तिहाड़ जेल के अंदर का नंगा, घिनौना, खूनी और दहलाने वाला सच, वीडियो वायरल

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तिहाड़ जेल के अंदर का नंगा, घिनौना, खूनी और दहलाने वाला सच, वीडियो वायरल
तिहाड में गैंग्स्टर टिल्लू ताजपुरिया के कत्ल की सीसीटीवी तस्वीरों से दुनिया हैरान
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वो तस्वीर तो याद होगी आपको। जब 15 अप्रैल की रात 10.30 बजे प्रयागराज में कॉल्विन अस्पताल के बाहर 17 पुलिवाले मौजूद थे और उन 17 पुलिसवालों के सामने ही गोलियां चलीं थीं। और निशाने पर थे यूपी का माफिया डॉन अतीक और उसका भाई अशरफ। तब तीन हमलावर थे, और उनके हाथ में मौजूद बंदूकें गरज रहीं थी और पुलिसवाले हर गोली की आवाज के साथ कदम कदम पीछे हटते जा रहे थे। 
उस हादसे और उस तस्वीर को गुज़रे अभी 17 दिन ही गुजरे थे कि ऐसा ही वाकया देश क्या एशिया की सबसे सुरक्षित कही जाने वाली जेल यानी तिहाड़ जेल में हुआ। क्योंकि इस जेल के भीतर चार कैदियों ने मिलकर गैंग्स्टर टिल्लू ताजपुरिया (Tillu Tajpuria) की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी थी। 

तिहाड़ में टिल्लू ताजपुरिया के कत्ल के वीडियो ने खोली जेल की पोल


और जब तिहाड़ की उस वारदात का सीसीटीवी सामने आया तो उसने तिहाड़ के अंदर का नंगा घिनौना खूनी और दहला देने वाला सच उजागर कर दिया। 
क्योंकि उस सीसीटीवी की तस्वीर में भी जो कुछ कैद हुआ उसने तिहाड़ और पुलिस की मौजूदगी पर फिर से वैसे ही सवाल खड़े कर दिए जैसे अतीक और अशरफ की हत्या के बाद सिर उठाकर खड़े हुए थे। सीसीटीवी में  दस पुलिसवाले दिखाई दिए। क्या अजीब इत्तेफाक है कि प्रयागराज में 17 पुलिसवाले थे और वहां गोलियां थीं....जबकि तिहाड़ में 10 पुलिसवाले थे और थे नुकीले खंजर। 
इन दो तस्वीरों को देखने के बाद आपको लगता है कि अब कुछ कहने...सुनने की जरूरत है। अगर कानून के रखवालों का ये हाल है तो फिर अंदाजा लगाइये कानून तोड़ने वालों के हौसलों का क्या आलम होगा...(Murder of Tillu Tajpuria)
तिहाड़ के अंदर जो कुछ चल रहा है, जो कुछ हो रहा है, जिस तरह हो रहा है, उसके बारे में अब तक आप सिर्फ सुनते आए हैं...आज पहली बार आपकी टीवी स्क्रीन पर तिहाड़ के अंदर का नंगा घिनौना खूनी और दहला देने वाला वो सच आपको दिखाने जा रहा हूं जिसके बाद तिहाड़ के बारे में आपकी सारी ग़लतफहमी दूर हो जाएगी। तो चलिए फ्रेम दर फ्रेम तिहाड़ के अंदर हुए एक कत्ल की कहानी आपके सामने रखता हूं...
तिहाड़ की जेल नंबर 8 और वॉर्ड नंबर पांच में लगे सीसीटीवी कैमरे में ये फिल्म शुरू होती है, सुबह 6 बजकर 10 मिनट और 45 सेकंड पर। इससे पहले इस वॉर्ड में बिलकुल सन्नाटा था। सुबह का वक़्त था... लिहाजा सभी कैदी अपनी अपनी बैरक और सेल में ही थे। तभी ठीक 6 बजकर 10 मिनट और 58 सेकंड पर सामने बाईं तरफ से एक कैदी ऊपर से नीचे कूदता है। दरअसल ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर भी कैदियों के बैरक और सेल हैं। पहले कैदी के कूदने के तुरंत बाद दायीं तरफ एक और कैदी नज़र आता है। जिसने लाल टी शर्ट और काली हाफ पैंट पहनी हुई है। ये कोई और नहीं टिल्लू ताजपुरिया (Murder of Tillu Tajpuria) है। इसी बीच फर्स्ट फ्लोर से एक दूसरा कैदी नीचे कूदता है। टिल्लू ताजपुरिया उसे देखते ही अपनी सेल के अंदर घुस जाता है और सेल का दरवाजा बंद करने लगता है। 

