दिल्ली पुलिस आरोपी को लेकर आठ घंटों तक इधर से उधर अस्पतालों के चक्कर काटती रही, आखिरकार आरोपी की हुई मौत!

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जग प्रवेश चंद्र अस्पताल
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हिमांशु मिश्रा के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट


Delhi Hospital Negligence Accused Died in Usmanpur Area: दिल्ली में सरकारी अस्पतालों में से किसी में बेड नहीं तो किसी में  सिटी स्कैन मशीन नहीं, इसका असर ये हुआ कि आठ घंटों तक दिल्ली पुलिस एक आरोपी को लेकर इधर से उधर अस्पतालों के चक्कर काटती रही, लेकिन समय पर, सही इलाज नहीं मिलने की वजह से आखिरकार आरोपी की मौत हो गई। इस घटना ने झकझोर कर रख दिया। ये वाक्या हुआ दिल्ली के उस्मानपुर इलाके में।

घटना है 2 जनवरी की रात की। न्यू उस्मानपुर थाने इलाके में पुलिस को झगड़े की एक कॉल मिली। कॉल करने वाली महिला ने रात करीब 9 बजे के आसपास पुलिस को बताया कि उस्मानपुर इलाके में एक शख्स शराब के नशे में हंगामा कर रहा है। पुलिस मौके पर पहुंची। वहां पुलिस को 47 साल का एक आदमी मिला, जिसका नाम प्रमोद था। प्रमोद नशे में नजर आ रहा था। 

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पुलिस के मुताबिक, महिला ने आरोप लगाया की प्रमोद ने उसे गाली दी है और छेड़खानी भी की है। आरोप के बाद पुलिस प्रमोद को लेकर न्यू उस्मानपुर थाने के लिए निकल पड़ी। डीसीपी नॉर्थ ईस्ट के मुताबिक, जब पुलिस की टीम उस्मानपुर थाने पहुंचने ही वाली थी, तभी नशे में मौजूद प्रमोद उल्टियां कर रहा था। अचानक उसने गाड़ी का शीशा खोल दिया और सड़क पर कूद गया। भागने की इस कोशिश में प्रमोद घायल हो गया। 

पुलिस ने इस मामले में U/s 354, 354A, 506, 509, 323 IPC के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। वहीं नॉर्थ ईस्ट डीसीपी जॉय टिर्की  के मुताबिक 4 अस्पतालों की लापरवाही से आरोपी की मौत हुई है।

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 नॉर्थ ईस्ट डीसीपी जॉय टिर्की

चार अस्पतालों के चक्कर काटते-काटते जिंदगी खत्म

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इसके बाद घायल प्रमोद को पुलिस की टीम जग प्रवेश चंद्र अस्पताल लेकर गई। वहां से एंबुलेंस से उसे जीटीबी ले जाया गया, लेकिन वहां सिटी स्कैन न होने की वजह से उसे एलएनजेपी के लिए रेफर कर दिया, लेकिन आईसीयू वेंटीलर में बेड खाली न होने की वजह से उसे वहां से आरएमएल हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया गया। पुलिस का कहना है कि वहां भी उसे एडमिट नहीं किया गया, लिहाजा उसे लेकर वापस तीन जनवरी की सुबह पुलिस जेपीसी हॉस्पिटल लेकर पहुंची, जहां 5.45 सुबह उसे मृत घोषित कर दिया। यानी करीब आठ घंटों तक पुलिस आरोपी को इधर से उधर अस्पतालों में लेकर घूमती रही और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया।

प्रमोद के पोस्टमार्टम के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जा रहा है।

ये कोई पहली मर्तबा नहीं, जब सरकारी अस्पतालों की लापरवाही का नमूना सामने आया हो। सवाल है क्यों सुधार नहीं होता?

इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं - 

सरकारी अस्पतालो में ये लापरवाही का सिलसिला कब तक जारी रहेगा?

क्या ज्यादा जनसंख्या इसकी मूल वजह?

क्या दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के पास पर्याप्त मेडिकल infrastructure मौजूद नहीं है? 

क्या लोगों की अपने शरीर के प्रति लापरवाही भी इसके लिए दोषी?

क्या इसको लेकर कोई सख्त कानून मौजूद है कि अगर अस्पताल ने एडमिट करने से इनकार किया तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी ? 

अगर हैं तो क्यों उसका पालन नहीं हो रहा है?

अब इस मामले में बोर्ड ये तय करेगा कि क्या आरोपी को बचाया जा सकता था या नहीं, इसके बाद ही कोई कार्रवाई संभव है।
 

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