Delhi Court Order on Rape: रेप की ये झूठी कहानी हिला कर रख देगी! कैसे एक लड़की ने इस कानून का दुरुपयोग किया
Delhi Court Order on Rape: अधिवक्ता बहू द्वारा अपने पति, ससुर और ननद पर झूठा गैंगरेप करना पड़ा भारी। तीस हज़ारी कोर्ट ने दिए FIR दर्ज करने का आदेश दिया है।
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Delhi Fake Rape Case: विपुल ने सपने में नहीं सोचा था कि जिससे वो शादी करने जा रहा है, वो उसकी जिंदगी खराब कर देगी। विपुल अपने परिवार के साथ जनकपुरी में रहता था। बात 2014 की है। उसकी शादी मनीषा (बदला हुआ नाम) से हुई थी। ये शादी (शादी डाट काम) के जरिए हुई। लड़की वाले करनाल के रहने वाले थे। विपुल उसका वक्त बिजनेस करता था। उसका प्रिटिंग का बिजनेस था। शुरुआत के कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन फिर छोटी-छोटी बातों पर विवाद होना शुरू हो गया। कभी मनीषा की लड़ाई अपने पति विपुल से होती तो कभी उसकी लड़ाई विपुल की बहन से होती। (Tis Hazari Court Order on Rape Case)
हालात ये पैदा हो गए कि विपुल ने उससे अलग रहने का फैसला कर लिया। कुछ ही दिनों के बाद मनीषा ने न सिर्फ विपुल, बल्कि उसके पिता और उसकी बहन पर मुकदमा दर्ज करवा दिया। मनीषा ने आरोप लगाया कि दिल्ली में लड़के ने उसके साथ रेप किया।
Tis Hazari Court Order on Rape Case : ये मुकदमा 2014 में जनकपुरी थाने में दर्ज हुआ था। मनीषा ने आरोप लगाया कि 12 जून 2014 को लड़के ने उसके साथ रेप किया। इसके बाद 30 अगस्त 2014 को दोबारा रेप की कोशिश का इल्जाम लगाया। विपुल की किस्मत ठीक थी कि उसे पुलिस ने अरेस्ट नहीं किया। उसे अदालत ने अग्रिम जमानत मिल गई।
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विपुल ने बताया कि उसने इस संबंध में पुलिस को सबूत दिया था कि जिस दिन वो रेप का इल्जाम लगा रही है, उस दिन वो खुद मनीषा को आईएसबीटी बस अड्डे छोड़ कर आया था। लड़की उसके बाद करनाल चली गई थी। इसका सबूत विपुल ने पुलिस को दिया, लिहाजा पुलिस ने उसे अरेस्ट नहीं किया। विपुल ने कहा, 'ये मेरी किस्मत में था, इसलिए ऐसा हुआ। मैंने इस संबंध में पुलिस को सबूत दिए। पुलिस ने मेरी सहायता की और मुझे सबूत देने का समय दिया गया। इस घटना के बाद मैंने कानून की पढ़ाई की और अब मैं द्वारका कोर्ट में वकील हूं। लड़कियों को इस कानून का बेजा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसे में जो ऐसा करता है, उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।'
Tis Hazari Court Order on Rape Case : 9 साल तक विपुल इंसाफ का इंतजार करता रहा। इस केस में उसकी मदद की सोशल वर्कर दीपिका नारायण ने। अब जाकर कोर्ट ने इसमें फैसले सुनाया है। इस मामले में कोर्ट ने महिला के पति, उसके पिता और बहन को बाइज्ज़त बरी कर दिया। कोर्ट ने महिला और उसके पिता पर गंभीर धारा में FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने माना कि महिला और उसके पिता द्वारा बिल्कुल झूठा मुकदमा कायम किया था और कोर्ट में झूठी गवाही भी दी, जो कि एक अपराध है। कोर्ट ने यह भी कहा की महिला और उसके पिता दोनों अधिवक्ता हैं और इसके बावजूद उन्होंने निर्दोष लोगों के खिलाफ़ कानून का दुरुपयोग किया। झूठे आरोप लगाने वालों को अब 7 साल की जेल हो सकती है।
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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आँचल ने कहा, 'बलात्कार जघन्य अपराध है, लेकिन बलात्कार के झूठे आरोपों से भी दृढ़ता से निपटने की आवश्यकता है क्योंकि इससे अभियुक्तों का बहुत अपमान होता है। वर्तमान मामले में यह आरोप लगाया गया था कि एक पिता ने अपनी बेटी की सहायता और उपस्थिति में बलात्कार किया था।'
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जज आंचल ने इस मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज करने को कहा है और 3 महीने के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है। इस मामले में कॉल डिटेल रिकॉर्ड और चैट की गहनता से जांच की गई ताकि सच्चाई का पता चल सके। कोर्ट ने कहा की जिस दिन महिला बलात्कार की घटना बता रही है उस दिन वो आराम से अपने घर करनाल में बैठी थी और मैसेज में अपने पति के साथ कहीं जाने का प्रोग्राम बना रही थी। FIR के साथ-साथ कोर्ट ने SHO जनकपुरी को तीन महीने में क्या एक्शन लिया, इसकी जानकारी भी कोर्ट को देने के लिए कहा है।
सोशल वर्कर दीपिका नारायण भारद्वाज ने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक फैसला है।'
‘2014 के बाद जब से पति और उसके परिवार को झूठे दहेज के मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट से तुरंत गिरफ्तारी से राहत मिली है, महिलाएं पति और उसके परिवार को फंसाने के लिए बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के भी झूठे इल्जामों से संकोच नहीं कर रही हैं। शर्म की बात है की पढ़ी-लिखी लड़कियां इस तरह कानून का बेजा इस्तेमाल कर रही हैं।’ उन्होंने कोर्ट का धन्यवाद दिया।
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