इस वजह से हटाया गया हिमाचल के डीजीपी संजय कुंडू को? एक ही दिन में डीजीपी ने शिकायतकर्ता को की थी 15 बार कॉल

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Himachal DGP Sanjay Kundu removed from his post
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कमलजीत संधू के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट

Himachal DGP Sanjay Kundu removed from his post: हिमाचल के डीजीपी पद पर रहे संजय कुंडू पर गंभीर इल्जाम हैं। यहां तक हाईकोर्ट ने भी उन पर गंभीर टिप्पणी की है। दरअसल, ये कहानी शुरू होती है निशांत शर्मा से। निशांत शर्मा एक व्यापारी है, जिसके होटल हैं। वो पालमपुर के रहने वाले हैं। 28 अक्टूबर को व्यवसायी निशांत शर्मा ने इस बाबत शिकायत की थी। उन्होंने पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू के आचरण पर भी सवाल उठाया था और आरोप लगाया था कि अधिकारी ने उन्हें फोन किया और शिमला आने के लिए कहा। सवाल यहां ये उठता है कि क्या दूसरे पक्ष से डीजीपी की दोस्ती थी, लिहाजा इस वजह से वो निशांत पर दबाव बना रहे थे?

25 अगस्त को हुआ था उन पर हमला

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व्यवसायी ने 28 अक्टूबर की शिकायत में आरोप लगाया था कि 25 अगस्त को गुरुग्राम में उसके व्यापारिक साझेदारों ने उस पर हमला किया था और इसमें एक पूर्व आईपीएस अधिकारी सहित हिमाचल प्रदेश के दो प्रभावशाली व्यक्ति भी शामिल थे। सवाल ये उठता है कि वो पूर्व आईपीएस कौन था? निशांत पर हमला क्यों किया गया था?

उन्होंने कहा कि हमले के बाद वह कांगड़ा जिले के पालमपुर आए, लेकिन डीजीपी ने उन्हें अपने आधिकारिक नंबर से फोन किया और "मुझे शिमला आने के लिए मजबूर किया"। व्यवसायी ने आरोप लगाया है, "उसी दिन धर्मशाला के मैक्लोडगंज में दो अपराधियों ने मुझे रोका और मेरे ढाई साल के बच्चे और पत्नी को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी।" उन्होंने अपनी शिकायत में दावा किया, ''मैं धर्मशाला में पुलिस अधीक्षक, कांगड़ा (शालिनी अग्निहोत्री) के घर गया और उन्हें अपनी दुर्दशा बताई और उन्हें अपनी शिकायत दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।''

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डीजीपी ने दायर किया था मानहानि केस

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उधर, डीजीपी ने 4 नवंबर को व्यवसायी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जिसमें उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उनकी छवि खराब करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया था। अपनी मानहानि शिकायत में डीजीपी संजय कुंडू ने कहा कि शर्मा ने 29 अक्टूबर को अपने आधिकारिक ईमेल पर एक ऑफ लेटर शूट किया था, जिसकी प्रतियां अन्य अधिकारियों को भेजी गई थीं, जिसमें उन्होंने उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उनकी छवि खराब करने के इरादे से झूठे आरोप लगाए थे। व्यवसायी के खिलाफ आईपीसी की धारा 211 (चोट पहुंचाने के इरादे से किया गया अपराध का झूठा आरोप), 469 (प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी), 499 (मानहानि) और 500 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

क्या कहा था कोर्ट ने?

अदालत ने पाया कि 28 अक्टूबर को शिकायतकर्ता से एक ईमेल के माध्यम से शिकायत प्राप्त होने के बावजूद एसपी, कांगड़ा ने जानबूझकर 16 नवंबर तक एफआईआर दर्ज करने में देरी करने के बाद जांच में बहुत कम प्रगति दिखाई। इससे पहले 10 नवंबर को हाई कोर्ट ने शिमला और कांगड़ा के एसपी को 16 नवंबर तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया था। इसके बाद ही धर्मशाला के मैक्लोडगंज पुलिस स्टेशन ने शर्मा की शिकायत पर अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।

आरोप है कि डीजीपी ने कथित तौर पर 27 अक्टूबर (पंद्रह मिस्ड कॉल) को शिकायतकर्ता से संपर्क करने का बार-बार प्रयास किया और शिकायतकर्ता को निगरानी में रखा था और शिकायतकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।

न्यायालय ने पाया कि गृह सचिव के पास कांगड़ा और शिमला के पुलिस अधीक्षकों द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट का अध्ययन करने और वर्तमान पुलिस महानिदेशक को सर्वोच्च पद पर बने रहने पर निर्णय लेने का पर्याप्त अवसर था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। 

