहरे पर पश्चाताप होना चाहिए, जहां ग्लानि का भाव होना चाहिए...अपनी गलती का अहसास होना चाहिए...और जिसने अपने किए की सजा भी पूरी न काटी हो उसे अपनी बेवक्त की रिहाई के लिए शुभकामनाओं का इंतजार है। 
यहां ये सवाल जरूर खड़ा हो जाता हैकि एक गुनहगार के चेहरे पर यकीन की ऐसी लकीरें कैसे पैदा हो सकती हैं। ये आत्मविश्वास कैसे पैदा हो सकता है...
इन दिनों आनंद मोहन की तस्वीर को देखकर अगर कोई किसी सजा याफ्ता मुजरिम का चेहरा पढ़ने का हुनर रखता है तो जरा पढ़कर बताए कि क्या यहां इंसाफ नहीं पस्त हो रहा। जरा आनंद मोहन के चेहरे पर उभरी इत्मिनान की सिलवटें ये नहीं बता रहीं है कि उसकी आजादी की बात अब सरकारी दस्तावेज पर लिखी वो इबारत है जिसे मिटाया नहीं जा सकता। 
यही है आनंद मोहन का रुआब और उसकी ठसक। जो पूरे रौब के साथ गाड़ी में बैठता है और इस दावे के साथ हवा हो जाता है कि अब तो उसे आजाद हवा में ही सांस लेनी है। असल में एक सजायाफ्ता या एक मुजरिम को ये भरोसा इसलिए भी है क्योंकि अब उसे अपनी ताकत का अंदाजा होने लगा है...जो कुछ उसने अतीत में किया वो अब उसके लिए एसेट्स बन चुका है। 

  • आनंद मोहन 1994 में IAS जी कृष्णैया की हत्या का दोषी है। 
  • 2007 में फांसी की सजा हुई। 
  • 2008 में सजा उम्रकैद में बदली। 
  • 6 महीने में तीन बार बेटी-बेटा की सगाई शादी पर परोल पर जेल से बाहर आता रहा
  • आनंद मोहन अबतक 14 साल ही सजा काटा है। 
  • 20 साल की सजा बिहार सरकार के नियम बदलने से 14 साल में पूरी होने जा रही है।

इसीलिए बेटे की सगाई करके वापस जेल में सरेंडर करने पहुंचता है। आनंद मोहन की गाड़ी सहरसा जेल पहुंचती है। जेल पहुंचते ही मीडिया के कैमरों को सुरक्षाकर्मी रोक देते हैं। चमचमाती नई कार में पहुंचा आनंद मोहन मीडिया के कैमरे देखकर हाथ जोड़कर जताता है....कि उसके पास उसके दोनों हाथों में सत्ता और सियासत का गठजोड़ है।
आनंद मोहन का सुना गया एक बयान कुछ ऐसा है जिसे सुनकर उसके गुमान का अंदाजा आसानी से हो सकता है वो कहता है कि बेटी की सगाई से जो प्रक्रिया उसकी रिहाई की शुरु हुई, वो बेटे की सगाई पर आकर पूरी हो गई। 
अब यहां एक सवाल जरूर सामने खड़े होकर अपना सिर उठा लेता है कि  क्या आनंद मोहन की रिहाई में थोड़ा जल्दबाजी नीतीश सरकार ने की है। सवाल उठ रहा है कि क्या आनंद मोहन को जल्द जेल से छोड़ने की सूची बनाने में बहुत हड़बड़ी कर दी नीतीश कुमार सरकार ने। क्योंकि चार सबूत इस सवाल को अपना समर्थन देते दिखाई दिए...

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  • पहला सबूत- आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई वाली जो सूची नीतीश सरकार ने जारी की। उसमें एक कैदी है पतिराम राय का भी नाम शामिल है। जिसकी मृत्यु पिछले साल नवंबर में ही हो चुकी है। यानी आनंद मोहन को छोड़ने की ह़ड़बड़ी में नीतीश सरकार ने जो सूची बनाई, उसमें पहले ही दुनिया छोड़ चुके कैदी का भी नाम शामिल कर दिया।
  • दूसरा सबूत- आनंद मोहन को छोड़ने के लिए बनी सूची जल्दबाजी में बनी है, ये साबित होता है दो ऐसे कैदियों का नाम शामिल होने से, जिनके नाम के आगे लिखी जेल में वो बंद ही नहीं हैं। ये दोनों कैदी पहले ही दूसरी जेल में शिफ्ट हो चुके हैं। 
  • तीसरा सबूत-किसी को भी रिहा करते वक्त जेल में अच्छा आचरण देखा जाता है। लेकिन आनंद मोहन तो जेल में मोबाइल रखने से लेकर कोर्ट में पेशी के दौरान घर तक चले जाने के आरोपों के घेरे में रहा है। फिर कैसा अच्छा आचरण देखकर उसकी रिहाई की जा रही है। 
  • चौथा सबूत- 2004 में आनंद मोहन ने अपने चुनावी हलफनामे में उम्र 44 साल बताई। आनंद मोहन के एफिडेविट के मुताबिक आज उम्र 64 साल से ज्यादा नहीं हो सकती। लेकिन रिहाई के सरकारी आदेश में आनंद मोहन की उम्र 75 साल लिखी जाती है। 

क्या इसलिए ताकि आनंद मोहन को भी उम्रदराज बताकर सहानुभूति वाली सियासी लहर दिखाई जा सके या फिर इसलिए क्योंकि आनंद मोहन को छोड़ने की जल्दबाजी में सार सूची बनी।
 

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