Exclusive - Delhi Police Inspector: मर्डरर ने दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर को फंसाया, रिश्वत के पैसे कहां छिपा दिए इंस्पेक्टर और उसके चेलों ने!
Delhi Police Inspector Detained By CBI: दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर और एक एएसआई को सीबीआई ने हिरासत में लिया है। दोनों पर रिश्वत लेने का आरोप हैं, लेकिन सीबीआई को रिश्वत के पैसे नहीं मिले। हालांकि सीबीआई ने इस मामले में कुल तीन पुलिसवालों को हि
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Delhi Police Inspector Detained By CBI: दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर Inspector और एक एएसआई को सीबीआई ने हिरासत में लिया है। दोनों पर रिश्वत लेने का आरोप हैं, लेकिन सीबीआई को रिश्वत के पैसे नहीं मिले। हालांकि सीबीआई ने इस मामले में कुल तीन पुलिसवालों को हिरासत में लिया है, जिसमें जीटीबी एंक्लेव के इंस्पेक्टर शिव चरण मीणा भी शामिल है।
क्या है पूरा मामला?
इंस्पेक्टर शिवचरण मीणा, एएसआईत त्रिलोक डबास और दिल्ली होम गार्ड के जवान ऋषि इस केस में आरोपी है। आरोप है कि इन्होंने हत्या के आरोपी रवींद्र चंद्र की जमानत रद्द करा देने की धमकी देकर उससे एक लाख रुपए मांगे थे। रवींद्र के खिलाफ पिछले साल 15 जून को मर्डर और अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। उसने जनता फ्लैट में रहने वाले प्रापर्टी डीलर पवन की हत्या की थी। इस मामले की जांच शिव चरण मीणा कर रहे थे। आरोपी को अदालत ने बेल दे दी थी। इस बीच आरोप है कि इंस्पेक्टर उससे रिश्वत मांग रहा था। रविंद्र ने आरोप लगाया था कि मीणा एक एएसआई और होम गार्ड के जवान के जरिए पैसे की मांग कर रहा है।
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इस बीच आरोपी रविंद्र ने इसकी शिकायत सीबीआई से की थी। सीबीआई के निर्देश पर गुरुवार को थाने जाकर कुछ पैसे भी दे दिए थे। गुरुवार दोपहर लगभग 12.30 बजे सीबीआई टीम द्वारा थाना जीटीबी एंक्लेव के जांच निरीक्षक शिव चरण मीणा को हिरासत में लिया गया।
सीबीआई की टीम ने थाना परिसर सहित आसपास के कमरों, दीर्घा, गलियारे आदि की तलाशी ली, लेकिन बरामदगी नहीं हो सकी। आगे की पूछताछ के लिए सीबीआई की टीम इंस्पेक्टर शिव चरण मीणा, एएसआई त्रिलोक चंद डबास और डीएचजी ऋषि को अपने साथ ले गई है। इस संबंध में सीबीआई द्वारा केस दर्ज कर लिया गया है। सीबीआई का कहना है कि अगर ठोस सबूत सामने आएगा तो इस मामले में इंस्पेक्टर समेत तीनों आरोपियों की गिरफ्तारी होगी।
दिल्ली पुलिस के ऐसे भी हैं जांच अधिकारी मतलब IO
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क्या सबसे बड़े बदमाश दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारी ?
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जब पुलिस वाले किसी केस की जांच करते हैं तो वो आरोपी के खिलाफ सारे सबूत अदालत में पेश करते हैं, लेकिन अक्सर ऐसा देखा गया है कि गिरफ्तारी से लेकर पेशी तक आरोपी और संबंधित जांच अधिकारी के बीच गठजोड़ बन जाता है। कई बार ऐसी शिकायतें मिली है कि पुलिस वाले इस दौरान आरोपी से रिश्वत खाते हैं। इस रिश्वत की रकम के जरिए ये काम होते हैं। चार्जशीट में हल्की धारा लगाई जाती है, अदालत में केस की कमजोर तरीके से पैरवी की जाती है, आरोपी को बेल दिलाने में मदद की जाती है, गवाहों को धमकाया और किसी और तरीके से पटाया जाता है। इसका सीधा फायदा आरोपी को मिलता है और वो बरी हो जाता है। इतने सारे केस है, ऐसे में हरेक केस में क्या हो रहा है, ये न तो थाना का एसएचओ और न ही सीनियर अधिकारी Day to Day ध्यान नहीं रख सकता है, इसी का फायदा जांच अधिकारी उठाते हैं। कई बार तो कुछ एसएचओ की भूमिका भी संदिग्ध रही है।
अब इस केस की बात करे तो कई सवाल खड़े होते हैं -
मसलन
1. आरोपी इंस्पेक्टर मीणा और मर्डरर रविंद्र के बीच क्या संबंध है?
