Exclusive: निठारी सीरियल किलिंग, वैज्ञानिकों ने दी थी बच्चों की खोपड़ियों व कंकाल को उनकी पहचान, कैसे पहचाने गए कंकाल जानिए

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अदालत का फैसला
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Exclusive Report Nithari: निठारी का सनसनीखेज मामला उस वक्त सामने आया था जब 29 दिसंबर, 2006 को राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा के निठारी में पंढेर के मकान के पीछे ड्रेन में आठ बच्चों के कंकाल पाए गए। पंढेर की कोठी डी 5 के आसपास के क्षेत्र में ड्रेन में तलाशी के बाद कंकाल खोपड़ियां पाए गए। इनमें से ज्यादातर कंकाल खोपड़ियां गरीब बच्चों और युवतियों के थे जो उस इलाके से लापता थे। दस दिनों के भीतर सीबीआई ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली और उसे खोज के दौरान और कंकाल मिले थे।

बच्चों की खोपड़ियों को दी पहचान

जांच के दौरान इस हत्याकांड में किसी ने सबसे ज्य़ादा गंभीरता और मेहनत से काम किया तो वो वैज्ञानिक थे। चंडीगढ़ के वो वैज्ञानिक जिन्होने कंकाल खोपड़ियों को उनकी शक्ल दी और पहचान करके बताया कि ये खोपड़ी किस बच्चे की है। इतना नहीं खोपड़ी से मिले दातों की मदद से डीएनए प्रोफाइलिंग की गई ताकि पता चल सके कि ये बच्चा या बच्ची किसका है। जांच के लिए एजेंसी ने बच्चों की बरामद खोपड़ियों को चंडीगढ़ की सीएफएसएल में भेजा था। लैब में वैज्ञानिकों ने खोपड़ियों का सुपरइंपोजिशन करने का फैसला किया। खोपड़ियों को उनकी पहचान देने के लिए साइंसदांनो ने फेशियल रिकंस्ट्रक्शन करने का भी फैसला लिया। 

निठारी कांड मे हुआ था डीएनए और सुपरइंपोजिशन

निठारी किलिंग की बात करें तो इस दौरान भी जांच एजेंसियों के पास बच्चों की पहचान का कोई रास्ता नहीं था लेकिन इस केस में भी जांच एजेंसी ने चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब से सभी बच्चों के डीएनए प्रोफाइलिंग कराई गई और उनकी दांत से लिक्विड लिए गए और उनके माता-पिता के ब्लड से मिलाया गया और उनकी पहचान हो सकी। जिन बच्चों की पहचान डीएनए से नहीं हो सकी उन बच्चों की पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने फेशियल रिकॉनस्ट्रक्शन तकनीक का इस्तेमाल किया और फेशियल सुपरिंपोजिशन के जरिए उनके कंकालों को उनकी पहचान दी गई। 

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क्या है सुपर इंपोजिशन तकनीक? 

फेशियल सुपरइंपोजिशन एक फोरेंसिक तकनीक है। इस टेस्ट में साइटिस्ट के पास खोपड़ी होती है और जिस शक के मरने का शक है उसकी तस्वीर भी साथ में मौजूद रहती है। साइंसदां फोटो को कंप्यूटर में एक विशेष साफ्टवेयर की मदद से खोपड़ी और तस्वीर का मिलान करते हैं। इस तकनीक से कंकाल बनी खोपड़ी के खास हिस्सों मसलन ललाट, मुंह और माथे के हिस्सों का तस्वीर से मिलान किया जाता है। इस टेस्ट से साबित हो जाता है कि खोपड़ी और फोटो के फीचर मिलते हैं। इस प्रयोग में टेक्निकल कैलकुलेशन के ज़रिए दोनों तस्वीरों के मार्फ़ोलॉजिकल फीचर्स के अध्ययन किया जाता है। इनमें तस्वीरों के ललाट, भौं, नाक, ग्लाबेला, होंठ, आंख, चेहरे की बनावट जैसे करीब 15 बिंदुओं को परखा जाता है। फिर साइंसदान आखिरी नतीजे पर पहुंच कर अपनी रिपोर्ट देते हैं। 

क्या है फेशियल रिकंसट्रक्शन तकनीक

किसी घटना में यदि सिर का हिस्सा मिलता है तो पुलिस एक और तकनीक का इस्तेमाल कर सकती है जिसे कि फेशियल रिकंसट्रक्शन तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल मैनुअली किया जाता है। जिसके तहत कंकाल खोपड़ी में मांस और त्वचा जैसा एक खास तरह का मैटेरियल भरा जाता है। इस प्रक्रिया में बाकायदा पूरा चेहरा बनाया जाता है। जिसमें आंख कान नाक होठ सब हिस्से आर्टिफिशियल तरीके से लगाए जाते हैं। फेशियल रिकंसट्रक्शन तकनीक से मृतक का चेहरा बना दिया जाता है। 

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साइंटिफिक इनवेस्टिगेशन की खास रिपोर्ट

आखिर में इस चेहरे को मृतक या संदिग्ध की फोटो से मिलान किया जाता है। साइंटिफिक और फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत और गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया है। 

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