ये तथ्य जानने भी जरूरी हैं - 

दिसंबर में कोर्ट में सुनवाई के दौरान ये हुआ

केस की 26 दिसंबर को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की बैंच ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि संजय कुंडू ने निशांत शर्मा को बार-बार फोन कॉल किए। कुछ पुलिस कर्मचारियों को भी निशांत की सर्विलांस में लगाया। इसी तरह कांगड़ा की SP शालिनी अग्निहोत्री ने निशांत शर्मा की शिकायत पर प्रभावी ढंग से जांच नहीं की।

सबसे पहले 25 अगस्त को हुआ था गुरुग्राम में निशांत पर हमला! दो महीने में दो बार हुई घटनाएं

निशांत के अनुसार, उन पर 25 अगस्त 2023 को गुरुग्राम में हमला हुआ जिसमें वह खुद और उनका ढाई साल का बेटा घायल हो गया। उस हमले के तार हिमाचल से जुड़े हैं। हमले की CCTV फुटेज मौजूद है जिसकी जांच हरियाणा पुलिस कर रही है।

2 महीने बाद फिर धर्मशाला में दी गई धमकी

निशांत के मुताबिक, गुरुग्राम में हुए हमले के 2 महीने बाद 27 अक्टूबर 2023 को धर्मशाला के भागसूनाग में कुछ लोगों ने उनका रास्ता रोककर धमकी दी। इस धमकी के अगले ही दिन, 28 अक्टूबर को उन्होंने कांगड़ा पुलिस को शिकायत दे दी मगर कई दिनों तक पुलिस ने FIR ही दर्ज नहीं की। सवाल ये उठता है कि दो महीने बाद 27 अक्टूबर को जो उनको धमकी दी गई, वो किसने दी थी? क्यों डीजीपी इस केस में दिलचस्पी दिखा रहे थे?

 

सवाल ये उठता है कि क्यों दोनों केस एक-दूसरे से संबंधित हैं? 

क्यों डीजीपी इतनी दिलचस्पी दिखा रहे थे?

पहले केस में वो पूर्व आईपीएस कौन हैं, जो हमले में शामिल था?

निशांत शर्मा का क्या आपराधिक रिकार्ड है?

क्यों डीजीपी ने निशांत को एक ही दिन में इतने काल किए?

25 अगस्त और 27 अक्टूबर वाली घटनाओं में कौन-कौन शामिल थे?

क्यों 27 अक्टूबर को जब निशांत को धमकाया गया था, उस वक्त डीजीपी उसे काल कर रहे थे?

क्यों 27 अक्टूबर वाली घटना के कई दिनों के बाद एफआईआर दर्ज हुई?

 

हाईकोर्ट के स्वत: संज्ञान लिया

इसके बाद निशांत शर्मा ने हाईकोर्ट को भेजी गई ईमेल में कहा कि उन्हें और उनके परिवार को जान का खतरा है। उन पर हरियाणा के गुरुग्राम के साथ-साथ मैक्लोडगंज में भी हमला हो चुका है। निशांत शर्मा ने इस आधार पर कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की थी कि उसे प्रभावशाली लोगों से सुरक्षा की जरूरत है। हाईकोर्ट ने इस ईमेल का स्वत: संज्ञान लेते हुए कांगड़ा और शिमला जिलों के SP से रिपोर्ट मांग ली। हाईकोर्ट की इस जवाब के बाद कांगड़ा पुलिस ने मैक्लोडगंज थाने में FIR दर्ज कर ली। निशांत शर्मा की शिकायत के 21 दिन बाद उन्हें धमकी देने के आरोप में ये FIR दो अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई।

हाईकोर्ट के आदेश पर इस FIR की जांच कांगड़ा की SP शालिनी अग्निहोत्री खुद कर रही थीं मगर पुलिस 2 महीने बाद भी निशांत शर्मा को धमकाने वाले लोगों की पहचान नहीं कर पाई।

DGP भी करवा चुके निशांत के खिलाफ FIR

उधर DGP संजय कुंडू ने भी निशांत शर्मा पर उनका नाम घसीटकर उन्हें बदनाम करने और उनकी छवि खराब करने की कोशिश का आरोप लगाते हुए छोटा शिमला पुलिस थाने में उनके खिलाफ FIR दर्ज करा दी। इसमें निशांत शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने DGP समेत अन्य अफसरों को जो शिकायत-पत्र लिखे, उनमें अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया। इस FIR की जांच शिमला के SP कर रहे हैं।

 

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