जेल में हुई टिल्लू ताजपुरिया की हत्या


फर्स्ट फ्लोर से नीचे उतरे दोनों कैदी सेल के बाहर से ही उस पर धारदार हथियारों से हमला करने लगते हैं। इसी बीच एक तीसरा कैदी ऊपर से कूदता है। फिर चौथा कूदता है। कूदते वक्त वो गिर भी जाता है। इस दौरान एक बुजुर्ग कैदी इस चौथे कैदी को रोकने की कोशिश करता है। वो उससे उलझ पड़ता है। 
इधर पहले ही नीचे कूद चुके तीनों कैदी अब तक टिल्लू ताजपुरिया (Murder of Tillu Tajpuria) को उसकी सेल से बाहर खींच चुके थे। और अब एक साथ सभी उस पर ताबड़तोड़ हमला कर रहे थे। इस दौरान दो चार कैदी हमलावरों को रोकने की कोशिश करते हुए नज़र आए। मगर कमाल ये है कि अभी तक एक भी पुलिसवाला कैमरे में नमूदार नहीं हुआ। हालांकि इस कैमरे में ऑडियो नहीं है, लेकिन जिस वक़्त टिल्लू ताजपुरिया (Murder of Tillu Tajpuria) पर हमला हो रहा था तब इस पूरे वार्ड में चीख पुकार मची हुई थी। एक चीख खुद टिल्लू ताजपुरिया (Murder of Tillu Tajpuria) की थी दूसरी चीख हमलावरों की और तीसरी ताजपुरिया को बचाने वाले कैदियों की। लेकिन ये सारी चीखें भी तिहाड़ के किसी भी सिपाही या अफसर के कानों तक नहीं पहुँची। 
ये खून खराबा पूरे दो मिनट तक चलता रहा। आगे की तस्वीरें ऐसी हैं कि न हम खुद देखसकते हैं और न आपको दिखा सकते हैं। इसलिए इसे यहीं फ्रीज कर देते हैं। ये बताते हुए कि दो मिनट बाद जब हमलावरों को यकीन हो गया कि टिल्लू ताजपुरिया मर चुका है, तो वो वहां से निकल लेते हैं। चूंकि सारे हमलावर पहली मंजिल से नीचे कूदे थे लिहाजा अब वो नीचे ही रह जाते हैं। सीसीटीवी कैमरे की पहली फिल्म यहीं खत्म हो जाती है। वक्त नोट कर लीजिए 6 बजकर 10 मिनट और 58 सेकंड पर शुरू हुई ये फिल्म 6 बजकर 12 मिनट 42 सेकंड पर खत्म होती है। 
अब चलिए इसी तिहाड़ (Tihar Jail) की जेल नंबर आठ और वॉर्ड नंबर पांच की एक दूसरी फिल्म देखते हैं। ये फिल्म शुरू होती है, 6 बजकर 45 मिनट पर। यानी पहली फिल्म के खत्म होने के 33 मिनट बाद। इस फिल्म की शुरुआत में ये जो आप जगह देख रहे हैं ये भी वॉर्ड नंबर पांच ही है। दाहिनी तरफ ये जो लोहे के गेट हैं, उसके दूसरी तरफ वही जगह है जो आपने पहली फिल्म में देखी थी...यानी जिस जगह टिल्लू ताजपुरिया को मारा गया। इस फिल्म के हिसाब से हमले के बाद भी लगभग 33 मिनट तक टिल्लू ताजपुरिया उसी हालत में उसी जगह पड़ा रहा था। अब 33 मिनट बाद तिहाड़ के बहादुर पुलिसवाले, यहां आते हैं। उन्हें घायल या मर चुके टिल्लू ताजपुरिया को मौके से उठाकर अस्पताल या मुर्दाघर पहुँचाना था। अब जरा फ्रेम में देखिये.... तीन पुलिसवाले कैमरे में एंट्री लेते हैं।

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जेल में कैदी ताजपुरिया की हत्या करते रहे और कोई भी सुरक्षा कर्मी नज़र नहीं आया


दो सामने जालीदार गेट के पीछे दिखाई दे रहे हैं। उसी जालीदार गेट के पीछे उन्हीं दो पुलिसवालों के साथ लाल टी शर्ट में वो कैदी भी दिखाई दे रहा है जिसने बस कुछदेर पहले ही अपने साथियों के साथ मिलकर टिल्लू ताजपुरिया पर हमला किया था। अब उसी दायीं गेट से दो कर्मचारी और दो पुलिसवाले टिल्लू ताजपुरिया को पता नहीं जिंदा या मुर्दा चादर पर रख कर उठाते और घसीटते हुए ले जा रहे हैं। पीछे तीन पुलिसवाले और हैं। 
जैसे ही सामने सलाखों वाले गेट के करीब पुलिसवाले पहुँचते हैं वो वहीं पर टिल्लू ताजपुरिया को घायल या मुर्दा हालत में जमीन पर रख देते हैं क्योंकि तब तक सामने का दरवाजा खुल चुका था और वही हमलावर जो 33 मिनट पहले टिल्लू पर हमला कर चुके थे..अब जिंदा या मुर्दा टिल्लू पर दोबार हमला शुरू कर देते हैं...वो हथियार जिससे उन्होंने टिल्लू (Murder of Tillu Tajpuria)को मारा था अब भी उनके हाथों में ही थे। 
अब जरा तिहाड़ के इन बहादुर पुलिसवालों की बहादुरी पर भी नज़र डाल ली जाए…..सीसीटीवी के नए फुटेज में जैसे ही सामने का दरवाजा खुलता दिखता हैै...एक एक कर ये सारे बहादुर पीछे हटते जाते हैं...बस एक पुलिसवाला इसमें दिखाई देता है जो शुरुआत में उन्हें रोकने की कोशिश करता है। लेकिन फिर वो भी हार जाता है। कुल दस बहादुर पुलिसवालों की मौजूदगी में टिल्लू ताजपुरिया अब सचमुच मर चुका था। पीछे अब सिर्फ तिहाड़ के निकम्मेपन और उनके जांबाज पुलिसवालों की जांबाजी की निशानियां रह गई थीं।
ये दूसरी फिल्म कुल 9 मिनट 35 सेकंड की थी। तिहाड़़ की घड़ी में ये फिल्म खत्म होती है सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर। यानी 6 बजकर 10 मिनट पर शुरू हुई ये फिल्म कुल 15 मिनट की थी। इस 15 मिनट में हर फ्रेम तिहाड़ की चुगली खा रहा था।

 

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