2. क्यों वो रविंद्र से रुपयों की मांग कर रहा था?
3. कैसे इंस्पेक्टर को ये लगा कि रविंद्र रुपए दे सकता है?
4. इंस्पेक्टर, एएसआई और होम गार्ड के जवान के बीच क्या संबंध है?
5. क्या इस केस से आरोपी और पुलिस के गठजोड़ का खुलासा नहीं हुआ है?
6. आरोपी ने कैसे इतनी हिम्मत की वो इंस्पेक्टर को ही फंसा दे?
7. क्या आरोपी मर्डरर रविंद्र की बातों में दम है, क्यों उस पर भरोसा किया जाए, जो खुद ही हत्या का आरोपी है?
8. क्या अब रविंद्र के पीछे दिल्ली पुलिस नहीं पड़ जाएगी?
9. इस केस के शिकायतकर्ता के परिवार के साथ हो रही नाइंसाफी के लिए कौन जिम्मेदार?
10. रविंद्र के परिवार से भी इस बाबत क्या पूछताछ नहीं होनी चाहिए?
11.क्या इंस्पेक्टर और अन्य पुलिस अधिकारियों फोन रिकार्ड सीबीआई खंगाल रही है ?
ये बात भी सोचने वाली है!
इस मामले के कुछ और पहलू भी है। मसलन अगर इंस्पेक्टर दोषी है तो जाहिर तौर पर ये उसके लिए, उसके परिवार के लिए चिंता की बात है। साथ साथ इंस्पेक्टर ने अपने जीवन काल में जितने भी अच्छे काम किए, उन सब पर पानी फिर गया, क्योंकि अब समाज इंस्पेक्टर को अलग नजर से देखेगा। इंस्पेक्टर को ये सब फेस करना पड़ेगा। लेकिन कुछ जानकार ये भी मानते है कि इससे उसके सही कर्मों पर पानी नहीं फेरना चाहिए। हालांकि इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि उसे दंड नहीं मिलना चाहिए। कोई Midway निकलना चाहिए। ये बात भी सच है कि ये इंस्पेक्टर तो छोटी मछली है, अभी भी दिल्ली पुलिस की बड़ी मछ्लियां, यानी डीसीपी, Joint CP, Special CP तक के अधिकारियों पर समय-समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं, लेकिन सब को पता है कि इनके खिलाफ क्या कार्रवाई होती है। एकाध केस को छोड़ दे तो कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं होता है।
हमाम में क्या सब नंगे है?
ये बात भी सच है कि जब कोई पकड़ा जाता है तो वो ये जरूर कहता है, 'दूसरे को देखो वो कितना बड़ा घोटाला कर रहा है। हम तो छोटे प्लेयर हैं।' और कहीं न कहीं वो अपने कृत्य को गलत नहीं मानता। इस तरह के माइंडसेट को दूर करने की जरूरत है ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके। ये बात भी है कि दूसरे के बड़े अपराध को देख कर अपना छोटा अपराध, भी अपराध नहीं लगता है। बल्कि कई लोग तो भ्रष्टाचारियों और प्रेरित होते हैं और वो ये गलती बार बार करते हैं। लेकिन सच ये भी है सिस्टम में ऐसे लोग खुलेआम घूम रहे है और इसी वजह से कुछ लोग भ्रष्टाचार के लिए प्रेरित हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि न तो उन्हें सजा होगी और अगर हो गई तो वो जल्द छूट जाएंगे। कानून का डर खत्म है। पुलिस सुधारों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ साथ अधिकारियों को अपनी 'भूख' पर लगाम लगानी होगी। इसके लिए कही न कही सामाजित तानाबाना भी जिम्मेदार है।
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