Delhi violence 2020: डबल मर्डर के चार आरोपी बरी, कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की गजब बेइज्जती की
Four Murder Accused Acquitted: दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को डबल मर्डर के चार आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन जो कहा वो वाकई गौर करने वाली बात है।
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Delhi violence 2020: सबूतों की कमी, पुलिस की नाकाम तफ्तीश और कमजोर पैरवी ये वो तीन कमजोर कड़ियां हैं जिसकी वजह से तीन पहले दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों के दौरान चार आरोपी दो लोगों की हत्या के इल्जाम के बावजूद बरी हो गए।
कोर्ट इंतजार करती रही
सुनवाई के दौरान अदालत ठोस सबूत का इंतजार करती रही, गवाहों से सच सुनने को तरसती रही और वकील की मजबूत और तर्कपूर्ण दलीलों को सुनने को बेताब रही, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने सोमवार को तीन साल पहले दिल्ली में हुए दंगों के दौरान डबल मर्डर के मामले में फैसला सुनाया। अदालत ने इस सिलसिले में चार आरोपी अशोक, अजय, शुभम और जितेंद्र को हत्या के इल्जाम से बरी कर दिया।
बृजपुरी इलाके में हुई थी हत्या
तीन साल पहले दिल्ली में हुआ दंगा शायद ही कोई भूला होगा। जब दंगाइयों ने 25 फरवरी 2020 को दिल्ली के बृजपुरी इलाके में अशफाक हुसैन और जाकिर की हत्या कर दी थी। पुलिस ने इस डबल मर्डर के लिए चार लोगों को आरोपी बनाया था। लेकिन कोर्ट तक आते आते पुलिस के तमाम सबूत सूख गए। उनमें उतनी ताकत ही नहीं रही जो आरोपियों को कलाइयों से पकड़कर सजा की काल कोठरी में धकेल सकती। एक भी गवाह ऐसा नहीं सामने आया जिसने आंखों में आंखे डालकर आरोपियों के गुनाहों का जिक्र किया हो। अभियोजन पक्ष ये साबित ही नहीं कर सका कि जिन आरोपियों को कोर्ट में लाकर खड़ा किया है उनमें से कोई जाकिर और हुसैन की हत्या में शामिल थे भी या नहीं।
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अदालत के पास कोई रास्ता नहीं
अदालत के पास जो सबूत पहुँचे उसे देखकर अदालत को महसूस हुआ कि किसी भी आरोपी का दिए गए स्थान और समय पर दंगाइयों का हिस्सा होने का कोई भी सबूत नहीं है। ऐसे में कोर्ट के पास सिवाय आरोपियों को बरी करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता था ही नहीं।
न सबूत, न गवाह और न दलील
क्या आरोपी उस दंगाई भीड़ का हिस्सा थे, जिसने दोनों पीड़ितों की हत्या की? इस बारे में अदालत ने जो कहा वो सुनने वाला है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि मामलों में चश्मदीद मुकर गए और अभियोजन पक्ष की बात का समर्थन नहीं किया। हालांकि, कॉल डिटेल रिकॉर्ड यानी CDR , कैंची, तलवार की बरामदगी और कुछ आरोपियों के कपड़े और उनके बयानों के आधार पर कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्य बने और सामने भी आए लेकिन वो इतने कम हैं या अपर्याप्त हैं जिनके आधार पर मुल्जिमों को मुजरिम का जामा नहीं पहनाया जा सकता।
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सीडीआर का सबूत पर्याप्त नहीं
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अदालत ने कहा कि केवल सीडीआर के आधार पर वे किसी खास स्थान पर किसी खास शख्स की मौजूदगी के बारे में कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। कोर्ट मानती है कि जहां तक तलवारों और कैंची की बरामदगी का सवाल है और उन पर भरोसा करने का सवाल है, तो ये कहीं से भीऐसा साबित नहीं होता कि ये हथियार मरने वालों के खून के निशान के साथ पाए गए थे। बल्कि ये दिखाने की कोशिश की गई कि इन्हीं हथियारों से हत्या की गई।
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सीसीटीवी तक नहीं दिखाया
अदालत ने कहा कि न तो कोई फोरेंसिक जांच की गई, न ही कपड़ों पर के खून के धब्बे मिले। सबसे ज़्यादा हैरानी की बात है कि चार्जशीट में जिस सीसीटीवी में दोनों की हत्या करने वाले गैरकानूनी जमावड़े के हिस्से के रूप में आरोपी व्यक्तियों की मौजूदगी होने का दावा किया गया वो सीसीटीवी फुटेज भी अदालत में नहीं दिखाया गया।
पुलिस की गजब बेइज्जती
अदालत ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के रूप में भी, दंगाइयों के बीच आरोपियों की मौजूदगी के तौर पर स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि जिन लोगों को आरोपी के तौर पर सामने लाया गया उनके खिलाफ न तो कोई सबूत था, न कोई गवाह और न ही कोई ठोस दलील। हैरानी की बात ये है कि तीन साल पहले हिंसा के उस मामले में दयालपुर थाना पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
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