डायन खा गई तीन लोगों को!

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झारखंड में अंधविश्वास के नाम पर किसी की बलि देना किसी की हत्या कर देना नयी बात नहीं है. झारखंड का ये कुप्रथा देश में किसी से छुपा हुआ नहीं है. आए दिन यहां पर अंधविश्वास के कारण भयानक वारदातों को अंजाम दिया जाता है. जिससे अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई बेहद ही कमजोर पड़ जाती है. हालांकि इसके लिए राज्य सरकार ने तमाम कानून बनाए हैं.

बावजूद इसके यहां पर डायन-बिसाही के नाम पर हत्या करने की क्रूर घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. हैरानी की बात ये भी है कि ऐसी वारदातों को अंजाम ज्यातर परिवार के लोग ही देते हैं. इसी कड़ी में झारखंड के गुमला में एक ही परिवार के तीन सदस्यों की जिंदगी अंधविश्वास की भेंट चढ़ा दी गई. यहां के लूटो गांव में डायन होने के शक में एक ही परिवार के तीन लोगों की टांगी से काट कर हत्या कर दी गई.

दरअसल 55 साल के बंधन उराव अपनी पत्नी सोमारी देवी और बहू एक साथ रहते थे लूटो गांव में रहते थे. जानकारी के मुताबिक बंधन उरांव की पत्नी सोमारी देवी झाड़-फूंक का काम करती थी. एक दिन तंत्र-मंत्र के करने के दौरान सोमारी का विवाद उनके दो भतीजे बिपता उरांव और जुलू उरांव से हो गया.

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जिसके बाद दोनों ने अपनी आंटी की हत्या करने का प्लान बनाया. और 25 सितम्बर की रात जब बंधन उरांव अपनी पत्नी सोमारी देवी के साथ खाना खा रहे थे तो ये बेखौफ अपराधी घर में घुस कर उनको टांगी से काट डाला.

चीख-पुकार सुनकर जब उनकी बहू बासमनी देवी मौके पर आई, तो उसकी भी निर्मम हत्या कर दी गई. उसके बाद इन दोनों ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल हथियार भी बरामद कर लिया.

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बता दें कि इससे पहले भी गुमला में डायन बिसाही के नाम पर हत्या जैसे भयानक मामले सामने आते रहे हैं. इसी साल 22 फरवरी को कामडारा थाना के बुरुहातु गांव में निकोदिन टोपनो के पूरे परिवार की हत्या डायन-बिसाही के नाम पर कर दी गई थी. इस हत्या के आरोप में गुमला पुलिस ने गांव के ही 8 लोगों को गिरफ्तार किया था.

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इस मामले में रांची कोर्ट ने स्वत:संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी की थी कोर्ट ने कहा था कि सरकार को अब गहरी नींद से जागना चाहिए राज्य में डायन कुप्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान सही तरीके से नहीं चल रहा है इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

आपको बता दें कि डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 20 अक्टूबर 1999 को बिहार विधानसभा में पारित किया था सती प्रथा के बाद ये देश का दूसरा कानून था जो अंधविश्वास के खिलाफ बना था. 2001 में इस कानून को झारखंड लागू किया गया. लेकिन फिर भी झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर हर साल करीब 50 हत्याएं की जाती हैं.

इनमें ज्यादातर महिलाएं शामिल होती हैं. यहां प्रतिदिन दो से ज्यादा मामले डायन बिसाही के दर्ज होते हैं. ये सप्ताह में 10 से ज्यादा हो जाता है. 2015से 2020 की डायन बिसाही से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो 4556 मामले दर्ज किए गए. इसमें हत्या से संबंधित 272 मामले दर्ज हैं. जिसमें 215 महिलाओं की हत्या कर दी गई.

डायन बिसाही से जुड़े मामलों में छानबीन में कुछ हैरान करने वाली बातें सामने आईं हैं. इसमें बताया गया है कि ज्यादातर हत्या निजी स्वार्थ की वजह से की गई. जिनमें पारिवारिक विवाद और जमीन हड़पने की नीयत प्रमुख है.

डायन बिसाही मामले में हत्या की एक और वजह सामने आई है, जिसमें गांव में किसी के बीमार होने पर इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जगह लोग ओझा बाबाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं और इन बाबाओं के इशारे पर हत्या की घटना को अंजाम दे देते हैं.

बता दें कि सरकार की तरफ से लगातार इन घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 लागू होने के बाद राज्य भर में डायन कुप्रथा के खिलाफ प्रचार प्रसार किया जा रहा है. जमीनी स्तर पर इसके उन्मूलन के लिए सरकार लगातार कोशिशें कर रही है. राज्य सरकार द्वारा इस सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ सभी जिलों के साप्ताहिक हाट बाजार में भी अभियान चलाया जाता है. जिसमें माइक और ऑडियो वीडियो विजुअल के जरिए प्रचार प्रसार किया जाता है.

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